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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 17
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
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    या रोह॑न्त्याङ्गिर॒सीः पर्व॑तेषु स॒मेषु॑ च। ता नः॒ पय॑स्वतीः शि॒वा ओष॑धीः सन्तु॒ शं हृ॒दे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    या: । रोह॑न्ति । आ॒ङ्गि॒र॒सी: । पर्व॑तेषु । स॒मेषु॑ । च॒ । ता: । न॒: । पय॑स्वती: । शि॒वा: । ओष॑धी: । स॒न्तु॒ । शम् । हृ॒दे ॥७.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    या रोहन्त्याङ्गिरसीः पर्वतेषु समेषु च। ता नः पयस्वतीः शिवा ओषधीः सन्तु शं हृदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    या: । रोहन्ति । आङ्गिरसी: । पर्वतेषु । समेषु । च । ता: । न: । पयस्वती: । शिवा: । ओषधी: । सन्तु । शम् । हृदे ॥७.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (याः) जो (आङ्गिरसीः) ऋषियों करके बतलाई गई (पर्वतेषु) पर्वतों पर (च) और (समेषु) चौरस ठौरों में (रोहन्ति) उगती हैं, (ताः) वे (पयस्वतीः) दूधवाली, (शिवाः) कल्याणि (ओषधीः) ओषधियाँ (नः) हमारे (हृदे) हृदय के लिये (शम्) शान्तिदायक (सन्तु) होवें ॥१७॥

    भावार्थ

    वैद्य लोग शास्त्रोक्त ओषधियों को दूर और समीप स्थानों से लाकर संसार में नीरोगता करें ॥१७॥

    टिप्पणी

    १७−(याः) (रोहन्ति) उद्भवन्ति (आङ्गिरसीः) अ० ८।५।९। ऋषिभिः प्रोक्ताः (पर्वतेषु) (शैलेषु) (समेषु) साधुस्थानेषु (च) (ताः) (नः) अस्माकम् (पयस्वतीः) दुग्धवत्यः (शिवाः) कल्याण्यः (ओषधीः) तापनाशका अन्नादिपदार्थाः (सन्तु) (शम्) शान्ताः (हृदे) हृदयाय ॥

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    विषय

    आङ्गिरसी: पयस्वतीः

    पदार्थ

    १. (याः आङ्गिरसी:) = जो अंगों में रस का बर्धन करनेवाली (ओषधी:) = औषधियाँ (पर्वतेषु) = (समेषु च) = पर्वतों में व समस्थलों में (रोहन्ती) = उगती हैं, (ता:) = वे (पयस्वती:) = आप्यायन-[वर्धन] कारी रसवाली (शिवा:) = कल्याणकर (ओषधी:) = ओषधियाँ (न:) = हमारे हदे हृदय के लिए (शं सन्तु) = शान्तिकर हों।

    भावार्थ

    पर्वतों व मैदानों में प्रादुर्भूत होनेवाली आङ्गिरसी [अंगों में रस का संचार करनेवाली] ओषधियाँ हमारा वर्धन करती हुई हमारे हृदय के लिए शान्तिकर हों।

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    भाषार्थ

    (याः) जो (आङ्गिरसीः) “शरीर और अङ्गों में प्राणरूपी रस की उत्पादिका" (ओषधीः) ओषधियां (पर्वतेषु, समेषु, च) पर्वतों और समतलों में (रोहन्ति) प्रादुर्भूत होती हैं (ताः) वे ओषधियाँ जोकि (पयस्वतीः) रसवाली हैं (नः) हमारे (हृदे) हृदयों के लिये (शिवा) कल्याणकारिणी तथा (शम्) सुखदायक और रोगशामक (सन्तु) हों।

    टिप्पणी

    [आङ्गिरसीः, “आङ्गिरसोऽङ्गानां हि रसः प्राणो वा अङ्गानां रसः" (बृहद् उप० ब्राह्मण ३, खण्ड १९)। पयस्वतीः= पयः दुग्धम्, तद्वत् रसों वाली]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    Herbs and plants which inspire us with pranic energy for the spirit throughout the body system grow on mountains as well as over the plains. May they, full of the milky food of life, be good and energising for the health and peace of our mind and heart.

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    Translation

    The herbs, that fill tne limbs with sap, and that grow on mountains and plains, may those, rich in milk, be propitious to us and beneficial for heart.

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    Translation

    May these juicy plants which are known as Angirasa (possessing the properties of heat) and grow on mountains and on plains be auspicious and pleasant for my heart.

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    Translation

    May these be pleasant to our heart, auspicious, rich in store of milk, these plants tested by the learned physicians, which grow on mountains and on plains.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(याः) (रोहन्ति) उद्भवन्ति (आङ्गिरसीः) अ० ८।५।९। ऋषिभिः प्रोक्ताः (पर्वतेषु) (शैलेषु) (समेषु) साधुस्थानेषु (च) (ताः) (नः) अस्माकम् (पयस्वतीः) दुग्धवत्यः (शिवाः) कल्याण्यः (ओषधीः) तापनाशका अन्नादिपदार्थाः (सन्तु) (शम्) शान्ताः (हृदे) हृदयाय ॥

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