अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 23
ऋषिः - अथर्वा
देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
1
व॑रा॒हो वे॑द वी॒रुधं॑ नकु॒लो वे॑द भेष॒जीम्। स॒र्पा ग॑न्ध॒र्वा या वि॒दुस्ता अ॒स्मा अव॑से हुवे ॥
स्वर सहित पद पाठव॒रा॒ह: । वे॒द॒ । वी॒रुध॑म्। न॒कु॒ल: । वे॒द॒ । भे॒ष॒जीम् । स॒र्पा: । ग॒न्ध॒र्वा: । या: । वि॒दु: । ता: । अ॒स्मै । अव॑से । हु॒वे॒ ॥७.२३॥
स्वर रहित मन्त्र
वराहो वेद वीरुधं नकुलो वेद भेषजीम्। सर्पा गन्धर्वा या विदुस्ता अस्मा अवसे हुवे ॥
स्वर रहित पद पाठवराह: । वेद । वीरुधम्। नकुल: । वेद । भेषजीम् । सर्पा: । गन्धर्वा: । या: । विदु: । ता: । अस्मै । अवसे । हुवे ॥७.२३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रोग के विनाश का उपदेश।
पदार्थ
(वराहः) सूअर (वीरुधम्) ओषधि (वेद) जानता है, (नकुलः) नेवला (भेषजीम्) रोग जीतनेवाली वस्तु (वेद) जानता है। (सर्पाः) सर्प और (गन्धर्वाः) गन्धर्व [दुःखदायी पीड़ा देनेवाले जीव] (याः) जिनको (विदुः) जानते हैं, (ताः) उनको (अस्मै) इस [पुरुष] के लिये (अवसे) रक्षा के हित (हुवे) मैं बुलाता हूँ ॥२३॥
भावार्थ
मनुष्यों को योग्य है कि जिन ओषधियों को अन्य प्राणी काम में लाते हैं, उनकी यथावत् परीक्षा करके प्रयोग करें ॥२३॥
टिप्पणी
२३−(वराहः) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। वर+आङ्+हन् वा हृञ् हरणे-ड। वराय अभीष्टाय मुस्तादिलाभाय आहन्ति खनति भूमिम्, वा वरान्, आहरतीति। वराहो मेघो भवति वराहारः,... अयमपीतरो वराह एतस्मादेव, बृहति मूलानि, वरंवरं मूलं बृहतीति वा.... अङ्गिरसोऽपि वराहा उच्यन्ते-निरु० ५।४। शूकरः (वेद) जानाति (वीरुधम्) ओषधिम् (नकुलः) अ० ६।१३९।५। जन्तुविशेषः (भेषजीम्) भयनिवारिकां चिकित्साम् (सर्पाः) (गन्धर्वाः) अ० ८।६।१९। दुःखदायिनश्च ते पीडकाश्च ते (याः) ओषधीः (विदुः) जानन्ति (ताः) (अस्मै) पुरुषाय (अवसे) रक्षणाय (हुवे) आह्वयामि ॥
विषय
वराहः, नकुलः, सर्पाः, गन्धर्वा:
पदार्थ
१. (वराह:) = सूकर [वरं वरं आहन्ति]( वीरुधं वेद) = रोगहारी वरणीय लताओं को जानता है। (नकुल:) = नेवला (भेषजं वेद) = रोग व विष दूर करनेवाली ओषधि को जानता है। (सर्पा:) = सर्प और (गन्धर्वा:) = गन्ध से अपने खाद्य पदार्थ को प्राप्त करनेवाले प्राणी (या: विदुः) = जिन औषधभूत वीरुधों को जानते हैं, (ता:) = उन्हें (अस्मै) = इस रुग्ण पुरुष की (अवसे) = प्राणरक्षा के लिए हुवे-पुकारता हूँ।
भावार्थ
'वराह, नकुल, सर्प व गन्धर्व' जिन मूल कन्दों को खोदकर भूपृष्ठ पर लाते हैं, वे अद्भुत औषध का कार्य करते हैं। रुग्ण पुरुष की प्राणरक्षा में ये बडे सहायक होते हैं।
भाषार्थ
(वराहः) सूअर (वीरुधम्) ओषधि को (वेद) जानता है, (नकुलः) नेवला (भेषजीम्) चिकित्सा योग्य ओषधि को (वेद) जानता है। (सर्पा) सर्प (गन्धर्वाः) जो कि गन्ध द्वारा हिंसा कर देते हैं (याः) जिन औषधियों को (विदुः) जानते हैं, (ताः) उन्हें (अस्मा अवसे) इस के लिए रक्षार्थ (हुवे) मैं पुकारता हूं।
टिप्पणी
[गन्धर्वाः = उग्रविष वाले “सर्प" जो कि सूंघने मात्र से व्यक्ति की हिंसा कर देते हैं; गन्ध + अर्वाः (अर्व हिंसायाम्; भ्वादि)। वराह आदि प्राणी निज रोग की ओषधि स्वयं जानते हैं। ये जिन ओषधियों को जानते हैं, उन्हें जान कर चिकित्सक रोगी के रोगानुसार उन का संग्रह करे। "हुवे" द्वारा संग्रह का निर्देश किया है। नेवला और सर्प परस्पर विद्वेषी हैं, ये विषैली ओषधियों को जानते हैं। विषप्रयोग द्वारा भी नानाविध रोगों का उपचार होता है]।
इंग्लिश (4)
Subject
Health and Herbs
Meaning
The wild boar knows the herb, the mongoose knows the medicinal herb for itself. Of these, what the snakes and other wild creatures of the earth, know, I invoke and administer for the cure of this patient.
Translation
The boar knows the plant; the mungoose knows the medicinal herb; the herb, which the serpents and the sustainers of the earth know - those we call to save this man.
Translation
The wild boar knows the medicinal herbs and mongoose also knows the healing herbs. I, the physician collect for the aid of this man the plants which are known by serpent and the reptiles living in the earth.
Translation
I call, to aid this ailing man, the plants which the wild boar, the mongoose, the serpents, the kine, cowherds and learned persons know.
Footnote
WiId pigs are quick at discovering and unearthing potatoes and all sorts of edible roots (Griffith) Mongoose, serpents, cows also know some medicines by their smell. I: A skilled physician.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२३−(वराहः) अन्येष्वपि दृश्यते। पा० ३।२।१०१। वर+आङ्+हन् वा हृञ् हरणे-ड। वराय अभीष्टाय मुस्तादिलाभाय आहन्ति खनति भूमिम्, वा वरान्, आहरतीति। वराहो मेघो भवति वराहारः,... अयमपीतरो वराह एतस्मादेव, बृहति मूलानि, वरंवरं मूलं बृहतीति वा.... अङ्गिरसोऽपि वराहा उच्यन्ते-निरु० ५।४। शूकरः (वेद) जानाति (वीरुधम्) ओषधिम् (नकुलः) अ० ६।१३९।५। जन्तुविशेषः (भेषजीम्) भयनिवारिकां चिकित्साम् (सर्पाः) (गन्धर्वाः) अ० ८।६।१९। दुःखदायिनश्च ते पीडकाश्च ते (याः) ओषधीः (विदुः) जानन्ति (ताः) (अस्मै) पुरुषाय (अवसे) रक्षणाय (हुवे) आह्वयामि ॥
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