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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - पञ्चपदा परानुष्टुबतिजगती सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
    1

    प्र॑स्तृण॒ती स्त॒म्बिनी॒रेक॑शुङ्गाः प्रतन्व॒तीरोष॑धी॒रा व॑दामि। अं॑शु॒मतीः॑ का॒ण्डिनी॒र्या विशा॑खा॒ ह्वया॑मि ते वी॒रुधो॑ वैश्वदे॒वीरु॒ग्राः पु॑रुष॒जीव॑नीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ऽस्तृ॒ण॒ती: । स्त॒म्बिनी॑: । एक॑ऽशुङ्गा: । प्र॒ऽत॒न्व॒ती: । ओष॑धी: । आ । व॒दा॒मि॒ । अं॒शु॒ऽमती॑: । का॒ण्डिनी॑: । या: । विऽशा॑खा: । ह्वया॑मि । ते॒ । वी॒रुध॑: । वै॒श्व॒ऽदे॒वी: । उ॒ग्रा: । पु॒रु॒ष॒ऽजीव॑नी: ॥७.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रस्तृणती स्तम्बिनीरेकशुङ्गाः प्रतन्वतीरोषधीरा वदामि। अंशुमतीः काण्डिनीर्या विशाखा ह्वयामि ते वीरुधो वैश्वदेवीरुग्राः पुरुषजीवनीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रऽस्तृणती: । स्तम्बिनी: । एकऽशुङ्गा: । प्रऽतन्वती: । ओषधी: । आ । वदामि । अंशुऽमती: । काण्डिनी: । या: । विऽशाखा: । ह्वयामि । ते । वीरुध: । वैश्वऽदेवी: । उग्रा: । पुरुषऽजीवनी: ॥७.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रस्तृणतीः) बहुत ढकनेवाली [पत्तोंवाली], (स्तम्बिनी) बहुत गुच्छोंवाली, (एकशुङ्गाः) एक कौंपलवाली, (प्रतन्वतीः) बहुत फैली हुई (ओषधीः) ओषधियों को (आ वदामि) मैं भले प्रकार बुलाता हूँ। (अंशुमतीः) बहुत कौंपवाली, (काण्डिनीः) बड़े गुद्दोंवाली, (विशाखाः) बहुत टहनियोंवाली, (वैश्वदेवीः) सब दिव्य गुणवाली, (उग्राः) बलवाली (पुरुषजीवनीः) मनुष्यों का जीवन करनेवालियों को (ते) तेरे लिये (ह्वयामि) मैं बुलाता हूँ, (याः) जो (वीरुधः) विविध प्रकार उगनेवाली बेल-बूटी हैं ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य विविध प्रकार अन्न, वृक्ष और औषधों को भले प्रकार निरीक्षण करके उपयोग करें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(प्रस्तृणतीः) स्तॄञ् आच्छादने-शतृ। ङीप्। बह्वाच्छादयतीः। बहुपत्रवती (स्तम्बिनीः) स्थः स्तोऽम्बजवकौ। उ० ४।९६। तिष्ठतेः-अम्बच्, स्तादेशः, स्तम्ब-इनि। बहुगुच्छयुक्ताः (एकशुङ्गाः) शम शान्तौ-ग, तस्य नेत्त्वं निपातनादत उत्त्वं च-इति शब्दस्तोममहानिधिः। एकशूकाः। एक−तीक्ष्णाग्रयुक्ताः (प्रतन्वतीः) बहुविस्तारवतीः (ओषधीः) (आ) समन्तात् (वदामि) ह्वयामि (अंशुमतीः) कोमलपल्लवोपेताः (काण्डिनीः) स्कन्धवतीः (याः) (विशाखाः) विविधशाखावतीः (ह्वयामि) (ते) तुभ्यम् (वीरुधः) अ० १।३२।१। विरोहणशीला लतादयः (वैश्वदेवीः) सर्वदिव्यगुणयुक्ताः (उग्राः) प्रचण्डा बलवतीः (पुरुषजीवनीः) मनुष्याणां प्राणाधाराः ॥

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    विषय

    उग्राः पुरुषजीवनी:

    पदार्थ

    १. प्रभु कहते है कि हे पुरुष! मैं तेरे लिए उन (ओषधी:) = ओषधियों को (आवदामि) = उपदिष्ट करता हूँ जो (प्रस्तुणती:) = भूमि को (आच्छादित) = करनेवाली हैं-खूब फैलनेवाली हैं, (स्तम्बिनी:) = तृणों के गुच्छोंवाली हैं, (एकशङ्गा) = एक कोंपलवाली हैं [शङ्ग the awnof a corm] तथा (प्रतन्वती:) = खूब ही फैलनेवाली हैं। २. मैं (ते) = तेरे लिए उन (वीरुधः) = लताओं को (हयामि) = पुकारता हूँ या:-जोकि अंशुमती: बहुत तन्तुओंवाली हैं। काण्डिनी:-काण्डों या पोरुओंवाली हैं, विशाखा:-शाखाओं से रहित हैं। ये ओषधियाँ वैश्वदेवी:-सब दिव्य गुणोंवाली व सब रोगों को जीतनेवाली है, उना:-प्रबल प्रभाववाली हैं, पुरुषजीवनी:-पुरुष को जीवन प्रदान करनेवाली हैं-इनके प्रयोग से पुरुष पुनः जीवित हो उठता है।

    भावार्थ

    प्रभु ने विविध ओषधियों को जन्म दिया है। उनका समुचित ज्ञान व प्रयोग करते हुए हम नीरोग व दीर्घजीवी बनें।

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    भाषार्थ

    (प्रस्तृणतीः) छत्त्राकार, (स्तम्बिनीः) झाड़ीरूप (एकशुङ्गाः) एक उपादान कारण वाली, (प्रतन्वतीः) तान-प्रतानों अर्थात् शाखा-प्रशाखाओं वाली, (अंशुमतीः) छोटी-छोटी शाखाओं वाली, (काण्डिनीः) अनेक गांठों या बड़े तनों वाली (याः विशाखाः) और जो शाखा विरहित, (वैश्वदेवीः) सूर्य, भूमि, जल आदि सब देवों के सम्बन्ध बाली, उन से उत्पन्न (पुरुष जीवनीः) पुरुष को जीवन देने वाली (उग्राः) बलशाली (वीरुधः) विरोहण करने वाली (ओषधीः) ओषधियां हैं, उन्हें (ते आवदामि) मैं तेरे लिये कहता हूं, उनका कथन करता हूं, इसलिये (ह्वयामि) तुझे अपने समीप बुलाता हूं।

    टिप्पणी

    [ओषधियां गुणों और आकृतियों में नानाविध हैं, और इन के उत्पादक तत्त्व भी नानाविध है, परन्तु उपादान कारण की दृष्टि से वे एकविध हैं, एकरूप। इन का उपादान कारण एक है, प्रकृति; और उत्पादक एक है, परमेश्वर। “शुद्ध" का अभिप्राय है उपादान कारण या मूल कारण (छान्दोग्य० उप० अध्याय ६। खण्ड ८। सन्दर्भ ३-६)]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    Prastrnati of thick leaves and growth, Stambini of thick clusters, Ekashunga of single leafy growth, Pratanvati of luxuriant spread out growth, these herbs I take up and value. For you, I also invoke and take up Anshumati of many filaments, Kandini of reed-like growth, Vishakha of many extensive branches. All of them are of universal efficacy, powerful and life-giving for humanity.

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    Translation

    I call out the medicinal herbs wide-spreading, the bushy, the one-sheathed, and the far-extending. I invoke for you the creepers, rich in shoots, having joints and plentiful branches, blessed with all the divine properties, efficacious, and giving new life to men.

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    Translation

    O man ! I, the physician describe to you the healing herbs which spread more, which are bushy, which are creeping ones, and which are single-sheathed. I further tell you of the herbaceous plants which possess fibers which are reed- like, which have plenty of branches, which are of various utility and affectivities, which are strong in their effect and which give life to men.

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    Translation

    I instruct thee in the use of leafy, bushy, single sprouted, wide spreading herbs. I inform thee, of fibrous, bunchy, multi branched, highly efficacious, powerful herbs, giving life to men.

    Footnote

    I: God. Thee: the patient.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(प्रस्तृणतीः) स्तॄञ् आच्छादने-शतृ। ङीप्। बह्वाच्छादयतीः। बहुपत्रवती (स्तम्बिनीः) स्थः स्तोऽम्बजवकौ। उ० ४।९६। तिष्ठतेः-अम्बच्, स्तादेशः, स्तम्ब-इनि। बहुगुच्छयुक्ताः (एकशुङ्गाः) शम शान्तौ-ग, तस्य नेत्त्वं निपातनादत उत्त्वं च-इति शब्दस्तोममहानिधिः। एकशूकाः। एक−तीक्ष्णाग्रयुक्ताः (प्रतन्वतीः) बहुविस्तारवतीः (ओषधीः) (आ) समन्तात् (वदामि) ह्वयामि (अंशुमतीः) कोमलपल्लवोपेताः (काण्डिनीः) स्कन्धवतीः (याः) (विशाखाः) विविधशाखावतीः (ह्वयामि) (ते) तुभ्यम् (वीरुधः) अ० १।३२।१। विरोहणशीला लतादयः (वैश्वदेवीः) सर्वदिव्यगुणयुक्ताः (उग्राः) प्रचण्डा बलवतीः (पुरुषजीवनीः) मनुष्याणां प्राणाधाराः ॥

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