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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 16
    ऋषिः - अथर्वा देवता - भैषज्यम्, आयुष्यम्, ओषधिसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ओषधि समूह सूक्त
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    मु॑मुचा॒ना ओष॑धयो॒ऽग्नेर्वै॑श्वान॒रादधि॑। भूमिं॑ सन्तन्व॒तीरि॑त॒ यासां॒ राजा॒ वन॒स्पतिः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मु॒मु॒चा॒ना: । ओष॑धय: । अ॒ग्ने: । वै॒श्वा॒न॒रात् । अधि॑ । भूमि॑म् । स॒म्ऽत॒न्व॒ती: । इ॒त॒ । यासा॑म् । राजा॑ । वन॒स्पति॑: ॥७.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मुमुचाना ओषधयोऽग्नेर्वैश्वानरादधि। भूमिं सन्तन्वतीरित यासां राजा वनस्पतिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मुमुचाना: । ओषधय: । अग्ने: । वैश्वानरात् । अधि । भूमिम् । सम्ऽतन्वती: । इत । यासाम् । राजा । वनस्पति: ॥७.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    रोग के विनाश का उपदेश।

    पदार्थ

    (मुमचानाः) [रोग से] छुड़ानेवाली (ओषधयः) ओषधियाँ (वैश्वानरात्) सब नरों की हितकारक (अग्नेः) अग्नि [सर्वव्यापक परमेश्वर] का आश्रय लेकर (अधि) अधिकारपूर्वक (भूमिम्) भूमि को (सन्तन्वतीः) ढाँकती हुयी तुम (इत) चलो, (यासाम्) जिनका (राजा) राजा (वनस्पतिः) सेवनीय पदार्थों का स्वामी [सोम रस है] ॥१६॥

    भावार्थ

    मनुष्य परमेश्वर के उत्पन्न किये पदार्थों से यथावत् उपयोग लेवें ॥१६॥

    टिप्पणी

    १६−(मुमुचानाः) रोगात्मोचयित्र्यः (ओषधयः) (अग्नेः) अ० ८।२।२७। अग्निं सर्वव्यापकं परमेश्वरमाश्रित्य (वैश्वानरात्) सर्वनरहितमित्यर्थः (अधि) अधिकृत्य (भूमिम्) (सन्तन्वतीः) आच्छादयन्त्यः (यासाम्) ओषधीनाम् (राजा) (वनस्पतिः) अ० १।१२।३। वननीयानां सेवनीयानां पदार्थानां स्वामी। सोमः सोसरसः ॥

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    विषय

    मुमुचाना: भूमि सन्तन्वत्तीः

    पदार्थ

    १. (यासां राजा वनस्पति:) = जिन ओषधियों का राजा 'सोम' बनस्पति है। यह सोम ज्ञान की रश्मियों का रक्षक हैं। सोमलता शरीर में 'सोम' शक्ति को स्थापित करती हुई ज्ञानाग्नि को दीत करती हैं। हे 'सोम' रूप राजावाली (ओषधयः) = ओषधियो! आप (अग्नेः वैश्वानरात् अधि) = शरीरस्थ वैश्वानर अग्नि के द्वारा-जाठराग्नि के सम्यक् दीपन द्वारा (मुमुचाना:) = हमें रोगों से मुक्त करती हुई और (भूमिम्) = इस शरीररूप पृथिवी को (सन्तन्वती:) = [तनु विस्तारे] विस्तृत शक्तिवाला करती हुई (इत:) हमें प्राप्त होओ।

    भावार्थ

    पृथिवी में उत्पन्न ये ओषधियाँ जाठराग्नि के ठीक दीपन द्वारा हमें रोगमुक्त करती हैं और हमारी शक्तियों का विस्तार करती हैं। इन ओषधियों का राजा 'सोम' है। इस सोमलता का रस शरीर में सोम को स्थापित करता हुआ बुद्धि को दीस करता है।

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    भाषार्थ

    (वैश्वानरात्, अग्नेः अधि) वैश्वानर अर्थात् पार्थिव अग्नि से (मुमुचानाः) मुक्त हुई (ओषधयः) हे ओषधियो (भूमिम्) भूमि को (अभिलक्ष्य) लक्षित कर (संतन्वतीः) फैलती हुई (इत) तुम आओ, (यासाम्) जिनका कि (राजा) अध्यक्ष (वनस्पतिः१) वनों का पालक है, रक्षक है।

    टिप्पणी

    [राष्ट्र द्वारा वनों की रक्षा के लिये, वनाध्यक्ष नियत होना चाहिये, जो कि वनों की रक्षा करे, और पार्थिव अग्नि से इन्हें बचाए। विश्वानर हैं विद्युत् और सूर्य। इन से पार्थिव अग्नि पैदा होती है, अतः पार्थिव अग्नि वैश्वानर है। इस सम्बन्ध में देखो निरुक्त (७।६।२१ से ७।६।२३)। वनस्पतिः = “वनस्य१ पतिः" वन का रक्षक, अध्यक्ष या राजा मनुष्य, न कि कोई महावृक्ष। इस अध्यक्ष की दृष्टि से कहा है कि "वनानां पतये नमः" (यजु० १६।१८)। नमस्कार अध्यक्ष को किया है, न कि किसी महावृक्ष को अर्थात् विना पुरुषों के फलदायी वृक्ष को। यथा “तैरपुष्पाद् वनस्पतिः”]। [१. जात्येकवचन। अभिप्राय है राष्ट्र के सब वनों का पति]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Health and Herbs

    Meaning

    May herbs and plants, saviours of life and protectors from disease, receiving their life energy from cosmic light and warmth, giver of living vitality for humanity, grow and spread out all over the earth. Chief of them is Soma, supreme, and their ruler is Vanaspati, the Sun, light of life.

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    Translation

    May the (plants) herbs, whose king is the Lord of vegetation, freed from fire, the benefactor of all men, go on spreading over the earth.

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    Translation

    Let the plants whose king is the tree expelling out diseases go and spread attaining power from fire prevalent in all the worldly objects and covering the earth (with their luxuriant growth),

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    Translation

    O medicinal herbs, whose ruler is Soma, ye, emancipators from all ailments, depending upon God, the Benefactor of humanity, go and spread yourselves on the earth!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(मुमुचानाः) रोगात्मोचयित्र्यः (ओषधयः) (अग्नेः) अ० ८।२।२७। अग्निं सर्वव्यापकं परमेश्वरमाश्रित्य (वैश्वानरात्) सर्वनरहितमित्यर्थः (अधि) अधिकृत्य (भूमिम्) (सन्तन्वतीः) आच्छादयन्त्यः (यासाम्) ओषधीनाम् (राजा) (वनस्पतिः) अ० १।१२।३। वननीयानां सेवनीयानां पदार्थानां स्वामी। सोमः सोसरसः ॥

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