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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 11
    ऋषिः - भृगुः देवता - अजः पञ्चौदनः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अज सूक्त
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    ए॒तद्वो॒ ज्योतिः॑ पितरस्तृ॒तीयं॒ पञ्चौ॑दनं ब्र॒ह्मणे॒ऽजं द॑दाति। अ॒जस्तमां॒स्यप॑ हन्ति दू॒रम॒स्मिंल्लो॒के श्र॒द्दधा॑नेन द॒त्तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तत् । व॒: । ज्योति॑: । पि॒त॒र॒: । तृ॒तीय॑म् । पञ्च॑ऽओदनम् । ब्र॒ह्मणे॑ । अ॒जम् । द॒दा॒ति॒ । अ॒ज: । तमां॑स‍ि । अ॑प । ह॒न्ति॒ । दू॒रम् । अ॒स्मिन् । लो॒के । श्र॒त्ऽदधा॑नेन । द॒त्त: ॥५.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतद्वो ज्योतिः पितरस्तृतीयं पञ्चौदनं ब्रह्मणेऽजं ददाति। अजस्तमांस्यप हन्ति दूरमस्मिंल्लोके श्रद्दधानेन दत्तः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतत् । व: । ज्योति: । पितर: । तृतीयम् । पञ्चऽओदनम् । ब्रह्मणे । अजम् । ददाति । अज: । तमांस‍ि । अप । हन्ति । दूरम् । अस्मिन् । लोके । श्रत्ऽदधानेन । दत्त: ॥५.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 5; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

    पदार्थ

    (पितरः) हे पालन करनेवालो विद्वानो ! (वः) तुम्हारे लिये (एतद्) यह (तृतीयम्) तीसरी (ज्योतिः) ज्योति [परमेश्वर] (ब्रह्मणे) वेदज्ञान के लिये (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि-म० ८] से सींचे हुए (अजम्) अजन्मे वा गतिशील जीवात्मा का (ददाति) दान करती है। (श्रद्दधानेन) श्रद्धा रखनेवाले पुरुष करके (दत्तः) दिया हुआ (अजः) जीवात्मा (अस्मिन् लोके) इस लोक में (तमांसि) अन्धकारों को (दूरम्) दूर (अप हन्ति) फैंक देता है ॥११॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने विद्वानों को वेद द्वारा उपकार के लिये उत्पन्न किया है। इससे वे ईश्वर की आज्ञा का पालन करके अविद्या का नाश करें ॥११॥ इस मन्त्र का उत्तरार्द्ध ऊपर म० ७। में आ चुका है ॥

    टिप्पणी

    ११−(एतत्) सर्वत्र वर्तमानम् (वः) युष्मदर्थम् (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूपं ब्रह्म (पितरः) हे पालका विद्वांसः (तृतीयम्) जीवप्रकृतिभ्यां भिन्नम् (पञ्चौदनम्) म० ८। पञ्चभिर्भूतैः सिक्तम् (ब्रह्मणे) वेदज्ञानाय (अजम्) म० १। जीवात्मानम् (ददाति) प्रयच्छति। अग्रे व्याख्यातम्-म० ७ ॥

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    विषय

    तमो निवारण

    पदार्थ

    १. हे (पितर:) = पालन करनेवाले जीवो! (एतत्) = यह (वः) = तुम्हारे लिए (तृतीयं ज्योति:) = तृतीय ज्योति है। प्रकृति व जीव के ज्ञान के पश्चात् प्रभु का ज्ञान 'तृतीय ज्योति' है। ये प्रभु (पञ्चौदनम्) = पाँचों ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान का भोजन करनेवाले (अजम्) = गति के द्वारा बुराई को परे फेंकनेवाले जीव को (ब्रह्मणे ददाति) = ज्ञान के लिए दे देते हैं। इसे निरन्तर ज्ञान-प्राप्ति में लगे रहने की प्रवृत्तिवाला बनाते हैं। २. (अस्मिन् लोके) = इस लोक में अहधानेन-श्रद्धायुक्त मन से (दत्त:) = उस प्रभु के प्रति दिया हुआ [दत्तं यस्य अस्ति] (अज:) = यह जीव (तमांसि दरम् अपहन्ति) = अन्धकारों को अपने से दूर फेंकता है। जब जीव प्रभु के प्रति अपना अर्पण करता है तब उसका सब अज्ञान-अन्धकार विलीन हो जाता है।

    भावार्थ

    प्रभु का ज्ञान ही 'तृतीय ज्योति' है। इसे प्रास करनेवाला अपने को प्रभु के प्रति दे डालता है। प्रभु के प्रति अपने को दे डालनेवाला उपासक अज्ञान-अन्धकार को अपने से दूर फेंकता है।

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    भाषार्थ

    (पितरः) हे पितरो ! (एतत्) यह (वः) तुम्हारे लिये (तृतीयम् ज्योतिः) तीसरी ज्योति है जोकि (पञ्चौदनम्) पांच ऐन्द्रियिक भोगों को [त्याग कर], (अजम्) निज नित्य आत्मा को (ब्रह्मणे) ब्रह्म के प्रति समर्पित कर देता है। (अजः) यह नित्य आत्मा [जीवात्मा] (अस्मिन् लोके) इस पृथिवी लोक में (तमांसि) अज्ञानान्धकारों को (दूरम्) दूर-दूर के प्रदेशों तक (अप हन्ति) विनष्ट कर देता है, जब कि यह (श्रद्दधानेन दत्तः) श्रद्धापूर्वक ब्रह्म के प्रति समर्पित कर दिया हो।

    टिप्पणी

    [पितरः= गृहस्थी लोग, माता-पिता आदि। तृतीयम् ज्योतिः= गृहस्थियों के लिये एक ज्योति है। आचार्य, विज्ञपुरोहित। दूसरी ज्योति है उपस्थित परमेश्वर। तीसरी ज्योति है ‘अज’ अर्थात् नित्य जीवात्मा, जिस ने पांच प्रकार के भोगों को त्याग कर, अपने-आप को ब्रह्म के प्रति समर्पित कर दिया है। यह तीसरी ज्योति निज उपदेशों द्वारा दूर-दूर के प्रदेशों के निवासियों के अज्ञानान्धकारों को विनष्ट कर देता है]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Soul, the Pilgrim

    Meaning

    O Pitaras, parents, teachers, seniors, sustainers of life, it is your gift of the third, highest, light of Vedic knowledge and enlightenment which leads the human soul in the natural state to dedicate itself to Divinity. The immortal soul in its reality, self-dedicated to Divinity by its faith and devotion, dispels all darknesses of ignorance and evil and throws them far out in this life itself.

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    Translation

    O elders, this is your third light, the unborn, made of fivefold pulp meshed grain, that one offers to an intellectual person. The unborn, offered in this world by a faithful, dispels the darknesses far away.

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    Translation

    O men of experience and action ! this the third phase of the knowledge of yours that inspires the spirit to surrender the eternal soul flourished with the body of five elements to Brahman, the Supreme Being. This eternal soul surrendered to Brahman by a devout devotee dispels away after all sorts of darkness of material world in this world and in this life.

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    Translation

    Ye Fathers, God is the third Light that is yours. He dedicates the un¬ born soul, protected by five elements, for the spread of Vedic knowledge. Dedicated in this world by the devout believer, the soul dispels and drives away sins.

    Footnote

    Fathers: Learned persons. Third light: The first two being flatter and soul. Five elements: Earth, Water, Fire, Air, Ether (Akasha).

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(एतत्) सर्वत्र वर्तमानम् (वः) युष्मदर्थम् (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूपं ब्रह्म (पितरः) हे पालका विद्वांसः (तृतीयम्) जीवप्रकृतिभ्यां भिन्नम् (पञ्चौदनम्) म० ८। पञ्चभिर्भूतैः सिक्तम् (ब्रह्मणे) वेदज्ञानाय (अजम्) म० १। जीवात्मानम् (ददाति) प्रयच्छति। अग्रे व्याख्यातम्-म० ७ ॥

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