अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 27
या पूर्वं॒ पतिं॑ वि॒त्त्वाऽथा॒न्यं वि॒न्दतेऽप॑रम्। पञ्चौ॑दनं च॒ ताव॒जं ददा॑तो॒ न वि यो॑षतः ॥
स्वर सहित पद पाठया । पूर्व॑म् । पति॑म् । वि॒त्त्वा । अथ॑ । अ॒न्यम् । वि॒न्दते॑ । अप॑रम् । पञ्च॑ऽओदनम् । च॒ । तौ । अ॒जम् । ददा॑त: । न । वि । यो॒ष॒त॒: ॥५.२७॥
स्वर रहित मन्त्र
या पूर्वं पतिं वित्त्वाऽथान्यं विन्दतेऽपरम्। पञ्चौदनं च तावजं ददातो न वि योषतः ॥
स्वर रहित पद पाठया । पूर्वम् । पतिम् । वित्त्वा । अथ । अन्यम् । विन्दते । अपरम् । पञ्चऽओदनम् । च । तौ । अजम् । ददात: । न । वि । योषत: ॥५.२७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।
पदार्थ
(या) जो स्त्री (पूर्वम्) पहिले (पतिम्) पति को (वित्त्वा) पाकर (अथ) उसके पीछे [मृत्यु आदि विपत्तिकाल में] (अन्यम्) दूसरे (अपरम्) पिछले [पति] को (विन्दते) पाती है [उसी प्रकार जो पति मृत्यु आदि विपत्ति में दूसरी स्त्री को पाता है], (तौ) वे दोनों (च) निश्चय करके (पञ्चौदनम्) पाँच भूतों [पृथिवी आदि] के सींचनेवाले (अजम्) अजन्मे वा गतिशील परमेश्वर को [अपने आत्मा में] (ददातः) समर्पित करें (न वि योषतः) वे दोनों अलग न होवें ॥२७॥
भावार्थ
जैसे विपत्तिकाल में स्त्री दूसरे पति को और पुरुष दूसरी स्त्री को प्राप्त होकर सुख पाते हैं, वैसे ही मनुष्य परमात्मा को पाकर दुःखों से छूटकर सुखी होते हैं ॥२७॥
टिप्पणी
२७−(या) स्त्री (पूर्वम्) विवाहितम् (पतिम्) स्वामिनम् (वित्त्वा) विद्लृ लाभे−क्त्वा। लब्ध्वा (अन्यम्) द्वितीयं पतिम् (विन्दते) लभते (अपरम्) नियोजितं पतिम् (पञ्चौदनम्) पञ्चभूतसेचकम् (च) अवश्यम् (तौ) स्त्रीपुरुषौ (अजम्) अजन्मानं गतिशीलं वा परमात्मानम् (ददातः) घोर्लोपो लेटि वा। पा० ७।३।७०। इति रूपसिद्धिः। दद्याताम् (न) निषेधे (वि योषतः) यु मिश्रणामिश्रणयोः-लेट्। वियुक्तौ भवेताम् ॥
विषय
प्रभुस्मरणपूर्वक सखा का वरण
पदार्थ
१. (या) = जो युवति (पूर्वम्) = सबका पालन व पूरण करनेवाले [ पालनपूरणयोः] (पतिम्) = रक्षक प्रभु को (वित्त्वा) = प्राप्त करके (अथ) = अब (अन्यम्) = दूसरे (अपरम्) = और पति को (विन्दते) = प्राप्त करती है, अर्थात् यह युवति सर्वरक्षक प्रभु को साक्षी बनाकर लौकिक सखा [पति] को स्वीकार करती है, (च) = और यदि (तौ) = वे दोनों पति-पत्नी (पञ्चौदनम्) = पाँचों भूतों को अपना ओदन बना लेनेवाले (अजम्) = अजन्मा प्रभु के प्रति (ददात:) = अपने को दे डालते हैं, प्रभु के प्रति अपना समर्पण कर देते हैं तो (न वियोषत:) = कभी पृथक् नहीं होते। इन्हें विधुरता व वैधव्य का कष्ट नहीं सहना पड़ता-इनका परस्पर प्रेम बना रहता है।
भावार्थ
प्रभुस्मरणपूर्वक एक युवति अपने जीवनसाथी को चुनती है और गृहस्थ में यदि ये दोनों प्रभु के प्रति अपना अर्पण करते हैं, तो ये एक-दूसरे से पृथक् नहीं होते-इनका परस्पर प्रेम बना रहता है।
भाषार्थ
(या) जो स्त्री (पूर्वम् पतिम्) पहिले पति को (वित्त्वा) प्राप्त कर, (अथ) पुनः (अन्यम्) उससे भिन्न (अपरम्) दूसरे पति को (विन्दते) प्राप्त करती है, (तौ) वे दोनों (पञ्चौदनम् अजम् च) यदि अपने-अपने पञ्चेन्द्रिय भोगों तथा निज आत्माओं को (ददातः) परस्पर के प्रति सौंप देते हैं तो वे (न वियोषतः) परस्पर से वियुक्त नहीं होते।१
टिप्पणी
[“वियोषतः”, पद द्वारा यह भाव प्रकट होता है कि ये नव वर-वधू प्रथम अपने वैवाहिक सम्बन्धों से वियुक्त हुए-हुए हैं। मन्त्र में यह शिक्षा दी गई हैं यदि पति-पत्नी पारस्परिक भोगों को, और परस्पर की आत्माओं तक को, एक-दूसरे पर न्यौछावर कर दें तो उन के वियोग की सम्भावना नहीं रहती] [१.“पञ्चौदन और अज,” इन पदों के साम्य के कारण, इस अध्यात्मिक प्रकरण में, पुनर्भू के पुनर्विवाह की प्रसक्ति हुई है।]
इंग्लिश (4)
Subject
The Soul, the Pilgrim
Meaning
The woman who having married her former husband loses him (on death) and remarries and thus takes to the other, second, husband, and the husband and wife both submit their immortal souls clad in new existential identity of conjugality to each other and to the Lord divine, they never separate.
Translation
She, who wedded to a former husband, later finds another, and if those two offer pancaudana aja, then they shall not be separated.
Translation
The woman who has been wedded to husband (but after his death) becomes wedded to another man, she and her husband both if surrender their eternal spirit living in body to each other with affection do not ever separate them from each other.
Translation
A woman, who having realized God, the Primordial Lord of the universe, accepts another worldly man as husband, is never separated from God, along with her husband, if they respectively dedicate to God, their unborn soul, protected by five elements.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२७−(या) स्त्री (पूर्वम्) विवाहितम् (पतिम्) स्वामिनम् (वित्त्वा) विद्लृ लाभे−क्त्वा। लब्ध्वा (अन्यम्) द्वितीयं पतिम् (विन्दते) लभते (अपरम्) नियोजितं पतिम् (पञ्चौदनम्) पञ्चभूतसेचकम् (च) अवश्यम् (तौ) स्त्रीपुरुषौ (अजम्) अजन्मानं गतिशीलं वा परमात्मानम् (ददातः) घोर्लोपो लेटि वा। पा० ७।३।७०। इति रूपसिद्धिः। दद्याताम् (न) निषेधे (वि योषतः) यु मिश्रणामिश्रणयोः-लेट्। वियुक्तौ भवेताम् ॥
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