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अथर्ववेद के काण्ड - 9 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 29
    ऋषिः - भृगुः देवता - अजः पञ्चौदनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अज सूक्त
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    अ॑नुपू॒र्वव॑त्सां धे॒नुम॑न॒ड्वाह॑मुप॒बर्ह॑णम्। वासो॒ हिर॑ण्यं द॒त्त्वा ते य॑न्ति॒ दिव॑मुत्त॒माम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒नु॒पू॒र्वऽव॑त्साम् । धे॒नुम् । अ॒न॒ड्वाह॑म् । उ॒प॒ऽबर्ह॑णम् । वास॑: । हिर॑ण्यम् । द॒त्त्वा । ते । य॒न्ति॒ । दिव॑म् । उ॒त्ऽत॒माम् ॥५.२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनुपूर्ववत्सां धेनुमनड्वाहमुपबर्हणम्। वासो हिरण्यं दत्त्वा ते यन्ति दिवमुत्तमाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनुपूर्वऽवत्साम् । धेनुम् । अनड्वाहम् । उपऽबर्हणम् । वास: । हिरण्यम् । दत्त्वा । ते । यन्ति । दिवम् । उत्ऽतमाम् ॥५.२९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 5; मन्त्र » 29
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से सुख का उपदेश।

    पदार्थ

    (अनुपूर्ववत्साम्) यथाक्रम [एक के पीछे एक] बच्चेवाली (धेनुम्) गौ, (अनड्वाहम्) अन्न पहुँचानेवाला बैल, (उपबर्हणम्) वालिश [सिराहने का वस्त्र आदि], (वासः) वस्त्र, (हिरण्यम्) सुवर्ण (दत्त्वा) दान करके (ते) वे [धर्म्मात्मा लोग] (उत्तमाम्) उत्तम (दिवम्) गति (यन्ति) पाते हैं ॥२९॥

    भावार्थ

    धर्म्मात्मा मनुष्य सुपात्रों को विविध प्रकार दान करके उनकी उन्नति से अपनी उन्नति करते हैं ॥२९॥

    टिप्पणी

    २९−(अनुपूर्ववत्साम्) यथाक्रमशिशुमतीम् (धेनुम्) तर्पयित्रीं गाम् (अनड्वाहम्) अ० ४।११।१। अनस्+वह प्रापणे-क्विप्। अन्नप्रापकं वृषभम् (उपबर्हणम्) उप+बृह वृद्धौ उद्यमे च-ल्युट्। शिरोधानम्। वालिशम् (वासः) वस्त्रम् (हिरण्यम्) सुवर्णम् (दत्त्वा) (ते) धार्मिकाः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (दिवम्) दिवु गतौ-डिवि। गतिम् (उत्तमाम्) श्रेष्ठाम् ॥

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    विषय

    प्रभु के प्रति अर्पण से 'अभ्युदय-निःश्रेयस' की सिद्धि

    पदार्थ

    १.(ते) = वे गृहस्थाश्रम में रहनेवाले पति-पत्नी (दत्त्वा) = प्रभु के प्रति अपने को देकर, अर्थात् अपना आत्म-समर्पण करके (अनुपूर्ववत्साम्) = यथाक्रम [एक के पीछे दूसरे] बछड़ों को देनेवाली (धेनुम्) = गौ को (अनड्वाहम्) = कृषि व शकट-बहन के साधनभूत बैल को, (उपबर्हणम्) = तकिया आदि विष्टर सामग्री को, (वास:) = वस्त्रों को व (हिरण्यम्) = सोने [धन-धान्य] को (यन्ति) = प्राप्त होते हैं और ये (उत्तमाम् दिवम्) [यन्ति] = सर्वोत्कृष्ट प्रकाशमय लोक को प्राप्त करते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु के प्रति अपने को अर्पित करनेवाले पति-पत्नी ऐहिक ऐश्वर्य [अभ्युदय] को प्राप्त करके आमुष्मिक नि: श्रेयस [उत्तमा दिवम्] को प्राप्त करते हैं।

     

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    भाषार्थ

    (अनुपूर्ववत्साम्) पहिले बच्चे के पश्चात् पुनः बच्चा देने वाली (धेनुम्) दुधारू गौ को, (अनड्वाहम्) शकटवाही बैल को, (उपबर्हणम्) तकिया समेत बिछौने को, (वासः हिरण्यम्) वस्त्र और सुवर्ण को (दत्त्वा) विवाह में [पुरोहित को] दक्षिणारूप में देकर, (ते) वे गृहस्थी लोग (उत्तमाम् दिवम्) उत्तम दिव् को स्तुतियां प्रशंसा को (यान्ति) प्राप्त करते हैं।

    टिप्पणी

    [दिवु स्तुतौ (दिवादिः)]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    The Soul, the Pilgrim

    Meaning

    Having given a fertile cow with regular calving, a carrier bull, a full bed with pillow, clothes and gold as ritual gifts, they win grateful appreciation and well- deserved praise.

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    Translation

    They, presentinga milch-cow, that bears a calf after the previous one, and a draft-ox, a pillow, a garment, and gold, go to the best heaven.

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    Translation

    They who give as guerdon a cow which drops a calf each season, an ox, a coverlet, cloth and gold to the priests in yajna attain the lofty pleasure of salvation.

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    Translation

    They, who selflessly dedicate their heart-inspired words, their life breaths, their food, their bodies and souls to the service of mankind attain to the highest state of salvation.

    Footnote

    अनुपूर्ववत्सांधेनु: A cow that yields a calf each year. Figuratively it means a speech that comes out of the depth of the heartअनड्वाह.: An of Figuratively the word means life-breath. उपबर्हणम्: A coverlet Figuratively it means food. वासःA robe, Figuratively it means body. हिरण्यम्: Gold, Figuratively soul.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २९−(अनुपूर्ववत्साम्) यथाक्रमशिशुमतीम् (धेनुम्) तर्पयित्रीं गाम् (अनड्वाहम्) अ० ४।११।१। अनस्+वह प्रापणे-क्विप्। अन्नप्रापकं वृषभम् (उपबर्हणम्) उप+बृह वृद्धौ उद्यमे च-ल्युट्। शिरोधानम्। वालिशम् (वासः) वस्त्रम् (हिरण्यम्) सुवर्णम् (दत्त्वा) (ते) धार्मिकाः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (दिवम्) दिवु गतौ-डिवि। गतिम् (उत्तमाम्) श्रेष्ठाम् ॥

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