ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 113/ मन्त्र 7
ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः
देवता - उषाः द्वितीयस्यार्द्धर्चस्य रात्रिरपि
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ए॒षा दि॒वो दु॑हि॒ता प्रत्य॑दर्शि व्यु॒च्छन्ती॑ युव॒तिः शु॒क्रवा॑साः। विश्व॒स्येशा॑ना॒ पार्थि॑वस्य॒ वस्व॒ उषो॑ अ॒द्येह सु॑भगे॒ व्यु॑च्छ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षा । दि॒वः । दु॒हि॒ता प्रति॑ । अ॒द॒र्शि॒ । वि॒ऽउ॒च्छन्ती॑ । यु॒व॒तिः । शु॒क्रऽवा॑साः । विश्व॑स्य । ईशा॑ना । पार्थि॑वस्य । वस्वः॑ । उषः॑ । अ॒द्य । इ॒ह । सु॒ऽभ॒गे॒ । वि । उ॒च्छ॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एषा दिवो दुहिता प्रत्यदर्शि व्युच्छन्ती युवतिः शुक्रवासाः। विश्वस्येशाना पार्थिवस्य वस्व उषो अद्येह सुभगे व्युच्छ ॥
स्वर रहित पद पाठएषा। दिवः। दुहिता प्रति। अदर्शि। विऽउच्छन्ती। युवतिः। शुक्रऽवासाः। विश्वस्य। ईशाना। पार्थिवस्य। वस्वः। उषः। अद्य। इह। सुऽभगे। वि। उच्छ ॥ १.११३.७
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 113; मन्त्र » 7
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथोषो दृष्टान्तेन विदुषीव्यवहारमाह ।
अन्वयः
यथा शुक्रवासाः शुद्धवीर्या विश्वस्य पार्थिवस्य वस्व ईशाना व्युच्छन्त्येषा दिवो युवतिर्दुहिता उषा प्रत्यदर्शि वारंवारमदर्शि तथा हे सुभग उषोऽद्य दिने इह व्युच्छ दुःखानि विवासय ॥ ७ ॥
पदार्थः
(एषा) वक्ष्यमाणा (दिवः) प्रकाशमानस्य सूर्यस्य (दुहिता) पुत्री (प्रति) (अदर्शि) दृश्यते (व्युच्छन्ती) विविधानि तमांसि विवासयन्ती (युवतिः) प्राप्तयौवनावस्था (शुक्रवासाः) शुक्रानि शुद्धानि वासांसि यस्याः सा शुद्धवीर्य्या वा (विश्वस्य) सर्वस्य (ईशाना) प्रभवित्री (पार्थिवस्य) पृथिव्यां विदितस्य (वस्वः) द्रव्यस्य (उषः) सुखे निवासिनि विदुषि। अत्र वस निवास इत्यस्मादौणादिकोऽसुन् स च बाहुलकात् कित्। (अद्य) (इह) (सुभगे) सुष्ठ्वैश्वर्य्याणि यस्यास्तत्सम्बुद्धौ (वि) (उच्छ) विवासय ॥ ७ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदा कृतब्रह्मचर्य्येण विदुषा साधुना यूना स्वतुल्या कृतब्रह्मचर्या सुरूपवीर्या साध्वी सुखप्रदा पूर्णयुवतिर्विंशतिवर्षादारभ्य चतुर्विंशतिवार्षिकी कन्याऽऽध्युदुह्येत तदैवोषर्वत् सुप्रकाशितौ भूत्वा विवाहितौ स्त्रीपुरुषौ सर्वाणि सुखानि प्राप्नुयाताम् ॥ ७ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब उषा के दृष्टान्त से विदुषी स्त्री के व्यवहार को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
जैसे (शुक्रवासाः) शुद्ध पराक्रमयुक्त (विश्वस्य) समस्त (पार्थिवस्य) पृथिवी में प्रसिद्ध हुए (वस्वः) धन की (ईशाना) अच्छे प्रकार सिद्ध करानेवाली (व्युच्छन्ती) और नाना प्रकार के अन्धकारों को दूर करती हुई (एषा) यह (दिवः) सूर्य्य की (युवतीः) ज्वान अर्थात् अति पराक्रमवाली (दुहिता) पुत्री प्रभात वेला (प्रत्यदर्शि) बार-बार देख पड़ती है, वैसे हे (सुभगे) उत्तम भाग्यवती (उषः) सुख में निवास करनेहारी विदुषी ! (अद्य) आज तू (इह) यहाँ (व्युच्छ) दुःखों को दूर कर ॥ ७ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जब ब्रह्मचर्य किया हुआ सन्मार्गस्थ ज्वान विद्वान् पुरुष अपने तुल्य, अपने विद्यायुक्त, ब्रह्मचारिणी, सुन्दर रूप, बल, पराक्रमवाली, साध्वी अच्छे स्वभावयुक्त सुख देनेहारी, युवति अर्थात् बीसवें वर्ष से चौबीसवें वर्ष की आयु युक्त कन्या से विवाह करे, तभी विवाहित स्त्री-पुरुष उषा के समान सुप्रकाशित होकर सब सुखों को प्राप्त होवें ॥ ७ ॥
विषय
सुभग उषा
पदार्थ
१. (एषा) = यह (दिवः दुहिता) = द्युलोक की पुत्री अथवा प्रकाश का पूरण करनेवाली [दिव् - प्रकाश , दुह प्रपूरणे] (व्युच्छन्ती) = अन्धकार को दूर करती हुई (प्रत्यदर्शि) = प्रतिदिन प्रत्येक प्राणी से देखी जाती है । यह (युवतिः) = नित्य यौवन से युक्त है , अमृत है , कभी नष्ट हो जाएगी ऐसी बात नहीं अथवा ‘यु मिश्रणामिश्रणयोः’ अन्धकार का यह अमिश्रण करनेवाली व प्रकाश का मिश्रण करनेवाली है , (शुक्रवासाः) = प्रकाशरूप निर्मल वस्त्रोंवाली है । २. यह उषा (विश्वस्य) = सम्पूर्ण (पार्थिवस्य वस्वः) =पृथिवी सम्बन्धी धन की (ईशाना) = ईश है । इस पार्थिव शरीर के निवास को उत्तम बनाने के लिए जिन तत्त्वों की उपयोगिता है , यह उषा उन सबसे सम्पन्न है , इसीलिए देव उषर्बुध होते हैं । ३.हे (सुभगे) = सब उत्तम भोगों से सम्पन्न - सब ऐश्वर्यों की आधारभूत (उषः) = उषो देवते ! (अद्य) = आज (इह) = हमारे जीवन में (व्युच्छ) = तू विशेषरूप से अन्धकार को दूर करनेवाली हो । उषा हमारे जीवन में प्रकाश लानेवाली हो । यह हमें उचित प्रेरणा प्राप्त कराके ज्ञान व निर्मलता की प्राप्ति कराती है ।
भावार्थ
भावार्थ - उषा उदित हो , यह प्रकाश का पूरण करती है , निर्मलता को धारण कराती है । सब पार्थिव धनों की ईशान होती हुई हमारे जीवनों में सुभग को उदित करती है , इसके सेवन से हमारे जीवन की सब क्रियाएँ सुन्दर होती हैं ।
विषय
उषा के दृष्टान्त से नववधू, गृहपत्नी, और विदुषी स्त्री के कर्तव्यों का उपदेश ।
भावार्थ
( एषा ) यह ( दिवः दुहिता ) सूर्य की पुत्री के समान उषा, ( शुक्रवासाः ) शुद्ध उजले वस्त्रों को धारण करने वाली ( युवतिः ) युवति स्त्री के समान ( शुक्रवासाः ) शुद्ध प्रकाश को धारण करती हुई ( वि उच्छन्ती ) विविध प्रकाशों को प्रकट करती हुई ( प्रति अदर्शि ) दिखाई देती है। वह ( विश्वस्य पार्थिवस्य वस्त्रः ) समस्त पृथ्वी पर के ऐश्वर्य की ( ईशाना ) स्वामिनी सी है । हे ( सुभगे ) उत्तम ऐश्वर्य वाली विदुषी के समान प्रभातवेले! तू (अद्य इह) आज इस जगत् में (वि उच्छ) विविध गुणों के समान प्रकाशों को प्रकट कर । युवती कन्या विद्वान् तेजस्वी कामना युक्त पुरुष की इच्छा पूर्ण करने वाली होने से ‘दिवः दुहिता’ है। शुद्ध वीर्यों या वस्त्रों को धारण करने से ‘शुक्रवासाः’ है । ऐश्वर्यवती, सौभाग्यवती होने से ‘सुभगा’ है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्स आङ्गिरस ऋषिः ॥ १-२० उषा देवता । द्वितीयस्यार्द्धर्चस्य रात्रिरपि॥ छन्दः– १, ३, ९, १२, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ त्रिष्टुप् । ७, १८—२० विराट् त्रिष्टुप्। २, ५ स्वराट् पंक्तिः। ४, ८, १०, ११, १५, १६ भुरिक् पंक्तिः। १३, १४ निचृत्पंक्तिः॥ विंशत्यृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा ब्रह्मचर्य धारण केलेल्या सन्मार्गी तरुण पुरुषाने आपल्यासारख्या विद्यायुक्त ब्रह्मचारिणी, सुंदर रूप, बल, पराक्रम यांनी युक्त, सात्त्विक, चांगल्या स्वभावाच्या, सुखी करणाऱ्या युवतीबरोबर विवाह करावा. तिचे वय वीस ते चोवीसच्या दरम्यान असावे. विवाहित स्त्री-पुरुषांनी उषेप्रमाणे सुप्रकाशित व्हावे. व सर्व सुख प्राप्त करावे. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Dawn, this daughter of heavenly light, appears on the horizon, shining bright, a maiden clothed in light, over-whelming the entire beauty and wealth of the world. O dawn, lady of noble good fortune, come here for us and shine.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of a learned lady are taught by the illustration of the dawn in the seventh Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
As this dawn-daughter of the shining sun, young, white-robed, the mistress of all earthly treasure, is beheld dissipating the darkness, so O auspicious learned lady giver of happiness, dispel all our miseries today in this world behaving like the beautiful and charming dawn, full of vitality and putting on clean clothes.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(व्युच्छन्ती) विविधानि तमांसि विवासयन्ती = Dispelling all darkness. (शुक्रवासा:) शुक्रानि शुद्धानि वासांसि यस्याः सा शुद्धवीर्या वा = Putting on spotless clean clothes or full of vitality. (उष:) सुखे निवासिनि विदुषि = Learned lady making the husband and others to dwell in happiness. उषा is derived from उच्छ-विवासे or उष-वाहे ।
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
When a good young girl who has observed Brahmacharya up to the age between 20 to 24, beautiful and full of vitality, giver of happiness and suitable is married by a good learned man who has observed Brahmacharya, it is only then the married couple enjoy all kinds of happiness, shining well like the dawn.
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