ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 113/ मन्त्र 8
ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः
देवता - उषाः द्वितीयस्यार्द्धर्चस्य रात्रिरपि
छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति
स्वरः - पञ्चमः
प॒रा॒य॒ती॒नामन्वे॑ति॒ पाथ॑ आयती॒नां प्र॑थ॒मा शश्व॑तीनाम्। व्यु॒च्छन्ती॑ जी॒वमु॑दी॒रय॑न्त्यु॒षा मृ॒तं कं च॒न बो॒धय॑न्ती ॥
स्वर सहित पद पाठप॒रा॒य॒ती॒नाम् । अनु॑ । ए॒ति॒ । पाथः॑ । आ॒ऽय॒ती॒नाम् । प्र॒थ॒मा । शश्व॑तीनाम् । वि॒ऽउ॒च्छन्ती॑ । जी॒वम् । उ॒त्ऽई॒रय॑न्ती । उ॒षाः । मृ॒तम् । कम् । च॒न । बो॒धय॑न्ती ॥
स्वर रहित मन्त्र
परायतीनामन्वेति पाथ आयतीनां प्रथमा शश्वतीनाम्। व्युच्छन्ती जीवमुदीरयन्त्युषा मृतं कं चन बोधयन्ती ॥
स्वर रहित पद पाठपरायतीनाम्। अनु। एति। पाथः। आऽयतीनाम्। प्रथमा। शश्वतीनाम्। विऽउच्छन्ती। जीवम्। उत्ऽईरयन्ती। उषाः। मृतम्। कम्। चन। बोधयन्ती ॥ १.११३.८
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 113; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे सुभगे यथेयमुषाः शश्वतीनां परायतीनामुषसामन्त्याऽऽयतीनां प्रथमा व्युच्छन्ती जीवमुदीरयन्ती कञ्चन मृतमिवापि बोधयन्ती सती पाथोऽन्वेति तथैव त्वं पतिव्रता भव ॥ ८ ॥
पदार्थः
(परायतीनाम्) पूर्वं गतानाम् (अनु) (एति) पुनः प्राप्नोति (पाथः) अन्तरिक्षमार्गम् (आयतीनाम्) आगामिनीनामुषसाम् (प्रथमा) विस्तृतादिमा (शश्वतीनाम्) प्रवाहरूपेणानादीनाम् (व्युच्छन्ती) तमो नाशयन्ती (जीवम्) प्राणधारिणम् (उदीरयन्ती) कर्मसु प्रवर्त्तयन्ती (उषाः) दिननिमित्तः प्रकाशः (मृतम्) मृतमिव सुप्तम् (कम्) (चन) प्राणिनम् (बोधयन्ती) जागरयन्ती ॥ ८ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सौभाग्यमिच्छन्त्यः स्त्रिय उषर्वदतीतानागतवर्त्तमानानां साध्वीनां पतिव्रतानां शाश्वतं धर्ममाश्रित्य स्वस्वपतीन् सुखयन्त्यः सुशोभमानाः सन्तानान्युत्पाद्य परिपाल्य विद्यासुशिक्षा बोधयन्त्यः सततमानन्दयेयुः ॥ ८ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे उत्तम सौभाग्य बढ़ानेहारी स्त्री ! जैसे यह (उषाः) प्रभात वेला (शश्वतीनाम्) प्रवाहरूप से अनादिस्वरूप (परायतीनाम्) पूर्व व्यतीत हुई प्रभात वेलाओं के पीछे (आयतीनाम्) आनेवाली वेलाओं में (प्रथमा) पहिली (व्युच्छन्ती) अन्धकार का विनाश करती और (जीवम्) जीव को (उदीरयन्ती) कामों में प्रवृत्त कराती हुई (कम्) किसी (चन) (मृतम्) मृतक के समान सोए हुए जन को (बोधयन्ती) जगाती हुई (पाथः) आकाश मार्ग को (अन्वेति) अनुकूलता से जाती-आती है, वैसे ही तू पतिव्रता हो ॥ ८ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कर है। सौभाग्य की इच्छा करनेवाली स्त्रीजन उषा के तुल्य भूत, भविष्यत्, वर्त्तमान समयों में हुई उत्तम शील पतिव्रता स्त्रियों के सनातन वेदोक्त धर्म का आश्रय कर अपने-अपने पति को सुखी करती और उत्तम शोभावाली होती हुई सन्तानों को उत्पन्न कर और सब ओर से पालन करके उन्हें सत्य विद्या और उत्तम शिक्षाओं का बोध कराती हुई सदा आनन्द को प्राप्त करावें ॥ ८ ॥
विषय
अनन्त उषाएँ
पदार्थ
१. (परायतीनाम्) = दूर जाती हुई , अर्थात् बीतती हुई उषाओं के (पाथः) = अन्तरिक्ष लक्षण मार्ग के (अनु एति) = पीछे यह आती है तथा (आयतीनाम्) = आनेवाली (शश्वतीनाम्) = बहुत अथवा अनन्त उषाओं के यह (प्रथमा) = आगे होनेवाली है । अनन्त उषाकाल बीत चुके , अनन्त उषाकाल आगे आएँगे , दोनों के बीच में यह आज का (उषाः) = उषाकाल है । यह (व्युच्छन्ती) = अन्धकार को दूर करती हुई (जीवम्) = प्राणिमात्र को (उदीरयन्ती) = बिछौने से उठ खड़ा होने के लिए प्रेरित करती हुई , (मृतम्) = शयनावस्था में सब इन्द्रिय - व्यापारों के रुक जाने से मृत के समान पड़े हुए (कं चन) = किसी भाग्यशाली या व्रतधर्मा पुरुष को (बोधयन्ती) = फिर से उद्बुद्ध कर देती है । २. रात्रि में सम्पूर्ण जगत् प्रसुप्त - सा - मृत - सा लगता है । उषा के होते ही संसार फिर जी - सा उठता है , चहल - पहल होने लगती है और जीवन के सब चिह्न व्यक्त हो उठते हैं । ये उषाएँ अनादिकाल से चली आ रही हैं और अनन्तकाल तक चलती चलेंगी । यह आज की उषा भूतकाल की उषाओं के पीछे आनेवाली हैं तो भविष्यत् की उषाओं की प्रथम भाविनी है ।
भावार्थ
भावार्थ - उषा आये और हममें नित्य नूतन जीवन का सञ्चार करे ।
विषय
उषा के दृष्टान्त से नववधू, गृहपत्नी, और विदुषी स्त्री के कर्तव्यों का उपदेश ।
भावार्थ
यह उषा ( परायतीनां ) पूर्व ही गुजरी हुई उषाओं के ( पाथः अनु एति ) मार्ग का अनुसरण करती है और ( शश्वतीनां ) अनन्त काल तक ( आयतीनां ) आगे आने वाली उषाओं में से ( प्रथमा ) सबसे पहली है। वह (वि-उच्छन्ती) प्रकट होती हुई ( जीवम् ) जीवित संसार को ( उत् ईरयन्ती ) जगाती, उठाती हुई ( कंचन मृतम् ) मानो किसी भी मरे मुर्दे पुरुष को ( बोधयन्ती इव ) जगाती, चेतन करती हुई सी प्रकट होती है। इसी प्रकार विदुषी स्त्री अपने से पूर्व की या (परायतीनां ) परम पद परमेश्वर तक प्राप्त होने वाली विदुषी स्त्रियों के चले मार्ग का अनुगमन करें। वह ( आयतीनां ) आगे आने वाली, अपने से छोटे उम्र की स्त्रियों में प्रमुख रहे । ( जीवम् ) पुरुष को उन्नति मार्ग में प्रेरित करती हुई, अपने गुणों को प्रकाश करती हुई, मुर्दे में जान सी फूंकती हुई अकर्मण्य पुरुष को भी कर्मण्य और साहसी बनावे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्स आङ्गिरस ऋषिः ॥ १-२० उषा देवता । द्वितीयस्यार्द्धर्चस्य रात्रिरपि॥ छन्दः– १, ३, ९, १२, १७ निचृत् त्रिष्टुप् । ६ त्रिष्टुप् । ७, १८—२० विराट् त्रिष्टुप्। २, ५ स्वराट् पंक्तिः। ४, ८, १०, ११, १५, १६ भुरिक् पंक्तिः। १३, १४ निचृत्पंक्तिः॥ विंशत्यृचं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सौभाग्य इच्छिणाऱ्या स्त्रिया उषेप्रमाणे भूत, भविष्य, वर्तमानकाळी उत्तम शीलवान पतिव्रता, सनातन वेदोक्त धर्माचा आश्रय घेऊन आपापल्या पतींना सुखी करतात. त्यांनी सुशोभित होऊन संतानांना उत्पन्न करावे. त्यांचे पालन करून त्यांना सत्यविद्या व उत्तम शिक्षणाचा बोध करवून सदैव आनंद प्राप्त करावा. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The dawn follows the path of those that have gone before since eternity. It is the first pioneer of those that would follow for eternity. Shining bright, waking up, inspiring, exciting, even reviving life asleep as dead, it comes on and shines on.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O auspicious lady, as this Usha (Dawn) following the path of the endless mornings that have passed, and first of the endless mornings that are to come (eternal in the form of the flow or the cycle) being the dispenser of darkness arouses living beings and awakens every one that lay as dead, so you should also be a chaste lady (Pati Vrata) dispelling the darkness of ignorance and leading women towards the path of righteousness.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(व्युच्छन्ती) तमो नाशयन्ती = Dispelling darkness. (उदीरयन्ती) कर्मसु प्रवर्तयन्ती = Arousing or impelling to do their work.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Women who desire to have true happiness should gladden all by following the eternal Dharma adopted by all good, pious and chaste ladies of the past, present and future ages, delighting their husbands, charming, begetting virtuous progeny, bringing them up properly and giving them good education and wisdom.
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