Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 23 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 23/ मन्त्र 17
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - ब्रह्मणस्पतिः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    विश्वे॑भ्यो॒ हि त्वा॒ भुव॑नेभ्य॒स्परि॒ त्वष्टाज॑न॒त्साम्नः॑साम्नः क॒विः। स ऋ॑ण॒चिदृ॑ण॒या ब्रह्म॑ण॒स्पति॑र्द्रु॒हो ह॒न्ता म॒ह ऋ॒तस्य॑ ध॒र्तरि॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वे॑भ्यः । हि । त्वा॒ । भुव॑नेभ्यः । परि॑ । त्वष्टा॑ । अज॑नत् । साम्नः॑ऽसाम्नः । क॒विः । सः । ऋ॒ण॒ऽचित् । ऋ॒ण॒ऽयाः । ब्रह्म॑णः । पतिः॑ । द्रु॒हः । ह॒न्ता । म॒हः । ऋ॒तस्य॑ । ध॒र्तरि॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वेभ्यो हि त्वा भुवनेभ्यस्परि त्वष्टाजनत्साम्नःसाम्नः कविः। स ऋणचिदृणया ब्रह्मणस्पतिर्द्रुहो हन्ता मह ऋतस्य धर्तरि॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वेभ्यः। हि। त्वा। भुवनेभ्यः। परि। त्वष्टा। अजनत्। साम्नःऽसाम्नः। कविः। सः। ऋणऽचित्। ऋणऽयाः। ब्रह्मणः। पतिः। द्रुहः। हन्ता। महः। ऋतस्य। धर्तरि॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 23; मन्त्र » 17
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 32; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेश्वरविषयमाह

    अन्वयः

    हे विद्वन् यः साम्नः साम्नः कविस्त्वष्टा विश्वेभ्यो हि भुवनेभ्योऽयं त्वा पर्यजनत्स ब्रह्मणस्पतिरस्ति तस्य मह तस्य धर्त्तरि जगदीश्वरे स्थित णचिदृणयास्त्वं द्रुहो हन्ता भव ॥१७॥

    पदार्थः

    (विश्वेभ्यः) सर्वेभ्यः (हि) खलु (त्वा) त्वाम् (भुवनेभ्यः) लोकेभ्यः (परि) सर्वतः (त्वष्टा) निर्माता (अजनत्) जनयति (साम्नःसाम्नः) सामवेदस्य सामवेदस्य मध्ये (कविः) सर्वज्ञः (सः) (णचित्) य णं चिनोति सः (णयाः) य णं याति प्राप्नोति सः (ब्रह्मणः) ब्रह्माण्डस्य (पतिः) पालकः (द्रुहः) द्वेष्टुः (हन्ता) नाशकः (महः) महतः (तस्य) सत्यस्य कारणस्य (धर्त्तरि) ॥१७॥

    भावार्थः

    हे जीव यः सर्वज्ञः सृष्टिकर्त्ता सकलभुवनैकस्वामी सर्वधर्त्ता जगदीश्वरोऽस्ति तदाऽऽज्ञायां स्थित्वा द्रोहादिकं दूरतः परिहरेत् ॥१७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    विषय

    अब ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे विद्वान् जो (साम्नःसाम्नः) सामवेद सामवेदमात्र के बीच (कविः) सर्वज्ञ (त्वष्टा) पदार्थों का निर्माण करनेवाला (विश्वेभ्यः) सभी (भुवनेभ्यः) लोकों से जिन (त्वा) आपको (पर्यजनत्) सब प्रकार प्रकट करता है (सः) वह (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्माण्ड की पालना करनेवाला है उस (महः) महान् (तस्य) सत्य कारण के (धर्त्तरि) धारण करनेवाले जगदीश्वर में स्थित (णचित्) ण को इकट्ठा करने और (णयाः) णको प्राप्त होनेवाले आप (द्रुहः) द्रोह करनेवाले के (हन्ता) नाशक हूजिये ॥१७॥

    भावार्थ

    हे जीव जो सर्वज्ञ सृष्टिकर्त्ता सकल भुवनों का एक स्वामी और सबका धारणकरनेवाला जगदीश्वर है, उसकी आज्ञा में स्थित द्रोहादिकों को दूर से दूर करे ॥१७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    संगीत से निर्मित ब्राह्मण

    शब्दार्थ

    हे ब्राह्मण ! (त्वष्टा) जगद्-निर्माता, सच्चे शिल्पकार (कवि:) कान्तदर्शी परमात्मा ने (विश्वेभ्य: भुवनेभ्यः परि) सम्पूर्ण लोकों से (साम्नः साम्न:) संगीत-तत्त्व लेकर (हि) ही (त्वा) तुझे (अजनत्) उत्पन्न किया, तेरा निर्माण किया । (ब्रह्मणस्पतिः) ब्राह्मण (स:) वह तू, ऐसा तू (ऋणचित्) दूसरों पर उपकारों का भार चिननेवाला है और (ऋणया) अपने ऋण के भार से (द्रुहः) द्रोह का (हन्ता) मारनेवाला है - (महः) महान् (ऋतस्य) ज्ञानरूप ऋण के (धर्तरि) सिर पर ढोए जाने पर ।

    भावार्थ

    मन्त्र में सच्चे ब्राह्मण का वर्णन है - ईश्वर ने ब्राह्मण की रचना संगीत - तत्त्व से की है । सब लोकों में जहाँ-जहाँ भी संगीत था वहाँ-वहाँ से संगीत लेकर प्रभु ने ब्राह्मण का निर्माण किया । संगीत की एक अद्भुत विशेषता है - मार खाकर मीठा बोलना । तबला मीठा बोलता है मार खाकर । बस, यही ब्राह्मण का स्वरूप है । ब्राह्मण दूसरों को मारता है परन्तु कैसे ? ऋण के भार से, अपने उपकारों के बोझ से । सच्चा ब्राह्मण अपकार का बदला उपकार से देता है, वह द्वेषाग्नि को प्रेम-वारि से शान्त करता है। लोग ऐसे व्यक्ति के ऊपर पत्थर फेंकते हैं और वह मिठाई बरसाता है । लोग उसे गालियाँ देते हैं और वह उनके घर मिठाइयों की टोकरियाँ भेजता है। लोग उसे विष पिलाते हैं और वह विषदाताओं को अमृत पिलाता है। महर्षि दयानन्द ऐसे ही ब्राह्मण थे जिन्होंने अपने विषदाता जगन्नाथ को रुपयों की थैली देकर उसका जीवन बचाया था । प्रभो ! हमें भी ऐसा ब्राह्मण बनने का सामर्थ्य दो ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    ऋणचित्+ऋणया:

    पदार्थ

    १. (त्वष्टा) = वह निर्माता प्रभु हि निश्चय से (त्वा) = तुझे (विश्वेभ्यः भुवनेभ्यः) = सब प्राणियों के लिए- सबके हितसाधन लिए- (परि अजनत्) = उत्पन्न करता है। तुमने अकेले अपने स्वार्थ सिद्ध करते हुए-मौज मारते हुए जीवन नहीं बिताना । परार्थ को सिद्ध करना ही तेरा स्वार्थ होना चाहिए। २. वे प्रभु ('साम्नः साम्नः कविः') = प्रत्येक शान्तिप्राप्ति साधन के उपदेष्टा हैं [कु शब्दे] । (सः) = वे (ऋणचित्) = [ऋण Strong hold, fort] इस दृढ़शरीररूप किले का चयन करनेवाले हैं। (ऋणया:) = सब 'पितृऋण-ऋषिऋण-देवऋण व मानवऋण' आदि ऋणों को हमारे से पृथक् करनेवाले हैं – इन ऋणों से अनृण होने की हमें क्षमता प्रदान करनेवाले हैं [ऋणस्य यावयिता] । २. (ब्रह्मणस्पतिः) = ये ज्ञान के स्वामी प्रभु (द्रुहः हन्ता) = द्रोहवृत्ति को नष्ट करनेवाले हैं उस व्यक्ति के जीवन में ये द्रोह की वृत्ति को नष्ट करते हैं जो कि (महः) = पूजा का तथा (ऋतस्य) = यज्ञ का (धर्तरि) = धारण करनेवाला है। संध्या व अग्निहोत्र को नियम से करनेवाले में प्रभु द्रोहवृत्ति को नहीं उत्पन्न होने देते।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु ने हमें सबके हित सिद्ध करने के लिए यह जन्म दिया है। यथासम्भव शान्तजीवन बिताने का हमें प्रयत्न करना है। ध्यान व यज्ञ में प्रवृत्त होकर द्रोह से दूर रहना है। वे प्रभु हमें दृढ़ शरीर प्राप्त कराते हैं - इस योग्य बनाते हैं कि हम सब ऋणों को ठीक से अदा करके मुक्त हो सकें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राज्यपालक राजा का वर्णन ।

    भावार्थ

    सब विषम दशाओं के उपस्थित रहने पर भी ( साम्नः साम्नः ) साम ही साम उपाय को ( कविः ) सबसे उत्तम रूप से पारदर्शी होकर देखने वाला विद्वान्, बुद्धिमान् पुरुष है । वही ( त्वष्टा ) तेजस्वी सूर्य के समान विद्वान् पुरुष ( त्वा ) तुझ प्रजाजन या राजा को ( विश्वेभ्यः ) समस्त ( भुवनेभ्यः परि ) लोकों और उत्पन्न पदार्थों से ( परि अजनत् ) परि पूर्ण और श्रेष्ठ बना देता है । ( सः ) वही ( ऋण-चित् ) धनों को संग्रह करने वाला, वही ( ऋणया ) धनों को लेने और देने में समर्थ, वही ( ब्रह्मणः पतिः ) बड़े राज्यैश्वर्य का पालक, वही ( द्रुहः हन्ता ) द्रोही पुरुषों को नाश करने और दण्ड देने में समर्थ और वही ( महः ) बड़े ( ऋतस्य ) सत्य वेद ज्ञान, और न्याय व्यवस्था के ( धर्त्तरि ) धारण करने वाले के पदपर स्थित होने योग्य है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ देवताः– १, ५,९,११, १७, १९ ब्रह्मणस्पतिः । २–४, ६–८, १०, १२–१६, १८ बृहस्पतिश्च ॥ छन्दः– १, ४, ५, १०, ११, १२ जगती । २, ७, ८, ९, १३, १४ विराट् जगती । ३, ६, १६, १८ निचृज्जगती । १५, १७ भुरिक् त्रिष्टुप् । १६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ एकोन विंशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे जीवा! जो सर्वज्ञ, सृष्टिकर्ता, संपूर्ण जगाचा स्वामी, सर्वांना धारण करणारा ईश्वर आहे त्याच्या आज्ञेत राहून वैर वृत्तीला दूर करावे. ॥ १७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Lord of the great world, master of the Veda, the omniscient maker, Tvashta, made you all round wise and visionary as a poet for the sake of the entire world of humanity across divinity and the world of materiality. You are consolidator of the public debt and the debt of gratitude to Divinity and the wise, and you fulfil the obligations of the debt. Established in the presence of the Lord Omnipotent, father sustainer of the great Law of social order, be the destroyer of hate, jealousy and enmity.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of God is dealt hereunder.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O God ! you know all about the knowledge of Samaveda and know thoroughly about all the planets in the universe created by You. Verily, you are the Protector of the Universe, great and upholder of ultimate truth. You should finish those to who envy the collectors of the loan and receivers of the same.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    God is creator of the whole universe and Master of all planets. He is also the Holder of all and is the Master. All the souls (human and other beings) should obey to His commands and should always keep away from the vices like enmity prejudices etc.

    Foot Notes

    (अजनत् ) जनयति = Creates (साम्न: साम्नः) सामवेदस्य सामवेदस्य मध्ये। = Knowledge of all the Samaveda. (ऋणचित्) यः ऋणं चिनोति सः । = One who collects the loans. (ऋणया:) य: ऋणं याति प्राप्नोति स:। = Receiver of the loans.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top