ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 23/ मन्त्र 4
सु॒नी॒तिभि॑र्नयसि॒ त्राय॑से॒ जनं॒ यस्तुभ्यं॒ दाशा॒न्न तमंहो॑ अश्नवत्। ब्र॒ह्म॒द्विष॒स्तप॑नो मन्यु॒मीर॑सि॒ बृह॑स्पते॒ महि॒ तत्ते॑ महित्व॒नम्॥
स्वर सहित पद पाठसु॒नी॒तिऽभिः॑ । न॒य॒सि॒ । त्राय॑से । जन॑म् । यः । तुभ्य॑म् । दाशा॑त् । न । तम् । अंहः॑ । अ॒श्न॒व॒त् । ब्र॒ह्म॒ऽद्विषः॑ । तप॑नः । म॒न्यु॒ऽमीः । अ॒सि॒ । बृह॑स्पते । महि॑ । तत् । ते॒ । म॒हि॒ऽत्व॒नम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सुनीतिभिर्नयसि त्रायसे जनं यस्तुभ्यं दाशान्न तमंहो अश्नवत्। ब्रह्मद्विषस्तपनो मन्युमीरसि बृहस्पते महि तत्ते महित्वनम्॥
स्वर रहित पद पाठसुनीतिऽभिः। नयसि। त्रायसे। जनम्। यः। तुभ्यम्। दाशात्। न। तम्। अंहः। अश्नवत्। ब्रह्मऽद्विषः। तपनः। मन्युऽमीः। असि। बृहस्पते। महि। तत्। ते। महिऽत्वनम्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 23; मन्त्र » 4
अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वदीश्वरविषयमाह।
अन्वयः
हे बृहस्पते त्वं सुनीतिभिर्यजनं नयसि त्रायसे यस्तुभ्यमात्मादाशात्तमंहो नाश्नवद्यस्त्वं ब्रह्माद्विष उपरि तपनो मन्युमीरसि तस्य ते तव तन्महित्वनं वयं प्रशंसेम ॥४॥
पदार्थः
(सुनीतिभिः) सुष्ठु धर्मैर्न्यायमार्गैः (नयसि) (आयसे) (जनम्) जिज्ञासुं मनुष्यम् (यः) (तुभ्यम्) (दाशात्) ददति (न) निषेधे (तम्) (अंहः) पापम् (अश्नवत्) प्राप्नोति (ब्रह्मद्विषः) वेदेश्वरविरोधिनः (तपनः) तापकृत् (मन्युमीः) यो मन्युं मिनोति सः (असि) भवसि (बृहस्पते) बृहतां पालकेश्वर विद्वन् वा (महि) महत् (तत्) (ते) तव (महित्वनम्) महिमा ॥४॥
भावार्थः
ये मनुष्या सत्यभावेन जगदीश्वरस्याप्तस्य विदुषो वा स्वात्मानं चालयन्ति तान् जगदीश्वरो धार्मिको विद्वान् वा पापाचरणान्निवर्त्य शुभगुणकर्मस्वाभावैर्युक्तान् कृत्वा पवित्रान्जनयति। ये च वेदेश्वरद्विषः पापाचारास्तानधोगतिं नयति। अयमेवानयोरुपासनसङ्गाभ्यां लाभो जायते ॥४॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विद्वान् और ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ
हे (बृहस्पते) बड़ों की पालना करनेवाले ईश्वर वा विद्वान् आप (सुनीतिभिः) उत्तमधर्मवाले न्याय मार्गों से जिस (जनम्) जन को (नयसि) पहुँचाते हो और (त्रायसे) रक्षा करते हो (यः) जो (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये (आत्मा) (दाशात्) देता है (तम्) उसको (अंहः) पाप (न,अश्नवत्) नहीं प्राप्त होता जो तुम (ब्रह्मद्विषः) वेद और ईश्वर के विरोधियों पर (तपनः) ताप करनेवाले (मन्युमीः) क्रोध का मान करनेवाले (असि) हैं (ते) आपके (तत्) उस (महित्वनम्) बडप्पन की हम लोग प्रशंसा करें ॥४॥
भावार्थ
जो मनुष्य सत्यभाव से जगदीश्वर वा आप्त विद्वान् के सम्बन्ध में अपने आत्मा को चलाते हैं, उनको जगदीश्वर वा धार्मिक विद्वान् पापाचरण से निवृत्त कर शुभ गुण-कर्म-स्वभावों से युक्त कर पवित्र उत्पन्न करता है और जो वेद वा ईश्वर के विरोधी पापाचारी हैं, उनको अधोगति को पहुँचाता है, यही इन दोनों की उपासना और संग से लाभ होता है ॥४॥
विषय
ज्ञानरुचि बनना और क्रोध से ऊपर उठना दाशा॒न्न तम॑ अश्नवत् ।
पदार्थ
१. हे (बृहस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् प्रभो! (यः तुभ्यं दाशात्) = जो उपासक अपने को आपके प्रति अर्पित कर देता है तम् जने उस मनुष्य को आप (सुनीतिभिः) = उत्तम मार्गों से (नयसि) = ले चलते हैं और (त्रायसे) = उसका रक्षण करते हैं। उस पुरुष को (अंहः) = पाप व कुटिलता (न अश्नवत्) = व्याप्त नहीं करती। वह पाप व कुटिलता की ओर नहीं चलता। २. हे प्रभो ! आप (ब्रह्मद्विषः) = ज्ञान के साथ अप्रीतिवाले के (तपन:) = संतप्त करनेवाले हैं तथा (मन्युमीः असि) = क्रोध का विनाश करनेवाले हैं । हे प्रभो ! वस्तुतः (तत्) = वह (ते) आपका (महि महित्वनम्) = महान् महत्त्व है- यह आपका अद्भुत महिमापूर्ण कार्य है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु उपासक को उत्तममार्ग से ले-चलते हैं। ज्ञान में अरुचि वाले को संतप्त करते हैं । क्रोध को नष्ट करते हैं ।
विषय
राज्यपालक राजा का वर्णन ।
भावार्थ
हे ( बृहस्पते ) बड़े राष्ट्रों, व्रतों और बड़े लोकों के पालक ! राजन् ! विद्वन् ! परमेश्वर ! तू (सुनीतिभिः) उत्तम न्याययुक्त मार्गों, नीतियों से जाता है । (जनं) सब मनुष्यों, प्राणियों को (नयसि) सन्मार्ग पर चलाता और उनकी रक्षा करता है, (यः) जो ( तुभ्यं ) तेरे को ( दाशात् ) अपने तईं सौंप देता है ( तम् ) उसको ( अंहः ) पाप, कष्ट, (न अश्नवत् ) कभी नहीं व्यापता । तु ( ब्रह्मद्विषः तपनः ) वेद, वेदज्ञ, और ईश्वर के विरोधी पुरुषों को तपाने वाला, दण्ड देने वाला और ( मन्युमीः ) क्रोध आदि अन्तः शत्रुओं और अभिमानियों को नाश करने हारा ( असि ) है । (ते) तेरा ( तत् ) वह अवर्णनीय, जगत् प्रसिद्ध ( महि ) बड़ा भारी (महित्वनम् ) महिमा, महान् सामर्थ्य है । ‘मन्युमीः’— बड़े को देखकर अल्प बल वाले का क्रोध उतर जाता है । सोम्य, न्यायशील और विद्वान् भी सामादि उपायों से क्रोध को दूर करता है । परमेश्वर पर किसी का क्रोध नहीं चलता ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गृत्समद ऋषिः ॥ देवताः– १, ५,९,११, १७, १९ ब्रह्मणस्पतिः । २–४, ६–८, १०, १२–१६, १८ बृहस्पतिश्च ॥ छन्दः– १, ४, ५, १०, ११, १२ जगती । २, ७, ८, ९, १३, १४ विराट् जगती । ३, ६, १६, १८ निचृज्जगती । १५, १७ भुरिक् त्रिष्टुप् । १६ निचृत् त्रिष्टुप् ॥ एकोन विंशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे सत्य जाणून, ईश्वर, आप्त व विद्वानांच्या साह्याने स्वतःची वर्तणूक ठेवतात, त्यांना परमेश्वर धार्मिक, विद्वान बनवितो किंवा पापाचरणापासून निवृत्त करतो व शुभगुणकर्मस्वभावाचा बनवून पवित्र करतो व जे वेद व ईश्वरविरोधी, पापाचरणी आहेत त्यांना अधोगतीला पोचवितो. हाच उपासना व संगतीने लाभ होतो. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
You lead us by the right path and policy. You protect and save humanity. Whoever surrenders himself to you and gives in charity in your service is safe, sin and crime touch him not, nor hurt him ever. You are the scorcher of the haters of humanity, divinity and knowledge. You are the destroyer of hostile passion.$Brhaspati, lord of this grand universe, great is that grandeur of yours, blazing with majesty.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The subject of learned persons and God is described.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O God and learned person ! you take the people to the target through the path of religion and justice and protect them. If you commit a sin, the soul or God is not infested with it. Those who denounce the Vedas and God, you cast your anger on them. Therefore, we should admire your greatness.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Those who lead a life closely in touch with God and learned persons and conduct themselves accordingly, God or pious people keep them aloof from the sins and equip them with noble virtues and turn them to be pious men. Those who are opponents of the Vedas and God are sinners and they always fall down in the life. This is the clear difference between the worshippers and non-believers of God and pious persons.
Foot Notes
(सुनीतिभिः) सुष्ठु धभ्येनर्यामार्गे = Through he path of religion and justice. (नयसि ) गुह्ह्णासि । = Take to. (जनम्) जिज्ञासुं मनुष्यम् । = Man full of inquisitiveness. (ब्रह्मद्विष:) वेदेश्वरविरोधिनः = Opponents of Vedas and God, (मन्युमी:) यो मन्युं मिनोति सः । = One who casts anger on right path. ( महित्वनम् ) महिमा | = Glamour or greatness.
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