ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 44/ मन्त्र 11
ऋषिः - अवत्सारः काश्यप अन्ये च दृष्टलिङ्गाः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
श्ये॒न आ॑सा॒मदि॑तिः क॒क्ष्यो॒३॒॑ मदो॑ वि॒श्ववा॑रस्य यज॒तस्य॑ मा॒यिनः॑। सम॒न्यम॑न्यमर्थय॒न्त्येत॑वे वि॒दुर्वि॒षाणं॑ परि॒पान॒मन्ति॒ ते ॥११॥
स्वर सहित पद पाठश्ये॒नः । आ॒सा॒म् । अदि॑तिः । क॒क्ष्यः॑ । मदः॑ । वि॒श्वऽवा॑रस्य । य॒ज॒तस्य॑ । मा॒यिनः॑ । सम् । अ॒न्यम्ऽअ॑न्यम् । अ॒र्थ॒य॒न्ति॒ । एत॑वे । वि॒दुः । वि॒ऽसाण॑म् । प॒रि॒ऽपान॑म् । अन्ति॑ । ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
श्येन आसामदितिः कक्ष्यो३ मदो विश्ववारस्य यजतस्य मायिनः। समन्यमन्यमर्थयन्त्येतवे विदुर्विषाणं परिपानमन्ति ते ॥११॥
स्वर रहित पद पाठश्येनः। आसाम्। अदितिः। कक्ष्यः। मदः। विश्वावारस्य यजतस्य। मायिनः। सम्। अन्यम्ऽअन्यम्। अर्थयन्ति। एतवे। विदुः। विऽसानम्। परिऽपानम्। अन्ति। ते ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 44; मन्त्र » 11
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
यो मनुष्यः श्येन इवासामदितिः कक्ष्यो मदश्च विश्ववारस्य यजतस्य मायिनोऽन्यमन्यमर्थयन्त्येतवेऽन्ति परिपानं विषाणं सं विदुस्ते सुखिनो जायन्ते ॥११॥
पदार्थः
(श्येनः) प्रशंसनीयगतिरश्वः (आसाम्) प्रजानाम् (अदितिः) अविनाशिनी प्रकृतिः (कक्ष्यः) कक्षासु भवः (मदः) आनन्दः (विश्ववारस्य) समग्रस्वीकरणीयस्य (यजतस्य) सङ्गतस्य (मायिनः) कुत्सिता माया विद्यन्ते यस्य तस्य (सम्) (अन्यमन्यम्) (अर्थयन्ति) अर्थं कुर्वन्ति (एतवे) प्राप्तुम् (विदुः) जानन्ति (विषाणम्) प्रविष्टम् (परिपानम्) परितः सर्वतो पानम् (अन्ति) समीपे (ते) ॥११॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । ये विद्वांसो दुष्टधियः श्रेष्ठप्रज्ञान् कुर्वन्ति श्येनपक्षीव दुष्टान् घ्नन्ति ते जना भद्राः सन्ति ॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
जो मनुष्य (श्येनः) प्रशंसनीय गमनवाले घोड़े के सदृश (आसाम्) इन प्रजाओं की (अदितिः) नहीं नाश होनेवाली प्रकृति और (कक्ष्यः) श्रेणियों में उत्पन्न (मदः) आनन्द (विश्ववारस्य) सम्पूर्ण स्वीकार करने योग्य (यजतस्य) मिले हुए (मायिनः) निकृष्ट बुद्धिवाले के (अन्यमन्यम्) अन्य अन्य को (अर्थयन्ति) अर्थ करते अर्थात् याचते हैं और (एतवे) प्राप्त होने को (अन्ति) समीप में (परिपानम्) सब ओर से पान और (विषाणम्) प्रवेश किये हुए को (सम्, विदुः) उत्तम प्रकार जानते हैं, (ते) वे सुखी होते हैं ॥११॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो विद्वान् जन दुष्ट बुद्धिवालों को श्रेष्ठ बुद्धियुक्त करते हैं और श्येन पक्षी के सदृश दुष्टों का नाश करते हैं, वे जन कल्याणकारक हैं ॥११॥
विषय
उत्तम सेनानायक ।
भावार्थ
भा०- ( आसाम् ) इन समस्त प्रजाओं और सेनाओं के बीच में जो ( श्येनः ) वाज के समान शत्रु पर आक्रमण करने वाला वा उत्तम चाल, आचरणवान् और गमन करने हारा ( अदितिः ) माता पिता के तुल्य प्रजा का पालक, पुत्र के समान बड़ों का सेवक और अखण्ड शासनकारी, अविचल, अखण्डित व्रत और प्रकृति वाला, ( कक्ष्यः) उत्तम कसे कसाये अश्व के समान उत्तम पेटियों से सुशोभित, ( मदः) सबका आनन्द करने वाला है उस ( मायिनः ) बुद्धिमान्, ( यजतस्य ) पूजनीय, सत्संगयोग्य, दानशील एवं ( विश्व-वारस्य ) सब शत्रुओं के वारण करने वाले और सबसे वरण करने योग्य पुरुष के ( अन्ति ) समीप रहकर (ते) वे अन्य लोग भी (वि-सानं ) विशेष रूप से भोगने योग्य पद और (परिपानं ) सबकी रक्षा करने वाले पद को ( विदुः ) प्राप्त करते और ( अन्यम्-अन्यम् ) और और भी अधिकार को (सम्-एतवे ) प्राप्त करने के लिये ( अर्थयन्ति ) उससे याचना किया करते हैं |
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अवत्सारः काश्यप अन्थे च सदापृणबाहुवृक्तादयो दृष्टलिंगा ऋषयः ॥ विश्वदेवा देवताः ॥ छन्दः–१, १३ विराड्जगती । २, ३, ४, ५, ६ निचृज्जगती । ८, ६, १२ जगती । ७ भुरिक् त्रिष्टुप् । १०, ११ स्वराट् त्रिष्टुप् । १४ विराट् त्रिष्टुप् । १५ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
'विषाण-परिवान' प्रभु
पदार्थ
[१] (आसाम्) = इन प्रजाओं में (श्येन:) = शंसनीय गतिवाला पुरुष (अदितिः) = [ अ-दिति] अखण्डित स्वास्थ्यवाला होता है । (कक्ष्यः) = उत्तम कटिबन्धनवाला, अर्थात् दृढ़ निश्चयी होता है। [one who has girded up to ones loins] (मदः) = आनन्दमय जीवनवाला होता है। [२] ये व्यक्ति (विश्ववारस्य) = सब से वरने के योग्य (यजतस्य) = पूज्य (मायिनः) = प्रज्ञावाले प्रभु के (एतवे) = प्राप्त करने के लिये (अन्यं अन्यम्) = एक दूसरे को (समर्थयन्ति) = समर्थित करते हैं। प्रेरणा आदि के द्वारा परस्पर प्रभु प्राप्ति के लिये सहायक होते हैं । (ते) = वे परस्पर प्रभु प्रेरणा को देनेवाले व्यक्ति (विषाणम्) = [वि-सन्] उस सब सुखों के दाता (परिपानम्) = सर्वतः रक्षक प्रभु को (अन्तिविदुः) = समीप ही, हृदयों में, जान पाते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- हम शंसनीय गतिवाले, स्वस्थ, दृढ़ निश्चयी व प्रसन्न वृत्तिवाले बनकर परस्पर प्रभु प्राप्ति के लिये एक दूसरे को प्रेरित करनेवाले हों। प्रभु हमें सब सुखों के देनेवाले हैं तथा हमारे रक्षक होते हुए हमारे ही हृदयों में ही स्थित हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे विद्वान, दुष्ट बुद्धी असलेल्या माणसांना श्रेष्ठ बुद्धीचे करतात व श्येन पक्ष्याप्रमाणे दुष्टांचा नाश करतात ते लोकांचे कल्याणकर्ते असतात. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Of these people, he, the ruler, is the Shyena, eagle, harbinger of nectar, the watchful eye, and the marksman for the target, the destination. He is Aditi, the inviolable identity, symbol of nature, character, tradition and the nation. He is Kakshya, orbit of movement as well as the rampart, ever in harness, and he is the joy of life. Of this universal leader, all embracing and giving, all powerful, they jointly and separately desire and ask for advancement, know his generosity, and find their own fulfilment in his presence.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The Subject of duties of enlightened persons is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
Those men become happy who associate themselves with a person who is quick-going like a horse among the subjects, is a man of inviolable nature, ever alert and cheerful, acceptable for all, and unifier, and intelligent. They stand closely by him and know how to get good position and 'requesting him to help them enjoyable and protective.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The learned persons who make evil-minded persons endowed with good intellect, and destroy the wicked like the hawk are always good.
Foot Notes
(श्येनः ) १. प्रशंसनीयगतिरश्वः । श्येनास इति अश्वनाम (NG 1, 14) श्येन इति पदनाम (NG 5, 5 ) । = The horse of good race. (श्येन:) २. श्येनपक्षी । गत्यर्थमादाय भावार्थे श्येनपक्षिग्रहणम् | = Hawk. (अदिति: ) अविनाशिनी प्रकृतिः | = Imperishable matter, nature. (विश्ववारस्य ) समग्र- स्वीकरणीयस्य । वृञ् वरणे (स्वा० )। = Acceptable to all.
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