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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 44/ मन्त्र 15
    ऋषिः - अवत्सारः काश्यप अन्ये च दृष्टलिङ्गाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराट्जगती स्वरः - निषादः

    अ॒ग्निर्जा॑गार॒ तमृचः॑ कामयन्ते॒ऽग्निर्जा॑गार॒ तमु॒ सामा॑नि यन्ति। अ॒ग्निर्जा॑गार॒ तम॒यं सोम॑ आह॒ तवा॒हम॑स्मि स॒ख्ये न्यो॑काः ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निः । जा॒गा॒र॒ । तम् । ऋचः॑ । का॒म॒य॒न्ते॒ । अ॒ग्निः । जा॒गा॒र॒ । तम् । ऊँ॒ इति॑ । सामा॑नि । य॒न्ति॒ । अ॒ग्निः । जा॒गा॒र॒ । तम् । अ॒यम् । सोमः॑ । आ॒ह॒ । तव॑ । अ॒हम् । अ॒स्मि॒ । स॒ख्ये । निऽओ॑काः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निर्जागार तमृचः कामयन्तेऽग्निर्जागार तमु सामानि यन्ति। अग्निर्जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निः। जागार। तम्। ऋचः। कामयन्ते। अग्निः। जागार। तम्। ऊँ इति। सामानि। यन्ति। अग्निः। जागार। तम्। अयम्। सोमः। आह। तव। अहम्। अस्मि। सख्ये। निऽओकाः ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 44; मन्त्र » 15
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    ये सत्यं कामयन्ते ते प्राप्तसत्या जायन्ते ॥१५॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! योऽग्निरिव जागार तमृचः कामयन्ते योऽग्निर्जागार तमु सामानि यन्ति अग्निर्जागार तमयं न्योकाः सोमस्तव सख्येऽहमस्मीत्याह ॥१५॥

    पदार्थः

    (अग्निः) पावक इव (जागार) जागृतो भवति (तम्) (ऋचः) प्रशंसितबुद्धयो विद्यार्थिनः (कामयन्ते) (अग्निः) पावकवद्वर्त्तमानः (जागार) (तम्) (उ) (सामानि) सामवेदप्रतिपादितविज्ञानानि (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (अग्निः) (जागार) (तम्) (अयम्) (सोमः) विद्यैश्वर्य्यमिच्छुः (आह) (तव) (अहम्) (अस्मि) (सख्ये) (न्योकाः) निश्चितस्थानः ॥१५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या निरलसाः पुरुषार्थिनो धार्मिका जायन्ते जितेन्द्रिया विद्यार्थिनश्च भवन्ति तानेव विद्यासुशिक्षे प्राप्नुतः ॥१५॥ अत्र सूर्यमेघविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुश्चत्वारिंशत्तमं सूक्तं तृतीयोऽनुवाकः पञ्चविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    जो सत्य की कामना करते हैं, वे सत्य को प्राप्त होते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (अग्निः) अग्नि के सदृश (जागार) जागृत होता है (तम्) उसकी (ऋचः) प्रशंसित बुद्धिवाले विद्यार्थी जन (कामयन्ते) कामना करते हैं, और जो (अग्निः) अग्नि के सदृश वर्त्तमान (जागार) जागृत होता है (तम्) उसको (उ) भी (सामानि) सामवेद में कहे हुए विज्ञान (यन्ति) प्राप्त होते हैं (अग्निः) के सदृश वर्तमान (जागार) जागृत होता है (तम्) उसको (अयम्) यह (न्योकाः) निश्चित स्थान युक्त (सोमः) विद्या और ऐश्वर्य्य की इच्छा करनेवाला (तव) आपकी (सख्ये) मित्रता में (अहम्) मैं (अस्मि) हूँ ऐसा (आह) कहता है ॥१५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो मनुष्य आलस्य से रहित पुरुषार्थी धार्मिक होते और जितेन्द्रिय विद्यार्थी होते हैं, उन्हीं को विद्या और उत्तम शिक्षा प्राप्त होती है ॥१५॥ इस सूक्त में सूर्य मेघ और विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह चवालीसवाँ सूक्त, तीसरा अनुवाक और पच्चीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    सावधान का महत्व, उसकी मैत्री ।

    भावार्थ

    भा०- ( अग्निः ) अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष ही (जागार ) सदा सावधान रहता है, ( ऋचः ) ऋग्वेद के मन्त्रगण और समस्त स्तुति आदर आदि ( तम् कामयन्ते ) उसको ही चाहते हैं । ( अग्निः जागार ) अग्नि के समान ज्ञान का प्रकाशक पुरुष ही सदा जागृत, सावधान रहता है । (तम् उ ) उसको ही ( सामानि यन्ति ) सामवेद के गायन और सबके समान व्यवहार, उत्तम वचन प्राप्त होते हैं । (अग्निः ) अग्नि, के तुल्य तेजस्वी और विद्वान् पुरुष ( जागार ) सदा सावधान रहता है ( तम् अयम् सोमः आह ) उसको ही यह ऐश्वर्य और ओषधिगण पुत्र व प्रजागण, कहता है कि ( अहम् तव सख्ये ) मैं तेरे मैत्रीभाव में ( नि-ओकाः ) नियत स्थान बना कर रहता हूं । इति पञ्चविंशो वर्गः ॥ इति तृतीयोऽनुवाकः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सावधान का महत्व, उसकी मैत्री ।

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    विषय

    अग्निः जागार

    पदार्थ

    [१] (अग्निः जागार) = प्रगतिशील जीव ही जागरित है। संसार का नियम है या उन्नति अथवा अवनति [either progress or regress] जागरूक पुरुष अवनति के मार्ग पर न जाकर सदा उन्नति के मार्ग पर चलेगा। एवं यह अग्नि होगा। यह अग्नि सदा जागता है। (तम्) = उस अग्नि को (ऋचः) = सब विज्ञान (कामयन्ते) = चाहते हैं, इस अग्नि को ही सब विज्ञान प्राप्त होते हैं । [२] (अग्निः जागार) = यह अग्नि ही जागता है, प्रमत्त ही अवनति के मार्ग पर जाया करता है। (तम्) = उस अग्नि को (उ) = ही (सामानि) = सब उपासनाएं यन्ति प्राप्त होती हैं। अग्नि ही प्रभु का सच्चा उपासक होता है। [३] (अग्निः जागार) = प्रगतिशील जीव ही जागरित है। (तम्) = उसे (अयं सोमः) = ये शान्त प्रभु (आह) = कहते हैं कि (अहम्) = मैं तब (सख्ये) = तेरी मित्रता में (न्योकाः) = निश्चित निवासवाला (अस्मि) = हूँ तेरा ही मैं स्थिर मित्र हूँ ।

    भावार्थ

    भावार्थ- जो जागरूक होता है वह अवश्य उन्नतिपथ पर बढ़ता हुआ विज्ञान, उपासना व प्रभु की मित्रता को प्राप्त करता है । यह प्रभु का मित्र सदापृण-सदा देनेवाला बनता है। इस निरन्तर त्याग से पवित्र जीवनवाला बना हुआ यह 'आत्रेय' होता है, त्रिविध कष्टों से दूर । यह प्रार्थना करता है कि

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे आळशी नसतात. पुरुषार्थी, धार्मिक, जितेंद्रिय विद्यार्थी असतात त्यांनाच विद्या व उत्तम शिक्षण प्राप्त होते. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    To Agni, soul of life awake, the light of Rks radiates with love. To Agni, light of life awake, the songs of Samans vibrate with love. To Agni, the fire of life aflame, the streams of nectar flow with love, and to the soul of life, the light of awareness and the fire of action, the ecstasy of life says: I am yours with love, a friend, your very haven and home.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The position attained by awakened persons is described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! the students who are of good intellect desire only a man (teacher) who is purifier like fire and is awakened; to a man who like fire is awakened (alert); the sciences mentioned in the Samaveda come or revealed. To the man who is purifier like the fire, comes a pupil who is desirous of acquiring the great wealth of knowledge and says, I am certainly in your friendship.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The knowledge and good education are acquired by those who are never idle, are industrious, righteous, self-controlled and seeker after knowledge.

    Foot Notes

    ( ऋच:) प्रशंसितबुद्धयो विद्यार्थिनः । ऋच् स्तुतो । षु प्रसवैश्वर्ययोः । अत्रः ऐश्वर्यग्रहणम् । = The students or admired intellect. (सोम:) विद्यैश्वर्यमिच्छ:। = Desirous of the great wealth of knowledge. (सोमानि ) - सामवेदा दिप्रतिपादितविज्ञानानीति । = The science told in the Samaveda etc.

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