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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 44/ मन्त्र 14
    ऋषिः - अवत्सारः काश्यप अन्ये च दृष्टलिङ्गाः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    यो जा॒गार॒ तमृचः॑ कामयन्ते॒ यो जा॒गार॒ तमु॒ सामा॑नि यन्ति। यो जा॒गार॒ तम॒यं सोम॑ आह॒ तवा॒हम॑स्मि स॒ख्ये न्यो॑काः ॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । जा॒गार॑ । तम् । ऋचः॑ । का॒म॒य॒न्ते॒ । यः । जा॒गार॑ । तम् । ऊँ॒ इति॑ । सामा॑नि । य॒न्ति॒ । यः । जा॒गार॑ । तम् । अ॒यम् । सोमः॑ । आ॒ह॒ । तव॑ । अ॒हम् । अ॒स्मि॒ । स॒ख्ये । निऽओ॑काः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो जागार तमृचः कामयन्ते यो जागार तमु सामानि यन्ति। यो जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः ॥१४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। जागार। तम्। ऋचः। कामयन्ते। यः। जागार। तम्। ऊँ इति। सामानि। यन्ति। यः। जागार। तम्। अयम्। सोमः। आह। तव। अहम्। अस्मि। सख्ये। निऽओकाः ॥१४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 44; मन्त्र » 14
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    यो जागार तमृच इव जनाः कामयन्ते यो जागार तमु सामानि यन्ति यो जागार तमयं सोम इव न्योकाः सख्ये तवाहमस्मीत्याह ॥१४॥

    पदार्थः

    (यः) (जागार) अविद्यानिद्राया उत्थाय जागर्ति (तम्) (ऋचः) ऋच्छ्रुतयः (कामयन्ते) (यः) (जागार) (तम्) (उ) (सामानि) सामविभागाः (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (यः) (जागार) (तम्) (अयम्) (सोमः) सोमलताद्योषधिगण ऐश्वर्य्यं वा (आह) वदति (तव) (अहम्) (अस्मि) (सख्ये) मित्रत्वे (न्योकाः) निश्चितस्थानः ॥१४॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये वेदविद्यां प्राप्तुमिच्छन्ति तानेव वेदविद्या प्राप्नोति यो मनुष्यादिभिः सह मैत्रीमाचरति स बहुसुखं लभते ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (यः) जो (जागार) अविद्यारूप निद्रा से उठ के जागनेवाला है (तम्) उसको (ऋचः) ऋचाओं के सदृश जन (कामयन्ते) कामना करते हैं और (यः) जो (जागार) अविद्यारूप निद्रा से उठ के जागनेवाला है (तम्) उसको (उ) भी (सामानि) सामवेद के विभाग (यन्ति) प्राप्त होते हैं और (यः) जो (जागार) अविद्यारूप निद्रा से उठके जागनेवाला (तम्) उसको (अयम्) यह (सोमः) सोमलता आदि ओषधियों का समूह वा ऐश्वर्य्य के सदृश (न्योकाः) निश्चित स्थानवाला (सख्ये) मित्रत्व में (तव) आपका (अहम्) मैं (अस्मि) हूँ, इस प्रकार (आह) कहता है ॥१४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जो वेदविद्या को प्राप्त होने की इच्छा करते हैं, उनको ही वेदविद्या प्राप्त होती और जो मनुष्य आदिकों के साथ मित्रता करता है, वह बहुत सुख को प्राप्त होता है ॥१४॥

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    विषय

    सावधान का महत्व, उसकी मैत्री ।

    भावार्थ

    भा०- (यः) जो ( जागार ) जागता रहता है (तम् ऋचः कामयन्ते ) ऋग्वेद के मन्त्रगण वा उत्तम स्तुति अर्चना सत्कार आदि भी उसको ही चाहते हैं । ( यः जागार ) जो जो अविद्या निद्रा से जाग जाता है (तम् उ ) उसको ही ( सामामि ) सामवेद के नाना गायन भेद, वा सबके समान व्यवहार ( यन्ति ) प्राप्त होते हैं । ( यः जागार ) जो जागा रहता है, जो सावधान रहता है ( तम् ) उसको ही ( अयं सोमः ) यह सोम, ओषधिगण और ऐश्वर्य पुत्रवत् प्रजागण ( आह ) कहता है कि ( अहम् ) मैं ( तव सख्ये ) तेरे मित्र भाव में ही (नि-ओकाः अस्मि ) अपना निश्चित निवास बना कर रहता हूं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अवत्सारः काश्यप अन्थे च सदापृणबाहुवृक्तादयो दृष्टलिंगा ऋषयः ॥ विश्वदेवा देवताः ॥ छन्दः–१, १३ विराड्जगती । २, ३, ४, ५, ६ निचृज्जगती । ८, ६, १२ जगती । ७ भुरिक् त्रिष्टुप् । १०, ११ स्वराट् त्रिष्टुप् । १४ विराट् त्रिष्टुप् । १५ त्रिष्टुप् ॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    यो जागर

    पदार्थ

    [१] (यः जागार) = जो गतमन्त्र के अनुसार इन ज्ञान की वाणियों के अध्ययन में 'न स्वपन्' न प्रमाद करता हुआ सदा जागरित होता है, सदा सावधान [जागरूक] होता है, (तम्) = उसको (ऋचः) = सब विज्ञान की वाणियाँ (कामयन्ते) = चाहती हैं, वही सब विज्ञानों को प्राप्त करता है । (यः जागार) = जो जागता है, (तं उ) = उसको ही (सामानि यन्ति) = सब उपासनाएँ प्राप्त होती हैं [सामवेद - उपासना वेद], अर्थात् जागरूक होकर अपने कर्त्तव्य कर्मों को करनेवाला व्यक्ति ही सच्चा उपासक होता है। [२] (यः जागार) = जो जागता है (तम्) = उसे (अयं सोमः) = ये शान्त प्रभु (आह) = कहते हैं कि (अहम्) = मैं (तव सख्ये) = तेरी मित्रता में (न्योकाः) = निश्चित निवासवाला हूँ। आलसी के प्रभु मित्र नहीं होते।

    भावार्थ

    भावार्थ– जागरूकता में ही विज्ञान की प्राप्ति है, इसी में सच्ची उपासना है। जागरूक के ही प्रभु मित्र होते हैं।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे वेदविद्या प्राप्त करण्याची इच्छा बाळगतात त्यांनाच वेदविद्या प्राप्त होते व जो माणसांबरोबर मैत्री करतो तो खूप सुखी होतो. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Whoever is awake, the Rks love and bless. Whoever is alert, the Samans move and elevate. Whoever is active without a wink of sleep, this soma of life’s joy and ecstasy addresses and says: O seeker and yajaka, I am for you, a friend and shelter home.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject of enlightened persons is further explained.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    One who is awake from the sleep of ignorance, men studying (the hymns or the Riks of Rigveda) desire him. He who is awake, to him the hymns of the Samaveda come or reveal. (He gets their knowledge being alert and wakeful). The group of Soma and other creepers or wealth come to him who is thus awake and says I am certainly in your friendship.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The Vedic knowledge is attained only by those, who desire to acquire that knowledge. He who keeps friendship with good men and other living beings, enjoys much happiness.

    Foot Notes

    (जागार) अविद्यानिद्राया उत्थाय जगति । जागृनिद्राक्षये । = Awake from the sleep of ignorance. End of sleep. Here it is used in the sense of the end of the sleep of ignorance (न्योकाः) निश्चितस्थान: । ओक इति निवास नामोच्यते (NKT3,1,3)। = of a certain fixed place. (सोम) सोमलताद्योषधिगण ऐर्श्य्य वा । ये सत्यं कामयन्ते ते प्राप्तसत्या जायन्ते । = The group of Soma and other creepers or great wealth.

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