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यजुर्वेद अध्याय - 23

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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 19
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - गणपतिर्देवता छन्दः - शक्वरी स्वरः - धैवतः
    6

    ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिꣳहवामहे प्रि॒याणां॑ त्वा प्रि॒यप॑तिꣳहवामहे निधी॒नां त्वा॑ निधि॒पति॑ꣳ हवामहे वसो मम। आहम॑जानि गर्भ॒धमा त्वम॑जासि गर्भ॒धम्॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ग॒णाना॑म्। त्वा॒। ग॒णप॑ति॒मिति॑ ग॒णऽप॑तिम्। ह॒वा॒म॒हे॒। प्रि॒याणा॑म्। त्वा॒। प्रि॒यप॑ति॒मिति॑ प्रि॒यऽप॑तिम्। ह॒वा॒म॒हे॒। नि॒धी॒नामिति॑ निऽधी॒नाम्। त्वा॒। नि॒धि॒पति॒मिति॑ निधि॒ऽपति॑म्। ह॒वा॒म॒हे॒। व॒सो॒ऽइति॑ वसो। मम॑। आ। अ॒हम्। अ॒जा॒नि॒। ग॒र्भ॒धमिति॑ गर्भ॒ऽधम्। आ। त्वम्। अ॒जा॒सि॒। ग॒र्भ॒धमिति॑ गर्भ॒ऽधम् ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गणानान्त्वा गणपतिँ हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपतिँ हवामहे निधीनान्त्वा निधिपतिँ हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    गणनाम्। त्वा। गणपतिमिति गणऽपतिम्। हवामहे। प्रियाणाम्। त्वा। प्रियपतिमिति प्रियऽपतिम्। हवामहे। निधीनामिति निऽधीनाम्। त्वा। निधिपतिमिति निधिऽपतिम्। हवामहे। वसोऽइति वसो। मम। आ। अहम्। अजानि। गर्भधमिति गर्भऽधम्। आ। त्वम्। अजासि। गर्भधमिति गर्भऽधम्॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यै कीदृशः परमात्मोपासनीय इत्याह॥

    अन्वयः

    हे जगदीश्वर! वयं गणानां गणपतिं त्वा हवामहे, प्रियाणां प्रियपतिं त्वा हवामहे, निधीनां निधिपतिं त्वा हवामहे। हे वसो! मम न्यायाधीशो भूयाः। यं गर्भधं त्वमाजासि तं गर्भधमहमाजानि॥१९॥

    पदार्थः

    (गणानाम्) समूहानाम् (त्वा) त्वाम् (गणपतिम्) समूहपालकम् (हवामहे) स्वीकुर्महे (प्रियाणाम्) कमनीयानाम् (त्वा) (प्रियपतिम्) कमनीयं पालकम् (हवामहे) (निधीनाम्) विद्यादिपदार्थपोषकाणाम् (त्वा) (निधिपतिम्) निधीनां पालकम् (हवामहे) (वसो) वसन्ति भूतानि यस्मिन्त्स वसुस्तत्सम्बुद्धौ (मम) (आ) (अहम्) (अजानि) जानीयाम् (गर्भधम्) यो गर्भं दधाति तम् (आ) (त्वम्) (अजासि) प्राप्नुयाः (गर्भधम्) प्रकृतिम्॥१९॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! यः सर्वस्य जगतो रक्षक इष्टानां विधातैश्वर्य्याणां प्रदाता प्रकृतेः पतिः सर्वेषां बीजानि विदधाति, तमेव जगदीश्वरं सर्व उपासीरन्॥१९॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर मनुष्य को कैसे परमात्मा की उपासना करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे जगदीश्वर! हम लोग (गणानाम्) गणों के बीच (गणपतिम्) गणों के पालनेहारे (त्वा) आपको (हवामहे) स्वीकार करते (प्रियाणाम्) अतिप्रिय सुन्दरों के बीच (प्रियपतिम्) अतिप्रिय सुन्दरों के पालनेहारे (त्वा) आपकी (हवामहे) प्रशंसा करते (निधीनाम्) विद्या आदि पदार्थों की पुष्टि करनेहारों के बीच (निधिपतिम्) विद्या आदि पदार्थों की रक्षा करनेहारे (त्वा) आपको (हवामहे) स्वीकार करते हैं। हे (वसो) परमात्मन्! जिस आप में सब प्राणी वसते हैं, सो आप (मम) मेरे न्यायाधीश हूजिये, जिस (गर्भधम्) गर्भ के समान संसार को धारण करने हारी प्रकृति को धारण करने हारे (त्वम्) आप (आ, अजासि) जन्मादि दोषरहित भलीभंति प्राप्त होते हैं, उस (गर्भधम्) प्रकृति के धर्त्ता आपको (अहम्) मैं (आ, अजानि) अच्छे प्रकार जानूं॥१९॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! जो सब जगत् की रक्षा, चाहे हुए सुखों का विधान, ऐश्वर्य्यों का भलीभांति दान, प्रकृति का पालन और सब बीजों का विधान करता है, उसी जगदीश्वर की उपासना सब करो॥१९॥

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    विषय

    प्रार्थनाविषयः

    व्याखान

    हे समूहाधिपते! आप मेरे (गणानाम्)गण = सब समूहों के पति होने से आपको (गणपतिम्) 'गणपति' नाम से (हवामहे) ग्रहण करता हूँ तथा मेरे (प्रियाणाम्) प्रिय कर्मकारी, पदार्थ और जनों के (पति) पालक भी आप ही हैं, इससे (त्वा) आपको (प्रियपतिम्) 'प्रियपति' मैं अवश्य जानूँ, एवं मेरी (निधीनां त्वा निधिपतिम्) सब निधियों के पति होने से आपको मैं निश्चित निधिपति जानूँ। हे (वसो) सब जगत् जिस सामर्थ्य से उत्पन्न हुआ है, उस (गर्भ) स्वसामर्थ्य का धारण और पोषण करनेवाला आपको ही मैं जानूँ। (गर्भधम्) गर्भ सबका कारण आपका सामर्थ्य है, यही सब जगत् का धारण और पोषण करता है। यह जीवादि सशरीर प्राणिजगत् तो जन्मता और मरता है, परन्तु आप सदैव (अजा असि) अजन्मा और अमृतस्वरूप हैं। आपकी कृपा से मैं अधर्म, अविद्या, दुष्टभावादि को (अजानि) दूर फेकूँ तथा हम सब लोग आपकी ही (हवामहे) अत्यन्त स्पर्धा [प्राप्ति की इच्छा] करते हैं, सो आप अब शीघ्र हमको प्राप्त होओ, जो प्राप्त होने में आप थोड़ा भी विलम्ब करेंगे तो हमारा कुछ भी कहीं ठिकाना न लगेगा ॥ ४६ ॥ 

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    विषय

    गणपति, परमेश्वर, विद्वान्, राजा और गृहपति का वर्णन, गर्भध परमेश्वर और गर्भध प्रकृति का रहस्य ।

    भावार्थ

    हे (वसो) जगत्, राष्ट्र को बसाने हारे ! राजन् ! हे विद्वन् ! प्रभो ! हम (त्वा) तुझको ( गणानाम् ) समस्त गणों का ( गणपतिम् ) गणपति, गणनायक, (हवामहे ) स्वीकार करते हैं । ( प्रियाणाम् ) सब प्रिय पदार्थों का तुझको ( प्रियपतिम् ) प्रियपति, पालक (हवामहे ) स्वीकार करते हैं । और ( निधीनाम् ) समस्त खजानों का तुझको (निधिपतिम् ) निधिपति, कोशपाल, (हवामहे ) स्वीकार करते हैं । हे (वसो) राष्ट्र को बसाने हारे राजन् ! तू (मम) मुझ राष्ट्र-प्रजा का पति है ( अहम् ) मैं प्रजा ( गर्भधम् ) 'गर्भ' = ग्रहण या वश करने के सामर्थ्य को धारने वाले तुझ स्वामी को (आ अजानि) प्राप्त होती हूँ। तू ( गर्भधम् ) ऐश्वर्यों को धारने वाली मुझे (अजासि) प्राप्त हो । ( २ ) पति पत्नी के पक्ष में — हे पते ! मैं समस्त गणों में गणपति, प्रियजनों में प्रियपति, 'ऐश्वर्यों का 'निधिपति' तुझको ही कहती हूँ। मैं गर्भ धारण कराने में समर्थ तुझको (आ अजानि) प्राप्त होती हूँ । गर्भ धारण में समर्थ, उर्वरा मुझ पत्नी को तू प्राप्त हो । (३) परमेश्वर सबका गणपति, प्रियपति और निधिपति हैं । प्रकृति हिरण्यगर्भ को धारण करने वाले मैं ( आ अजानि) प्राप्त होती हूँ और (गर्भधम् ) संसार को अपने में अव्यक्त रूप में धारण करने वाली प्रकृति को (त्वम् अजासि) तू प्राप्त होता, स्पन्दित करता और सृष्टि को उत्पन्न करता है । अथवा ( अहम् ) मैं जीव ( गर्भधम् ) हिरण्यगर्भ के धारक, संसार को अपने बीच धारने वाली प्रकृति का भी धर्त्ता तुझको प्राप्त होऊं । ‘गर्भधं’—गर्भधारकं कलत्ररूपं इति सायणः । तै० ब्रा० भा० । 'गर्भधात्री' इति सायणः । तै० सं० भा० ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गणपतिर्देवता । शक्वरी । धैवतः ॥

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    विषय

    गणपति-प्रियपति-निधिपति

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र की (अम्बा) = मातृवत् हितकारिणी ऋग्वाणी से (गाणानां गणपतिम्) = ज्ञानेन्द्रियपञ्चक, कर्मेन्द्रियपञ्चक, प्राणपञ्चक आदि अथवा आठ वसु, ग्यारह रुद्र व बारह आदित्यों के गणों के गणपति-रक्षक (त्वा) = तुझे (हवामहे) = पुकारते हैं। आपकी आराधना से हम चाहते हैं कि ये सब गण ठीक बने रहकर हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखनेवाले हों। २. गतमन्त्र की (अम्बिका) = पितामहीवत् हितकारिणी यजुर्वाणी से हम (प्रियाणां प्रियपतिम्) = प्रियों के भी प्रियपति (त्वा) = आपको (हवामहे) = पुकारते हैं। प्रियपति आपकी आराधना से हम यज्ञादि प्रिय कर्मों को करते हुए सभी के प्रिय हों। हमारे मनों में ईर्ष्या-द्वेष न हो। ३. गतमन्त्र की अम्बालिका=प्रपितामहीवत् हितकारिणी ज्ञानवाणी से हम (निधीनां निधिपतिम्) = निधियों के निधिपति सर्वोच्च ज्ञानकोश के रक्षक [ यस्मात् कोशात् उद्भराम वेदम् = अथर्व ० ] (त्वा) = आपको (हवामहे) = पुकारते हैं। निधिपति आपकी आराधना से हम भी ज्ञान के निधि बनने के लिए यत्नशील होते हैं और इस प्रकार मस्तिष्क के कोश को ज्ञाननिधि से भरनेवाले बनते हैं। ४. हे प्रभो! आप तो वस्तुतः (मम वसो) = मेरे बसानेवाले हो, मेरा उत्तम निवास आपपर ही निर्भर करता है। अतः ५. (गर्भधम्) = सब ब्रह्माण्ड को अपने गर्भ में धारण करनेवाले आपको अहम् = मैं आ अजानि - सर्वथा जाननेवाला बनूँ [ अज-गति - ज्ञान] आपको जानूँ, आपकी ओर चलूँ और आपको प्राप्त करूँ। ६. (त्वम्) = तूही (गर्भधम्) = इस जगत् को गर्भ में धारण करनेवाली प्रकृति को (अजासि) = [ अज गतिक्षेपणयोः] गति देते हो। आप ही प्रथम गति देनेवाले Prime mover हो। आप ही सारे संसार के सञ्चालक हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- गणपति प्रभु का उपासक मैं ज्ञानेन्द्रिय आदि गणों का पति होऊँ । प्रियपति प्रभु का उपासक मैं सबका प्रिय बनूँ। निधिपति का उपासक ज्ञाननिधि का पति बनूँ। आपको मैं अपना निवासक जानूँ। सारे संसार को गर्भ में धारण करनेवाले आपकी ओर चलूँ। आप ही ब्रह्माण्डजननी प्रकृति को गति देते हो, मुझे भी उत्तम गति प्राप्त कराइए।

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    मराठी (3)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! जो सर्व जगाचे रक्ष्ण करतो, इच्छित सुख देतो, चांगल्या प्रकारचे ऐश्वर्य देतो, प्रकृतीचे पालन करतो व सर्व बीजांची निर्मिती करतो त्याच जगदीश्वराची सर्वांनी उपासना करावी.

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    विषय

    मनुष्यांनी कोणत्या (कोण ते गुण असलेल्या) ईश्‍वराची उपासना केली पाहिजे, पुढील मंत्रात याविषयी सांगितले आहे.-

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे जगदीश्‍वर, आम्ही (उपासकगण) (गणानाम्) गणांमधे (मनुष्य-समूहामधे) व्यापक असलेल्या (गणपतिम्) गणांचे पालन करणार्‍या (त्वा) अशा आपणाला (हवामहे) (आमचा एकमेव पालक म्हणून) स्वीकार करतो. (प्रियाणाम्) अतिप्रिय वा अतिसुंदर वस्तू वा व्यक्तीमधून (प्रियपतिम्) सर्वांहून प्रिय व सुंदर अशा (त्वा) आपली (हवामहे) प्रशंसा करतो. (निधीनाम्) विद्या आदी पदार्थांची पुष्टी करणार्‍या लोकांमधे (निधिपतिम्) विद्या आदी पदार्थांचे खर्‍या अर्थाने रक्षण करणार्‍या (त्वा) आपणास आम्ही (हवामहे) स्वीकार करतो (आपणासारखा पालक, प्रिय वा विधिदाता अन्य कोणी नाही) हे वसो) ज्यामधे सर्वप्राणी निवास करतात) सर्वव्यापी असल्यामुळे सर्व सृष्टी व प्राणी आपल्यामधे आहेत) असे हे परमेश्‍वर (मम्) माझे न्यायाधीश व्हा (माझ्या कर्म-दुष्कर्मादीचे फळ्या) आपण (गर्भधम्) गर्भ ज्याप्रमाणे शिशूला, तद्वत जगाला धारण करणार्‍या प्रकृतीला धारण करीत आहात. (त्यम्) आपण (आ, अजासि) जन्म आदी दोषापासून मुक्त आहात, अशा त्या (गर्भधम्) प्रकृती धारण करणार्‍या आपणाला (अहम्) मी (आ, अजानि) चांगल्या प्रकारे जाणावे (हेच माझ्या हिताचे आहे) ॥19॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यांनो, सर्व जगाचे रक्षक, इच्छित सुखप्रदाता, ऐश्‍वर्यदाता, प्रकृति-पालक आणि सर्वांची उत्पत्तिकारक अशा जगदीश्‍वराचीच तुम्ही उपासना करा. ॥19॥

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    विषय

    प्रार्थना

    व्याखान

    हे समूहाचे अधिपत्य करणाऱ्या ! तू सर्व समूहाचा पति असल्यामुळे मी तुला गणपती या नावाने ओळखतो. सर्व प्रिय पदार्थांचा व लोकांचा तूच पालक आहेस त्यासाठी मी तुला “प्रियपति” जाणावे. त्याप्रमाणेच माझ्या सर्व निधींचा पती असल्यामुळे निधीपती समजावे. “वसो” सर्व जगाला ज्या सामथ्यनि तू निर्माण केलेले आहेस त्या सामर्थ्याचा धारक व पोषक तूच आहेस. हे मला कळले पाहिजे. या सर्वाचे कारण तुझे सामर्थ्य आहे त्यामुळेच जगाचे धारण व पोषण होते. ही जीवसृष्टी उत्पन्न होते व नष्ट होते परंतु तू मात्र जन्मरहित अमृत स्वरूप आहेस. तुझ्या कृपेने मी अधर्मअविद्या, दुष्टभाव इत्यादींना “अजानि” दूर सारावे. आम्ही सर्व लोक तुझ्या प्राप्तीची “हवामहे” इच्छा करतो म्हणून आम्हाला लवकरात लवकर प्राप्ती होऊ दे. जर तुझी प्राप्ती होण्यास थोडाही विलंब झाला तर आमच्या अस्तित्वाला कुठेच थारा मिळणार नाही.॥४६॥

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    इंग्लिश (4)

    Meaning

    O God, we invoke Thee, the troop-lord of troops. We invoke Thee, the Lord of the beloved ones. We invoke Thee, the Lord of the treasure of knowledge. O God, all beings reside in Thee. Thou art my judge. I know Thee full well free from birth, the Sustainer of Matter that keeps the universe in its womb. Thou knowest Matter.

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    Meaning

    Lord of the universe, you are the presiding and protective fatherly presence over all the groups, communities and republics of the world. Such as you are, we accept, realise and surrender unto you. You are the darling life-giver and protector of all things of existence which are so dear to you. We recognise, realise and worship you in love and faith. You are the giver, protector and promoter of all the wealths of the world. We surrender to you in worship and gratitude and pray to you for all the wealth, prosperity and happiness of life. Lord omnipresent in every particle of existence, every particle of existence exists in you. You are my haven and home too. You are the father of all forms of existence. I pray that I may know you, the father, that I may know Prakriti, the mother; and that I may know all the forms of existence, as you do.

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    Purport

    O Lord of the Community! You are the Master of all communities, therefore, I invoke You by the name of Ganapati. You being the Protector of all priyas-the dear ones' who work for us and also all the objects which are dear to us, hence I must know you as Priyapati. You look after and take care of all Nidhis-the treasures, therefore, I must know you as Nidhipati-the Custodian of our treasures. O the Inhabitor of all and Inhabitant in all things ! The Power [Might] which has created the world, I should know You as the Sustainer and Nourisher of that primordial energy. The cause of all this is your mighty strength. The same strength supports, protects and nourishes the whole world. The animate creatures [having bodies] born and die, but You are ever Unborn and Immortal. By Your Grace, I should throw away unrighteousness, ignorance and wickedness-evil inclinations, and we all invoke you with great zeal. Be accessible to us. If you will delay even the least in this matter, we shall be ruined.

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    Translation

    We invoke you, the Lord of people. (1) We invoke you, the dear Lord of dear ones. (2) We invoke you, the Lord of treasures, O my greatest wealth. (3) May I know the impregnator; may you know the one, that is to be impregnated. (4)

    Notes

    Vaso, O greatest wealth. Ajäni,जानीयाम , may I know, may I get. Garbhadham, to one who impregnates. The commentators have interpreted गर्भधं as गर्भं दधाति यत् तत् रेत:, that which impregnates. i. e. the semen. I draw se men with force; you eject semen with force. They suggest that three queens of the king are addressing the horse and implying that may he act as their husband. हे वसुरूप अश्व, मम पतिस्त्वं भूया इति शेषः ।

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনর্মনুষ্যৈ কীদৃশঃ পরমাত্মোপাসনীয় ইত্যাহ ॥
    পুনঃ মনুষ্যদিগকে কেমন পরমাত্মার উপাসনা করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে জগদীশ্বর ! আমরা (গণানাম্) গণগুলির মধ্যে (গণপতিম্) গণগুলির পালক (ত্বা) আপনাকে (হবামহে) স্বীকার করি (প্রিয়াণাম্) অতিপ্রিয় সুন্দরদের মধ্যে (প্রিয়পতিম্) অতিপ্রিয় সুন্দরদের পালনকারী (ত্বা) আপনার (হবামহে) প্রশংসা করি (নিধীনাম্) বিদ্যাদি পদার্থগুলির পুষ্টিকারীদের মধ্যে (নিধিপতিম্) বিদ্যাদি পদার্থের রক্ষক (ত্বা) আপনাকে (হবামহে) স্বীকার করি । (বসো) পরমাত্মন্ ! যে আপনার মধ্যে সকল প্রাণী বসবাস করে সুতরাং আপনি (মম) আমার ন্যায়াধীশ হউন, যে (গর্ভধম্) গর্ভ সমান সংসারকে ধারণকারিণী প্রকৃতির ধারক (ত্বম্) আপনি (আ, অজাসি) জন্মাদি দোষরহিত ভালমত প্রাপ্ত হয়, সেই (গর্ভধম্) প্রকৃতির ধর্ত্তা আপনাকে (অহম্) আমি (আ, অজানি) ভালমত জানি ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যিনি সব জগতের রক্ষা, কাম্য সুখের বিধান, ঐশ্বর্য্যের ভালমত দান, প্রকৃতির পালন এবং সব বীজের বিধান করেন, সেই জগদীশ্বরের উপাসনা সকলে কর ॥ ১ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    গ॒ণানাং॑ ত্বা গ॒ণপ॑তিꣳহবামহে প্রি॒য়াণাং॑ ত্বা প্রি॒য়প॑তিꣳহবামহে নিধী॒নাং ত্বা॑ নিধি॒পতি॑ꣳ হবামহে বসো মম । আऽহম॑জানি গর্ভ॒ধমা ত্বম॑জাসি গর্ভ॒ধম্ ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    গণানাং ত্বেত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । গণপতির্দেবতা । শক্বরী ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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    नेपाली (1)

    विषय

    प्रार्थनाविषयः

    व्याखान

    हे समूहाधिपते ! त्वा = तपाईं मेरा गणानाम् = गण= समस्त समूह हरु का पति हुनाले तपाईंलाई गणपतिम् ='गणपति' नामले हवामहे= पुकार्द छु तथा मेरा प्रियाणाम् = प्रिय कर्मकारी, पदार्थ र जनसमूह का ‘पति’ पालक पनि तपाईं नै हुनुहुन्छ । एसले त्वा = तपाईंलाई प्रियपतिम् = 'प्रियपति' भनेर मँ अवश्य स्वीकार्दछु एवं मेरा निधीनां त्वा निधिपतिम् = सबै निधि हरु का पति हुनाले तपाईंलाई मँ ‘निधिपति’ भनेर स्वीकारूँ । हे वसो != सम्पूर्ण जगत् जुन तपाई को सामर्थ्य बाट उत्पन्न भएर बसेको छ, तेस 'गर्भ' निज सामर्थ्य लाई धारण र पोषण गर्ने भनी मँ तपाईंलाई मात्रै जानूँ गर्भधम्= गर्भ सबैको कारण तपाईंको सामर्थ्य हो, यसैले सबै जगत् लाई धारण र पोषण गर्दछ । यो जीव आदी सशरीर प्राणीजगत् त जन्मिन्छ र मर्द छ परन्तु तपाईं सदैव अजा असि= अजन्मा र अमृतस्वरूप हुनुहुन्छ । तपाईं का कृपा ले मँ अधर्म अविद्या र दुष्टभावादि लाई अजानि-टाढा फ्याँकि दिन्छु तथा हामी सबै तपाईं लाई नै हवामहे अत्यन्त स्पर्धा [प्राप्तिको इच्छा] गर्द छौं र अब प्रभो तपाईं हामीलाई चाँडै प्राप्त हुनु होस्, तपाईं प्राप्त हुनमा थोरै पनि विलम्ब हुनगयो भने हाम्रो कहीं पनि ठेगान हुने छैन ॥४६॥

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