यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 41
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - प्रजा देवता
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
3
अ॒र्द्ध॒मा॒साः परू॑षि ते॒ मासा॒ऽआच्छ्॑यन्तु॒ शम्य॑न्तः।अ॒हो॒रा॒त्राणि॑ म॒रुतो॒ विलि॑ष्टꣳ सूदयन्तु ते॥४१॥
स्वर सहित पद पाठअ॒र्द्ध॒मा॒सा इत्य॑र्द्धमा॒साः। परू॑ꣳषि। ते॒। मासाः॑। आ। छ्यन्तु॒। शम्य॑न्तः। अ॒हो॒रा॒त्राणि॑। म॒रुतः॑। विलि॑ष्ट॒मिति॒ विऽलि॑ष्टम्। सू॒द॒य॒न्तु॒। ते॒ ॥४१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्धमासाः परूँषि ते मासाऽआच्छ्यन्तु शम्यन्तः । अहोरात्राणि मरुतो विलिष्टँ सूदयन्तु ते ॥
स्वर रहित पद पाठ
अर्द्धमासा इत्यर्द्धमासाः। परूꣳषि। ते। मासाः। आ। छ्यन्तु। शम्यन्तः। अहोरात्राणि। मरुतः। विलिष्टमिति विऽलिष्टम्। सूदयन्तु। ते॥४१॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ बालकेषु मात्रादयः कथं वर्त्तेरन्नित्याह॥
अन्वयः
हे विद्यार्थिन्! अहोरात्राण्यर्द्धमासा मासाश्चायूंषीव ते तव परूंषि शम्यन्तो मरुतो दुर्व्यसनान्याच्छ्यन्तु ते तव मासा विलिष्टं सूदयन्तु॥४१॥
पदार्थः
(अर्द्धमासाः) कृष्णशुक्लपक्षाः (परूंषि) कठोराणि वचनानि (ते) तव (मासाः) चैत्रादयः (आ) समन्तात् (छ्यन्तु) छिन्दन्तु (शम्यन्तः) शान्ति प्रापयन्तः (अहोरात्राणि) (मरुतः) मनुष्याः (विलिष्टम्) विरुद्धमल्पमपि व्यसनम् (सूदयन्तु) दूरीकारयन्तु (ते) तव॥४१॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि मातापित्रध्यापकोपदेशकातिथयो बालानां दुर्गुणान्न निवर्त्तयेयुस्तर्हि ते शिष्टाः कदाचिन्न भवेयुः॥४१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब बालकों में माता आदि कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे विद्यार्थी लोग! (अहोरात्राणि) दिन-रात (अर्द्धमासाः) उजेले-अंधियारे पखवाड़े और (मासाः) चैत्रादि महीने जैसे आयु अर्थात् उमरों को काटते हैं, वैसे (ते) तेरे (परूंषि) कठोर वचनों को (शम्यन्तः) शान्ति पहुंचाते हुए (मरुतः) उत्तम मनुष्य दुष्ट कामों का (आच्छ्यन्तु) विनाश करें और (ते) तेरे (विलिष्टम्) थोड़े भी कुव्यसन को (सूदयन्तु) दूर करें॥४१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जो माता-पिता पढ़ाने और उपदेश करने वाले तथा अतिथि लोग बालकों के दुष्ट गुणों को न निवृत्त करें तो वे शिष्ट अर्थात् उत्तम कभी न हों॥४१॥
विषय
संवत्सर के अंगभूत दिन रात्रि के समान नाना राज्याङ्गों और उनके अध्यक्षों के कर्तव्य ।
भावार्थ
संवत्सर के पर्वों को धर्ममासों और मासो में विभक्त करते हैं वैसे ही हे राष्ट्र ! (ते) तेरे (परूंपि) पालन कार्य, राज्यव्यवस्था के अंगों को (अर्धमासाः ) विशेष समृद्ध विद्वान् पुरुष और (मासा:) विद्वान् पुरुष ( शम्यन्त:) शान्ति प्राप्त करने हारे (आ च्छ्यन्तु) सर्वत्र विभक्त करें । मापने में कुशल जन भूमिरूप राष्ट्र को माप-माप कर विभक्त करें (अहोरात्राणि) वर्ष में दिन और रात्रि के समान विद्यमान ( मरुतः) विद्वान् दण्डव्यवस्था में नियुक्त राजपुरुष (ते) तेरे व्यवस्था कार्य में (विलिष्टम् ) होने वाली त्रुटि को (सुदयन्तु) विनष्ट करें | सामान्य मनुष्य भी पर्वो को मास, पक्ष और दिन, रात्रि में विभक्त करें। और तुझे शान्ति दे विद्वान् पुरुष त्रुटि को दूर करें ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
प्रजाः राष्ट्रं वा देवता । अनुष्टुप् । गांधारः ॥
विषय
दिन-रात, पक्षों व मासों की अनुकूलता
पदार्थ
१. (अर्धमासा:) = आधे मास, अर्थात् शुक्लपक्ष व कृष्णपक्ष, (मासाः) = वर्ष के बारह महीने, (शम्यन्तः) = तेरे जीवन को शान्त बनाते हुए (ते परूँषि) = तेरे सब जोड़ों [joints] को (आच्छ्यन्तु) = दोषों से छिन्न-रहित करें। दोनों पक्ष तेरे अनुकूल हों। मास भी तेरे अनुकूल हों। उनके अनुकूल व्यवहार करने से तेरे सब पर्व दोषशून्य हों। २. (अहोरात्राणि) = दिन-रात अर्थात् सदा (मरुतः) = ये ४९ प्रकार की वायु (ते) = तेरे (विलिष्टम्) = थोड़े-से भी अल्पीभाव व न्यूनता को (सूदयन्तु) = नष्ट करें। जिस समय मनुष्य प्रत्येक मास का ध्यान करते हुए तथा पक्षों का विचार करते हुए अपना आहार-विहार ठीक रखता है तो शरीर में सब प्राणवायुएँ ठीक कार्य करती हैं और वे (मरुत्) = प्राण दिन-रात उसकी न्यूनताओं को दूर करने में लगे रहते हैं। शरीर में होनेवाली थोड़ी-थोड़ी कमी को भी [विलिष्टम्] ये दूर करके इसे पूर्ण स्वस्थ बनानेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ-अर्धमास, मास, दिन-रात व प्राण [मरुत्] हमारे अनुकूल हों और हमारे थोड़े-से भी दोष को दूर करनेवाले हों।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे आई-वडील शिकविणारे व उपदेश करणारे नसतील व अतिथी मुलांच्या दुष्ट गुणांना दूर करणार नसतील तर ती मुले सभ्य अर्थात् कधीही उत्तम होणार नाहीत.
विषय
आईवडिलांनी मुलांशी कसे वागावे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे विद्यार्थीगण, ज्याप्रमाणे (अहोरात्राणि) दिवस आणि रात्र तसेच (अर्धमासाः) शुक्ल आणि कृष्ण पक्ष अथवा उजेड आणि अंधार याशिवाय (मासाः) चैत्र आदी महिने माणसाचे वय कमी कमी करीत असतात, (माणसाचे आयुष्य एक-एका दिवसाने घटत जाते) तद्वत (वे) तुझ्या वागण्या-बोलण्यातील (परूंषि) कठोर वा कटु वचनांना (मरूतः) उत्तम जन (शम्यन्तः) शांत करोत आणि तुझ्यातील दुष्कर्म करण्याच्या प्रवृत्तीला (आछ्यन्तु) नष्ट करोत (तुझी वाणी मधुर व प्रवृत्ती सत्कर्माकडे व्हावी) त्या विद्वज्जनांनी (ते) तुझ्या स्वभावात वा वागण्यात (विलिष्टम्) थोडाशादेखील दुर्व्यसन (सूदयन्तु) दूर करावे. (अशी आम्हा माता-पित्यांची इच्छा आहे)॥41॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा आहे. जे आईवडील, तथा उपदेश वा अतिथीगण घरातील मुला-मुलींतील दुष्प्रवृत्ती वा दुष्कर्म दूर करीत नसतील, तर त्यांना चांगले कसे म्हणता येईल अथवा ती मुली-मुली उत्तम कसे होतील? ॥41॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O King, may day and night, half months and months, affording felicity, adorn the different periods of thy life. May the learned remove thy doubt.
Meaning
Learner, seeker of knowledge, may the days and nights, fortnights and months developing you refine and strengthen your body parts and life’s periods, and may the learned soften your roughness and eliminate your hardness.
Translation
May the half-months and the months refine your joints while bringing peace to them. May the days and nights and the winds remove your faults whatsoever. (1)
Notes
Vilistam, विरुद्धं अल्पमपि व्यसनं, even any small fault.
बंगाली (1)
विषय
অথ বালকেষু মাত্রাদয়ঃ কথং বর্ত্তেরন্নিত্যাহ ॥
এখন বালকদের সঙ্গে মাতাদি কেমন ব্যবহার করিবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে বিদ্যার্থীগণ ! (অহোরাত্রাণি) দিন রাত্রি (অর্দ্ধমাসাঃ) কৃষ্ণ শুক্ল পক্ষ এবং (মাসাঃ) চৈত্রাদি মাস যেমন আয়ু কর্ত্তন করে সেইরূপ (তে) তোমার (পরূংষি) কঠোর বচনকে (শম্যন্তঃ) শান্তি দিয়া (মরুতঃ) উত্তম মনুষ্ট দুষ্ট কর্মের (আচ্ছ্যন্তু) বিনাশ করিবে এবং (তে) তোমার (বিলিষ্টম্) অল্প কুব্যসনকেও দূর করিবে ॥ ৪১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে মাতা-পিতা অধ্যাপক ও উপদেশক তথা অতিথিগণ বালকদের দুষ্ট গুণগুলিকে নিবৃত্ত না করে তাহা হইলে তাহারা শিষ্ট অর্থাৎ উত্তম কখনও হইবে না ॥ ৪১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অ॒র্দ্ধ॒মা॒সাঃ পরূ॑ᳬंষি তে॒ মাসা॒ऽআ চ্ছ্য॑ন্তু॒ শম্য॑ন্তঃ ।
অ॒হো॒রা॒ত্রাণি॑ ম॒রুতো॒ বিলি॑ষ্টꣳ সূদয়ন্তু তে ॥ ৪১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অর্দ্ধমাসা ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । প্রজা দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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