यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 44
शं ते॒ परे॑भ्यो॒ गात्रे॑भ्यः॒ शम॒स्त्वव॑रेभ्यः।शम॒स्थभ्यो॑ म॒ज्जभ्यः॒ शम्व॑स्तु त॒न्वै तव॑॥४४॥
स्वर सहित पद पाठशम्। ते॒। परे॑भ्यः। गात्रे॑भ्यः। शम्। अ॒स्तु॒। अव॑रेभ्यः। शम्। अ॒स्थभ्य॒ इत्य॒स्थऽभ्यः॑। म॒ज्जभ्य॒ इति॑ म॒ज्जऽभ्यः॑। शम्। ऊँऽइत्यूँ॑। अ॒स्तु॒। त॒न्वै। तव॑ ॥४४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शन्ते परेभ्यो गात्रेभ्यः शमस्त्ववरेभ्यः । शमस्थभ्यो मज्जभ्यः शम्वस्तु तन्वै तव ॥
स्वर रहित पद पाठ
शम्। ते। परेभ्यः। गात्रेभ्यः। शम्। अस्तु। अवरेभ्यः। शम्। अस्थभ्य इत्यस्थऽभ्यः। मज्जभ्य इति मज्जऽभ्यः। शम्। ऊँऽइत्यूँ। अस्तु। तन्वै। तव॥४४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मात्रादिभिः किं कर्त्तव्यमित्याह॥
अन्वयः
हे विद्यामिच्छो! यथा पृथिव्यादितत्त्वं तव तन्वै शमस्तु परेभ्यो गात्रेभ्यः शम्ववरेभ्यो गात्रेभ्यः शमस्तु। अस्थभ्यो मज्जभ्यः शमस्तु तथा स्वकीयैरुत्तमगुणकर्मस्वभावैरध्यापकास्ते शंकरा भवन्तु॥४४॥
पदार्थः
(शम्) सुखम् (ते) तुभ्यम् (परेभ्यः) उत्कृष्टेभ्यः (गात्रेभ्यः) (शम्) (अस्तु) (अवरेभ्यः) मध्यस्थेभ्यो निकृष्टेभ्यो वा (शम्) (अस्थभ्यः) छन्दस्यपि दृश्यते [अ॰६.४.७३] इत्यनेन हलादावप्यनङ्। (मज्जभ्यः) (शम्) (उ) (अस्तु) (तन्वै) शरीराय (तव)॥४४॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा मातापित्रध्यापकोपदेशकैः सन्तानानां दृढाङ्गानि दृढा धातवश्च स्युर्यैः कल्याणं कर्त्तुमर्हेयुस्तथाऽध्यापनीयमुपदेष्टव्यं च॥४४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर माता आदि को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे विद्या चाहने वाले! जैसे पृथिवी आदि तत्त्व (तव) तेरे (तन्वै) शरीर के लिये (शम्) सुखहेतु (अस्तु) हो वा (परेभ्यः) अत्यन्त उत्तम (गात्रेभ्यः) अङ्गों के लिये (शम्) सुख (उ) और (अवरेभ्यः) उत्तमों से न्यून मध्य तथा निकृष्ट अङ्गों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो और (अस्थभ्यः) हड्डी (मज्जभ्यः) और शरीर में रहने वाली चरबी के लिये (शम्) सुखहेतु हो, वैसे अपने उत्तम गुण-कर्म और स्वभाव से अध्यापक लोग (ते) तेरे लिये सुख के करने वाले हों॥४४॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे माता, पिता, पढ़ाने और उपदेश करनेवालों को अपने सन्तानों के पुष्ट अङ्ग और पुष्ट धातु हों, जिनसे दूसरों के कल्याण करने के योग्य हों, वैसे पढ़ाना और उपदेश करना चाहिये॥४४॥
विषय
सर्वाङ्ग शान्ति ।
भावार्थ
हे राष्ट्र ! और हे राजन् ! (ते) तेरे ( परेभ्यः) पर, उत्कृष्ट अंगों को (शम् अस्तु) कल्याण और शान्ति प्राप्त हो । (अवरेभ्यः) गौण अंगों को ( शम् ) शान्ति प्राप्त हो । (अस्थभ्यः) शरीर में विद्यमान हड्डियों, उनके समान राष्ट्र के दृढ़ पुरुषों शत्रुओं पर शस्त्र फेंक कर परे हटाने वालों और (तव मज्जभ्यः) तेरी मज्जाओं और राष्ट्र के कण्टक- शोधन करने हारे, दमनकारी, नगरों ग्रामों और वसतिस्थानों में सफाई करने वाले अधिकारी लोगों को और (तव तन्वै) तेरे शरीर और सम्पूर्ण राष्ट्र को (शम् अस्तु) शान्ति प्राप्त हो । राजा के राष्ट्रमय शरीर, देखो अ० २० । ५ से १०, १३, ॥ 'अस्थि' – असेः क्थिन् उणादिः । ३ । १५४ ॥ अस्यति प्रक्षिपति येन तद् अस्थि । 'मज्जा' - मज्जतेः मज्जति शुन्धतीति मज्जा । उणादि निपातनम् । १ । १५७ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
राजा देवता । उष्णिक् । ऋषभः ॥
विषय
शमन्वित [ शान्तिगुणयुक्त ] शरीर
पदार्थ
१. बाह्य संसार की अनुकूलता होने पर यह शरीररूप छोटा पिण्ड भी बड़ा स्वस्थ बनता है, अतः कहते हैं कि गतमन्त्र के अनुसार द्युलोक आदि की अनुकूलता होने पर तेरे (परेभ्यः गात्रेभ्यः) = उत्कृष्ट, ऊपर के सिर, हाथ आदि अङ्गों के लिए शम् शान्ति हो । (अवरेभ्यः) [गात्रेभ्यः ] (शम् अस्तु) = अवर [lower], निचले पाँव आदि अङ्गों के लिए शान्ति हो । २. (अस्थभ्यः मज्जभ्यः) = शरीर की सब दुर्बलताओं को दूर फेंकनेवाली [अस्यन्ति = क्षिपन्ति ] इन हड्डियों के लिए तथा [मज्जन्ति शुचन्ति = शुद्धिं कुर्वन्ति ] शोधन करनेवाली मज्जा के लिए शम् शान्ति हो । हड्डियों के ठीक होने पर ही शरीर का ठीक होना निर्भर है। इनकी निर्बलता मनुष्य को दुःख देती है। मज्जा के ठीक होने पर शरीर शुद्ध बना रहता है। ३. इस प्रकार (तव) = तेरे (तन्वै) = सम्पूर्ण शरीर के लिए (उ) = निश्चय से (शम् अस्तु) = शान्ति हो ।
भावार्थ
भावार्थ- बाह्य द्युलोक आदि की अनुकूलता से हमारे पर, अवर सब गात्र तथा अस्थि व मज्जा तथा सम्पूर्ण शरीर रोगों के उपद्रव से रहित व शान्त हों।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माता, पिता, अध्यापक व उपदेशक यांनी मुलांचे शरीर धष्टपुष्ट करावे व त्यांनी बलवान बनून दुसऱ्यांचे कल्याण करावे. अशा प्रकारची शिकवण व उपदेश करावा.
विषय
शन्ते परेभ्यो गात्रेभ्यः शमस्त्ववरेभ्यः ।
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे विद्यार्थी, पृथ्वी आदी तत्व (तव) तुझ्या (तन्वै) शरीराकरिता (शम्) सुखाचे कारण (अस्तु) होवो. तसेच (परेभ्यः) अत्यन्त उत्तम (मस्तिष्क, नेत्र, कर्ण आदी) (गात्रेभ्यः) शरीराच्या अंगाकरिता (शम्) सुखकारक होवोत (उ) आणि (अवरेभ्यः) उत्तम अंगाहून किंचित न्यून तसेच निकृष्ट अवयवासाठी (कर्मेन्द्रियांसाठी) (शम्) सुखकारक (अस्तु) असोत. तसेच (अस्थभ्यः) अस्थी व (मज्जभ्यः) शरीरातील स्निग्ध भेद या साठी (शम्) सुखाचे कारण ठरो. या सर्वांप्रमाणे आपल्या उत्तम गुण, कर्म, स्वभावाद्वारे तुझे अध्यापकगणही (ते) तुझ्या साठी सुखकारक ठरोत (अशी आम्ही तुझे आईवडील शुभकामना करीत आहोत) ॥44॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. आईवडिलांनी, अध्यापक व उपदेशकांनी आपल्या मुलामुलींना व विद्यार्थी-विद्यार्थिनीनां असे शिक्षण द्यावे वा आदेश केला पाहिजे की ज्यायोगे त्याच्या संतानाचे-विद्याथ्यांचे शरीरावयव पुष्ट व सुदृढ होती,. धातू पुष्ट होऊन ती संताने इतरांचे कल्याण करणारी होतील, असा उपदेश त्यांना करावा. ॥44॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O student just as the Earth contributes to the welfare of vital and minor organs of thy body, thy bones and marrow, so thy teachers with their qualities, actions and noble nature add to thy pleasure.
Meaning
Peace and health to the higher parts of your personality. Peace and health to the lower parts of your body. Peace and strength to your bones and marrow. Peace and well-being to your body and mind all over.
Translation
O king, may your upper parts of the body be at ease and at ease be the lower parts as well. May there be ease in your bones, ease in your marrow and may there be ease in the whole of your body. (1)
Notes
45-46. Repeated from XXIII 9-10.
बंगाली (1)
विषय
পুনর্মাত্রাদিভিঃ কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
পুনঃ মাতাদিকে কী করা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে বিদ্যা কামনাকারী ! যেমন পৃথিবী আদি তত্ত্ব (তব) তোমার (তন্বৈ) শরীরের জন্য (শম্) সুখহেতু (অস্তু) হউক অথবা (পরেভ্যঃ) অত্যন্ত উত্তম (গাত্রেভ্যঃ) অঙ্গসমূহের জন্য (শম্) সুখ (উ) এবং (অবরেভ্যঃ) উত্তম হইতে নূ্যন মধ্য তথা নিকৃষ্ট অঙ্গ সমূহের জন্য (শম্) সুখ রূপ (অস্তু) হউক এবং (অস্থভ্যঃ) অস্থি (মজ্জভ্যঃ) এবং শরীরের মজ্জা হেতু (শম্) সুখের জন্য হউক সেইরূপ স্বীয় উত্তম গুণ-কর্ম ও স্বভাব দ্বারা অধ্যাপক গণ (তে) তোমার জন্য সুখকারী হউক ॥ ৪৪ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন মাতা, পিতা, অধ্যাপক ও উপদেশকদের নিজ সন্তানদিগের পুষ্ট অঙ্গ ও পুষ্ট ধাতু হউক যাহাতে অন্যের কল্যাণ করিবার যোগ্য হয় সেইরূপ পড়ান ও উপদেশ করা উচিত ॥ ৪৪ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
শং তে॒ পরে॑ভ্যো॒ গাত্রে॑ভ্যঃ॒ শম॒স্ত্বব॑রেভ্যঃ ।
শম॒স্থভ্যো॑ ম॒জ্জভ্যঃ॒ শম্ব॑স্তু ত॒ন্বৈ᳕ তব॑ ॥ ৪৪ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
শন্ত ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । রাজা দেবতা । উষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
ঋষভঃ স্বরঃ ॥
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