यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 23
य॒कोऽस॒कौ श॑कुन्त॒कऽआ॒हल॒गिति॒ वञ्च॑ति। विव॑क्षतऽइव ते॒ मुख॒मध्व॑र्यो॒ मा न॒स्त्वम॒भि भा॑षथाः॥२३॥
स्वर सहित पद पाठय॒कः। अ॒स॒कौ। श॒कु॒न्त॒कः। आ॒हल॑क्। इति॑। वञ्च॑ति। विव॑क्षतऽइ॒वेति॒ विव॑क्षतःऽइव। ते॒। मुख॑म्। अध्व॑र्यो॒ऽइत्यध्व॑र्यो। मा। नः॒। त्वम्। अ॒भि। भा॒ष॒थाः॒ ॥२३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यकोसकौ शकुन्तकऽआहलगिति वञ्चति । विवक्षतऽइव ते मुखमध्वर्या मा नस्त्वमभि भाषथाः ॥
स्वर रहित पद पाठ
यकः। असकौ। शकुन्तकः। आहलक्। इति। वञ्चति। विवक्षतऽइवेति विवक्षतःऽइव। ते। मुखम्। अध्वर्योऽइत्यध्वर्यो। मा। नः। त्वम्। अभि। भाषथाः॥२३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे अध्वर्यो! त्वं नो माभिभाषथा मिथ्याभाषणं विवक्षत इव ते मुखं मा भवतु। यद्येवं यकोऽसकौ करिष्यसि, तर्हि शकुन्तक इव राजाऽऽहलगिति न वञ्चति॥२३॥
पदार्थः
(यकः) यः (असकौ) असौ राजा (शकुन्तकः) निर्बलः पक्षीव (आहलक्) समन्ताद् विलिखितं यथा स्यात् तथा (इति) (वञ्चति) वञ्चितो भवति (विवक्षत इव) वक्तुमिच्छोरिव (ते) तव (मुखम्) आस्यम् (अध्वर्यो) योऽध्वरमिवाचरति तत्सम्बुद्धौ (मा) (नः) अस्मान् (त्वम्) (अभि) (भाषथाः) वदेः॥२३॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। राजा कदाचिन्मिथ्याप्रतिज्ञः परुषवादी न स्यान्न कंचिद् वञ्चयेत्। यद्ययमन्यायं कुर्यात् तर्हि स्वयमपि प्रजाभिर्वञ्चितः स्यात्॥२३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (अध्वर्यो) यज्ञ के समान आचरण करने हारे राजा! (त्वम्) तू (नः) हम लोगों के प्रति (मा, अभिभाषथाः) झूठ मत बोलो और (विवक्षत इव) बहुत गप्प-सप्प बकते हुए मनुष्य के मुख के समान (ते) तेरा (मुखम्) मुख मत हो, यदि इस प्रकार (यकः) जो (असकौ) यह राजा गप्प-सप्प करेगा तो (शकुन्तकः) निर्बल पखेरू के समान (आहलक्) भलीभांति उच्छिन्न जैसे हो (इति) इस प्रकार (वञ्चति) ठगा जायेगा॥२३॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। राजा कभी झूठी प्रतिज्ञा करने और कटुवचन बोलने वाला न हो तथा न किसी को ठगे, जो यह राजा अन्याय करे तो आप भी प्रजाजनों से ठगा जाये॥२३॥
विषय
शक्तिशाली राजा का स्वरूप और उसका मुख्य व्रत वाणी पर वश करना। दम्पत्ति पक्ष में शक्तिमान् पुरुष का स्त्री के हृदय का आकर्षक और एक स्त्री व्रत होने का उपदेश ।
भावार्थ
(यकः = यः) जो पुरुष (शकुन्तः) शक्तिशाली है, (असकौ असौ) वह (आलहक् ) मैं सब प्रकार से भूमि को विलेखन करने में समर्थ हूँ (इति) इस हेतु से (वञ्चति) भूमि को प्राप्त होता है । राज्य प्राप्त हो जाने पर हे (अध्वर्यो) अध्वर्यो ! सिंहारहित ! प्रजापालन कार्य को सञ्चालन करने हारे राजन् ! (विवक्षतः ते) विशेषरूप से राष्ट्र भार को उठाना, चाहने वाले तेरा पद (मुखम् इव) शरीर में मुख के समान मुख्य है । अत: तू (नः) हम लोगों से (मा अभिभाषथाः) व्यर्थ बातें मत किया कर । (२) दम्पति पक्ष में- जो पुरुष शक्तिमान् है वह (आहलक) मैं अमुक स्त्री के हृदय को खींचने में समर्थ हूँ (इति वञ्चति) इसलिये उसे प्राप्त हो । हे अध्वर्यो ! गृहस्थ यज्ञ में युक्त होना चाहने वाले पुरुष ! ( ते विवक्षतः इव मुखम् ) तेरा मुख अब विवाहेच्छु पुरुष के समान है। तू (न: मा अभिभाषथाः) अब हम सामान्य स्त्रीपुरुषों से अधिक व्यर्थालाप मत कर । महीधर ने इसमें भ्रष्ट अर्थों की पराकाष्ठा करदी है । जिसकी यहां गन्ध भी नहीं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
राजप्रजे देवते । बृहती । मध्यमः ॥
विषय
शकुन्तक [ शक्तिसम्पन्न ]
पदार्थ
१. गतमन्त्र में प्रजा के कृषिप्रधान बनने का उल्लेख था । प्रस्तुत मन्त्र में एक-एक व्यक्ति के कृषि को स्वीकार करने का वर्णन करते हुए कहते हैं कि (यकः असकौ) = [यः असौ ] जो वह (शकुन्तकः) = शक्तिशाली होकर (आहलक्) = [ आ हलेन अञ्चति] चारों ओर हल के साथ गति करनेवाला होकर (इति) = इस प्रकार वञ्चति दुष्काल को राष्ट्र से दूर करता है। २. हे (अध्वर्यो) = राष्ट्रयज्ञ के सञ्चालक राजन्! (ते मुखम्) = तेरा चेहरा (विवक्षतः इव) = उस पुरुष के चेहरे के समान है जो विशिष्ट भार को उठाने की कामनावाला है। तेरे चेहरे से ही यह बात स्पष्ट है कि तू विशिष्ट राज्यभार को उठाये हुए है। ३. हमारा भी प्रयत्न ऐसा होगा कि (त्वं नः मा अभि भाषथा:) = आप हमें कुछ मत कहें। हमारा आचरण ही इतना सुन्दर हो कि आपको कुछ कहना ही न पड़े। वस्तुतः प्रजावर्ग का राजा के लिए सर्वोत्तम सहयोग यही है कि वह राजा को कुछ कहने का अवसर ही न दे।
भावार्थ
भावार्थ- सब पुरुषों का जीवन कृषि प्रधान हो। वे अपने आचरण को ऐसा उत्तम रक्खें कि राजा को उन्हें कुछ कहना ही न पड़े, तभी राजा राज्य के विशिष्ट कार्यभार को ठीक से उठा पाएगा।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. राजाने कधी असत्य प्रतिज्ञा करू नये व कटू वचन बोलू नसे किंवा कुणाला फसवू नये. जो राजा अन्याय करतो तो स्वतः प्रजेकडून फसविला जातो.
विषय
पुन्हा त्याविषयी. -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (अध्वर्यो) यज्ञाप्रमाणे पवित्र आचरण करणारे राजा, (त्वम्) आपण (नः) आम्हा (प्रजाजनांप्रत) (मा,अभिभाषथाः) खोटे बोलूं नका आणि (विवक्षत इव) गपिष्ट वा बडबड्या माणसाच्या मुखाप्रमाणे (ते) तुमचे (मुखम्) मुख असू नये (राजाने प्रजेशी खोटे बोलू नये, थापा मारू नये, उगाच खोटी आश्वासनें देऊन प्रजेला भुलवूं नये) (यकः) जो (असकौ) असा राजा थापा वा खोटेपणा करील, तो (शकुन्तकः) निर्बळ पक्ष्याप्रमाणे (आहलक) चांगलाच झोडपला जाईल तसेच (इति) अशा प्रकारे (वञ्चति) ठकविला जाईल (प्रजा त्याला खोटा ठरवून पदावरून दूर करील वा पुन्हा निवडून देणार नाहीं) ॥23॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोमा अलंकार आहे - राजा कधीही खोटी प्रतिज्ञा वा आश्वासनें देणारा तसेच कटुभाषी (प्रजेला अपमानित करणारा) असू नये. त्याने कोणालाही ठकविणे, लुबाडणे आदी दुष्कर्म करूं नये. जर राजा प्रजेवर अन्याय करील, तर ठकविला जाईल (प्रजा त्याला शासनपदावरून दूर करील) ॥23॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O harmless King, dont utter untruth before us. Let not thy tongue utter meaningless words like a prattler. A King who has got no control over his tongue will be extirpated like a weak sparrow, and defrauded by his subjects.
Meaning
Ruler, high-priest of the yajna of the state, make no false promises to us. Let your mouth be not like a boaster’s. If you tell lies, you will grow weaker and weaker like a helpless bird and end up, cheating yourself.
Translation
As this bird moves hither and thither (aimlessly), so, O righteous administrator, whenever you wish to talk, please do not speak to us in that manner. (1)
Notes
(The virgin makes reply to the priest :) this your little bird (male organ) moves as if attempting to speak. It looks just like your open mouth. Please shut up and talk not to us.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (অধ্বর্য়ৌ) যজ্ঞ সমান আচরণকারী রাজা ! (ত্বম্) তুমি (নঃ) আমাদের প্রতি (মা, অভিভাষথাঃ) মিথ্যা কথা বলিও না এবং (বিবক্ষত ইব) বহু গল্প বলা মনুষ্যের মুখ সদৃশ (তে) তোমার (মুখম্) মুখ না হয় । যদি এই প্রকার (য়কঃ) যে (অসকৌ) এই রাজা গল্প করিবে তাহা হইলে (শকুন্তকঃ) দুর্বল পক্ষীর সমান (আহলক্) ভালমত উচ্ছিন্ন যেমন হয় (ইতি) এই প্রকার (বঞ্চতি) প্রতারিত হইবে ॥ ২৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপপ্তোপমালঙ্কার আছে । রাজা কখনও মিথ্যা প্রতিজ্ঞাকারী এবং কটুবচন না বলে তথা কাহাকেও বঞ্চনা করিবে না, রাজা যদি অন্যায় করে তাহা হইলে স্বয়ং প্রজাদিগের দ্বারা প্রতারিত হইবে ॥ ২৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়॒কো᳖ऽস॒কৌ শ॑কুন্ত॒কऽআ॒হল॒গিতি॒ বঞ্চ॑তি ।
বিব॑ক্ষতऽইব তে॒ মুখ॒মধ্ব॑র্য়ো॒ মা ন॒স্ত্বম॒ভি ভা॑ষথাঃ ॥ ২৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়কোऽসকাবিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । রাজপ্রজে দেবতে । বৃহতী ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal