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यजुर्वेद अध्याय - 23

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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 37
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - स्त्रियो देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    2

    र॒ज॒ता हरि॑णीः॒ सीसा॒ युजो॑ युज्यन्ते॒ कर्म॑भिः।अश्व॑स्य वा॒जिन॑स्त्व॒चि सिमाः॑ शम्यन्तु॒ शम्य॑न्तीः॥३७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    र॒ज॒ताः। हरि॑णीः। सीसाः॑। युजः॑। यु॒ज्य॒न्ते॒। कर्म॑भिरिति॒ कर्म॑ऽभिः। अश्व॑स्य। वा॒जिनः॑। त्व॒चि। सिमाः॑। श॒म्य॒न्तु॒। शम्य॑न्तीः ॥३७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रजता हरिणीः सीसा युजो युज्यन्ते कर्मभिः । अश्वस्य वाजिनस्त्वचि सिमाः शम्यन्तु शम्यन्तीः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    रजताः। हरिणीः। सीसाः। युजः। युज्यन्ते। कर्मभिरिति कर्मऽभिः। अश्वस्य। वाजिनः। त्वचि। सिमाः। शप्यन्तु। शम्यन्तीः॥३७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 37
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ताः कीदृशो भवेयुरित्याह॥

    अन्वयः

    यथा स्वयंवरा वाजिनोऽश्वस्य त्वचि संयुज्यन्ते तथा कर्मभी रजता हरिणीः सीसा युजः शम्यन्तीः सिमा हृद्यान् पतीन् प्राप्य शम्यन्तु॥३७॥

    पदार्थः

    (रजताः) अनुरक्ताः (हरिणीः) प्रशस्तो हरणं विद्यते यासां ताः (सीसाः) प्रेमबन्धिकाः। अत्र ‘षिञ् बन्धने’ इत्यस्मादौणादिकः क्सः प्रत्ययोऽन्येषामपीति दीर्घः (युजः) समाहिताः (युज्यन्ते) (कर्मभिः) धर्म्याभिः क्रियाभिः (अश्वस्य) व्याप्तुं शीलस्य (वाजिनः) प्रशस्तबलवतः (त्वचि) संवरणे (सिमाः) प्रेम्णा बद्धाः (शम्यन्तु) आनन्दन्तु (शम्यन्तीः) शमं प्राप्नुवतीः प्रापयन्त्यो वा॥३७॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! ये सुशिक्षिताः स्वयंवरा भूत्वा स्त्रीपुरुषाः स्वेच्छया परस्परस्मिन् प्रीता विवाहं कुर्वन्ति, ते भद्रान् लावण्यगुणस्वभावयुक्तान् सन्तानानुत्पाद्य सदानन्दन्ति॥३७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे कैसी हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जैसे स्वयंवर विवाह से विवाही हुई स्त्री (वाजिनः) प्रशंसित बलयुक्त (अश्वस्य) उत्तम गुणों में व्याप्त अपने पति के (त्वचि) उढ़ाने में (युज्यन्ते) संयुक्त की जाती अर्थात् पति को वस्त्र उढ़ाने आदि सेवा में लगाई जाती हैं, वैसे (कर्मभिः) धर्मयुक्त क्रियाओं से (रजताः) अनुराग अर्थात् प्रीति को प्राप्त हुई (हरिणीः) जिनका प्रशंसित स्वीकार करना है, वे (सीसाः) प्रेमवाली (युजः) सावधानचित्त, उचित काम करने वाली (शम्यन्तीः) शान्ति को प्राप्त होती वा प्राप्त कराती हुई वा (सिमाः) प्रेम से बंधी स्त्री अपने हृदय से प्रिय पतियों को प्राप्त हो के (शम्यन्तु) आनन्द भोगें॥३७॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! जो विद्या और अच्छी शिक्षा से युक्त आप विवाह को प्राप्त स्त्री-पुरुष अपनी इच्छा से एक-दूसरे से प्रीति किये हुए विवाह को करते हैं, वे लावण्य अर्थात् अतिसुन्दरता गुण और उत्तम स्वभावयुक्त सन्तानों को उत्पन्न कर सदा आनन्दयुक्त होते हैं॥३७॥

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    विषय

    उत्तम स्त्रियों के गुण, एवं उत्तम प्रजाओं के अपने स्वामी को प्रसन्न रखने और शान्त रखने का कर्तव्य ।

    भावार्थ

    (रजताः) राग से युक्त, (हरिणीः) मन को हरने वाली, (सीसाः) प्रेम से बांधने वाली, (युजः) गृहकार्य में चतुर, समस्त कार्यों में सहयोग देने और सावधान रहने वाली स्त्रियाँ ( कर्मभिः) धर्मानुकूल क्रियाओं द्वारा (अश्वस्य) हृदय में व्यापक, ( वाजिनः) बलवान् श्रेष्ठ पुरुष की (त्वचि) रक्षा में, उसके साथ (युज्यन्ते) जोड़ दी जाती हैं, वे (सिमाः) बद्ध होकर ( शम्यन्तीः ) स्वयं शान्ति सुख प्राप्त करती हुईं उस को भी (शम्यन्तु) सुख प्रदान करें । (२) राजाप्रजा पक्ष में- (रजताः ) अनुरक्त या सुवर्णादि धनैश्वर्य से सम्पन्न, (हरिणीः) हरणशील, बलवती, (सीसाः) और सन्धियों से या वेतनों से बंधी (युजः) राज्य कार्यों में सहयोग देने वालो, प्रजाएं (अश्वस्य वाजिनः ) राष्ट्र के भोक्ता, बलवान् पुरुष के (स्वचि) रक्षा में ( कर्मभिः युज्यन्ते) कर्मों में नियुक्त की जांय । वे (सिमाः) बद्ध होकर ( शम्यन्ती:) स्वयं शान्त रहकर ( शम्यन्तु ) राजा को सुखी करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    रजतादयः स्त्रियो देवताः । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    उत्तम गृहिणी

    पदार्थ

    १. प्रस्तुत मन्त्र में गृहिणियों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि (रजताः) = [अनुरक्तम्- द०] अनुरागवाली (हरिणी:) = अपने उत्तम व्यवहार व कार्यकुशलता से दुःखों का हरण करनेवाली अथवा मन को आकृष्ट करेनवाली, (सीसा:) = [षिञ् बन्धने] प्रेममय व्यवहार से घर में सबको परस्पर बाँधकर रखनेवाली, घर में लड़ाई-झगड़े न होने देनेवाली, (युजः) = सदा पति का साथ देनेवाली, उसके साथ मिलकर गृहस्थ के बोझ को उठानेवाली पत्नियाँ (कर्मभिः युज्यन्ते) = कर्मों से सदा सङ्गत रहती हैं। इनका जीवन कभी अकर्मण्यता का नहीं होता। २. (अश्वस्य) = कर्मों में व्याप्त रहनेवाले (वाजिनः) = शक्तिशाली पति के (त्वचि) = संवरण में, रक्षा में, जैसे शरीर को त्वचा ने सुरक्षित किया हुआ है उसी प्रकार पति ने घर को सुरक्षित रखना है (सिमा:), = [सर्वा: = Whole] पूर्ण स्वास्थ्य को प्राप्त हुई हुई (शम्यन्ती:) = शान्ति को प्राप्त होती हुई शम्यन्तु शान्ति देनेवाली हों। ३. प्रस्तुत मन्त्र में पत्नी के गुणों का उल्लेख इन शब्दों में किया है कि, [क] (रजता:) = वे अनुरागवाली हों। प्रेम के अभाव में गृहस्थभवन की नींव ही नहीं पड़ सकती, [ख] (हरिणीः) = वे अपने उत्तम व्यवहार से कष्टों का हरण करनेवाली हों। पत्नी का व्यवहार ही घर को स्वर्ग व नरक बना देता है, [ग] (सीसा:) = पत्नियाँ प्रेममय व्यवहार से घर में सबको बाँधनेवाली हों। वे भाइयों को परस्पर झगड़ने न दें, [घ] (युजः) = सदा पति के कर्मों में सहयोग देनेवाली हों, [ङ] (युज्यन्ते कर्मभिः) = कभी अकर्मण्य न हों, [च] (अश्वस्य वाजिनः त्वचि) = उन्हें कर्मशील शक्तिशाली पति का संरक्षण प्राप्त हो, [छ] (सिमा:) = वे पूर्ण स्वस्थ हों, विकलांग न हों, [ज] (शम्यन्ती) - शान्त स्वभाववाली हों।, [झ] (शम्यन्तु) = औरों को शान्ति प्राप्त करानेवाली हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ- गृहिणी उत्तम गुण-कर्म व स्वभाव से घर को स्वर्ग बनानेवाली होती हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! विद्या व चांगले शिक्षण यांनी युक्त जे विवाहेच्छू स्री-पुरुष एकमेकांवर प्रेम करून विवाह करतात ते अतिसुंदर, गुणवान व उत्तम स्वभाव असलेल्या संतानांना उत्पन्न करून नेहमी आनंदात राहतात.

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    विषय

    त्या कन्या कशा असाव्यात वा होतील, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ – स्वयंवर पद्धतीने विवाहित स्त्रिया (वाजिनः) प्रसिद्ध शक्तिमान आणि (अश्‍वस्थ) उत्तम गुणवान आपल्या पतीची (त्वचि) (किर्ती आणि ऐश्‍वर्य) अजून वाढविण्यासाठी (पुज्यन्ते) त्याच्याशी संयुक्त राहतात म्हणजे त्याला वस्त्रादी आंथरणे-पांघरणे आदी सेवेत व्यस्त राहतात. त्या स्त्रियांप्रमाणेच (कर्मभिः) धर्मयुक्त कार्य करीत (रजताः) पतीशी अनुरक्त आणि त्याला प्रिय अशा (हरिणीः) प्रेमाने स्विकारलेल्या त्या (सीसाः) प्रेमळ स्वभावाच्या (युजः) सावध राहून कामें करणार्‍या स्त्रिया (पत्नी) (शम्यन्तीः) स्वतः शांत संतुलित राहत इतरांनाही शांत करील (सिमाः) प्रेमसूत्राने पतीशी बद्धत्या स्त्रिया प्रेमपूर्वक (शम्यन्तु) आनंदाचा उपयोग करीत वा करतात ॥37॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यांनो, विद्या आणि सुसंस्कार प्राप्त स्त्री-पुरूष स्वतःच्या इच्छेने प्रेमाने एकमेकास पति-पत्नी म्हणून स्वीकारतात, त्या लावण्यमय म्हणजे अतिसुंदर, गुणवान व सुस्ववभावी अशा संतानाला जन्म देऊन सदा आनंदात राहतात. ॥37॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Affectionate, fascinating amorous wives, well trained in domestic economy, according to religious rites, are united for life with powerful husbands full of noble qualities, and placed under their protection. May they tranquil and peaceful, bound by the ties of affection, enjoy life.

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    Meaning

    Women in love, lovely, captivating, arresting with love and loyalty, exciting and dedicated, are joined in marriage to the protection and embrace of handsome, virile and generous young men by their own will and action. Bound in the discipline of matrimony, may they be at peace in security, and may they provide for the love, peace and security of the young men of their choice.

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    Translation

    Favourably inclined, bringing tributes and loving subjects are employed in various functions by the dynamic and powerful administrator. Thus in his close contact, bound by love, they satisfy him as well as derive satisfaction from him. (1)

    Notes

    Rajatāḥ, harinih, sīsāḥ, favourably inclined, bring ing tributes, and loving. Also, made of silver, gold and lead. Vajinaḥ, powerful and dynamic. Simaḥ, प्रेम्णा बद्धा bound by love. Also, making the boundries of the portions to be cut.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তাঃ কীদৃশো ভবেয়ুরিত্যাহ ॥
    পুনঃ তাহারা কেমন হইবে, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- যেমন স্বয়ংবর বিবাহ হওয়া বিবাহিতা স্ত্রী (বাজিনঃ) প্রশংসিত বলযুক্ত (অশ্বস্য) উত্তম গুণে ব্যাপ্ত স্বীয় পতির (ত্বচি) আচ্ছাদনে (য়ুজ্যন্তে) সংযুক্ত করা হয় অর্থাৎ পতিকে বস্ত্রাচ্ছাদনাদি সেবায় লাগানো হয়, তদ্রূপ (কর্মভিঃ) ধর্মযুক্ত ক্রিয়াগুলির দ্বারা (রজতাঃ) অনুরাগ অর্থাৎ প্রীতি-প্রাপ্ত (হরিণীঃ) যাহার প্রশংসিত ক্রিয়া স্বীকার করিতে হয় সেই সব (সীসাঃ) প্রেমযুক্তা (য়ুজঃ) সাবধান চিত্ত উচিত কর্ম্মকারিণী (শম্যন্তীঃ) শান্তি প্রাপ্ত হয় বা প্রাপ্ত করিতে থাকিয়া বা (সিমাঃ) প্রেমবদ্ধা স্ত্রী নিজ হৃদয় হইতে প্রিয় পতিসকলকে প্রাপ্ত হইয়া (শম্যন্তু) আনন্দ ভোগ করুক ॥ ৩৭ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যে বিদ্যা ও সুশিক্ষাযুক্ত স্বয়ং বিবাহ-প্রাপ্ত স্ত্রী পুরুষ স্বেচ্ছায় এক অন্যের সহিত প্রীতি কৃত বিবাহ করে, তাহারা লাবণ্য অর্থাৎ অত্যন্ত সৌন্দর্য্য গুণ ও উত্তম স্বভাবযুক্ত সন্তানদিগকে উৎপন্ন করিয়া সদা আনন্দযুক্ত হয় ॥ ৩৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    র॒জ॒তা হরি॑ণীঃ॒ সীসা॒ য়ুজো॑ য়ুজ্যন্তে॒ কর্ম॑ভিঃ ।
    অশ্ব॑স্য বা॒জিন॑স্ত্ব॒চি সিমাঃ॑ শম্যন্তু॒ শম্য॑ন্তীঃ ॥ ৩৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    রজতা ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । স্ত্রিয়ো দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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