यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 47
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - जिज्ञासुर्देवता
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
2
किꣳस्वि॒त् सूर्य॑समं॒ ज्योतिः॒ किꣳस॑मु॒द्रस॑म॒ꣳसरः॑।किꣳस्वि॑त् पृथि॒व्यै वर्षी॑यः॒ कस्य॒ मात्रा॒ न वि॑द्यते॥४७॥
स्वर सहित पद पाठकिम्। स्वि॒त्। सूर्य॑सम॒मिति॒ सूर्य॑ऽसमम्। ज्योतिः॑। किम्। स॒मु॒द्रस॑म॒मिति॑ समु॒द्रऽस॑मम्। सरः॑। किम्। स्वि॒त्। पृ॒थि॒व्यै। वर्षी॑यः। कस्य॑। मात्रा॑। न। वि॒द्य॒ते॒ ॥४७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
किँ स्वित्सूर्यसमञ्ज्योतिः किँ समुद्रसमँ सरः । किँ स्वित्पृथिव्यै वर्षीयः कस्य मात्रा न विद्यते ॥
स्वर रहित पद पाठ
किम्। स्वित्। सूर्यसममिति सूर्यऽसमम्। ज्योतिः। किम्। समुद्रसममिति समुद्रऽसमम्। सरः। किम्। स्वित्। पृथिव्यै। वर्षीयः। कस्य। मात्रा। न। विद्यते॥४७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः प्रश्नानाह॥
अन्वयः
हे विद्वन्! किं स्वित् सूर्यसमं ज्योतिः? किं समुद्रसमं सरः? किं स्वित् पृथिव्यै वर्षीयः? कस्य मात्रा न विद्यत? इति॥४७॥
पदार्थः
(किम्) (स्वित्) (सूर्यसमम्) सूर्येण तुल्यम् (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूपम् (किम्) (समुद्रसमम्) (सरः) सरन्ति जलानि यस्मिन् तडागे तत् (किम्) (स्वित्) (पृथिव्यै) पृथिव्याः। अत्र पञ्चम्यर्थे चतुर्थी (वर्षीयः) वृद्धम् (कस्य) (मात्रा) मीयते यया सा (न) (विद्यते) भवति॥४७॥
भावार्थः
आदित्यवत्तेजस्वि समुद्रवदुदधि भूमेरधिकं च किं कस्य च परिमाणं नास्तीत्येतेषां प्रश्नानामुत्तराणि परस्मिन् मन्त्रे वेदितव्यानि॥४७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर प्रश्नों को अगले मन्त्र में कहते हैं॥
पदार्थ
हे विद्वन्! (किं, स्वित्) कौन (सूर्यसमम्) सूर्य के समान (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूप (किम्) कौन (समुद्रसमम्) समुद्र के समान (सरः) जिसमें जल बहते वा गिरते वा आते-जाते हैं, ऐसा तालाब (किं, स्वित्) कौन (पृथिव्यै) पृथिवी से (वर्षीयः) अति बड़ा और (कस्य) किस का (मात्रा) जिससे तोल हो, वह परिमाण (न) नहीं (विद्यते) विद्यमान है॥४७॥
भावार्थ
आदित्य के तुल्य तेजस्वी, समुद्र के समान जलाधार और भूमि से बड़ा कौन है? और किस का परिमाण नहीं है? इन चार प्रश्नों का उत्तर अगले मन्त्र में जानना चाहिये॥४७॥
विषय
पुन: ब्रह्मोद्य । सूर्य चन्द्र अग्नि, भूमि, ब्रह्म, द्यौ, इन्द्र, वाणी के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर ।
भावार्थ
( सूर्य समं ज्योतिः किम् ) सूर्य के समान प्रकाश कौन सा है ? (समुद्रसमं सरः किम् ) समुद्र के समान तलाब कौन सा है ? (पृथिव्यै वर्षीय :) पृथिवी से भी अधिक वर्षों का, पुराना दृढ़ (किं स्वित् ) कौन पदार्थ है ? (कस्य मात्रा न विद्यते ) जिसका परिणाम नहीं है ?
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जिज्ञासु देवता । अनुष्टुप् । गांधारः ॥
विषय
ब्रह्म- द्यौः - इन्द्र-गौः
पदार्थ
१. (स्वित्) = भला (सूर्यसमम्) = सूर्य के समान (ज्योतिः) = प्रकाश (किम्) = क्या है? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि [क] ब्रह्म परमात्मा ही (सूर्यसमं ज्योति:) = सूर्य के समान प्रकाश हैं। वेद में प्रभु को 'आदित्यवर्णम्' शब्द से स्मरण किया गया है। गीता में ('दिवि सूर्यसहस्त्रस्य भवेद् युगपदुत्थिता। यदि भाः सदृशी सा स्याद् भासस्तस्य महात्मनः') = इन शब्दों में प्रभु की ज्योति को हजारों सूर्यो की समुदित ज्योति से प्रतितुलित करने का प्रयत्न किया गया है। ('योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्') = इन वेद के शब्दों में प्रभु को सूर्य की तेजस्विता का कारण कहा है। जैसे सूर्य स्वयं प्रकाश है और चन्द्रमा उसकी एक किरण से प्रकाशित होता है, उसी प्रकार प्रभु स्वयं प्रकाश हैं। जीव उस प्रभु से प्रकाश प्राप्त करता है। [ख] यही ब्रह्म अध्यात्म में ज्ञान है। ज्ञान ही सूर्यसम ज्योति है। हमें अपने ज्ञान को सूर्य के समान दीप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। २. दूसरा प्रश्न, (समुद्रसमं सरः किम्) = समुद्र के समान तालाब कौन-सा है ? उत्तर देते हुए कहते हैं कि [क] (द्यौ:) = द्युलोक ही (समुद्रसमं सरः) = समुद्र के समान तालाब है। वस्तुतः द्युलोकस्थ सूर्य इस पृथिवी के तालाबरूप समुद्र के पानी को वाष्पीभूत करके ऊपर ले जाता है और वे वाष्प ऊपर जाकर कुछ घनीभूत होकर मेघरूप में परिणित होकर अन्तरिक्षस्थ समुद्र का निर्माण करते हैं और इस प्रकार द्युलोक इस समुद्र के समान एक महान् 'सर' बन जाता है। [ख] शरीर में ये जल रेतस् रूप में रहते हैं। मूलाधारचक्र के समीप इनका स्थान है। प्राणायाम आदि की उष्णता से इनकी ऊर्ध्वगति होकर ये मस्तिष्करूप द्युलोक में ज्ञानाग्नि का उसी प्रकार ईंधन बनते हैं जिस प्रकार अन्तरिक्ष में मेघजल विद्युत् का। ३. तीसरा प्रश्न है (पृथिव्यै) = [पृथिव्या:] पृथिवी से (वर्षीय:) = अधिक बड़ा, अधिक पुराना (किं स्वित्) = क्या है? अथवा पृथिवी के लिए सर्वाधिक वृष्टि करनेवाला कौन है ? उत्तर देते हुए कहते हैं कि [क] (इन्द्रः) = सूर्य (पृथिव्यै) = पृथिवी से (वर्षीयान्) = बड़ा व पुराना है। उसी का एक अंशभूत यह पृथिवी है। किसी समय यह पृथिवी उस देदीप्यमान विराट् पिण्ड का ही भाग थी। सूर्य इस पृथिवी से १३ लाख गुणा बड़ा है। वह सूर्य ही इस पृथिवी पर वर्षा का भी कारण बनता है। [ख] अध्यात्म में जीव जब 'इन्द्र' बनता है। सब असुरों का संहार करनेवाला बनता है तब इस पृथिवीरूप शरीर के लिए अधिक-से-अधिक सुखों की वर्षा करनेवाला होता है। ४. चौथा प्रश्न है (कस्य मात्रा न विद्यते) = किसकी मात्रा नहीं है? कौन सीमित नहीं है? उत्तर देते हुए कहते हैं कि [क] (गो:) = ज्ञान की वाणी की (तु) = तो (मात्रा) = माप न विद्यते नहीं है। ज्ञान अनन्त है 'अनन्तपारं किल शब्दशास्त्रम्' = Art is long । ज्ञान का कहीं अन्त है? [ख] एक ही वस्तु का मनुष्य के लिए माप नहीं है और वह है 'ज्ञान की प्राप्ति'। जितना भी हम अधिक ज्ञान प्राप्त करें, वह थोड़ा है। ज्ञान की मात्रा नहीं है। जितना ज्ञान प्राप्त करेंगे उतना ही कल्याण होगा।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु सूर्य के समान ज्योतिर्मय हैं। हमें भी ज्योतिर्मय बनकर प्रभु जैसा बनना है। मेघों से अन्तरिक्षीय समुद्र बना है। हमें भी वीर्यरूप जलों की ऊर्ध्वगति कर द्युलोकरूप मस्तिष्क में ज्ञानजल को भरना है। ऋतम्भरा प्रज्ञा का विकास करना है। हम असुरों के संहार करनेवाले इन्द्र बनकर इस शरीर में सुखों की वर्षा कर सकते हैं। जितना भी अधिक हो सके हम ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करें।
मराठी (2)
भावार्थ
सूर्याप्रमाणे तेजस्वी, समुद्राप्रमाणे जलाचा आधार, भूमीहून मोठा कोण आहे? तसेच कोणत्या गोष्टीला परिमाण नाही. या चार प्रश्नांची उत्तरे पुढच्या मंत्रात जाणावी.
विषय
पुढच्या मंत्रात काही वेगळे प्रश्न विचारले आहेत -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे विद्वान महोदय, सांगा की (किं, स्वित्) कोण आहे, जो (सूर्यसमम्) सूर्याप्रमाणे (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूप आहे? ^(किम्) कोणता (समुद्रसमम्) समुद्राप्रमाणे (सरः) विस्तृत असा तलाव आहे की ज्यामधून पाणी निघून वाहते मिळते वा येते-जाते? (किं, स्वित्) कोण आहे, जो (पृथिव्यै) पृथ्वीपेक्षाही (वर्षीयः) अतिविस्तृत आहे आणि (कस्य) कोणाची (मात्रा) माप वा परिमाण (न) (विद्यते) नाही? ॥47॥
भावार्थ
भावार्थ - आदित्याप्रमाणे तेजोमय, समुद्राप्रमाणे जलाधार, भूमीहून विशाल कोण वा काय आहे, तसेच कोणती वस्तू आहे की ज्याला मोजता वा मापता येत नाही? या प्रश्नांची उत्तरें पुढील मंत्रात आहेत, असे जाणावे ॥47॥
इंग्लिश (3)
Meaning
What lustre is like the suns light ? What lake is equal to the sea ? What is more spacious than the Earth ? What thing is that which is beyond measure.
Meaning
What is the other light like the sun? What is the vessel-hold of water like the sea? What is larger than the earth? What is without limits in the world?
Translation
What is the light comparable with the sun? Which is the lake comparable with the ocean? What is more spacious than the earth? What is the thing that cannot be measured? (1)
Notes
Varṣīyaḥ, महत्तरं, greater; more spacious; elder.
बंगाली (1)
विषय
পুনঃ প্রশ্নানাহ ॥
পুনঃ প্রশ্নগুলিকে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে বিদ্বন্! (কিং, স্বিৎ) কে (সূর্য়সমম্) সূর্য্য সম (জ্যোতিঃ) প্রকাশস্বরূপ (কিম্) কে (সমুদ্রসমম্) সমুদ্র সমান (সরঃ) যাহাতে জল প্রবাহিত হয় বা আসা যাওয়া করে এমন জলাশয় (কিং, স্বিৎ) কে (পৃথিব্যৈ) পৃথিবী হইতে (বর্ষীয়ঃ) অতি বড় এবং (কস্য) কাহার (মাত্রা) যদ্দ্বারা ওজন হয় সেই পরিমাণ (ন) নেই (বিদ্যতে) বিদ্যমান ॥ ৪৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–আদিত্যের তুল্য তেজস্বী, সমুদ্রের সমান জলাধার এবং ভূমি হইতে, বড় কে এবং কাহার পরিমাণ নেই, এই চারটি প্রশ্নের উত্তর পরবর্ত্তী মন্ত্রে জানিতে হইবে ॥ ৪৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
কিꣳস্বি॒ৎ সূর্য়॑সমং॒ জ্যোতিঃ॒ কিꣳস॑মু॒দ্রস॑ম॒ꣳসরঃ॑ ।
কিꣳস্বি॑ৎ পৃথি॒ব্যৈ বর্ষী॑য়ঃ॒ কস্য॒ মাত্রা॒ ন বি॑দ্যতে ॥ ৪৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
কিং স্বিদিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । জিজ্ঞাসুর্দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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