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यजुर्वेद अध्याय - 23

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  • यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 28
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    3

    यद॑स्याऽअꣳहु॒भेद्याः॑ कृ॒धु स्थू॒लमु॒पात॑सत्। मु॒ष्काविद॑स्याऽएजतो गोश॒फे श॑कु॒लावि॑व॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। अ॒स्याः॒। अ॒ꣳहु॒भेद्या॒ऽइत्य॑ꣳहु॒ऽभेद्याः॑। कृ॒धु। स्थू॒लम्। उ॒पात॑स॒दित्यु॑प॒ऽअत॑सत्। मु॒ष्कौ। इत्। अ॒स्याः॒। ए॒ज॒तः॒। गो॒श॒फ इति॑ गोऽश॒फे। श॒कु॒लावि॒वेति॑ शकु॒लौऽइ॑व ॥२८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदस्याऽअँहुभेद्याः कृधु स्थूलमुपातसत् । मुष्काविदस्याऽएजतो गोशफे शकुलाविव ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। अस्याः। अꣳहुभेद्याऽइत्यꣳहुऽभेद्याः। कृधु। स्थूलम्। उपातसदित्युपऽअतसत्। मुष्कौ। इत्। अस्याः। एजतः। गोशफ इति गोऽशफे। शकुलाविवेति शकुलौऽइव॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 23; मन्त्र » 28
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    यद्यो राजा राजपुरुषश्चास्या अंहुभेद्याः कृधु स्थूलं कर्मोपातसत् तावस्या एजतो गोशफे शकुलाविव मुष्काविदेजतः॥२८॥

    पदार्थः

    (यत्) यः (अस्याः) प्रजायाः (अंहुभेद्या) अंहुमपराधं या भिनत्ति तस्याः (कृधु) ह्रस्वम्। कृध्विति ह्रस्वनामसु पठितम्॥ (निघं॰३।२) (स्थूलम्) महत् कर्म (उपातसत्) उपभूषयेत् (मुष्कौ) मूषकौ (इत्) एव (अस्याः) (एजतः) कम्पयतः (गोशफे) गोखुरचिह्ने (शकुलाविव) ह्रस्वौ मत्स्याविव॥२८॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा प्रीतिमन्तौ मत्स्यावल्पेऽपि जलाशये निवसतस्तथा राजराजपुरुषावल्पेऽपि करलाभे न्यायेन प्रीत्या वर्त्तेयाताम्। यदि दुःखच्छेदिकायाः प्रजायाः स्वल्पमहदुत्तमं कर्म प्रशंसयेतां तर्हि तौ प्रजा उपरक्ताः कृत्वा स्वविषये प्रीतिं कारयेताम्॥२८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (यत्) जो राजा वा राजपुरुष (अस्याः) इस (अंहुभेद्याः) अपराध का विनाश करने वाली प्रजा के (कृधु) थोड़े और (स्थूलम्) बहुत कर्म को (उपातसत्) सुशोभित करें, वे दोनों (अस्याः) इसको (एजतः) कर्म कराते हैं और वे आप (गोशफे) गौ के खुर से भूमि में हुए गढ़ेले में (शकुलाविव) छोटी दो मछलियों के समान (मुष्कौ, इत्) प्रजा से पाये हुए कर को चोरते हुए कंपते हैं॥२८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे एक-दूसरे से प्रीति रखने वाली मछली छोटी ताल तलैया में निरन्तर बसती है, वैसे राजा और राजपुरुष थोड़े भी कर के लाभ में न्यायपूर्वक प्रीति के साथ वर्त्तें और यदि दुःख को दूर करने वाली प्रजा के थोड़े बहुत उत्तम काम की प्रंशसा करें तो वे दोनों प्रजाजनों को प्रसन्न कर अपने में उनसे प्रीति करावें॥२८॥

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    विषय

    गाय के खुरों की उपमा से ब्राह्म और क्षात्र बलों का पृथ्वीपालन में उपयोग | इसी प्रकार गृहपति के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    (यद्) जब (अस्याः ) इस (अंहुभेद्याः) पाप को भेदन करने वाली, स्वच्छ, दुष्टों से रहित प्रजा को (कृधु) दुष्टों का नाशक (स्थूलम् ) स्थूल, स्थिर दृढ़ राज्य ( उपातसत् ) पृथ्वी पर जम जाता है । तब (अस्याः ) इसके (मुष्कौ) शत्रुओं और अज्ञान का विनाश करने वाले, अथवा बन्धन से छुड़ाने वाले, अथवा सृष्टि करने वाले क्षात्र और ब्राह्मबल दोनों (गोशफे) गौ के चरण में लगे (शकलौ) खुर के दो खण्डों के समान आश्रय रूप में (राजतः) शोभा देते हैं । गौ के चरण में खुर के दो भाग शरीर को थामते हैं वैसे प्रजा में से दुष्टों के नाशक क्षात्रबल और अज्ञान, अविद्या का नाशक ब्राह्मबल, विद्वान् गण, दोनों पृथिवी के शासनरूप चरण में विराजते और पृथिवी रूप गौ का भार उठाये रहते हैं । 'मुष्कः', मुषेः कः । औणा० ३ । ४१ ॥ अथवा 'मुखे खण्डने, इत्यस्मात् कः । षत्वं छान्दसम् । पुष्टिवद् मोचनाद्वेति निरुक्तम् | पुषेर्वा | पस्य मश्छान्दसः। ‘कृधु' कृणोते हिंसार्थस्य, करोतेर्वा । 'स्थूलं' तिष्ठतेः ।

    टिप्पणी

    मुष्काइद० इति काण्व० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्देवता । निचृदनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    न मे स्तेनो जनपदे

    पदार्थ

    १. गतमन्त्रों के अनुसार राष्ट्र व्यवस्था के उत्तम होने पर (यत्) = जो कोई भी (अंहुभेद्याः) = पाप का भेदन करनेवाली (अस्याः) = इस प्रजा का, अर्थात् पाप को अपने से दूर करनेवाली इस प्रजा का (कृधु) = [ ह्रस्वः - नि० ३।२] थोड़ा-सा अथवा (स्थूलम्) = अधिक (उपातसत्) = क्षय करता है [तस्= Throw down] छोटी व बड़ी चोरी करता है, चोर के रूप में सेंध लगाकर घर का सामान चुरा ले जाता है अथवा परिपन्थी के रूप में व्यापारी को मार्ग में ही रोककर लूट लेता है तो (अस्या:) = इस प्रजा के (इत्) = निश्चय से (मुष्कौ) = ये शोषण करनेवाले चोर राजदण्ड भय से (एजतः) = इस प्रकार काँपते हैं कि (इव) = जैसे (गोशफे) = गोखुरप्रमाण जल में (शकुलौ) = मछलियाँ काँप उठती हैं। २. राजदण्ड के जागरूक होने पर न चोरियाँ होती हैं न डाके पड़ते हैं। प्रजा तभी शान्ति से सो पाती है जब राजदण्ड जागरित रहकर पहरा देता है। ३. यहाँ प्रजा का विशेषण 'अंहुभेद्या:' बड़ा महत्त्वपूर्ण है। प्रजा में पाप की वृत्ति न हो- लोग अन्याय से धन न कमाएँ तो चोरियाँ अपने आप ही कम हो जाती हैं। जब कमाने में अन्याय आ जाता है तब चोरियाँ भी बढ़ने लगती हैं। अन्याय से कमाने की वृत्ति के बढ़ जाने पर ही चोरों की उत्पत्ति होती है। प्रजा में से ही ये चोर उत्पन्न हो जाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा राष्ट्र में दण्ड व्यवस्था को इस प्रकार सुव्यवस्थित रक्खे कि चोर व दें। डाकू दण्ड- भय से कम्पित होकर इस मार्ग को ही छोड़

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. परस्परांवर प्रेम करणारे दोन मासे जसे लहान तलावात राहतात तसे राजा व राजपुरुष यांनी कर कमी व लाभ कमी होत असेल तरीही प्रजेबरोबर न्यायाने व प्रेमाने वागावे. दुःख दूर करणाऱ्या प्रजेने थोडे-बहुत उत्तम काम केल्यास त्यांची प्रशंसा करावी व त्या दोघांनी (राजा व राजपुरुष) प्रजेला प्रसन्न करून परस्पर प्रीती वाढवावी.

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    विषय

    पुनश्‍च तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (यत्) जो राजा अथवाल राजपुरूष (अस्याः) या (अंहुभेद्याः) अपराधाचा नाश करणार्‍या, (न्यायाने नियमाने वागणार्‍या) प्रजेच्या (कृधु) थोड्याशा अथवा (स्थूलम्) मोठ्या चांगल्या कामाची (उपातसत्) स्तुती करतील (तर प्रजा अधिक सुखी व नियमाने वागणारी होईल) तसेच (अस्याः) या प्रजेकडून जे राजपुरूष योग्य ती कामे करून घेतात, ते स्वतः (कोणते गैरकृत्य करतांना घाबरतात) (गोशफे) गायीच्या खुरामुळे भूमीत झालेल्या गढ्यामधे भरलेल्या पाण्यात जशा (शकुलाविव) दोन लहान मासोळी व्यथित होतात, तद्वत ते राजपुरूष (मुष्कौ) मूषक जसा धान्य चोरतो, तसे ते राजपुरूष प्रजेकडून प्राप्त कराची चोरी करताना कापतात/घाबरतात. ॥28॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे एकमेकाशी प्रेम करणार्‍या, एकमेकीच्या जिवाची काळजी घेणार्‍या दोन मासोळ्या छोट्याशा डबक्यात देखील प्रेमाने राहतात, तसे राजाने वा राजपुरूषांनी प्रजेकडून वसूल केलेल्या कराच्या धनाच्या सर्व लाभकारी न्याय कार्यात वापर केला पाहिजे तसेच जर राजपुरूष न्यायाने वागणार्‍या प्रजेच्या लहान-मोठ्या कार्याची प्रशंसा करतील, तर राजपुरूष आणि प्रजा दोघेही प्रसन्न व सुखाने प्रेमपूर्वक राहतील ॥28॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    The king and officials, who contribute to the grandeur of their subjects in part or full, and both make them energetic, tremble when they unjustly realise taxes from them, just as tiny fishes tremble in the water below the cows hooves.

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    Meaning

    When the small and great acts of the people who clear out sin and crime from the society are appreciated by the ruler and the enlightened officers, they, the ruler and the elite, captivate the heart of the people and they shine in their eyes as shakula fish shine in a little pool of water.

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    Translation

    Those thieves, who extort small or large quantities of wealth from the sinless people, tremble (in fear) as small fish are restive in insufficient water of a small pit made by hoof of a cow. (1)

    Notes

    When a small or large male organ penetrates into a narrow and small vagina, the two testicles roll over it just like two small fish in a small pit made by a cow's foot.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- (য়ৎ) যে রাজা বা রাজপুরুষ (অস্যাঃ) এই (অংহুভেদ্যাঃ) অপরাধের বিনাশকারক প্রজার (কৃধু) অল্প ও (স্থূলম্) বহু কর্মকে (উপাতসৎ) সুশোভিত করে, তাহারা উভয়ে (অস্যাঃ) ইহার (এজতঃ) কর্ম করায় এবং তাহারা স্বয়ং (গোশফে) গাভি ইত্যাদির খুর দ্বারা ভূমিতে হওয়া গর্ত্তে (শকুলাবিব) ছোট ছোট দুইটি মৎস্যের সমান (মুষ্কৌ, ইৎ) প্রজা হইতে প্রাপ্ত করকে চুরি করিতে কম্পমান হয় ॥ ২৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যেমন একে অপরের সহিত প্রীতি সম্পন্ন মৎস্য ছোট জলাশয়ে নিরন্তর বাস করে, তদ্রূপ রাজা ও রাজপুরুষ অল্প করের লাভে ন্যায়পূর্বক প্রীতি সহ ব্যবহার করিবে এবং যদি দুঃখ দুরীভূতকারী প্রজার কমবেশী উত্তম কর্ম্মের প্রশংসা করে তাহা হইলে তাহারা উভয়ে প্রজাদিগকে প্রসন্ন করিয়া নিজের মধ্যে তাহাদিগের সহিত প্রীতি বৃদ্ধি করুক ॥ ২৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়দ॑স্যাऽঅꣳহু॒ভেদ্যাঃ॑ কৃ॒ধু স্থূ॒লমু॒পাত॑সৎ ।
    মু॒ষ্কাবিদ॑স্যাऽএজতো গোশ॒ফে শ॑কু॒লাবি॑ব ॥ ২৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়দস্যা ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । প্রজাপতির্দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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