यजुर्वेद - अध्याय 23/ मन्त्र 54
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - समाधाता देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
2
द्यौरा॑सीत् पू॒र्वचि॑त्ति॒रश्व॑ऽआसीद् बृ॒हद्वयः॑।अवि॑रासीत् पिलिप्पि॒ला रात्रि॑रासीत् पिशङ्गि॒ला॥५४॥
स्वर सहित पद पाठद्यौः। आ॒सी॒त्। पू॒र्वचि॑त्ति॒रिति॑ पू॒र्वऽचि॑त्तिः। अश्वः॑। आ॒सी॒त्। बृ॒हत्। वयः॑। अविः॑। आ॒सी॒त्। पि॒लि॒प्पि॒ला। रात्रिः॑। आ॒सी॒त्। पि॒श॒ङ्गि॒ला ॥५४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
द्यौरासीत्पूर्वचित्तिरऽअश्वऽआसीद्बृहद्वयः । अविरासीत्पिलिप्पिला रात्रिरासीत्पिशङ्गिला ॥
स्वर रहित पद पाठ
द्यौः। आसीत्। पूर्वचित्तिरिति पूर्वऽचित्तिः। अश्वः। आसीत्। बृहत्। वयः। अविः। आसीत्। पिलिप्पिला। रात्रिः। आसीत्। पिशङ्गिला॥५४॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पूर्वप्रश्नानामुत्तराण्याह॥
अन्वयः
हे जिज्ञासो! द्यौः पूर्वचित्तिरासीद्, अश्वो बृहद्वय आसीद्, अविः पिलिप्पिलाऽऽसीद्, इति त्वं विजानीहि॥५४॥
पदार्थः
(द्यौः) विद्युत् (आसीत्) (पूर्वचित्तिः) प्रथमं चयनम् (अश्वः) महत्तत्त्वम् (आसीत्) (बृहत्) महत् (वयः) प्रजननात्मकम् (अविः) रक्षिका प्रकृतिः (आसीत्) (पिलिप्पिला) (रात्रिः) रात्रिवद्वर्त्तमानः प्रलयः (आसीत्) (पिशङ्गिला) सर्वेषामवयवानां निगलिका॥५४॥
भावार्थः
हे मनुष्याः! याऽतीवसूक्ष्मा विद्युत् सा प्रथमा परिणतिर्महदाख्यं द्वितीया परिणतिः, प्रकृतिर्मूलकारणपरिणतिः, प्रलयः सर्वस्थूलविनाशकोऽस्तीति विजानीत॥५४॥
हिन्दी (3)
विषय
पूर्व मन्त्र के प्रश्नों के उत्तर अगले मन्त्र में कहते हैं॥
पदार्थ
हे जिज्ञासु मनुष्य! (द्यौः) बिजुली (पूर्वचित्तिः) पहिला संचय (आसीत्) है, (अश्वः) महतत्त्व (बृहत्) बड़ा (वयः) उत्पत्ति स्वरूप (आसीत्) है, (अविः) रक्षा करने वाली प्रकृति (पिलिप्पिला) पिलपिली (आसीत्) है, (रात्रिः) रात्रि के समान वर्त्तमान प्रलय (पिशङ्गिला) सब अवयवों को निगलने वाला (आसीत्) है, यह तू जान॥५४॥
भावार्थ
हे मनुष्यो! जो अतिसूक्ष्म विद्युत् है सो प्रथम परिणाम, महत्तत्वरूप द्वितीय परिणाम और प्रकृति सबका मूल कारण परिणाम से रहित है और प्रलय सब स्थूल जगत् का विनाशरूप है, यह जानना चाहिये॥५४॥
विषय
अ० २३ । ११ । १२ ।के समान प्रश्न । पिशंगिला, कुरु पिशंगिला, शश और अहि के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर और उनका रहस्यविवेचन ।
भावार्थ
( ५४) इस मन्त्र की व्याख्या देखो अ० २३।१२॥
विषय
पूर्वचित्तिः बृहद्वयः
पदार्थ
१. इसी अध्याय के मन्त्र संख्या ११-१२ पर इनका विस्तृत अर्थ है। यहाँ ज्ञानचर्चा के प्रसंग में इनको पुनः उपस्थित करने का उद्देश्य यह है कि (का स्वित्) = भला (पूर्वचित्तिः) = सर्वप्रथम ध्यान देने योग्य वस्तु (आसीत्) = क्या है?' इस प्रश्न का यह उत्तर कि (“द्यौः") = मस्तिष्क ही (पूर्वचित्तिः) = सर्वप्रथम ध्यान देने की वस्तु आसीत् है'। हम यह कभी भूलें नहीं कि मस्तिष्क के विकास से ही तो हम गतमन्त्र में दिये गये उत्तर को देने की योग्यतावाले ब्रह्मा बन पाएँगे। २. (किं स्वित्) = भला (बृहद्) = वर्धनशील (वयः) = पक्षी [जीव] क्या है। इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि (अश्वः) = सदा कर्मों में व्याप्त रहनेवाला जीव ही (बृहद् वयः) = वर्धनशील पक्षी है। वेद में परमात्मा व आत्मा को 'द्वा सुपर्णा' = दो पक्षियों के रूप में स्मरण किया है। परमात्मा सदा बढ़े हुए हैं, जीव अल्प होने से सदा सन्मार्ग पर चलते हुए बढ़ा करता है। ३. तीसरा प्रश्न है (स्वित्) = भला (का) = कौन (पिलिप्पिला) = 'चिक्कण, आर्द्र व शोभना' भी है ? उत्तर देते हुए कहते हैं कि (अविः) = आत्मरक्षण करनेवाला ही शरीर में पिलिप्पिला = स्वास्थ्य की स्निग्धतावाली, मन में दया की आर्द्रतावाली तथा मस्तिष्क में ज्ञान की शोभावाली श्री से युक्त होता है । ४. चौथा प्रश्न है (किं स्वित्) = भला का कौन (पिशङ्गिला आसीत्) = सब रूपों को निगीर्ण कर जानेवाली है ? उत्तर देते हैं कि (रात्रिः) = रात (पिशङ्गिला आसीत्) = रूपों को निगल जानेवाली है। रात को सब रूप समाप्त होकर कृष्ण-ही-कृष्ण दिखता है। प्रलयकाल को भी [तम आसीत् तमसा गूळहमग्रे] अन्धकारमय होने से तम व रात्रि कहते हैं। उस प्रलयकाल में भी ये रूप समाप्त हो जाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम मस्तिष्क को ध्येय वसुओं में सबसे ऊपर रक्खें। सबसे अधिक हमें इसी का ध्यान करना है। कर्मों में सदा व्याप्त रहकर हम वर्धनशील हों। आधि-व्याधियों से अपने को बचाते हुए हम स्निग्ध शरीर. आर्द्र हृदय व शोभन मस्तिष्कवाले हों। हम इस बात को न भूलें कि हमारे जीवन में भी महानिद्रा की रात्रि आनी है, जिसमें ये सब भौतिक तड़क-भड़क [रूप] समाप्त हो जाएगी, अतः इसको इतना महत्त्व क्यों देना ?
मराठी (2)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जी (अनादीकाळापासून संचित) विद्युत अतिसूक्ष्म असते ती प्रथम परिणाम असून महत्तत्वरूप द्वितीय परिणाम आहे व प्रकृती ही सर्वांचे मूळ कारण असून परिणामरहित आहे व प्रलय हा सर्व जगाला नष्ट करणारा आहे हे जाणा.
विषय
पूर्वीच्या क्र. 52 वरील मंत्रातील प्रश्नांची उत्तरे या मंत्रात -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे ज्ञिनासू मनुष्या, तुझ्या प्रश्नांची उत्तरें जाणून घे. (1) (द्यौः) विद्युत (पूर्वचित्तिः) प्रथमसंचित वस्तू (आसीत्) आहे. (विद्युत वा ऊर्जा संचित करून ठेवता येते) (2) (अश्वः) महत्त्व (बृअत्) महान (वयः) उत्पत्तिस्वरूप (आसीत्) आहे. (महत्तत्त्वामुळे सृष्टीची उत्पत्ती क्रमशः होत गेली आहे) (3) (.अविः) रक्षण करणारी प्रकृती (पिलिप्पिला) लिबलिबित व चिक्कण पदार्थामुळे निर्मिती संभवते) आणि (4) (रात्रिः) रात्रीप्रमाणे असलेला प्रलय (पिशङ्गिला) सर्व अवयवांना (वा जगातील उत्पन्न पदार्थांना) गिळणारा (आसीत्) आहे. ॥54॥
भावार्थ
भावार्थ - हे मनुष्यांनो, जी अतिसूक्ष्म विद्युत आहे, ते प्रथम, महत्तत्त्वरूप द्वितीय परिणाम आणि प्रकृती ही सर्वांचे मूळ कारण आहे. ती परिणाम रहित, वा नित्य अविनाशी आहे आणि प्रलय हा या स्थूल जगाचा विनाश आहे, हे तुम्ही सर्व जण जाणून घ्या ॥54॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O questioner, know that, lightning is accumulated in the beginning. Intellect is the source of creation. Matter is the majestic thing. Dissolution absorbs all bodies.
Meaning
Heaven, light, i. e. , divine vibration of thought energy is the first original step in creation. Mahat, the first mutation of original Prakriti, was the great womb of the forms of creation. Manifested Prakriti is the finest pliant material for creation. Pralaya, the night of annihilation devours the universe.
Translation
The sky is the thing to be thought of first. The sun is the huge bird. Rain-soaked earth is soft and slippery. It is the night, that swallows the forms of the things. (1)
बंगाली (1)
विषय
পূর্বপ্রশ্নানামুত্তরাণ্যাহ ॥
পূর্ব মন্ত্রের প্রশ্নগুলির উত্তর পরবর্ত্তী মন্ত্রে প্রশ্নগুলি বলা হইতেছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে জিজ্ঞাসু মনুষ্য! (দ্যৌঃ) বিদ্যুৎ (পূর্বচিত্তিঃ) প্রথম সঞ্চয় (আসীৎ) আছে (অশ্বঃ) মহত্তত্ত্ব (বৃহৎ) বৃহৎ (বয়ঃ) উৎপত্তিস্বরূপ (আসীৎ) আছে (অবিঃ) রক্ষাকারিণী প্রকৃতি (পিলিপ্পিলা) আর্দ্র চিক্কন (আসীৎ) আছে (রাত্রিঃ) রাত্রির সমান বর্ত্তমান প্রলয় (পিশঙ্গিলা) সব অবয়বকে ভক্ষণকারী (আসীৎ) আছে, ইহা তুমি জান ॥ ৫৪ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যাহা অতিসূক্ষ্ম বিদ্যুৎ উহা প্রথম পরিণাম্, মহত্তত্বরূপ দ্বিতীয় পরিণাম এবং প্রকৃতি সকলের মূল কারণ পরিণাম রহিত এবং প্রলয় সব স্থূল জগতের বিনাশ রূপ, ইহা জানা দরকার ॥ ৫৪ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
দ্যৌরা॑সীৎ পূ॒র্বচি॑ত্তি॒রশ্ব॑ऽআসীদ্ বৃ॒হদ্বয়ঃ॑ ।
অবি॑রাসীৎ পিলিপ্পি॒লা রাত্রি॑রাসীৎ পিশঙ্গি॒লা ॥ ৫৪ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
দ্যৌরাসীদিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । সমাধাতা দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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