अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 14
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
1
सर्वा॑ण्यस्यां क्रू॒राणि॒ सर्वे॑ पुरुषव॒धाः ॥
स्वर सहित पद पाठसर्वा॑णि । अ॒स्या॒म् । क्रू॒राणि॑। सर्वे॑ । पु॒रु॒ष॒ऽव॒धा: ॥७.३॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वाण्यस्यां क्रूराणि सर्वे पुरुषवधाः ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वाणि । अस्याम् । क्रूराणि। सर्वे । पुरुषऽवधा: ॥७.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(अस्याम्) इस [वेदवाणी] में [रोकनेवाले को] (सर्वाणि) सब (क्रूराणि) क्रूर [निठुर] कर्म और (सर्वे) सब प्रकार के (पुरुषवधाः) मनुष्यवध होते हैं ॥१४॥
भावार्थ
धर्मनिरूपक वेदवाणी में रोक डालने से संसार में घोर पाप छा जाता है, और सब प्राणी महाकष्ट पाते हैं ॥१३, १४॥
टिप्पणी
१४−(सर्वाणि) (अस्याम्) (क्रूराणि) निर्दयकर्माणि (पुरुषवधाः) पुरुषाणां हत्याव्यापाराः ॥
विषय
गायत्री आवृता ब्रह्मगवी
पदार्थ
१. (सा एषा ब्रह्मगवी) = वह यह ब्रह्मगवी-ब्राह्मण की वाणी (आवृता) = निरुद्ध हुई-हुई (भीमा) = बड़ी भयंकर है। यह (अघविषा) = राष्ट्र में पाप के विष को फैलानेवाली है। (साक्षात् कृत्या) = यह तो स्पष्ट छेदन-भेदन [हिंसा] ही है। (कूल्बजम्) = [कु+उल दाहे+ज] यह ब्रह्मगवी का निरोध भूमि पर दाह को उत्पन्न करनेवाला है। २. (अस्याम्) = इस ब्रह्मगवी के निरुद्ध होने पर (सर्वाणि घोराणि) = राष्ट्र में सब घोर कर्म होने लगते हैं (च) = और (सर्वे मृत्यवः) = सब प्रकार के रोग उठ खड़े होते हैं। (अस्याम्) = इस ब्रह्मगवी के निरुद्ध होने पर (सर्वाणि कूराणि) = सब क्रूर कर्म होते हैं और (सर्वे पुरुषवधा:) = सब पुरुषों के वध प्रारम्भ हो जाते हैं-क़त्ल होने लगते हैं। ३. (सा) = वह (आदीयमाना) = [दाप् लवने] छिन्न की जाती हुई (ब्रह्मगवी) = ब्राह्मण की वाणी उस (ब्रह्मज्यम्) = ज्ञान का हिंसन करनेवाले, (देवपीयुम्) = देवों के हिंसक बलदृप्त राजन्य को (मृत्योः पड्बीशे) = मौत की बेड़ी में (आद्यति) = बाँधती है [आ-दो बन्धने]।
भावार्थ
राष्ट्र में ब्राह्मण की वाणी पर प्रतिबन्ध लगाने से राष्ट्र में पाप, हिंसा व क्रूर कर्मों का प्राबल्य हो जाता है। अन्ततः यह प्रतिबन्धक राजा भी मृत्यु के पजे में फँसता है।
भाषार्थ
(अस्याम्) इस गौ अर्थात् गोजाति में (सर्वाणि क्रूराणि) सब प्रकार के क्रूरकर्म और (सर्व पुरुषवधाः) सब प्रकार के [राज] पुरुषों के वध के साधन वास करते हैं।
टिप्पणी
[क्रूराणि= कृन्तति छिनत्ति, इति क्रूरः (उणा० २।२१), काटने के साधन]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
ब्रह्मद्वेषी के लिये (अस्याम्) इसमें (सर्वाणि) सब प्रकार के (घोराणि) घोर, भयानक कर्म और (सर्वे च मृत्यवः) सब प्रकार के मृत्युभय विद्यमान होते हैं। (अस्याम्) इसमें (सर्वाणि क्रूराणि) सब प्रकार के क्रूरकर्म और (सर्वे पुरुषबधाः) समस्त प्रकार पुरुषों को मारने वाले हथियार अथवा सब प्रकार के पुरुषों के मारने के उपाय सम्मिलित हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Then all hard punishments and deadly possibilities for the violator exist vested in it.
Translation
In her are all cruel things, all men-killers.
Translation
The persons who put hurdles in the propagation of the Vedic gospel, they should be treated brutally and harshly. All sorts of severe punishment including their killing should be administered on them by the State.
Translation
Its obstruction creates all dreadful deeds, all slaughters of mankind.
Footnote
(13-14) With the disappearance of Vedic knowledge, sin spreads in the world, resulting in slaughter, and all sorts of horrible deeds.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(सर्वाणि) (अस्याम्) (क्रूराणि) निर्दयकर्माणि (पुरुषवधाः) पुरुषाणां हत्याव्यापाराः ॥
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