अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 23
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - याजुषी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
1
मे॒निर्दु॒ह्यमा॑ना शीर्ष॒क्तिर्दु॒ग्धा ॥
स्वर सहित पद पाठमे॒नि: । दु॒ह्यमा॑ना । शी॒र्ष॒क्ति: । दु॒ग्धा ॥७.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
मेनिर्दुह्यमाना शीर्षक्तिर्दुग्धा ॥
स्वर रहित पद पाठमेनि: । दुह्यमाना । शीर्षक्ति: । दुग्धा ॥७.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
वह [वेदवाणी] (दुह्यमाना) [विद्वानों कर के] दुही जाती हुई [वेदनिरोधक को] (मेनिः) वज्ररूप और (दुग्धा) दुही गयी वह (शीर्षक्तिः) [उसको] मस्तक पीड़ा होती है ॥२३॥
भावार्थ
जैसे-जैसे लोग अभ्यास करके वेदविद्या का प्रचार करते हैं, वैसे-वैसे ही वेदनिरोधक लोग संकट में पड़ते हैं ॥२३॥
टिप्पणी
२३−(मेनिः) म० १६। वज्रः (दुह्यमाना) दोहेन गृह्यमाणा (शीर्षक्तिः) अ० १।१२।३। शीर्ष+अञ्चु गतिपूजनयोः−क्तिन्। मस्तकपीडा (दुग्धा) दोहेन प्राप्ता ॥
विषय
क्षुरपवि----शीर्षक्ति
पदार्थ
१. (ईक्षमाणा) = अत्याचरित यह ब्रह्मगवी सहायता के लिए इधर-उधर झाँकती हुई (क्षुरपवि:) = [The point of a spear] छुरे की नोक के समान हो जाती है। यह अत्याचारी की छाती में प्रविष्ट होकर उसे समास कर देती है। (वाश्यमाना) = सहायता के लिए पुकारती हुई यह (अभिस्फूर्जति) = चारों ओर मेघगर्जना के समान शब्द पैदा कर देती है। (हिङ्कृण्वती) = बंभारती हुई यह (मृत्यु:) = ब्रह्मज्य की मौत होती है। (पुच्छं पर्यस्यन्ती) = पूँछ फटकारती हुई यह ब्रह्मगवी उग्रः देवः-संहार करनेवाला काल [देव] ही बन जाती है। २. (कर्णौ वरीवर्जयन्ति) = [Tum away, avert] कानों को बारम्बार परे करती हुई यह ब्रह्मगवी (सर्वज्यानि:) = सब हानियों का कारण बनती है और (मेहन्ती) = मेहन [मूत्र] करती हुई (राजयक्ष्मः) = राजयक्ष्मा [क्षय] को पैदा करती है। (दुहामाना) = यदि यह ब्रह्मगवी दोही जाए. अर्थात् उसे भी धनार्जन का साधन बनाया जाए, तो यह (मेनि:) = वज्र ही हो जाती है और (दुग्धा) = दुग्ध हुई-हुई (शीर्षक्ति:) = सिरदर्द ही हो जाती है।
भावार्थ
ब्रह्मगवी पर किसी तरह का अत्याचार करना अनुचित है, अत्याचरित हुई-हुई यह अत्याचारी की हानि व मृत्यु का कारण बनती है। इसे अर्थप्राप्ति का साधन भी नहीं बनाना, अन्यथा यह एक सरदर्द ही हो जाती है।
भाषार्थ
(दुह्यमाना) दोही जाती हुई, तथा (दुग्धा) दोही गई (मेनिः, शीर्षक्तिः) हिंसक वज्ररूप तथा शिरोरोग रूप है।
टिप्पणी
[मन्त्र २३ का सम्बन्ध मन्त्र २२ के वर्णन के साथ समझना चाहिये। मन्त्र २२ में गौ को कर्णरुग्णा तथा प्रमेहरुग्णा दर्शाया है। ऐसी गौ का दूध "हिंसकवज्ररूप" तथा सिर के रोगों को पैदा करता है। अतः ऐसी का दूध त्याज्य है।]
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(मेनिः) वज्र या विद्युत् रूप होकर (दुह्यमाना) मानो ब्रह्मघ्न से दुही जाती है। और वह (दुग्धा) पूरी तरह से दूही जाकर वह (शीर्षक्तिः) सिर की तीव्र पीड़ा रूप हो जाती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
In that tubercular condition, she is dangerous as a weapon when she is being milked, when she has been milked, she is a headache, neurosis.
Translation
A weapon when being milked; headache when milked.
Translation
She being milked is missile and when she is milked she is pain in the head.
Translation
Vedic knowledge is a missile for the opposer, when studied by the learned, and headache for him, when it is preached and practised.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२३−(मेनिः) म० १६। वज्रः (दुह्यमाना) दोहेन गृह्यमाणा (शीर्षक्तिः) अ० १।१२।३। शीर्ष+अञ्चु गतिपूजनयोः−क्तिन्। मस्तकपीडा (दुग्धा) दोहेन प्राप्ता ॥
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