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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 35
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - भुरिक्साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
    1

    अभू॑तिरुपह्रि॒यमा॑णा॒ परा॑भूति॒रुप॑हृता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अभू॑ति: । उ॒प॒ऽह्रि॒यमा॑णा । परा॑ऽभूति: । उप॑ऽहृता ॥८.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभूतिरुपह्रियमाणा पराभूतिरुपहृता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभूति: । उपऽह्रियमाणा । पराऽभूति: । उपऽहृता ॥८.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 35
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [वेदवाणी] (उपह्रियमाणा) छीनी जाती हुई [वेदनिरोधक के लिये] (अभूतिः) अनैश्वर्य [असमर्थता], और (उपहृता) छीन ली गयी (पराभूतिः) पराजय [हार] होती है ॥३५॥

    भावार्थ

    अत्याचारी पुरुष वेदविद्या के रोकने से हार ही पाता है ॥३५॥

    टिप्पणी

    ३५−(अभूतिः) अनैश्वर्यम् (उपह्रियमाणा) अपहरणं गम्यमाना (पराभूतिः) पराजयः (उपहृता) अपहरणं गता ॥

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    विषय

    अघ, अभूति, पराभूति

    पदार्थ

    १. यह ब्रह्मगवी (पच्यमाना) = हाँडी आदि में पकाई जाती हुई (अघम्) = पाप व दुःख का कारण होती है और पक्वा पकाई होने पर (दुःष्वप्न्यम्) = अशुभ स्वप्नों का कारण बनती है। (पर्याक्रियमाणा) = कड़छी से हिलाई-डुलाई जाती हुई मूल (बर्हणी) = मूल का ही नाश करनेवाली होती है और (पर्याकृता) = कड़छी से लोटी-पोटी गई यह ब्रह्मगवी (क्षिति:) = विनाश-ही-विनाश हो जाती है। २. (गन्धेन) = [गन्धनम् हिंसनम्] हिंसन से व पकाये जाने के समय उठते हुए गन्ध से यह (असंज्ञा) = अचेतनता को पैदा करती है। (उद्ध्रियमाणा) = कड़छी से ऊपर निकाली जाती हुई यह (शुक्) = शोकरूप होती है, उद्धता-ऊपर निकाली गई होने पर (आशीविष:) = सर्प ही हो जाती है सर्प के समान प्राणहर होती है। (उपह्रियमाणा) = पकाई जाकर परोसी जाती हुई यह (अभूति:) = अनैश्वर्य होती है। (उपहता) = परोसी हुई होकर (पराभूति:) = यह पराभव का कारण बनती है।

    भावार्थ

    पीड़ित की गई तथा भोग का साधन बनाई गई ब्रह्मगवी 'पाप, अशुभस्वप्न, मूलोच्छेद, विनाश, अचेतनता, शोक, अनैश्वर्य व पराभव' का कारण बनती है-सर्प के समान विनाशक हो जाती है।

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    भाषार्थ

    (उपह्रियमाणा) गोमांस रूप में समीप लाई जा रही गौ (अभूतिः) शारीरिक विभूति का नाश करती, और (उपहृता) समीप लाई गई (पराभूतिः) पराभव करती है।

    टिप्पणी

    [गौमांस द्वारा शारीरिक विभूति नष्ट हो जाती है, और व्यक्ति रोगों द्वारा पराभूत हो जाता है]।

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (उपह्रियमाणा) बलि के लिये लाई गई या पकाई जाने पर परोसी जाती हुई या भेट दी जाती हुई ब्रह्मगवी ब्रह्मद्वेषी के लिये (अभूतिः) अभूति अर्थात् समस्त सम्पत्ति के विनाश कर, विपत्ति को लाने वाली है और (उपहृता) लाई गई या परोसी गई या भेट दी गई ‘ब्रह्मगवी’ (पराभूतिः) उसको ‘पराजय’ करने वाली है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्देवता च पूर्ववत्। २८ आसुरी गायत्री, २९, ३७ आसुरी अनुष्टुभौ, ३० साम्नी अनुष्टुप्, ३१ याजुपी त्रिष्टुप्, ३२ साम्नी गायत्री, ३३, ३४ साम्नी बृहत्यौ, ३५ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप, ३६ साम्न्युष्णिक्, ३८ प्रतिष्ठा गायत्री। एकादशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Cow

    Meaning

    Being seized, she is adversity, taken over, she is the fall, total loss.

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    Translation

    Non-prosperity when being served up, disaster when served up.

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    Translation

    She presented becomes loss of power and when she has been offered is humiliation.

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    Translation

    It brings loss of power to its opponent who forcibly retards its progress, and humiliation when its spread has been retarded.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३५−(अभूतिः) अनैश्वर्यम् (उपह्रियमाणा) अपहरणं गम्यमाना (पराभूतिः) पराजयः (उपहृता) अपहरणं गता ॥

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