अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 33
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्नी बृहती
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
1
मू॑ल॒बर्ह॑णी पर्याक्रि॒यमा॑णा॒ क्षितिः॑ प॒र्याकृ॑ता ॥
स्वर सहित पद पाठमू॒ल॒ऽबर्ह॑णी । प॒रि॒ऽआ॒क्रि॒यमा॑णा । क्षिति॑: । प॒रि॒ऽआकृ॑ता ॥८.६॥
स्वर रहित मन्त्र
मूलबर्हणी पर्याक्रियमाणा क्षितिः पर्याकृता ॥
स्वर रहित पद पाठमूलऽबर्हणी । परिऽआक्रियमाणा । क्षिति: । परिऽआकृता ॥८.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
वह [वेदवाणी] (पर्याक्रियमाणा) अनादर से रूपान्तर की जाती हुई [वेदनिरोधक के लिये] (मूलबर्हणी) जड़ उखाड़ देनेवाली शक्ति, और (पर्याकृता) अनादर से रूपान्तर की गयी (क्षितिः) नाश शक्ति है ॥३३॥
भावार्थ
वेदनिन्दक पुरुष अनर्थकर्मी होने से आप ही अपना शत्रु हो जाता है ॥३३॥
टिप्पणी
३३−(मूलबर्हणी) बर्ह हिंसायाम्−ल्युट्, ङीप्। मूलनाशिका (पर्याक्रियमाणा) आङ्पूर्वकः डुकृञ् वेषान्तरकरणे। परि अनादरेण रूपान्तरं क्रियमाणा (क्षितः) हानिः (पर्याकृता) अनादरेण रूपान्तरं कृता ॥
विषय
अघ, अभूति, पराभूति
पदार्थ
१. यह ब्रह्मगवी (पच्यमाना) = हाँडी आदि में पकाई जाती हुई (अघम्) = पाप व दुःख का कारण होती है और पक्वा पकाई होने पर (दुःष्वप्न्यम्) = अशुभ स्वप्नों का कारण बनती है। (पर्याक्रियमाणा) = कड़छी से हिलाई-डुलाई जाती हुई मूल (बर्हणी) = मूल का ही नाश करनेवाली होती है और (पर्याकृता) = कड़छी से लोटी-पोटी गई यह ब्रह्मगवी (क्षिति:) = विनाश-ही-विनाश हो जाती है। २. (गन्धेन) = [गन्धनम् हिंसनम्] हिंसन से व पकाये जाने के समय उठते हुए गन्ध से यह (असंज्ञा) = अचेतनता को पैदा करती है। (उद्ध्रियमाणा) = कड़छी से ऊपर निकाली जाती हुई यह (शुक्) = शोकरूप होती है, उद्धता-ऊपर निकाली गई होने पर (आशीविष:) = सर्प ही हो जाती है सर्प के समान प्राणहर होती है। (उपह्रियमाणा) = पकाई जाकर परोसी जाती हुई यह (अभूति:) = अनैश्वर्य होती है। (उपहता) = परोसी हुई होकर (पराभूति:) = यह पराभव का कारण बनती है।
भावार्थ
पीड़ित की गई तथा भोग का साधन बनाई गई ब्रह्मगवी 'पाप, अशुभस्वप्न, मूलोच्छेद, विनाश, अचेतनता, शोक, अनैश्वर्य व पराभव' का कारण बनती है-सर्प के समान विनाशक हो जाती है।
भाषार्थ
(पर्या क्रियमाण) विलोड़ी जाती हुई (मूलबर्हणी) जड़काट देती, और (पर्याकृता) विलोड़ी गई (क्षितिः) क्षयरोग पैदा करती है।
टिप्पणी
[कड़छी द्वारा विलोडना। पकते समय दाल आदि को विलोड़ा जाता है। इसी क्रिया को मांस पकाते समय निर्दिष्ट किया है। गौ के मांस से क्षय रोग हो जाने की सम्भावना है। खाने पर खाने वाले को क्षयरोग हो जाने पर इस उत्पन्न होने वाली सन्तानों में भी क्षयरोग की सम्भावना रहती है, "पितृभूत जड़" के रुग्ण होने से मानो भावी सन्तानों के स्वास्थ्य की जड़ कट गई]
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
ब्रह्मद्वेषी द्वारा ब्रह्मगवी (पर्याक्रियमाणा) कड़छी से लोटी-पोटी जाती हुई उसके (मूलबर्हणी) मूल के नाश करने वाली और (पर्याकृता) खूब कड़छी से लोट-पोटी गई वहीं उसके लिये (क्षितिः) विनाशरूप है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवता च पूर्ववत्। २८ आसुरी गायत्री, २९, ३७ आसुरी अनुष्टुभौ, ३० साम्नी अनुष्टुप्, ३१ याजुपी त्रिष्टुप्, ३२ साम्नी गायत्री, ३३, ३४ साम्नी बृहत्यौ, ३५ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप, ३६ साम्न्युष्णिक्, ३८ प्रतिष्ठा गायत्री। एकादशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Being turned, she uproots, turned and carved, she is extinction.
Translation
Uprooting when being turned about, destruction when turned about.
Translation
On being turned round she becomes extirpator and when she turned round is like destruction.
Translation
It is uprooting when it is being disgraced, and destructive when it has been disgraced.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३३−(मूलबर्हणी) बर्ह हिंसायाम्−ल्युट्, ङीप्। मूलनाशिका (पर्याक्रियमाणा) आङ्पूर्वकः डुकृञ् वेषान्तरकरणे। परि अनादरेण रूपान्तरं क्रियमाणा (क्षितः) हानिः (पर्याकृता) अनादरेण रूपान्तरं कृता ॥
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