अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 62
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
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वृ॒श्च प्र वृ॑श्च॒ सं वृ॑श्च॒ दह॒ प्र द॑ह॒ सं द॑ह ॥
स्वर सहित पद पाठवृ॒श्च॒ । प्र । वृ॒श्च॒ । सम् । वृ॒श्च॒ । दह॑ । प्र । द॒ह॒ । सम् । द॒ह॒ ॥११.१॥
स्वर रहित मन्त्र
वृश्च प्र वृश्च सं वृश्च दह प्र दह सं दह ॥
स्वर रहित पद पाठवृश्च । प्र । वृश्च । सम् । वृश्च । दह । प्र । दह । सम् । दह ॥११.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेद में धर्म विरूद्ध मनुष्य रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
[वेदवाणी !] तू [धर्म विरूद्धा को]{जो स्त्री,तपस्वी,जन्मभूमि को मलिन करे,स्त्री,तपस्वी,जन्मभूमि की रक्षा ही धर्म है} (वृश्च) काट डाल, (प्र वृश्च) चीर डाल, (सं वृश्च) फाड़ डाल, (दह) जला दे, (प्र दह) फूँक दे, (सं दह) भस्म कर दे ॥६२॥
भावार्थ
धर्मात्मा लोग अधर्मियों के नाश करने में सदा उद्यत रहें ॥६२॥
टिप्पणी
६२−(वृश्च) छिन्धि (प्र) प्रकर्षेण (वृश्च) (सम्) सम्यक् (वृश्च) (दह) भस्मीकुरु (प्र) (दह) (सम्) (दह) ॥
विषय
व्रशचन....प्रव्रशचन....संव्रशचन
पदार्थ
१. हे (देवि) = शत्रुओं को पराजित करनेवाली (अघ्न्ये) = अहन्तव्ये वेदवाणि! तू (ब्रह्मज्यम्) = इस ब्राह्मणों के हिंसक को-ज्ञान- विनाशक को (वृश्च) = काट डाल, (प्रवृश्च) = खूब ही काट डाल, संवृश्च सम्यक् काट डाल दह इसे जला दे, प्रदह प्रकर्षेण दग्ध कर दे और संदह सम्यक् दग्ध कर दे। (आमूलात् अनुसंदह) = जड़ तक जला डाल। २ यथा जिससे यह (ब्रह्मज्य यमसादनात्) = [अयं वै यमः याऽयं पवते] इस वायुलोक से (परावतः) = सुदूर (पापलोकान्) = पापियों को प्राप्त होनेवाले घोर लोकों को (अयात्) = जाए। मरकर यह ब्रह्मज्य वायु में विचरता हुआ पापियों को प्राप्त होनेवाले लोकों को (असुर्य लोकों को जोकि घोर अन्धकार से आवृत हैं) प्राप्त होता है। २. एवा इसप्रकार हे (देवि अघ्न्ये) = दिव्यगुणसम्पन्न अहन्तव्ये वेदवाणि! (त्वम्) = तू इस (ब्रह्मज्यस्य) = ब्रह्मघात करनेवाले दुष्ट के (स्कन्धान्) = कन्धों को (शतपर्वणा वज्रेण) = सौ पर्वोंवाले- नोकों, दन्दानोंवाले वज्र से (प्रजहि) = नष्ट कर डाल । (तीक्ष्णेन) = बड़े तीक्ष्ण (क्षुरभृष्टना) = (भृष्टि Frying) भून डालनेवाले छुरे से शिरः प्र ( जहि ) सिर को काट डाल ।
भावार्थ
ब्रह्मज्य का इस हिंसित वेदवाणी द्वारा ही व्रश्चन व दहन कर दिया जाता है।
भाषार्थ
(वृश्च) काट, (प्रवृश्च) पूर्णतया काट (संवृश्च) अच्छी तरह काट, (दह) जला दे, (प्रदह) पूर्णतया जला दें, (संदह) अच्छी तरह जला दे।
टिप्पणी
[शब्दों के पुनर्वचनों, भावपूर्ण पुनर्वचनों तथा शब्दों के अर्थों को दृष्टिगत करने से प्रतीत होता है कि मन्त्र में गोघातकों और गोरक्षकों में युद्ध का निर्देश है। इस के सदृश ही मन्त्र ५१ में शब्द हैं। साथ ही "जिनताम्" (मन्त्र ५९) में बहुवचन भी यह दर्शाता है कि गोसम्बन्धी विवाद किन्हीं दो व्यक्तियों में नहीं, अपितु क्षत्रिय पक्ष तथा ब्राह्मणपक्ष के लोगों में यह युद्ध है। इस वर्णन को पढ़ते हुए इस युद्ध को ऐतिहासिक युद्ध न समझना चाहिये, अपितु इस द्वारा यह भाव सूचित किया है कि गोरक्षा के लिये युद्ध भी लड़ना एक धार्मिक और सामाजिक कर्तव्य है।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
हे (देवि अघ्न्ये) दिव्य स्वभाव वाली देवि अघ्न्ये ! कभी न मारे जाने योग्य ब्रह्मगवी आप (ब्रह्मज्यम्) ब्रह्म, ब्राह्मण की हानि करने हारे पुरुष को (वृश्च प्र वृक्ष) काट और अच्छी तरह से काट और (सं वृश्च) खूब अच्छी तरह से काट। (देह, प्र देह, सं देह) जला, अच्छी तरह से जला और खूब अच्छी तरह से जला डाल। उसको तो (आमूलाद्) जड़ तक (अनु सं दह) फूंक डाल।
टिप्पणी
‘मूलान्’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवते च पूर्वोक्ते। ४७, ४९, ५१-५३, ५७-५९, ६१ प्राजापत्यानुष्टुभः, ४८ आर्षी अनुष्टुप्, ५० साम्नी बृहती, ५४, ५५ प्राजापत्या उष्णिक्, ५६ आसुरी गायत्री, ६० गायत्री। पञ्चदशर्चं षष्टं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Pluck off, uproot, cut up, burn, destroy, turn to ash all violators of Divine Cow along with all their supports.
Subject
PARYAYA - VII
Translation
Cut thou, cut off, cut up; burnoff, burn up. `
Translation
Let this rend him, cut to bits and cut thoroughly . Let this scorch him, heat him and burn to ashes.
Translation
Rend, rend to bits, rend through and through, scorch and consume and burn to dust.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
६२−(वृश्च) छिन्धि (प्र) प्रकर्षेण (वृश्च) (सम्) सम्यक् (वृश्च) (दह) भस्मीकुरु (प्र) (दह) (सम्) (दह) ॥
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