अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 26
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
1
अ॒घवि॑षा नि॒पत॑न्ती॒ तमो॒ निप॑तिता ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒घऽवि॑षा । नि॒ऽपत॑न्ती । तम॑: । निऽप॑तिता ॥७.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
अघविषा निपतन्ती तमो निपतिता ॥
स्वर रहित पद पाठअघऽविषा । निऽपतन्ती । तम: । निऽपतिता ॥७.१५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(निपतन्ती) नीचे गिरती हुई वह [वेदवाणी] (अघविषा) [वेदनिरोधक को] महाघोर विषैली और (निपतिता) नीचे गिरी हुई वह (तमः) [उस को] अन्धकार होती है ॥२६॥
भावार्थ
वेदवाणी के गुणों का अपमान करनेवाला मूर्खता के कारण घोर नरक में पड़ता है ॥२६॥
टिप्पणी
२६−(अघविषा) म० १२। महाघोरविषयुक्ता यथा (निपतन्ती) अधोगच्छन्ती (तमः) अन्धकारः (निपतिता) अधोगता ॥
विषय
अन्धकार व विनाश
पदार्थ
१. यदि एक ब्रह्मज्य राजन्य एक वेदज्ञ ब्राह्मण को नौकर की तरह अपने समीप उपस्थित होने के लिए आदिष्ट करता है, तो (उपतिष्ठन्ती) = उसके समीप उपस्थित होती हुई यह ब्रह्मगवी (सेदिः) = उस अत्यचारी के विनाश का कारण होती है। (परामृष्टा) = और यदि उस अत्याचारी से यह किसी प्रकार परामृष्ट होती है-कठोर स्पर्श को प्राप्त करती है, तो (मिथोयोध:) = यह राष्ट्र की इन प्रकृतियों को परस्पर लड़ानेवाली हो जाती है, अर्थात् ये शासक आपस में ही लड़ मरते हैं। इस ब्रह्मज्न द्वारा (मुखे अपिनाह्यमाने) = मुख के बाँधे जाने पर, अर्थात् प्रचार पर प्रतिबन्ध लगा दिये जाने पर (शरव्या) = यह लक्ष्य पर आघात करनेवाले बाणसमूह के समान हो जाती है। (हन्यमाना) = मारी जाती हुई यह ब्रह्मगवी (ऋति:) = विनाश ही हो जाती है। (निपतन्ती) = नीचे गिरती हुई यह (अघविषा) = भयंकर विष हो जाती है और (निपतिता तम:) = गिरी हुई चारों ओर अन्धकार ही-अन्धकार फैला देती है। संक्षेप में, इसप्रकार पीड़ित हुई-हुई यह (ब्रह्मगवी) = वेदवाणी (ब्रह्मज्यस्य) = ब्रह्म की हानि करनेवाले इस ब्रह्मघाती के (अनुगच्छन्ती) = पीछे चलती हुई (प्राणान् उपदासयति) = उसके प्राणों को विनष्ट कर डालती है।
भावार्थ
ब्रह्मज्य शासक ज्ञानप्रसार का विरोध करता हुआ राष्ट्रको अन्धकार के गर्त में डाल देता है और स्वयं भी उस अन्धकार में ही कहीं विलीन हो जाता है।
भाषार्थ
(निपतन्ती) वध के पश्चात् गिरती हुई गौ (अघविषा) हत्यारा विष रूप है, और (निपतिता) गिर गई (समः) अन्धकार रूप है।
टिप्पणी
[गौ हत्यारे को, गोरक्षक लोग, हत्यारे-विष द्वारा मार डालें, और उसे अन्धेरी कोठरी में बन्द रखें,–ऐसा विधान मन्त्र में है। जब तक हत्यारे के वध का प्रबन्ध नहीं होता तब तक गो हत्यारे को अन्धेरी कोठरी में बन्द रखना चाहिये]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
ब्रह्मघ्न द्वारा (निपतन्ती) नीचे गिरती हुई वह ब्रह्मगवी (विषा) विना प्रतीकार के विष से पूर्ण होती है। (निपतिता) नीचे गिरी हुई वह साक्षात् (तमः) अन्धकार, मृत्यु के समान हो जाती है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Falling, she is deadly poison, fallen, she is utter darkness.
Translation
Deadly poisonous when falling down; darkness when fallen down.
Translation
Falling down she becomes Venomous and when has fallen down she is a darkness.
Translation
It is fearfully venomous, when it is down-trodden by its foe. It brings death-like darkness on him who has degraded and dishonored it.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२६−(अघविषा) म० १२। महाघोरविषयुक्ता यथा (निपतन्ती) अधोगच्छन्ती (तमः) अन्धकारः (निपतिता) अधोगता ॥
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