अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 40
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - याजुष्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
2
अ॑स्व॒गता॒ परि॑ह्णुता ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्व॒गता॑ । परि॑ऽह्नुता ॥९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्वगता परिह्णुता ॥
स्वर रहित पद पाठअस्वगता । परिऽह्नुता ॥९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(परिह्रुता) चुरा ली गयी [वेदवाणी] (अस्वगता) [वेदनिरोधक के लिये] निर्धनतारूप है ॥४०॥
भावार्थ
जैसे चिता की प्रज्वलित अग्नि प्रवेश करके मृतक शरीर को भस्म कर देती है, वैसे ही वेदविरोधी अपने दुष्ट गुणों के कारण निर्धनी होकर अपने आप धूलि में मिल जाता है ॥४०, ४१॥
टिप्पणी
४०, ४१−(अस्वगता) स्वं धनम्। अस्व+गम−ड, भावे तल्, टाप्। अस्वं निर्धनत्वं गच्छतीति अस्वगस्तस्य भावः। निर्धनता (परिह्णुता) ह्रुङ् अपनयने=चौर्ये−क्त। चोरिता (अग्निः) प्रत्यक्षः पावकः (क्रव्यात्) मांसभक्षकः। शवदाहकः (भूत्वा) (ब्रह्मगवी) म० ५। वेदवाणी (ब्रह्मज्यम्) म० १५। ब्रह्मचारिणां हानिकरम् (प्रविश्य) (अत्ति) खादति ॥
विषय
सर्वविनाश
पदार्थ
१. (तस्याः) = उस ब्रह्मगवी का (आहननम्) = मारना (कृत्या) = अपनी हिंसा करना है, (आशसनम्) = उसका टुकड़े करना (मेनि:) = वज्राघात के समान है, (ऊबध्यम्) = [दुर् बन्धनम्] उसको बुरी तरह से बाँधना (वलग:) = [वल+ग] हलचल की ओर ले-जानेवाला है-प्रजा में विप्लव को पैदा करनेवाला है। २. (परिह्रुता) = [हु अपनयने] अपनीता व चुरा ली गई यह ब्रह्मगवी (अस्व-गता) = निर्धनता की ओर गम वाली होती है-यह निर्धनता को उत्पन्न कर देती है। उस समय यह ब्रह्मगवी (क्रव्यात् अग्निः भूत्वा) = कच्चा मांस खा-जानेवाली अग्नि बनकर (ब्रह्मज्यं प्रविश्य अत्ति) = ब्रह्म की हानि करनेवाले में प्रवेश करके उसे खा जाती है। (अस्य) = इसके (सर्वा अङ्गा) = सब अङ्गों को (पर्वा) = पर्वों को-जोड़ों को व (मूलानि) = मूलों को (वृश्चति) = छिन्न कर देती है।
भावार्थ
विनष्ट की गई ब्रह्मगवी विनाश का ही कारण बनती है।
भाषार्थ
(परिह्णुता) चुराई गई गौ (अस्वगता) चुराने वाले की "स्व" अर्थात् सम्पत्ति को "अगत" अर्थात् विगत कर देती है।
टिप्पणी
[परिह्णुता=परि + ह्नुङ, (अपनयने)। अभिप्राय है कि गौ चुराने वाला निज लाभ के लिये चुराता है, गौ रक्षक दण्डरूप में चोर की सम्पत्ति उस से छीन लेते हैं]
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(परिह्-णुता) छुपा ली गई या अपने अधिकार से च्युत करदी गई ‘ब्रह्मगवी’ (अस्वगता) अपने गृह और धन संपत्ति से हाथ धो लेना है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवता च पूर्वोक्ते। ३९ साम्नी पंक्ति:, ४० याजुषी अनुष्टुप्, ४१, ४६ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप, ४२ आसुरी बृहती, ४३ साम्नी वृहती, ४४ पिपीलिकामध्याऽनुष्टुप्, ४५ आर्ची बृहती। अष्टर्चं पञ्चमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Stolen, misappropriated, wrested, it becomes self-denial of life itself for the thief.
Translation
(She is) homelessness when hidden.
Translation
If she is taken by any one she does not live.
Translation
He invites poverty who conceals and usurps it.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४०, ४१−(अस्वगता) स्वं धनम्। अस्व+गम−ड, भावे तल्, टाप्। अस्वं निर्धनत्वं गच्छतीति अस्वगस्तस्य भावः। निर्धनता (परिह्णुता) ह्रुङ् अपनयने=चौर्ये−क्त। चोरिता (अग्निः) प्रत्यक्षः पावकः (क्रव्यात्) मांसभक्षकः। शवदाहकः (भूत्वा) (ब्रह्मगवी) म० ५। वेदवाणी (ब्रह्मज्यम्) म० १५। ब्रह्मचारिणां हानिकरम् (प्रविश्य) (अत्ति) खादति ॥
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