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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 29
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुर्यनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
    1

    दे॑वहे॒तिर्ह्रि॒यमा॑णा॒ व्यृद्धिर्हृ॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒व॒ऽहे॒ति: । ह्रि॒यमा॑णा । विऽऋ॑ध्दि: । हृ॒ता ॥८.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवहेतिर्ह्रियमाणा व्यृद्धिर्हृता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवऽहेति: । ह्रियमाणा । विऽऋध्दि: । हृता ॥८.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 29
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [वेदवाणी] (ह्रियमाणा) पकड़ी जाती हुई [वेदनिन्दक के लिये] (देवहेतिः) इन्द्रियों का हनन, और (हृता) पकड़ी गयी (व्यृद्धिः) [उस को] अवृद्धि [हानिरूप] होती है ॥२९॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य वेदज्ञानियों को पकड़कर कष्ट देते हैं, वे दुर्बलेन्द्रिय अपनी इष्ट कामनाएँ पूरी नहीं कर सकते ॥२९॥

    टिप्पणी

    २९−(देवहेतिः) इन्द्रियाणां हननम् (ह्रियमाणा) गृह्यमाणा (व्यृद्धिः) अवृद्धिः। हानिः (हृता) गृहीता ॥

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    विषय

    वैर......असमृद्धि......पाप......पारुष्य

    पदार्थ

    १. 'एक बलदस राजन्य इस ब्रह्मगवी का हनन करता है, और परिणामतः राष्ट्र में किस प्रकार का विनाश उपस्थित होता है' इसका यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार में वर्णन किया गया है। कहते हैं कि यह ब्रह्मगवी (विकृत्यमाना) = विविध प्रकार से छिन्न की जाती हुई। अपने विद्वेषियों के लिए (वैरम्) = वैर को उत्पन्न करती है, ये ब्रह्मगवी का विकृन्तन करनेवाले परस्पर वैर-विरोध में लड़ मरते हैं। (विभाज्यमाना) = अंग-अंग काटकर आपस में बाँटी जाती हुई ब्रह्मगवी (पौत्राद्यम्) = पुत्र-पौत्र आदि को खा जानेवाली होती है। (ह्रियमाना) = हरण की जाती हुई यह (देवहेति:) = इन्द्रियों [इन्द्रियशक्तियों] की विनाशक होती है, और (हृता) = हरण की गई होने पर (व्यृद्धिः) = सब प्रकार की असमृद्धि का कारण बनती है। २. (अधिधीयमाना) = इस ब्रह्मण्य द्वारा अधिकार में रक्खी हुई-पूर्णरूप से प्रतिबद्ध-सी हुई-हुई (पाप्मा) = पाप के प्रसार का हेतु बनती है, (अवधीयमाना) = तिरस्कृत करके दूर की जाती हुई (पारुष्यम्) = क्रूरताओं को उत्पन्न करती है, अर्थात् इस स्थिति में राजा प्रजा पर अत्याचार करने लगता है। (प्रयस्यन्ती विषम्) = ब्रह्मज्य द्वारा कष्ट उठाती हुई विष के समान प्राणनाशक बनती है, (प्रयस्ता) = सताई हुई होने पर यह (तक्मा) = ज्वर ही हो जाती है।

    भावार्थ

    ब्रह्मगवी का छेदन व तिरस्कार राष्ट्र में 'वैर, अकालमृत्यु, इन्द्रियशक्ति-विनाश, असमृद्धि, पाप व पारुष्य' का कारण बनता है और विष बनकर ज्वरित करनेवाला होता है।

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    भाषार्थ

    [बाण्टने के पश्चात्] (ह्रियमाना) ली जाती हुई (देव हेतिः) देवों का अस्त्र है, (हृता) ली गई (व्यृद्धिः) ऋद्धि का अभाव रूप है।

    टिप्पणी

    [अभिप्राय यह कि गौमांस लिये जाने पर यदि राष्ट्र के विद्वानों या दिव्य कोटि के लोगों को इस बात का पता लग जाय तो वे भी प्रहार करने पर उद्यत हो जाते हैं, और गोओं के कम हो जाने पर दूध आदि के अभाव तथा कृषिकर्म में कठिनाई के कारण राष्ट्र की ऋद्धि क्षीण होती जाती है]

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    जब ब्रह्मद्वेषी लोग उस ब्रह्मगवी को (ह्रियमाणा) हरण कर रहे होते हैं तब वह (देवहेतिः) देव, विद्वानों के अस्त्र के समान उसका नाश करती है। (हृता) जब वे उसका हरण कर चुकते हैं तब वह (व्यृद्धिः) उनके सम्पत्ति के नाश का कारण होती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्देवता च पूर्ववत्। २८ आसुरी गायत्री, २९, ३७ आसुरी अनुष्टुभौ, ३० साम्नी अनुष्टुप्, ३१ याजुपी त्रिष्टुप्, ३२ साम्नी गायत्री, ३३, ३४ साम्नी बृहत्यौ, ३५ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप, ३६ साम्न्युष्णिक्, ३८ प्रतिष्ठा गायत्री। एकादशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Cow

    Meaning

    Being distributed and grabbed, she is wrathful stroke of divinities, when grabbed and gulped, she brings adversity and utter destitution.

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    Translation

    A god's missile when being taken, failure when taken.

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    Translation

    She, when being stolen away becomes weapon of natural forces and when stolen away becomes misfortune.

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    Translation

    It weakness physically him who torments its preachers. It destroys the wealth of him who snatches it away from the learned.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २९−(देवहेतिः) इन्द्रियाणां हननम् (ह्रियमाणा) गृह्यमाणा (व्यृद्धिः) अवृद्धिः। हानिः (हृता) गृहीता ॥

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