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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 28
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुरी गायत्री सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
    1

    वैरं॑ विकृ॒त्यमा॑ना॒ पौत्रा॑द्यं विभा॒ज्यमा॑ना ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वैर॑म् । वि॒ऽकृ॒त्यमा॑ना । पौत्र॑ऽआद्यम् । वि॒ऽभा॒ज्यमा॑ना ॥८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वैरं विकृत्यमाना पौत्राद्यं विभाज्यमाना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वैरम् । विऽकृत्यमाना । पौत्रऽआद्यम् । विऽभाज्यमाना ॥८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 28
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    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [वेदवाणी] (विकृत्यमाना) कतरी जाती हुई [वेदनिन्दक के लिये] (वैरम्) वैर [शत्रुतारूप], और (विभाज्यमाना) टुकड़े-टुकड़े की जाती हुई [उसके] (पौत्राद्यम्) पुत्र आदि सन्तानों का भक्षण [नाशरूप] होती है ॥२८॥

    भावार्थ

    जो लोग कुमति के कारण वेदों के उत्तम गुणों को नष्ट-भ्रष्ट करते हैं, तत्त्वज्ञानी पुरुष उनके शत्रु बन जाते हैं और उनके सन्तान भी दुराचारी होकर नष्ट हो जाते हैं ॥२८॥

    टिप्पणी

    २८−(वैरम्) वि विरोधे+ईर गतौ−क, वीर-अण्। विरोधः (विकृत्यमाना) विच्छिद्यमाना (पौत्राद्यम्) पौत्र+अद भक्षणे-ण्यत्। पुत्रादिभक्षणम्। सन्ताननाशनम् (विभाज्यमाना) विभागेन गृह्यमाणा ॥

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    विषय

    वैर......असमृद्धि......पाप......पारुष्य

    पदार्थ

    १. 'एक बलदस राजन्य इस ब्रह्मगवी का हनन करता है, और परिणामतः राष्ट्र में किस प्रकार का विनाश उपस्थित होता है' इसका यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार में वर्णन किया गया है। कहते हैं कि यह ब्रह्मगवी (विकृत्यमाना) = विविध प्रकार से छिन्न की जाती हुई। अपने विद्वेषियों के लिए (वैरम्) = वैर को उत्पन्न करती है, ये ब्रह्मगवी का विकृन्तन करनेवाले परस्पर वैर-विरोध में लड़ मरते हैं। (विभाज्यमाना) = अंग-अंग काटकर आपस में बाँटी जाती हुई ब्रह्मगवी (पौत्राद्यम्) = पुत्र-पौत्र आदि को खा जानेवाली होती है। (ह्रियमाना) = हरण की जाती हुई यह (देवहेति:) = इन्द्रियों [इन्द्रियशक्तियों] की विनाशक होती है, और (हृता) = हरण की गई होने पर (व्यृद्धिः) = सब प्रकार की असमृद्धि का कारण बनती है। २. (अधिधीयमाना) = इस ब्रह्मण्य द्वारा अधिकार में रक्खी हुई-पूर्णरूप से प्रतिबद्ध-सी हुई-हुई (पाप्मा) = पाप के प्रसार का हेतु बनती है, (अवधीयमाना) = तिरस्कृत करके दूर की जाती हुई (पारुष्यम्) = क्रूरताओं को उत्पन्न करती है, अर्थात् इस स्थिति में राजा प्रजा पर अत्याचार करने लगता है। (प्रयस्यन्ती विषम्) = ब्रह्मज्य द्वारा कष्ट उठाती हुई विष के समान प्राणनाशक बनती है, (प्रयस्ता) = सताई हुई होने पर यह (तक्मा) = ज्वर ही हो जाती है।

    भावार्थ

    ब्रह्मगवी का छेदन व तिरस्कार राष्ट्र में 'वैर, अकालमृत्यु, इन्द्रियशक्ति-विनाश, असमृद्धि, पाप व पारुष्य' का कारण बनता है और विष बनकर ज्वरित करनेवाला होता है।

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    भाषार्थ

    (विकृत्यमाना) विविधाङ्गों में काटी जाती हुई (वैरम) परस्पर में वैर उत्पन्न करती, (विभाज्यमाना) और भाण्टी जाती हुई (पौत्राद्यम्) घातक के पौत्रों तक को खाने वाली होती है।

    टिप्पणी

    [गौ या गौओं को काटने और उस के मांस को वाण्टने पर, घातक के कुल और रक्षकों में वैर पैदा हो जाता, और इस वैर का दुष्परिणाम घातक के पौत्रों तक को भोगना पड़ता है। यह वैर कहां तक चलता है, यह गोरक्षकों की गौ के प्रति उग्र श्रद्धा पर निर्भर है]।

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (विकृत्यमाना) विविध रूपों से अंग अंग काटी जाती हुई ब्रह्मद्वेषियों के लिये साक्षात् (वैरम्) वैर, आपस का कलह बनकर प्रकट होती है। (विभाज्यमाना) अंग अंग काटकर आपस में बांटली जाती हुई ब्रह्मगवी (पौत्राद्यम्*) पुत्र, पौत्र आदि को खाजाने वाली हो जाती है।

    टिप्पणी

    ‘पौत्राघम्’ इति संदिह्यते। ‘पौत्र–आद्यम्’ इति पदपाठः। ‘पौत्र अद्यम्’ लेन्मेनकामितः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्देवता च पूर्ववत्। २८ आसुरी गायत्री, २९, ३७ आसुरी अनुष्टुभौ, ३० साम्नी अनुष्टुप्, ३१ याजुपी त्रिष्टुप्, ३२ साम्नी गायत्री, ३३, ३४ साम्नी बृहत्यौ, ३५ भुरिक् साम्नी अनुष्टुप, ३६ साम्न्युष्णिक्, ३८ प्रतिष्ठा गायत्री। एकादशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Cow

    Meaning

    Immolated, she is hostility and deadly strife, divided and sheared, she is the devourer of children and grand children.

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    Subject

    PARYAYA -IV

    Translation

    (She is) hostility when being cutup, the eating of one’s children when being shared out.

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    Translation

    She, if cut to pieces, becomes hostility and when she is distributed in portions eats away children.

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    Translation

    It is hostile to its desecrator, the bringer of woe to the children of its profaner and outrager.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २८−(वैरम्) वि विरोधे+ईर गतौ−क, वीर-अण्। विरोधः (विकृत्यमाना) विच्छिद्यमाना (पौत्राद्यम्) पौत्र+अद भक्षणे-ण्यत्। पुत्रादिभक्षणम्। सन्ताननाशनम् (विभाज्यमाना) विभागेन गृह्यमाणा ॥

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