अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 73
ऋषिः - अथर्वाचार्यः
देवता - ब्रह्मगवी
छन्दः - आसुर्युष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
2
सूर्य॑ एनं दि॒वः प्र णु॑दतां॒ न्योषतु ॥
स्वर सहित पद पाठसूर्य॑: । ए॒न॒म् । दि॒व: । प्र । नु॒द॒ता॒म् । नि । ओ॒ष॒तु॒ ॥११.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
सूर्य एनं दिवः प्र णुदतां न्योषतु ॥
स्वर रहित पद पाठसूर्य: । एनम् । दिव: । प्र । नुदताम् । नि । ओषतु ॥११.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।
पदार्थ
(सूर्यः) सूर्य (एनम्) इसको (दिवः) प्रकाश से (प्र णुदताम्) ढकेल देवे और (नि ओषतु) गिराकर जला देवे ॥७३॥
भावार्थ
दुरात्मा वेदविरोधी पुरुष मूर्खता के कारण सब स्थानों में सब प्रकार से कष्ट में डाला जाता है ॥७२, ७३॥
टिप्पणी
७२, ७३−(अग्निः) प्रत्यक्षः (एनम्) वेदविरोधिनम्। ब्रह्मज्यम् (क्रव्यात्) मांसभक्षकः। शवदाहकः (पृथिव्याः) पृथिवीलोकात् (नुदताम्) प्रेरयतु (उदोषतु) सर्वथा दहतु (वायुः) (अन्तरिक्षात्) मध्यलोकात् (महतः) विशालात् (वरिम्णः) विस्तारात् (सूर्यः) (एनम्) दुष्कारिणम् (दिवः) प्रकाशात् (प्रणुदताम्) प्रक्षिपतु (न्योषतु) नीचैर्दहतु ॥
विषय
ब्रह्मज्य का संहार व निर्वासन
पदार्थ
१. (अस्य) = इस ब्रह्मघाती (वेदविरोधी) के (लोमानि संछिन्धि) = लोमों को काट डाल । (अस्य त्वचं विवेष्टय) = इस की त्वचा [खाल] को उतार लो। (अस्य मांसानि शातय) = इसके मांस के लोथड़ों को काट डाल। (अस्य स्नावानि संवृह) = इसकी नसों को ऐंठ दे-कुचल दे। (अस्य अस्थीनि पीडय) = इसकी हड्डियों को मसल डाल । (अस्य मज्जानम् निर्जहि) = इसकी मज्जा को नष्ट कर डाल । (अस्य) = इसके (सर्वा अङ्गा पर्वाणि) = सब अङ्गों व जोड़ों को विश्रथय ढीला कर दे- बिल्कुल पृथक्-पृथक् कर डाल। २. (क्रव्यात् अग्निः) = कच्चे मांस को खा जानेवाला अग्नि (एनम्) = इस ब्रह्मज्य को (पृथिव्याः नुदताम्) = पृथिवी से धकेल दे और उत् ओषतु जला डाले। वायुः- वायुदेव (महतः वरिम्णः) = महान् विस्तारवाले (अन्तरिक्षात्) = अन्तरिक्ष से पृथक् कर दे और (सूर्य:) = सूर्य एनम् इसको (दिवः) = द्युलोक से प्रणुदताम् परे धकेल दे और (नि ओषतु) = नितरां व निश्चय से दग्ध कर दे। इस ब्रह्मघाती को अग्नि आदि देव अपने लोकों से पृथक् कर दें।
भावार्थ
ब्रह्मघाती के अङ्ग-प्रत्यङ्ग का छेदन हो जाता है और इसका त्रिलोकी से निर्वासन कर दिया जाता है।
भाषार्थ
(क्रव्याद् अग्नि) शवाग्नि (एनम्) इस गोघाती को (पृथिव्याः) पृथिवी से (नुदताम्) धकेले, (उद् ओषतु) जलाए और ऊपर [वायु में भेजे], (वायुः) वायु (महतो वरिम्णः, अन्तरिक्षात्) महाविस्तृत अन्तरिक्ष से धकेले, (सूर्यः) सूर्य (एनम्) इसे (दिवः) द्युलोक से (प्र नुदताम्) दूर धकेले, (न्योषतु) और तपा कर नीचे पृथिवी की ओर धकेले (मन्त्र ७२, ७३)।
टिप्पणी
[मन्त्रानुसार, सूक्ष्मशरीर समेत जीवात्मा, पृथिवी से वायु अर्थात् अन्तरिक्ष में जाता है, तदनन्तर सूर्य की ओर, फिर सूर्य के ताप से उत्पन्न मेघ से वर्षा द्वारा पुनः पृथिवी पर आ कर कर्मानुसार जन्म लेता है]।
विषय
ब्रह्मगवी का वर्णन।
भावार्थ
(एनं) इसको (क्रव्यात् अग्निः) क्रव्य, कच्चा मांस खाने वाला श्मशान-अग्नि (पृथिव्याः नुदताम्) पृथिवी से निकाल बाहर करे, और (उत् ओषतु) जला डाले और (वायुः) वायु (महतः वरिम्णः) इस बड़े भारी (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से भी परे करे। (सूर्यः) सूर्य (एनं) उसको (दिवः) द्यौलोक से भी (प्र नुदताम्) परे निकाल दे और (नि ओषतु) नीचे नीचे जलावे, उसे संतप्त करे।
टिप्पणी
॥ इति पञ्चमोऽनुवादः॥ [तत्रैकं सूक्तम्, ऋचः त्रिसप्ततिः।] इति द्वादशं काण्डं समाप्तम्। द्वादशे पञ्च सूक्तानि पर्यायाः सप्त पञ्चमे। पञ्चानुवाकाश्च ऋचश्चतुरूर्ध्वशतत्रयम्॥ वेदवस्वङ्कचन्द्राब्दे ज्येष्ठे कृष्णे दले गुरौ। पञ्चम्यां द्वादशं काण्डं विराममगमत् क्रमात्॥ इति प्रतिष्ठितविद्यालंकार-मीमांसातीविरुद्धोपशोभित-श्रीमज्जयदेवशर्मणा विरचितेथर्वणो ब्रह्मवेदस्यालोकभाष्ये द्वादशं काण्डं समाप्तम्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्देवते च पूर्वोक्ते। ४७, ४९, ५१-५३, ५७-५९, ६१ प्राजापत्यानुष्टुभः, ४८ आर्षी अनुष्टुप्, ५० साम्नी बृहती, ५४, ५५ प्राजापत्या उष्णिक्, ५६ आसुरी गायत्री, ६० गायत्री। पञ्चदशर्चं षष्टं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Divine Cow
Meaning
Let the sun throw him out of the solar region and burn him to extinction. (Let the violator of Divine Cow, divine law, divine knowledge, freedom of divine speech, be non¬ existent. That is the ideal of a happy, free, progressive and enlightened human society.)
Translation
Let the sun thrust him forth from the sky, burn him down.
Translation
Let the sun drive him away from the heavenly region and burn thoroughly.
Translation
Let the Sun drive him away from light and consume him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
७२, ७३−(अग्निः) प्रत्यक्षः (एनम्) वेदविरोधिनम्। ब्रह्मज्यम् (क्रव्यात्) मांसभक्षकः। शवदाहकः (पृथिव्याः) पृथिवीलोकात् (नुदताम्) प्रेरयतु (उदोषतु) सर्वथा दहतु (वायुः) (अन्तरिक्षात्) मध्यलोकात् (महतः) विशालात् (वरिम्णः) विस्तारात् (सूर्यः) (एनम्) दुष्कारिणम् (दिवः) प्रकाशात् (प्रणुदताम्) प्रक्षिपतु (न्योषतु) नीचैर्दहतु ॥
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