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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 5/ मन्त्र 24
    ऋषिः - अथर्वाचार्यः देवता - ब्रह्मगवी छन्दः - आसुरी गायत्री सूक्तम् - ब्रह्मगवी सूक्त
    1

    से॒दिरु॑प॒तिष्ठ॑न्ती मिथोयो॒धः परा॑मृष्टा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    से॒दि: । उ॒प॒ऽतिष्ठ॑न्ती । मि॒थ॒:ऽयो॒ध: । परा॑ऽसृष्टा॥७.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सेदिरुपतिष्ठन्ती मिथोयोधः परामृष्टा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सेदि: । उपऽतिष्ठन्ती । मिथ:ऽयोध: । पराऽसृष्टा॥७.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 5; मन्त्र » 24
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी रोकने के दोषों का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [वेदवाणी] (उपतिष्ठन्ती) [विद्वानों के] समीप ठहरती हुई [वेदनिरोधक को] (सेदिः) महामारी आदि क्लेश, और (परामृष्टा) [विद्वानों से] परामर्श की गयी [विचारी गयी] वह (मिथोयोधः) [दुष्टों में] परस्पर संग्रामरूप होती है ॥२४॥

    भावार्थ

    पक्षपातरहित न्यायकारिणी वेदविद्या की प्रवृत्ति से दुराचारी लोग महाक्लेश पाते हैं ॥२४॥

    टिप्पणी

    २४−(सेदिः) अ० २।१४।३। षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु−कि। निर्ऋतिः। विषादः (उपतिष्ठन्ती) विदुषां समीपे वर्तमाना (मिथोयोधः) युध संप्रहारे−घञ्। दुष्टानां परस्परयुद्धम् (परामृष्टा) मृश स्पर्शे, परापूर्वको विचारे−क्त। विचारिता विद्वद्भिः ॥

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    विषय

    अन्धकार व विनाश

    पदार्थ

    १. यदि एक ब्रह्मज्य राजन्य एक वेदज्ञ ब्राह्मण को नौकर की तरह अपने समीप उपस्थित होने के लिए आदिष्ट करता है, तो (उपतिष्ठन्ती) = उसके समीप उपस्थित होती हुई यह ब्रह्मगवी (सेदिः) = उस अत्यचारी के विनाश का कारण होती है। (परामृष्टा) = और यदि उस अत्याचारी से यह किसी प्रकार परामृष्ट होती है-कठोर स्पर्श को प्राप्त करती है, तो (मिथोयोध:) = यह राष्ट्र की इन प्रकृतियों को परस्पर लड़ानेवाली हो जाती है, अर्थात् ये शासक आपस में ही लड़ मरते हैं। इस ब्रह्मज्न द्वारा (मुखे अपिनाह्यमाने) = मुख के बाँधे जाने पर, अर्थात् प्रचार पर प्रतिबन्ध लगा दिये जाने पर (शरव्या) = यह लक्ष्य पर आघात करनेवाले बाणसमूह के समान हो जाती है। (हन्यमाना) = मारी जाती हुई यह ब्रह्मगवी (ऋति:) = विनाश ही हो जाती है। (निपतन्ती) = नीचे गिरती हुई यह (अघविषा) = भयंकर विष हो जाती है और (निपतिता तम:) = गिरी हुई चारों ओर अन्धकार ही-अन्धकार फैला देती है। संक्षेप में, इसप्रकार पीड़ित हुई-हुई यह (ब्रह्मगवी) = वेदवाणी (ब्रह्मज्यस्य) = ब्रह्म की हानि करनेवाले इस ब्रह्मघाती के (अनुगच्छन्ती) = पीछे चलती हुई (प्राणान् उपदासयति) = उसके प्राणों को विनष्ट कर डालती है।

    भावार्थ

    ब्रह्मज्य शासक ज्ञानप्रसार का विरोध करता हुआ राष्ट्रको अन्धकार के गर्त में डाल देता है और स्वयं भी उस अन्धकार में ही कहीं विलीन हो जाता है।

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    भाषार्थ

    [ऐसी रुग्णा गौ] (उप तिष्ठन्ती) अन्य गौओं के स्थान में उपस्थित रहती हुई (सेदिः) अन्य गौओं की विनाशिका और उन में अवसाद पैदा करती है, (परामृष्टा) और छुई गई (मिथोयोधः) साथिन गौओं पर रोग, का संप्रहार करती है।

    टिप्पणी

    [सेदिः =षद्लृ विशरणे; अवसादे। विशरणः = Killing; अवसादः = Sinking, fainting (आप्टे)। अतः रुग्ण गौओं को स्वस्थ गौओं से पृथक् रखना चाहिये। मिथः = मिथ् = To associate with, to unite (आप्टे)। योधः = युध सम्प्रहारे]।

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    विषय

    ब्रह्मगवी का वर्णन।

    भावार्थ

    (उपतिष्ठन्ती) समीप आती हुई वह (सेदिः) बल वीर्य का नाश करनेहारी होती है। जब ब्रह्मघाती द्वारा (परामृष्टा) कठोर स्पर्श प्राप्त करती है तो (मिथोयोधः) वह परस्पर युद्ध करने हारे सिपाही के समान भयंकर हो जाती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्देवताच पूर्वोक्ते। १२ विराड् विषमा गायत्री, १३ आसुरी अनुष्टुप्, १४, २६ साम्नी उष्णिक, १५ गायत्री, १६, १७, १९, २० प्राजापत्यानुष्टुप्, १८ याजुषी जगती, २१, २५ साम्नी अनुष्टुप, २२ साम्नी बृहती, २३ याजुषीत्रिष्टुप्, २४ आसुरीगायत्री, २७ आर्ची उष्णिक्। षोडशर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Cow

    Meaning

    Sitting or standing close, she is infectious and destructive, and when she is in contact, she is a formidable adversary.

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    Translation

    Debility when approaching; mutual strife when felt of.

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    Translation

    When she approaches nearer she is taking away strength. She, when touched, is hand to hand fighter.

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    Translation

    Vedic knowledge brings sorrow to the opposer, when it befriends a scholar. It creates mutual fight amongst sinners, when it is pondered over by the learned.

    Footnote

    Sinners fight amongst themselves blaming each other for their failure in its spread.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २४−(सेदिः) अ० २।१४।३। षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु−कि। निर्ऋतिः। विषादः (उपतिष्ठन्ती) विदुषां समीपे वर्तमाना (मिथोयोधः) युध संप्रहारे−घञ्। दुष्टानां परस्परयुद्धम् (परामृष्टा) मृश स्पर्शे, परापूर्वको विचारे−क्त। विचारिता विद्वद्भिः ॥

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