ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 92/ मन्त्र 12
ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
व॒यमु॑ त्वा शतक्रतो॒ गावो॒ न यव॑से॒ष्वा । उ॒क्थेषु॑ रणयामसि ॥
स्वर सहित पद पाठव॒यम् । ऊँ॒ इति॑ । त्वा॒ । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । गावः॑ । न । यव॑सेषु । आ । उ॒क्थेषु॑ । र॒ण॒या॒म॒सि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वयमु त्वा शतक्रतो गावो न यवसेष्वा । उक्थेषु रणयामसि ॥
स्वर रहित पद पाठवयम् । ऊँ इति । त्वा । शतक्रतो इति शतऽक्रतो । गावः । न । यवसेषु । आ । उक्थेषु । रणयामसि ॥ ८.९२.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 92; मन्त्र » 12
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 17; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, achiever of a hundred noble victories, just as cows feel delight in green grass, so we give you the pleasure of victory in our songs of celebration.
मराठी (1)
भावार्थ
राजपुरुषाची प्रजेद्वारे योग्य शब्दात केलेली प्रशंसा राजपुरुषाला प्रजेच्या भल्यासाठी प्रोत्साहित करते. त्यासाठी ती केली पाहिजे. ॥१२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यथा) जिस भाँति (गावः) गौ आदि पशुओं को (यवसेषु) भक्ष्य तृण, घास आदि से आनन्दित करते हैं, वैसे ही, (हे शतक्रतो) विविध कर्म शक्तियुत, नेता राजपुरुष (वयम् उ) हम ही (त्वा) आपको (उक्थेषु) कथन योग्य प्रशंसा वचनों से हर्षित करते हैं॥१२॥
भावार्थ
प्रजा द्वारा राजपुरुष की उचित शब्दों में प्रशंसा राजपुरुष को प्रजा के कल्याण के लिए प्रोत्साहन देती है, अतः वह करनी ही अपेक्षित है॥१२॥
विषय
उस के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( शत-क्रतो) अपरिमित ज्ञान और कर्म वाले ! (वयम् उ) हम ( त्वा ) तुझे ( उक्थेषु ) उत्तम वचनों से ( यवसेषु गावः न ) भुस आदि के निमित्त गौ के समान ( त्वा रणयामः ) तुझे प्रसन्न करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्रुतकक्षः सुकक्षो वा ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१ विराडनुष्टुप् २, ४, ८—१२, २२, २५—२७, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७, ३१, ३३ पादनिचृद् गायत्री। २ आर्ची स्वराड् गायत्री। ६, १३—१५, २८ विराड् गायत्री। १६—२१, २३, २४,२९, ३२ गायत्री॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
स्तुति व प्रभु प्रियता
पदार्थ
[१] हे (शतक्रतो) = अनन्त प्रज्ञान व शक्तिवाले प्रभो ! (वयम्) = हम (उ) = निश्चय से (त्वा) = आपको (उक्थेषु) = स्तोत्रों में (आरणयामसि) = रमणवाला करते हैं। इस प्रकार (न) = जैसे (यवसेषु गावः) = घासों में गौओं को। [२] हम इस प्रकार हृदय से आपके स्तोत्रों का उच्चारण करते हैं कि आप उन स्तोत्रों में प्रीतिवाले होते हैं। इन स्तोत्रों के द्वारा हम आपके प्रिय बनते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम स्तोत्रों के द्वारा प्रभु की प्रीति का सम्पादन करते हुए प्रभु से शक्ति व प्रज्ञान को प्राप्त करते हैं।
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