यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 16
ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः
देवता - ग्रीष्मर्तुर्देवता
छन्दः - निचृत् प्रकृतिः
स्वरः - धैवतः
2
अ॒यं द॑क्षि॒णा वि॒श्वक॑र्मा॒ तस्य॑ रथस्व॒नश्च॒ रथे॑चित्रश्च सेनानीग्राम॒ण्यौ। मे॒न॒का च॑ सहज॒न्या चा॑प्स॒रसौ॑ यातु॒धाना॑ हे॒ती रक्षा॑सि॒ प्रहे॑ति॒स्तेभ्यो॒ नमो॑ऽअस्तु॒ ते नो॑ऽवन्तु॒ ते नो॑ मृडयन्तु॒ ते यं द्वि॒ष्मो यश्च॑ नो॒ द्वेष्टि॒ तमे॑षां॒ जम्भे॑ दध्मः॥१६
स्वर सहित पद पाठअ॒यम्। द॒क्षि॒णा। वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। तस्य॑। र॒थ॒स्व॒न इति॑ रथऽस्व॒नः। च॒। रथे॑चित्र॒ इति॒ रथे॑ऽचित्रः। च॒। से॒ना॒नी॒ग्रा॒म॒ण्यौ। से॒ना॒नी॒ग्रा॒म॒न्याविति॑ सेनानीग्राम॒न्यौ। मे॒न॒का। च॒। स॒ह॒ज॒न्येति॑ सहऽज॒न्या। च॒। अ॒प्स॒रसौ॑। या॒तु॒धाना॒ इति॑ यातु॒ऽधानाः॑। हे॒तिः। रक्षा॑सि। प्रहे॑ति॒रिति॒ प्रऽहे॑तिः। तेभ्यः॑। नमः॑। अ॒स्तु॒। ते। नः॒। अ॒व॒न्तु॒। ते। नः॒। मृ॒ड॒य॒न्तु॒। ते। यम्। द्वि॒ष्मः। यः। च॒। नः॒। द्वेष्टि॑। तम्। ए॒षा॒म्। जम्भे॑। द॒ध्मः॒ ॥१६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयन्दक्षिणा विश्वकर्मा तस्य रथस्वनश्च रथेचित्रश्च सेनानीग्रामण्या । मेनका च सहजन्या चाप्सरसौ यातुधाना हेती रक्षाँसि प्रहेतिस्तेभ्यो नमो अस्तु ते नो वन्तु ते नो मृडयन्तु ते यन्द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषाञ्जम्भे दध्मः ॥
स्वर रहित पद पाठ
अयम्। दक्षिणा। विश्वकर्मेति विश्वऽकर्मा। तस्य। रथस्वन इति रथऽस्वनः। च। रथेचित्र इति रथेऽचित्रः। च। सेनानीग्रामण्यौ। सेनानीग्रामन्याविति सेनानीग्रामन्यौ। मेनका। च। सहजन्येति सहऽजन्या। च। अप्सरसौ। यातुधाना इति यातुऽधानाः। हेतिः। रक्षासि। प्रहेतिरिति प्रऽहेतिः। तेभ्यः। नमः। अस्तु। ते। नः। अवन्तु। ते। नः। मृडयन्तु। ते। यम्। द्विष्मः। यः। च। नः। द्वेष्टि। तम्। एषाम्। जम्भे। दध्मः॥१६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तादृशमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यथा योऽयं विश्वकर्मा वायुर्दक्षिणा वाति तस्य वायो रथस्वनश्च रथेचित्रश्च सेनानीग्रामण्याविव वर्त्तमाने मेनका च सहजन्या चाप्सरसौ वर्त्तेते। ये यातुधानाः सन्ति तेषामुपरि हेतिर्यानि रक्षांसि वर्त्तन्ते, तेषामुपरि प्रहेतिरिव तेभ्यो नमोस्त्विति कृत्वा शिक्षका न्यायाधीशास्ते नोऽवन्तु, ते नो मृडयन्तु, ते वयं यं द्विष्मो यश्च नो द्वेष्टि तमेषां वायूनां जम्भे दध्मस्तथा प्रयतध्वम्॥१६॥
पदार्थः
(अयम्) (दक्षिणा) दक्षिणतः (विश्वकर्मा) विश्वानि सर्वाणि कर्माणि यस्मात् स वायुः (तस्य) (रथस्वनः) रथस्य स्वनः शब्द इव शब्दो यस्य सः (च) (रथेचित्रः) रथे रमणीये चित्राण्याश्चर्य्यरूपाणि चिह्नानि यस्य सः (च) (सेनानीग्रामण्यौ) (मेनका) यया मन्यते सा (च) (सहजन्या) सहोत्पन्ना (च) (अप्सरसौ) ये अप्स्वन्तरिक्षे सरतस्ते (यातुधानाः) प्रजापीडकाः (हेतिः) वज्रः (रक्षांसि) दुष्टकर्मकारिणः (प्रहेतिः) (तेभ्यः) (नमः) वज्रः (अस्तु) (ते) (नः) अस्मान् (अवन्तु) (ते) (नः) (मृडयन्तु) सुखयन्तु (ते) (यम्) (द्विष्मः) (यः) (च) (नः) (द्वेष्टि) (तम्) (एषाम्) वायूनाम् (जम्भे) व्याघ्रस्य मुख इव कष्टे (दध्मः)। [अयं मन्त्रः शत॰८.६.१.१७-१८ व्याख्यातः]॥१६॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये स्थूलसूक्ष्ममध्यस्थस्य वायोरुपयोगं कर्त्तुं जानन्ति ते शत्रून्निवार्य्य सर्वानानन्दयन्ति। इदमपि ग्रीष्मर्त्तोः शिष्टं व्याख्यानं वेद्यम्॥१६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर भी वैसा ही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जैसे (अयम्) यह (विश्वकर्मा) सब चेष्टारूप कर्मों का हेतु वायु (दक्षिणा) दक्षिण दिशा से चलता है, (तस्य)उस वायु के (रथस्वनः) रथ के शब्द के समान शब्द वाला (च) और (रथेचित्रः) रमणीय रथ में चिह्नयुक्त आश्चर्य कार्यों का करने वाला (च) ये दोनों (सेनानीग्रामण्यौ) सेनापति और ग्रामाध्यक्ष के समान वर्त्तमान (मेनका) जिस से मनन किया जाय वह (च) और (सहजन्या) एक साथ उत्पन्न हुई (च) ये दोनों (अप्सरसौ) अन्तरिक्ष में रहने वाली किरणादि अप्सरा हैं, जो (यातुधाना) प्रजा को पीड़ा देने वाले हैं, उन के ऊपर (हेतिः) वज्र जो (रक्षांसि) दुष्ट कर्म करने वाले हैं, उन के ऊपर (प्रहेतिः) प्रकृष्ट वज्र के तुल्य (तेभ्यः) उन प्रजापीड़क आदि के लिये (नमः) वज्र का प्रहार (अस्तु) हो। ऐसा करके जो न्यायाधीश शिक्षक हैं, (ते) वे (नः) हमारी (अवन्तु) रक्षा करें। (ते) वे (नः) हमको (मृडयन्तु) सुखी करें, (ते) वे हम लोग (यम्) जिस दुष्ट से (द्विष्मः) द्वेष करें (च) और (यः) जो दुष्ट (नः) हम से (द्वेष्टि) द्वेष करे, (तम्) उस को (एषाम्) इन वायुओं के (जम्भे) व्याघ्र के समान मुख में (दध्मः) धारण करते हैं, वैसा प्रयत्न करो॥१६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो स्थूल, सूक्ष्म और मध्यस्थ वायु से उपयोग लेने को जानते हैं, वे शत्रुओं का निवारण करके सब को आनन्दित करते हैं। यह भी ग्रीष्म ऋतु का शेष व्याख्यान है, ऐसा जानो॥१६॥
भावार्थ
( दक्षिणा ) दक्षिण दिशा में, दायें ओर ( अयं ) यह साक्षात् ( विश्वकर्मा ) विश्वकर्मा, वायु के समान बलशाली, शरीर में प्राण वायु या मन के समान राष्ट्र शरीर का आधार, राज्य के समस्त कार्यों का विधायक 'विश्वकर्मा' नाम पदाधिकारी है । (तस्य रथस्वनः च रथेचित्रः च) उसके 'स्थस्वन' और 'रथेचित्र' नामक दो ग्रीष्म ऋतु के प्रखर दो मास 'शुक' और 'शुचि' के समान तेजस्वी प्रतापी हैं। जिसके रथ में अद्भुत शत्रु-भयकारी शब्द निकलता हो वह 'रथस्वन' और जिसके रथ में चित्र विचित्र रचना और युद्धार्थ विचित्र उपकरण हो वह 'रथेचित्र' कहाता है । इनकी (मेनका च सहजन्या च अप्सरसौ ) मेनका और सहजन्या दोनों स्त्रियों के समान सहयोगिनी हैं। जिसका सब मान करें, जिसको सब मानें वह द्यौ के समान ज्ञान प्रकाश वाली विज्ञान की प्रबल शक्ति या विद्वानों का संघ 'मेनका' है। और पृथिवी या राष्ट्र के समान जनों से पूर्ण युद्ध की शक्ति या जनसमुदाय की 'संघ' शक्ति 'सहजन्या' है । (यातुधानाः हेतिः) पीड़ा प्रदान करने वाले शस्त्रधर और गुप्त घातक लोग उसके सामान्य खड़ग के सम्मान हैं । ( रक्षांसि प्रहेतिः ) राक्षस स्वभाव ( के क्रूर वधक लोग उसके उत्कृष्ट शस्त्र के समान हैं । (तेभ्यः नमः अस्तु ० इत्यादि) पूर्ववत् ॥ शत ८।६ । १ । १७ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
परमेष्ठी ऋषिः । लिंगोक्तो विश्वकर्मा ग्रीष्मर्तुर्देवता । प्रकृतिः । धैवतः ॥
विषय
विश्वकर्मा
पदार्थ
१. (अयं दक्षिणा) = यह राजा दक्षिणा दिग् का अधिपति है, अर्थात् दाक्षिण्य कानैपुण्य का - अधिपति है। २. दाक्षिण्य का अधिपति होता हुआ यह विश्वकर्मा - 'विश्वस्मिन् करोति' सदा कार्यों का करनेवाला है, 'अयं वै वायु विश्वकर्मा० श० ८१६ | १|१७' वायु की भाँति सदा क्रियाशील है। ३. (तस्य) = उस राजा का (रथस्वनः) = [रथे स्थितः स्वनति] युद्ध - रथ पर आरुढ़ होकर शत्रुओं को ललकारनेवाला (सेनानी:) = सेनापति है तथा (रथेचित्र:) = [रथे स्थितः आश्चर्यकारी] सदा रथारूढ़ होकर आश्चर्यजनक शक्ति से निरन्तर कार्यों को करनेवाला एक (ग्रामणी:) = ग्रामनायक है । ग्रैष्मौ तौ ऋतू - श० ८ ६ । १ । १७ । - ये सदा सोत्साह हैं और बड़ी व्यवस्थित गतिवाले हैं। ४. शत्रु पराजय के द्वारा मान पानेवाला 'मेनका' [मानयन्ति एनाम्]=सम्मानित सेनानी (अप्सरसौ) = अफ़्सर है तथा ग्रामणी रूप अफ़सर (सहजन्या) = लोगों के अन्दर मिलकर कार्यों को विकास करने की भावना को जन्म देनेवाला है। आजकल के को ऑपरेटिव सिस्टम तथा कम्युनिटी प्रोजेक्ट्स इस 'सहजन्या' शब्द से संकेतित हो रहे हैं । ५. सेनानी दृष्टिकोण से (यातुधानाः) = शत्रुओं में पीड़ा का आधान करनेवाले - प्रतिक्षण उनकी सिरदर्दी का कारण बननेवाले सैनिक (हेतिः) = वज्र हैं- राष्ट्र की बाह्य आक्रमणों से रक्षा के साधन हैं और ग्रामणी के दृष्टिकोण से रक्षांसि [रक्षू resque] रक्षा के लिए नियत चौकीदार व पुलिस के व्यक्ति (प्रहेतिः) = प्रकृष्ट वज्र हैं। ये सदा राष्ट्र को अन्दर की अव्यवस्था से बचाते हैं । ६. (तेभ्य:) = इस वायु सदृश राजा, उन सेनानी, ग्रामणी, अप्सरस् व हेति और प्रहेति सबके लिए (नमः अस्तु) = हमारा नमस्कार हो। (ते नः अवन्तु) = वे हमारी रक्षा करें। (ते नो मृडयन्तु) = वे हमारे जीवन को सुखी बनाएँ । (ते) = वे (यं द्विष्मः) = अवाञ्छनीय होने से जिसके प्रति हम सब प्रेम नहीं कर पाते (यः च नः द्वेष्टि) = जो हम सबके साथ द्वेष करता है (तम्) = उसको (एषाम्) = इन राजा व उसके अफ़सरों के (जभ्मे) = दंष्ट्राकराल न्यायरूप जबड़े में (दध्मः) = स्थापित करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - राजा वायु की भाँति नैसर्गिकी क्रियावाला है-आलस्य से दूर है। इसके सेनानी शत्रु - पराजय द्वारा राष्ट्र का मान बढ़ाते हैं और ग्रामणी लोगों में मिलकर कार्य करने के द्वारा विकास की भावना को दृढ़-मूल करते हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे स्थूल, सूक्ष्म व मध्यम वायूचा उपयोग करणे जाणतात ते शत्रूंचे निवारण करून सर्वांना आनंदित करतात. ही ग्रीष्म ऋतूची शेष व्याख्या आहे हे जाणा.
विषय
पुनश्च, पुढील मंत्रात तोच विषय (किरणें आणि त्यांचा प्रभाव वर्णित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (अयम्) हे (विश्वकर्मा) प्राण्यांच्या क्रिया-व्यापार आदीचे जे कारण आहे, म्हणजे हा वायू (दक्षिणा) दक्षिण दिशेकडून येत असतो. (तस्य) त्या वायूचा आवाज (रथस्वन:) रथाच्या ध्वनीसारखा असून (च) आणि (रथेचित्र:) रथामधे जसे चित्र-विचित्र चित्र चित्रित असतात, तसा हा वायू अद्भुत कार्ये करणारा आहे. (च) आणि (सेनानीग्रामण्यौ) सेनापती आणि ग्रामाध्यक्षाप्रमाणे (मेनका) मनन करण्याचे साधन (च) आणि सहजन्या) एकावेळी उत्पन्न झालेल्या या (अप्सदस्तै) अंतरिक्षात. राहणारी दोन किरणें आदी अप्सरा आहेत. (या मनन आणि किरण रुप साधनांनी अद्भुत कार्य संपन्न करता येतात) (यातुधाना:) प्रजेला पीडा व त्रास देणारे जे लोक आहेत (चोर दरोडेखोर आदी), त्यांच्यावर (हेति:) वज्र (वीज) पठो (रक्षांसि) जे दुष्ट कुकर्मी आहेत, त्यांच्यावर (प्रहेति:) अधिक भयंकर वज्र पडों आणि (तेभ्य:) त्या प्रजापीडक लोकांवर (नम:) वज्राचा भीषण प्रहार (अस्तु) होवो. जे न्यायाधीश आणि शिक्षक आहेत, (ते) त्यानी (न:) अस्मची (अवन्तु) रक्षा करावी (ते) त्यानी (न:) आम्हां सामान्य प्रजाजनांना (मृडयन्तु) सुखी ठेवावे. (ते) ते आम्ही लोक (यम्) या दुष्टाचा (द्विष्म:) द्वेष करतो आणि (य:) नो दुष्ट (न:) आमचा (द्वेष्टि) द्वेष करीत असेल, (तम्) त्याला (एषाम्) या (तप्त उष्ण) वायूंच्या (जम्भे) वाप्पासारख्या भयानक मुखामधे (वादळ, वावटळ आदीसारख्या संकटांमधे) (दध्भ:) आम्ही घालू शकू, असे तुम्ही (राजा व राजपुरुष यांनी) यत्न करावेत (आम्ही दुष्टांचा विरोध करून त्यांना नष्ट करू शकू, अशी शक्ती आम्हाला द्या) ॥16॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जे लोक (विद्यावान वैज्ञानिक अथवा योगीजन) स्थूल, सूक्ष्म आणि मध्य याठिकाणी असलेल्या विविध प्रकारच्या वायूंपासून विविध हितकारी उपयोग घेऊ शकतात, तेच लोक अपाल्या शत्रूंना परास्त करून सर्वांना आनंदित करतात. येथील देखील ग्रीष्मऋतूविषयी विवेचन केले आहे, हे जाणावे. ॥16॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O men, this vishvakarma breeze blows in the south. These two kinds of air, that give sound like the sound of a chariot, and are the doers of wondrous acts like a chariot, are like the head of an army and the chieftain of a village, which help meditation, and arc born together, are called Apsaras which live in the atmosphere. Those who tease the people should be destroyed. Those who commit unrighteous deeds should be subdued through arms. Use weapons against those who torment mankind. Let just rulers protect us and make us comfortable. In the lion-like jaws of these airs we place the depraved man whom we hate and who hates us.
Meaning
On the right from the south rides in his chariot this Summer Wind, Vishwakarma, versatile power for all activities. Like the king’s commander of the forces and the chief of his city, with the roar of the chariot wheels and the variegated colour of his banner, are the summer months of Jyeshtha and Ashadha. The special guests of the wind and the general currents of it are double waves of energy for life on the earth. Mordacious forces are the danger to life. Watchful defence is the counteraction. Thanks and salutations to the powers of defence. May they be kind and efficacious to us. All those that violate our life and all those we oppose, we deliver unto the judgement of the powers of defence and the Spirit of nature.
Translation
This, on the right hand, is the performer of all the actions (wind). His army commander is rathasvana (owner of the roaring chariot) and his civil administrator is rathecitra (owner of painted chariot). Menaka (revered by people) and sahajanya (popular with people) are his executives. Germs are his weapon; viruses are his extra-ordinary weapon. Our reverence be to them all. May they protect us. May they give us comfort. We place in their jaws the man, whom we hate and who hates us. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তাদৃশমেব বিষয়মাহ ॥
পুনরায় সেই রকমই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থ –হে মনুষ্যগণ! যেমন (অয়ম্) এই (বিশ্বকর্মা) সকল চেষ্টারূপ কর্মের হেতু বায়ু (দক্ষিণা) দক্ষিণ দিক দিয়া প্রবাহিত হয় (তস্য) সেই বায়ুর (রথস্বনঃ) রথের শব্দের সমান শব্দ যুক্ত (চ) এবং (রথেচিত্রঃ) রমণীয় রথে চিহ্নযুক্ত আশ্চর্য্য কর্ম্মকর্ত্তা (চ) এই উভয় (সেনানী গ্রামণ্যৌ) সেনাপতি ও গ্রামাধ্যক্ষের সমান বর্ত্তমান (মেনকা) যাহার দ্বারা মনন করা হয় উহা (চ) এবং (সহজন্যা) এক সঙ্গে উৎপন্ন (চ) এই উভয় (অপ্সরসৌ) অন্তরিক্ষে নিবাস কারী কিরণাদি অপ্সরা যাহারা (য়াতুধানা) প্রজার পীড়ক, তাহাদিগের উপর (হেতিঃ) বজ্র, যাহারা (রক্ষাংসি) দুষ্ট কর্মকারী তাহাদিগের উপর (প্রহেতিঃ) প্রকৃষ্ট বজ্রের তুল্য (তেভ্যঃ) সেই প্রজাপীড়ক ইত্যাদির জন্য (নমঃ) বজ্রের প্রহার (অস্তু) হউক, এমন করিয়া যে ন্যায়াধীশ শিক্ষকগণ আছেন (তে) তাহারা (নঃ) আমাদিগের (অবন্তু) রক্ষা করুন । (তে) তাহারা (নঃ) আমাদিগের (মৃডয়ন্তু) সুখী করুন, (তে) সেই আমরা (য়ম্) যে দুষ্টের সঙ্গে (দ্বিষ্মঃ) দ্বেষ করি (চ) এবং (য়ঃ) যে দুষ্ট (নঃ) আমাদের সহিত (দ্বেষ্টি) দ্বেষ করে (তম্) তাহাকে (এষাম্) এই সব বায়ুসকলের (জম্ভে) ব্যাঘ্রের সমান মুখে (দধমঃ) ধারণ করে সেইরূপ প্রচেষ্টা কর ॥ ১৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যাহারা স্থূল, সূক্ষ্ম ও মধ্যস্থ বায়ু হইতে উপযোগ লওয়া জানে তাহারা শত্রুদিগের নিবারণ করিয়া সকলকে আনন্দিত করেন । ইহাও গ্রীষ্ম ঋতুর শেষ ব্যাখ্যান এমনই জানিবে ॥ ১৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অ॒য়ং দ॑ক্ষি॒ণা বি॒শ্বক॑র্মা॒ তস্য॑ রথস্ব॒নশ্চ॒ রথে॑চিত্রশ্চ সেনানীগ্রাম॒ণ্যৌ । মে॒ন॒কা চ॑ সহজ॒ন্যা চা॑প্স॒রসৌ॑ য়াতু॒ধানা॑ হে॒তী রক্ষা॑ᳬंসি॒ প্রহে॑তি॒স্তেভ্যো॒ নমো॑ऽঅস্তু॒ তে নো॑ऽবন্তু॒ তে নো॑ মৃডয়ন্তু॒ তে য়ং দ্বি॒ষ্মো য়শ্চ॑ নো॒ দ্বেষ্টি॒ তমে॑ষাং॒ জম্ভে॑ দধ্মঃ ॥ ১৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অয়ং দক্ষিণেত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । গ্রীষ্মর্তুর্দেবতা । নিচৃৎ প্রকৃতিশ্ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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