यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 46
ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - भुरिगार्षी गायत्री
स्वरः - षड्जः
2
ए॒भिर्नो॑ऽअ॒र्कैर्भवा॑ नोऽअ॒र्वाङ् स्व॒र्ण ज्योतिः॑। अग्ने॒ विश्वे॑भिः सु॒मना॒ऽअनी॑कैः॥४६॥
स्वर सहित पद पाठए॒भिः। नः॒। अ॒र्कैः। भव॑। नः॒। अ॒र्वाङ्। स्वः॑। न। ज्योतिः॑। अग्ने॑। विश्वेभिः। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। अनी॑कैः ॥४६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एभिर्नाऽअर्कैर्भवा नोऽअर्वाङ्स्वर्ण ज्योतिः । अग्ने विश्वेभिः सुमनाऽअनीकैः ॥
स्वर रहित पद पाठ
एभिः। नः। अर्कैः। भव। नः। अर्वाङ्। स्वः। न। ज्योतिः। अग्ने। विश्वेभिः। सुमना इति सुऽमनाः। अनीकैः॥४६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे अग्ने! त्वं नोऽस्मभ्यं विश्वेभिरनीकै राजेव सुमना भव। एभिरर्कैर्नोऽस्मभ्यं ज्योतिरर्वाङ् स्वर्न भव॥४६॥
पदार्थः
(एभिः) पूर्वोक्तैः (नः) अस्मभ्यम् (अर्कैः) पूज्यैर्विद्वद्भिः (भव) द्व्यचोऽतस्तिङः [अ॰६.३.१३५] इति दीर्घः (नः) अस्मभ्यम् (अर्वाङ्) योऽर्वाचीनाननुत्कृष्टानुत्कृष्टान् कर्त्तुमञ्चति जानाति सः (स्वः) सुखम् (न) इव (ज्योतिः) प्रकाशकः (अग्ने) विद्याप्रकाशाढ्य (विश्वेभिः) समग्रैः (सुमनाः) सुखकारिमनाः (अनीकैः) सैन्यैरिव॥४६॥
भावार्थः
अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा राजा सुशिक्षितैर्बलाढ्यैः सैन्यैः शत्रून् जित्वा सुखी भवति, तथैव प्रज्ञादिभिर्गुणैरविद्याक्लेशान् जित्वा मनुष्याः सुखिनः सन्तु॥४६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्याप्रकाश से युक्त पुरुष! आप (नः) हमारे लिये (विश्वेभिः) सब (अनीकैः) सेनाओं के सहित राजा के तुल्य (सुमनाः) मन से सुखदाता (भव) हूजिये (एभिः) इन पूर्वोक्त (अर्कैः) पूजा के योग्य विद्वानों के सहित (नः) हमारे लिये (ज्योतिः) ज्ञान के प्रकाशक (अर्वाङ्) नीचों को उत्तम करने को जानने वाले (स्वः) सुख के (न) समान हूजिये॥४६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे राजा अच्छी शिक्षा और बल से युक्त सेनाओं से शत्रुओं को जीत के सुखी होता है, वैसे ही बुद्धि आदि गुणों से अविद्या से हुए क्लेशों को जीत के मनुष्य लोग सुखी होवें॥४६॥
विषय
सेनाओं के स्वामी को सूचित होने का उपदेश ।
भावार्थ
हे ( अग्ने) हे अग्रणी राजन् ! विद्वन् ! (एभिः ) इन अर्चना योग्य पूजनीय विद्वानों के साथ और ( विश्वेभिः ) समस्त ( अनीकैः सैन्य बलों के साथ रहकर भी ( अर्वाङ् ) साक्षात् ( स्व: ज्योतिः न ) सुखकारी तेजस्वी, सूर्य के समान ( सुमनाः ) शुभ चित्त वाला होकर ( भव ) रह ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्निर्देवता । भुरिगार्षी गायत्री | षड्जः ॥
विषय
प्रभु-प्राप्ति के लिए पाँच बातें
पदार्थ
१. प्रभु कहते हैं कि (एभिः नः अर्कैः) = [अर्को मन्त्रः, अर्चन्त्येनन] = इन हमारे मन्त्रों के द्वारा - सृष्टि के प्रारम्भ में वेदज्ञान के रूप में दिये गये इन मन्त्रों से तू (नः भव) = हमारा बन । प्रभुभक्त की सर्वोत्तम पहचान यही होनी चाहिए कि वह प्रभु की दी गई वाणी को पढ़ता हो। २. इस वाणी से ज्ञान प्राप्त करके तू (अर्वाङ) = नीचा- नम्र बन । 'ब्रह्मणा अर्वाङ् विपश्यति' ज्ञान से मनुष्य नम्र बनता ही है। 'विद्या ददाति विनयम् = विद्या विनय देती है। 'अहंभावोदयाभावो ज्ञानस्य परमावधि:' ज्ञान की चरम सीमा अहंकार का नितान्त अभाव ही है। मूर्ख ही सर्वज्ञता का गर्व करता है। ज्ञानी अपने ज्ञान की सीमा व अल्पता को समझता हुआ गर्वित नहीं होता। ३. (स्वः न ज्योतिः) = [स्वः आदित्य:- म०] इस नम्रता के परिणामस्वरूप सूर्य के समान देदीप्यमान तेरा ज्ञान हो, अथवा तू स्वर्ण के समान चमकते हुए ज्ञानवाला हो। ४. हे (अग्ने) = प्रगतिशील जीव ! (विश्वेभिः अनीकैः) = सम्पूर्ण तेजस्विताओं के साथ [अनीक=splendour, brilliance तेजस्] तू (सुमनाः) = उत्तम मनवाला हो, अर्थात् स्वस्थ तेजोमय शरीर में तू उत्तम स्वस्थ मनवाला बन।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु-प्राप्ति के लिए मन्त्र में पाँच बातों का संकेत है। १. वेद - मन्त्राध्ययन, २. नम्रता, ३. सूर्य के समान ज्ञान से दीप्त होना औरों को भी अपने जीवन से ज्ञान का प्रकाश प्राप्त कराना, ४. तेजस्विता और ५. सौमनस्य ।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसा राजा उत्तम शिक्षण घेऊन प्रशिक्षित व बलवान सैन्याद्वारे शत्रूंना जिंकतो आणि सुखी बनतो, तसेच अविद्यायुक्त बुद्धी इत्यादींनी झालेले क्लेश दूर करून माणसांनी सुखी व्हावे.
विषय
पुढील मंत्रातही तोच विषय प्रतिपादित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (अग्ने) विद्येच्या प्रकाशाने ज्योतिष्मान् असलेल्या विद्वान महोदय, आपण (न:) आमच्यासाठी (सुखकारक व्हा) ज्याप्रमाणे (विश्वेभि:) संपूर्ण (अनीकै:) सैनिकांसाठी राजा (सुमना:) खर्या मनाने सुखकारक असतो, तद्वत आपण आम्हां (सामान्य-जनांसाठी) सुखकारक (भव) व्हा. (एभि:) या पूर्व वर्णित (अर्कै:) पूजनीय विद्वानांसह (न:) आमच्याकरिता (ज्योति:) ज्ञानाचा प्रकाश करणारे आणि (अर्वाड्) अधमजनांमा उत्तम करण्याची रीती जाणणारे सर्वजण देखील आमच्यासाठी (स्च:) (न) सुखाप्रमाणे व्हावेत. ॥46॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात उपमा तसेच वाचकलुप्तोपमा, हे दोन अलंकार आहेत. ज्याप्रमाणे एखादा राजा प्रशिक्षित आणि शक्तीशाली सैन्याच्या साहाय्याने शत्रूंवर विजय मिळवून आनंदित होतो, तद्वत माणसांनी बुद्धी आदी सद्गुणांद्वारे अविद्येमुळे उत्पन्न होणार्या दु:खांवर विजय मिळवून सुखी होऊ शकतात (वा सुखी व्हावे) ॥46॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned person, be thou well-disposed towards us, like a king with his armies. With these worshipful learned persons be thou for us the expositor of knowledge ; and the uplifter of the down-trodden, granting us pleasure.
Meaning
Agni, lord of the golden light of omniscience, in response to these songs of ours in praise of divinity, be pleased at heart and, with all your glory and majesty, come and reveal yourself before us.
Translation
O adorable Lord, you are bright as the sun, and well disposed. May you, propitiated by these our hymns, come to meet us with all your hosts of radiance. (1)
Notes
Arkaiḥ, अर्चनीयै: मंत्रै:, hymns of praise. Arvan naḥ,अस्मान् अभिमुखान्चन:inclined towards us Bhavā, भव, be; become. Svarṇajyotiḥ, glittering like gold. Also, स्व:न ज्योति:,bril liant as the sun. Anikaiḥ, मुखै:सैन्यै: वा, with your (all) mouths or armies (hosts).
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (অগ্নে) বিদ্যাপ্রকাশ দ্বারা যুক্ত পুরুষ! আপনি (নঃ) আমাদের জন্য (বিশ্বেভিঃ) সমস্ত (অনীকৈঃ) সেনাদের সহিত রাজার তুল্য (সুমনাঃ) মনের দ্বারা সুখদাতা (ভব) হউন । (এভিঃ) এই সব পূর্বোক্ত (অর্কৈঃ) পূজার যোগ্য বিদ্বান্দিগের সহিত (নঃ) আমাদের জন্য (জ্যোতিঃ) জ্ঞানের প্রকাশক (অবাঙ্) অর্বাচীনকে উৎকৃষ্ট করিবার পদ্ধতির জ্ঞাতা (স্বঃ) সুখের (ন) সমান হউন ॥ ৪৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমা ও বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন রাজা উত্তম শিক্ষা এবং বলযুক্ত সেনাদের সহিত শত্রুদিগকে জিতিয়া সুখী হন্ । সেইরূপ বুদ্ধি আদি গুণগুলি দ্বারা অবিদ্যা হইতে জাত ক্লেশসমূহকে জিতিয়া মনুষ্যগণ সুখী হউক ॥ ৪৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
এ॒ভির্নো॑ऽঅ॒র্কৈর্ভবা॑ নোऽঅ॒র্বাঙ্ স্ব॒র্ণ জ্যোতিঃ॑ ।
অগ্নে॒ বিশ্বে॑ভিঃ সু॒মনা॒ऽঅনী॑কৈঃ ॥ ৪৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
এভির্ন ইত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিগার্ষী গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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