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यजुर्वेद अध्याय - 15

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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 45
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगार्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
    2

    अधा॒ ह्यग्ने॒ क्रतो॑र्भ॒द्रस्य॒ दक्ष॑स्य सा॒धोः। र॒थीर्ऋ॒तस्य॑ बृह॒तो ब॒भूथ॑॥४५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अध॑। हि। अ॒ग्ने॒। क्रतोः॑। भ॒द्रस्य॑। दक्ष॑स्य। सा॒धोः। र॒थीः। ऋ॒तस्य॑। बृ॒ह॒तः। ब॒भूथ॑ ॥४५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधा ह्यग्ने क्रतोर्भद्रस्य दक्षस्य साधोः । रथीरृतस्य बृहतो बभूथ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अध। हि। अग्ने। क्रतोः। भद्रस्य। दक्षस्य। साधोः। रथीः। ऋतस्य। बृहतः। बभूथ॥४५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 45
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृशः स्यादित्याह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने! यथा त्वं भद्रस्य दक्षस्य साधोर्ऋतस्य बृहतः क्रतोः सकाशाद् रथीर्बभूथ तथाऽध हि वयमपि भवेम॥४५॥

    पदार्थः

    (अध) अथ मङ्गले। अत्र निपातस्य निपातस्य च [अ॰६.३.१३६] इति दीर्घः। वर्णव्यत्ययेन थस्य धश्च (हि) खलु (अग्ने) विद्वन् (क्रतोः) प्रज्ञायाः (भद्रस्य) आनन्दकरस्य (दक्षस्य) शरीरात्मबलयुक्तस्य (साधोः) सन्मार्गे वर्त्तमानस्य (रथीः) प्रशस्ता रथा रमणसाधनानि यानानि विद्यन्ते यस्य सः (ऋतस्य) प्राप्तसत्यस्य (बृहतः) महाविषयस्य (बभूथ) भवेः॥४५॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा शास्त्रयोगजां धियं प्राप्य विद्वांसो वर्धन्ते तथैवाध्येतृभिरपि वर्धितव्यम्॥४५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वान् जन! जैसे तू (भद्रस्य) आनन्दकारक (दक्षस्य) शरीर और आत्मा के बल से युक्त (साधोः) अच्छे मार्ग में प्रवर्त्तमान (ऋतस्य) सत्य को प्राप्त हुए पुरुष की (बृहतः) बड़े विषय वा ज्ञानरूप (क्रतोः) बुद्धि से (रथीः) प्रशंसित रमणसाधन यानों से युक्त (बभूथ) हूजिये, वैसे (अध) मङ्गलाचरणपूर्वक (हि) निश्चय करके हम भी होवें॥४५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे शास्त्र और योग से उत्पन्न हुई बुद्धि को प्राप्त हो के विद्वान् लोग बढ़ते हैं, वैसे ही अध्येता लोगों को भी बढ़ना चाहिये॥४५॥

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    विषय

    रथी के समान राष्ट्रसञ्चालक राजा ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) अग्ने ! ( अधा हि ) और तू निश्चय से ( भद्रस्य ) सुखकारी कल्याणकारी ( दक्षस्य ) बलवान् ( साधोः ) कार्यसाधक उत्तम ( बृहत ) महान् ( ऋतस्य ) सत्य यज्ञ, या राष्ट्र सञ्चालन के कार्य का ( रथीः ) रथ के स्वामी के समान नेता ( बभूथ ) हो कर रह ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निर्देवता । भुरिगार्षी गायत्री । षड्जः ॥

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    विषय

    संकल्प + बल+यज्ञ

    पदार्थ

    १. हे (अग्ने) = हमारे जीवन के अग्रेणी प्रभो! आप (अद्य) = अब हमारे स्तवन के बाद (हि) = निश्चय से (भद्रस्य क्रतोः) = शुभ संकल्प, प्रज्ञान व यज्ञरूप कर्म के (रथी:) = सारथि के समान निर्वाहक होते हो। आप हमें शुभ संकल्प, प्रज्ञान व कर्म प्राप्त कराते हो। [क्रतु-संकल्प, प्रज्ञान, कर्म - नि० ३।५] । २. आप (दक्षस्य) = उस बल के [नि० २।५] भी प्राप्त करानेवाले हो जो बल (साधोः) = [साध्नोति] लोकरक्षा व परहित को सिद्ध करनेवाला होता है, आप हमें वह शक्ति देते हैं जो सदा उत्तम कार्यों की साधिका होती है और लोकरक्षण में विनियुक्त होती है। ३. आप उत्तम संकल्प व साधक शक्ति प्राप्त कराके (बृहतः) = सदा वृद्धि के कारणभूत (ऋतस्य) = यज्ञ के [नि० ८।२] और वस्तुतः सब ठीक कर्मों के (रथी:) = निर्वाहक (बभूथ) = होते हो।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु हमें १. भद्र क्रतु उत्तम संकल्पवाला बनाते हैं । २. कार्यसाधक शक्ति प्राप्त कराते हैं। ३. संकल्प और शक्ति प्रदान कर हमारी वृद्धि के कारणभूत यज्ञों के निर्वाहक होते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. शास्त्र व योग यांच्या साह्याने उत्पन्न झालेली बुद्धी प्राप्त करून विद्वान लोक उन्नत होतात तसे विद्यार्थ्यांनीही बनावे.

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    विषय

    पुनश्च, विद्वानांने कसे असावे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अग्ने) विद्वान, जसे आपण (भद्रस्य) आनन्ददायक (दक्षस्व) शारीरिक आणि आत्मिक शक्तीने युक्त आहात, तसेच (साधो:) चांगल्या मार्गावर चालणारे (श्रेष्ठ आचरणशील) आणि (ऋतस्थ) सत्यशील पुरुषाच्या (बृहत:) विषयाचे विशाल ज्ञान असणार्‍या (ऋतो:) बुद्धीने संपन्न आहात, तसेच (रथी:) उत्तम यान आदी साधकांनी धनवान (बभूथ) आहात (वा होण्याचे प्रयत्न करीत आहात) त्याप्रमाणे आम्ही इतर लोकांनी देखील (अध) (हि) निश्चयाने त्याप्रकारचे (अध मंगलचरण वा प्रारंभ केले पाहिजे (तुमच्याप्रमाणे आम्ही देखील ज्ञान व धनैश्वर्य प्राप्ती करिता यत्नशील व्हायला हवे) ॥45॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे विद्वान लोक शास्त्राध्ययन आणि योगसाधना द्वारे ज्ञानप्राप्त करून उन्नत होतात, तद्वत् अध्येता (वा जिज्ञासू विद्यार्थी) यांनी देखील उन्नत्ती केली पाहिजे ॥45॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person, just as thou art in the possession of conveyances for journey, having the intellectual wisdom of a truthful person, following the noble path of virtue, filled with pleasurable physical and spiritual strength, so shouldst we blissfully and certainly be.

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    Meaning

    Agni, lord of light and knowledge, be the sure and unfailing pioneer of noble and creative yajnic work. Be the guide, guardian, defender and leader of the good, efficient and pious people, and prophet of the great truth and universal law of existence.

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    Translation

    O adorable Lord, you are the chariot-master to guide us along our auspicious, vigorous, efficacious, truthful and benevolent paths, (1)

    Notes

    Rathi, सारथि:, charioteer. Adha, अथ, now. Babhūtha, भव, be, become. Kratoh, of this determination or resolve. Also, of this sac rifice. Bhadraḥ, कल्याणकर:, beneficial. Dakṣaḥ, बलयुक्त:, pow erful. Sadhuḥ, सन्मार्गे वर्तमान:, good-intentioned. Ṛtam, lawful or truthful. Brhat, large-hearted; benevolent.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ স কীদৃশঃ স্যাদিত্যাহ ॥
    পুনঃ সে কেমন হইবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ– হে (অগ্নে) বিদ্বান্গণ! যেমন আপনারা (ভদ্রস্য) আনন্দকারক (দক্ষস্য) শরীর ও আত্মার বল দ্বারা যুক্ত (সাধোঃ) উত্তম মার্গে প্রবর্ত্তমান (ঋতস্য) সত্যকে প্রাপ্ত পুরুষের (বৃহতঃ) বৃহৎ বিষয় বা জ্ঞানরূপ (ক্রতোঃ) বুদ্ধি দ্বারা (রথীঃ) প্রশংসিত রমন সাধন যান সকলের সহিত যুক্ত (বভূথ) হউন সেইরূপ (অধ) মঙ্গলাচরণপূর্বক (হি) নিশ্চয় করিয়া আমরাও হইব ॥ ৪৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন শাস্ত্র ও যোগ হইতে উৎপন্ন বুদ্ধিকে প্রাপ্ত হইয়া বিদ্বান্গণ বৃদ্ধি পাইয়া থাকেন, সেইরূপ অধ্যেতালোকদেরকেও বৃদ্ধি করা উচিত ॥ ৪৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অধা॒ হ্য᳖গ্নে॒ ক্রতো॑র্ভ॒দ্রস্য॒ দক্ষ॑স্য সা॒ধোঃ ।
    র॒থীর্ঋ॒তস্য॑ বৃহ॒তো ব॒ভূথ॑ ॥ ৪৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অধা হীত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিগার্ষী গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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