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यजुर्वेद अध्याय - 15

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  • यजुर्वेद - अध्याय 15/ मन्त्र 32
    ऋषिः - परमेष्ठी ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराड् बृहती स्वरः - मध्यमः
    2

    ए॒ना वो॑ऽअ॒ग्निं नम॑सो॒र्जो नपा॑त॒माहु॑वे। प्रि॒यं चेति॑ष्ठमर॒तिꣳस्व॑ध्व॒रं विश्व॑स्य दू॒तम॒मृत॑म्॥३२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ना। वः॒। अ॒ग्निम्। नम॑सा। ऊ॒र्जः। नपा॑तम्। आ। हु॒वे॒। प्रि॒यम्। चेति॑ष्ठम्। अ॒र॒तिम्। स्व॒ध्व॒रमिति॑ सुऽअ॒ध्व॒रम्। विश्व॑स्य। दू॒तम्। अ॒मृत॑म् ॥३२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एना वोऽअग्निन्नमसोर्जा नपातमा हुवे । प्रियञ्चेतिष्ठमरतिँ स्वध्वरँ विश्वस्य दूतममृतम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एना। वः। अग्निम्। नमसा। ऊर्जः। नपातम्। आ। हुवे। प्रियम्। चेतिष्ठम्। अरतिम्। स्वध्वरमिति सुऽअध्वरम्। विश्वस्य। दूतम्। अमृतम्॥३२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 15; मन्त्र » 32
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथाऽहं वो युष्मभ्यमेना नमसा नपातं प्रियं चेतिष्ठं स्वध्वरमरतिममृतं विश्वस्य दूतमग्निमूर्जश्चाहुवे तथा यूयं मह्यं जुहुत॥३२॥

    पदार्थः

    (एना) एनेन पूर्वोक्तेन। अत्राकारादेशः (वः) युष्मभ्यम् (अग्निम्) (नमसा) ग्राह्येणान्नेन (ऊर्जः) पराक्रमान् (नपातम्) अपतनशीलम् (आ) (हुवे) आह्वये (प्रियम्) प्रीत्युत्पादकम् (चेतिष्ठम्) अतिशयेन चेतयितारं संज्ञापकम् (अरतिम्) नास्ति रतिश्चैतन्यमस्ंिमस्तम् (स्वध्वरम्) सुष्ठ्वध्वरा अहिंसनीया व्यवहारा यस्मात्तम् (विश्वस्य) समग्रस्य जगतः (दूतम्) सर्वत्राभिगन्तारं विद्युतम् (अमृतम्) कारणरूपेण नित्यम्॥३२॥

    भावार्थः

    हे मनुष्याः! वयं युष्मदर्थं या अग्न्यादिविद्याः प्रकटयेम, ता यूयं स्वीकुरुत॥३२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जैसे मैं (वः) तुम्हारे लिये (एना) उस पूर्वोक्त (नमसा) ग्रहण के योग्य अन्न से (नपातम्) दृढ़ स्वभाव (प्रियम्) प्रीतिकारक (चेतिष्ठम्) अत्यन्त चेतनता करानेहारे (अरतिम्) चेतनता रहित (स्वध्वरम्) अच्छे रक्षणीय व्यवहारों से युक्त (अमृतम्) कारणरूप से नित्य (विश्वस्य) सम्पूर्ण जगत् के (दूतम्) सब ओर चलनेहारे (अग्निम्) बिजुली को और (ऊर्जः) पराक्रमों को (आहुवे) स्वीकार करूँ, वैसे तुम लोग भी मेरे लिये ग्रहण करो॥३२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो! हम लोग तुम्हारे लिये जो अग्नि आदि की विद्या प्रसिद्ध करें, उनको तुम लोग स्वीकार करो॥३२॥

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    विषय

    तेजस्वी पुरुष की स्तुति ।

    भावार्थ

    हे प्रजाजनो ! ( वः ) तुम्हारे ( एना नमसा ) इस आदर सत्कार के भाव एवं अन्न द्वारा या तुम्हारे नमन, वशीकरण के अधिकार के साथ २ ( प्रियं) तुम्हारे प्रिय ( चेतिष्टम् ) तुम सबको सूत्र चेताने वाले धर्म मार्ग को उत्तम रीति से बतलाने वाली ( अरतिम् ) अत्यन्त बुद्धि- मानू, ( स्वध्वरम् ) उत्तम यज्ञशील, अहिंसक ( विश्वस्य दूतम् ) सबके आदर योग्य सर्वत्र व्यापक ( अमृतम् ) स्वयं अविनाशी, स्थिर अथवा ( अमृतम् ) सब कार्यों के मूल आश्रयरूप ( ऊर्ज नपातम् ) बल को विनष्ट न होने देने हारे अग्रणी राजा को ( आहुवे ) मैं बुलाता हूं । आप सबके सामने प्रस्तुत करता हूं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वशिष्ठ ऋषिः । अग्निर्देवता । विराड् बृहती । मध्यमः ॥

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    विषय

    ऊर्जो नपात् व चेतिष्ठ

    पदार्थ

    १. (एना नमसा) = इस नमन के द्वारा आहुवे मैं पुकारता हूँ। नम्र हुआ मैं नतमस्तक होकर उस प्रभु की प्रार्थना करता हूँ जो २. (वः अग्निम्) = तुम सबको आगे ले चलनेवाले हैं। । ३. (ऊर्जो नपातम्) = शक्ति को नष्ट न होने देनेवाले हैं। ४. (प्रियम्) = प्रीणित करनेवाले हैं, जिनको पाकर जीव एक तृप्तिकर आनन्द का अनुभव करता है। ५. (चेतिष्ठम्) = अतिशयेन ज्ञान-सम्पन्न हैं और अपने उपासकों को ज्ञान देनेवाले हैं। ६. (अरतिम्) = [रति: उपरमः तद्रहितम् - म०] सदा उद्योगयुक्त हैं 'स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च ' जिनकी क्रिया स्वाभाविक है । ७. (स्वध्वरम्) = उत्तम यज्ञोंवाले हैं। जीवों से किये जानेवाले सब यज्ञ उस प्रभु की कृपा से ही सिद्ध होते हैं। ८. (विश्वस्य दूतम्) = सबके प्रेरक है [messenger] अथवा सबके दोषों को दूर करनेवाले तथा धर्मार्थमोक्ष को प्राप्त करानेवाले हैं। [यो दोषान् दुनोति दूरीकरोति धर्मार्थमोक्षान् प्रापयति वा द० ६।१५।९] जो अविद्या के पार ले जानेवाले हैं [ऋ० ३।१२।२ अविद्यायाः पारे गमयिता] अथवा सब दुःखों का निवारण करनेवाले हैं। [दूतः वारयते : - नि० ५1१] ९. (अमृतम्) = वे प्रभु अमृत हैं। उनको पाकर मनुष्य मृत्यु से ऊपर उठ जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- वे प्रभु हमें आगे ले चलते हैं, हमें अक्षीण शक्ति बनाते हैं, प्रीति को देनेवाले हैं, सर्वाधिक ज्ञानवाले हैं, सदा सहायता के लिए उद्यत हैं, हमारे सब यज्ञ उन्हीं की कृपा से पूर्ण होते हैं, सब कष्टों व अज्ञानों को दूर करनेवाले व अमर हैं। हम उन्हीं को पुकारें ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! आम्ही तुमच्यासाठी अग्नी इत्यादीसंबंधी जी विद्या प्रकट करतो त्याचा तुम्ही अंगीकार करा.

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    विषय

    तो अग्नी कसा आहे, पुढील मंत्रात हा विषय प्रतिपादित आहे-

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, ज्याप्रमाणे मी (एक विद्वान वैज्ञानिक) (व:) तुमच्यासाठी (एना) त्यापूर्वी सांगितलेल्या (नमसा) ग्रहणीय अन्न आदी पदार्थांद्वारे (नयातम्) दृढ स्वभावाच्या (निश्चित गुणधर्म असलेल्या) आणि (प्रियम्) सर्वांना प्रिय वाढणार्‍या अग्नीला (उपयोगात आणतो, तसे तुम्ही देखील करा) कारण हा अग्नी विद्युत रुपाने (चेतिष्ठम्) चेतना वा शक्ती देणारा आहे (अरतिम्) चैतन्यरहित असूनही (स्वध्वरम्) चांगल्या कार्यासाठी साहाय्यभूत होतो, (अमृतम्) कारणरूपाने नित्य आहे आणि (विश्वस्य) संपूर्ण जगामधे (दूतम्) दूत म्हणून जातो (विद्युत ताराद्वारे तसेच दूरवर्ती स्थानात संदेशवाहक म्हणून, दूरभाष, दूर) (अग्निम्) त्या अग्नीला आणि (ऊर्ज:) त्यापासून मिळणार्‍या शक्ती आदी कार्याला (आहुवे) उपयोगात आणतो. (म्हणून एक वैज्ञानिक ज्याप्रमाणे उपयोगात आणतो, त्याप्रमाणे तुम्ही देखील करा) ॥32॥

    भावार्थ

    भावार्थ - हे मनुष्यानो, आम्ही (वैज्ञानिक लोक) तुमच्याकरिता ज्या अग्नि आदी विद्येचे प्रकटन व ज्ञानप्राप्ती केली आहे, तुम्ही त्या ज्ञानाचा लाभ घ्या. ॥32॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Omen, just as I acknowledge for ye, through desirable foodgrains, Agni, steadfast in nature, lovely, giver of life, devoid of consciousness, united with harmless usages, eternal in nature, worlds messenger, and your enterprises, so should ye do for me.

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    Meaning

    For your sake, I invoke, explore and worship (develop) with the offering of this holy food (investment) Agni, creative and illuminative power of the world, universal energy, inviolable, dear and generous, most perceptively responsive, relentlessly active, guardian power of non-violent constructive acts of love, and immortal lord of the dynamics of existence.

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    Translation

    I invoke you with this hymn, O adorable Lord, imperishable in energy, loving, wisest, unobsrtructed, served with sacrifices, free from violence and the immortal messenger of all. (1)

    Notes

    Ürjo napātam, ऊर्जां न पातयति य: स:, one that does not allow his vigour to be wasted. Or, son of vigour. Also, grand son of waters. Compare अपां न पात् | Enā,अनेन , with this. Namasã, with the hymn of homage. Also,अन्नेन, with sac rificial food. Cetiştham, अतिशयेन चेतनायुक्तं,wisest; most alert. चेतयितारं वा, one that awakens or warns. Aratim, अलं मतिं, पर्याप्तबुद्धिं, one who has got abundant wisdom. Also, रति: उपरम: तद् रहितं, unobstructed; ever-active. Alsoरतिश्चैतन्यं अहंकारः, तेन रहितं, free from arrogance. Svadhvaram, शोभनाः अध्वराः यज्ञाः यस्य तं, for whom the sacrifices are pleasant; well-served at the sacrifices. Viśvasya dūtam amrtam, सर्वस्य जगतः दूतवत् कार्यकारिणं, one who acts as an immortal messenger for all the people.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ স কীদৃশ ইত্যাহ ॥
    পুনঃ সে কেমন হইবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যেমন আমি (বঃ) তোমাদিগের জন্য (এনা) সেই পূর্বোক্ত (নমসা) গ্রহণযোগ্য অন্ন দ্বারা (নপাতম্) দৃঢ় স্বভাব (প্রিয়ম্) প্রীতিকারক (চেতিষ্ঠম্) অত্যন্ত চেতনকারী (অরতিম্) চেতনতারহিত (স্বধ্বরম্) উত্তম রক্ষণীয় ব্যবহারগুলির দ্বারা যুক্ত (অমৃতম্) কারণরূপে নিত্য (বিশ্বস্য) সম্পূর্ণ জগতের (দূতম্) সর্ব দিকে গমনশীল (অগ্নিম্) বিদ্যুৎকে এবং (ঊর্জঃ) পরাক্রমসকলকে (আহুবে) স্বীকার করি সেইরূপ তোমরাও আমার জন্য গ্রহণ কর ॥ ৩২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! আমরা তোমাদিগের জন্য যে অগ্নি আদি বিদ্যা প্রসিদ্ধ করি তাহাদিগকে তোমরা স্বীকার কর ॥ ৩২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    এ॒না বো॑ऽঅ॒গ্নিং নম॑সো॒র্জো নপা॑ত॒মাऽऽহু॑বে ।
    প্রি॒য়ং চেতি॑ষ্ঠমর॒তিꣳস্ব॑ধ্ব॒রং বিশ্ব॑স্য দূ॒তম॒মৃত॑ম্ ॥ ৩২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    এনা ব ইত্যস্য পরমেষ্ঠী ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । বিরাড্ বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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