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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 31
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अग्निः छन्दः - पञ्चपदा ककुम्मती शाक्वरगर्भा जगती सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
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    अग्ने॑ स॒पत्ना॒नध॑रान्पादया॒स्मद्व्य॒थया॑ सजा॒तमु॒त्पिपा॑नं बृहस्पते। इन्द्रा॑ग्नी॒ मित्रा॑वरुणा॒वध॑रे पद्यन्ता॒मप्र॑तिमन्यूयमानाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । स॒ऽपत्ना॑न् । अध॑रान् । पा॒द॒य॒ । अ॒स्मत् । व्य॒थय॑ । स॒ऽजा॒तम् । उ॒त्ऽपिपा॑नम् । बृ॒ह॒स्प॒ते॒ । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । मित्रा॑वरुणौ । अध॑रे । प॒द्य॒न्ता॒म् । अप्र॑तिऽमन्यूयमाना: ॥१.३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने सपत्नानधरान्पादयास्मद्व्यथया सजातमुत्पिपानं बृहस्पते। इन्द्राग्नी मित्रावरुणावधरे पद्यन्तामप्रतिमन्यूयमानाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने । सऽपत्नान् । अधरान् । पादय । अस्मत् । व्यथय । सऽजातम् । उत्ऽपिपानम् । बृहस्पते । इन्द्राग्नी इति । मित्रावरुणौ । अधरे । पद्यन्ताम् । अप्रतिऽमन्यूयमाना: ॥१.३१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 1; मन्त्र » 31
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    हिन्दी (4)

    विषय

    जीवात्मा और परमात्मा का उपदेश।

    पदार्थ

    (अग्ने) हे प्रतापी राजन् ! (सपत्नान्) वैरियों को (अस्मत्) हम से (अधरान्) नीचे (पादय) गिरा दे, (बृहस्पते) हे बड़ी विद्याओं के स्वामी ! [राजन्] (उत्पिपानम्) टेढ़े चढ़ते हुए (सजातम्) समान जन्मवाले [भाई बन्धु] को (व्यथय) पीड़ा दे। (इन्द्राग्नी) हे सूर्य और बिजुली [के समान प्रताप और स्फूर्तिवाले !] (मित्रावरुणौ) हे प्राण और अपान ! [के समान सुखदायक और दुःखनाशक पुरुष] (अप्रतिमन्यूयमानाः) [हमारे] प्रतिकूल क्रोध न कर सकने योग्य [शत्रु लोग] (अधरे) नीचे होकर (पद्यन्ताम्) गिर जावें ॥३१॥

    भावार्थ

    विद्वान् प्रतापी राजा पक्षपात छोड़कर धर्मविरोधी दुराचारी बन्धु आदि को भी अवश्य दण्ड देकर वश में रक्खे ॥३१॥

    टिप्पणी

    ३१−(अग्ने) हे प्रतापिन् राजन् (सपत्नान्) (अधरान्) नीचान्। पामरान् (पादय) पातय (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (व्यथय) पीडय (सजातम्) समानजन्मानं बन्ध्वादिकम् (उत्पिपानम्) अ० ५।२०।७। पि गतौ यङि शानचि छान्दसं रूपम्। उत्पेपीयमानम्। कुटिलमुद्गच्छन्तम् (बृहस्पते) बृहतीनां विद्यानां स्वामिन् (इन्द्राग्नी) सूर्यविद्युतौ यथा प्रतापिन् स्फूर्तिमन् (मित्रावरुणौ) प्राणापानवत् सुखप्रद दुःखनाशक (अधरे) पामराः सन्तः (पद्यन्ताम्) अधोगच्छन्तु (अप्रतिमन्यूयमानाः) कण्ड्वादिभ्यो यक्। पा० ३।१।२७। मन्यु-यक्। अस्माकं प्रतिकूलं क्रोधं कर्तुमशक्याः ॥

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    विषय

    बृहस्पति, इन्द्राग्नी, मित्रावरुणौ

    पदार्थ

    १. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो! (सपत्नान् अधरान् पादय) = शत्रुओं को नीचे गतिवाला कीजिए, उन्हें पादाक्रान्त कर दीजिए। (सजातम्) = साथ ही उत्पन्न होनेवाले (उत्पिपानम्) = [पि गती, उत्पीयमानं कुटिलमुद्गच्छन्तम्] = कुटिल गतिवाले इस कामरूप शत्रु को हे (बृहस्पते) = ज्ञान के स्वामिन् प्रभो! अस्मत्-हमसे व्यथया-पीड़ित करके दूर कर दीजिए। २. हे इन्द्राग्री-जितेन्द्रियता व अग्रगति की भावनाओ। (मित्रावरुणौ) = स्नेह व निद्वेषता के भावो! ये शत्रु (अप्रतिमन्यूयमानाः) = हमारे प्रति क्रोध न कर सकने योग्य होते हुए-निष्फल क्रोधवाले होते हुए (अधरे पद्यन्ताम्) = नीचे गतिवाले हों-पराजित हो जाएँ।

    भावार्थ

    हममें आगे बढ़ने की भावना हो [अग्नि] ज्ञान-प्राप्ति की रुचि हो [बृहस्पति], हम जितेन्द्रिय बनें और आगे बढ़ें [इन्द्र+अग्रि] तथा स्नेह व निर्देषतावाले हों [मित्र+वरुण]। यही मार्ग है जिससे हम शत्रुओं का पराभव कर सकेंगे।

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    भाषार्थ

    (अग्ने) हे क्षात्राग्नि ! (सपत्नान्) शत्रुओं को (अस्मत्) हम से (अधरान्) नीचे (पादय) कर दे। (सजातम्) सजातीय शत्रु को (बृहस्पते) हे बड़ी सेना के पति ! (उत्पिपानम्) जो कि अतिलोभी या उच्छोषणकारी है उसे (व्यथय) व्यथित कर, पीड़ित कर। (इन्द्राग्नी) हे सम्राट् तथा क्षात्राग्नि (मित्रावरुणौ) हे मित्र तथा वरुण ! (अप्रतिमन्यूयमानाः) शत्रु हमारे प्रति मन्यु न करते हुए (अधरे पद्यन्ताम्) हम से नीचे हो जायें।

    टिप्पणी

    [बृहस्पते = यथा "बृहस्पते परि दीया रथेन" (यजु० १७/३६), हे बृहस्पति ! तु रथ-युद्ध द्वारा शत्रु का क्षय कर। दीय= दीङ् क्षये। इसी इसी प्रकार देखो (यजु० १७/४०), इस मन्त्र में यह कहा है कि बृहस्पति सेना के दक्षिण में हो कर सेना के साथ चले। उत्पिपानम् = उत्+पा (पीना) + कानच् =अति खाउ-पीऊ, अर्थात् लोभी। अथवा "अतिकर" आदि द्वारा प्रजा का रक्तपान करने वाला। अथवा "उत् + पै (शोषणे) + कानच्" = उच्छोषणकारी। इन्द्रः= इन्द्रश्च सम्राट" (यजु० ८/३७)। मित्रावरुणौ= देखो (मन्त्र २०)]।

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    विषय

    ‘रोहित’ रूप से परमात्मा और राजा का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) अग्ने ! ज्ञानमय प्रभो ! तू (सपत्नान् अधरान् पादय) हमारे शत्रुओं को नीचे गिरादे। और (अस्मत् सजातम्) हमारे समान बलवाले (उत्-पिपानम्) और हमसे ऊंचे होते हुए को हे (बृहस्पते) महान् लोकों के स्वामिन् ! बृहस्पते ! राजन् ! (व्यथय) पीड़ित कर। हे (इन्दाग्नी) इन्द्र और हे अग्ने ! (मित्रावरुणौ) हे मित्र और वरुण वे शत्रु लोग (अ-प्रति-मन्यूयमानाः) हमारे प्रति क्रोध रहित या निष्फल क्रोध वाले होकर (अधरे पद्यन्ताम्) नीचे गिरें।

    टिप्पणी

    ‘उत्पिदानं’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। रोहित आदित्यो देवता। अध्यात्मं सूक्तम्। ३ मरुतः, २८, ३१ अग्निः, ३१ बहुदेवता। ३-५, ९, १२ जगत्यः, १५ अतिजागतगर्भा जगती, ८ भुरिक्, १६, १७ पञ्चपदा ककुम्मती जगती, १३ अति शाक्वरगर्भातिजगती, १४ त्रिपदा पुरः परशाक्वरा विपरीतपादलक्ष्म्या पंक्तिः, १८, १९ ककुम्मत्यतिजगत्यौ, १८ पर शाक्वरा भुरिक्, १९ परातिजगती, २१ आर्षी निचृद् गायत्री, २२, २३, २७ प्रकृता विराट परोष्णिक्, २८-३०, ५५ ककुम्मती बृहतीगर्भा, ५७ ककुम्मती, ३१ पञ्चपदा ककुम्मती शाक्वरगर्भा जगती, ३५ उपरिष्टाद् बृहती, ३६ निचृन्महा बृहती, ३७ परशाक्वरा विराड् अतिजगती, ४२ विराड् जगती, ४३ विराड् महाबृहती, ४४ परोष्णिक्, ५९, ६० गायत्र्यौ, १, २, ६, ७, १०, ११, २०, २४, २५, ३२-३४, ३८-४१, ४२-५४, ५६, ५८ त्रिष्टुभः। षष्ट्यचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    O Agni, ruling and fighting force of fire, throw down and crush our destructive adversaries. O Brhaspati, lord of divine speech and wisdom, bring to naught the rebellious rivals even in our own ranks. O Indragni, ruling power and leading light of humanity, O Mitra and Varuna, powers of love and judgement, let our enemies fall down, their ambition, anger and enmity turned futile.

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    Subject

    To the Sun

    Translation

    O adorable Lord, make our rivals fall down before us. O Lord supreme, torment out kinsmen rebelling against us. O Lord resplendent and adorable, O Lord friendly and venerable, may they fall down incapable of even expressing their anger.

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    Translation

    Let fire cast down our foes under our feet. Let Brihaspati, the master of Vedic speech put into trouble our enemies related with us. O king and chief of army, O friend and statesman ! Let them being powerless to show aner fall low.

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    Translation

    O King, cast down our foes beneath our feet, O King, the master of various sciences, oppress our rebel kinsman. O King, mighty and active like the Sun and lightning, O King, comfort-giving and pain alleviating like Prana and Apana, low let them fall, powerless to show their anger !

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३१−(अग्ने) हे प्रतापिन् राजन् (सपत्नान्) (अधरान्) नीचान्। पामरान् (पादय) पातय (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (व्यथय) पीडय (सजातम्) समानजन्मानं बन्ध्वादिकम् (उत्पिपानम्) अ० ५।२०।७। पि गतौ यङि शानचि छान्दसं रूपम्। उत्पेपीयमानम्। कुटिलमुद्गच्छन्तम् (बृहस्पते) बृहतीनां विद्यानां स्वामिन् (इन्द्राग्नी) सूर्यविद्युतौ यथा प्रतापिन् स्फूर्तिमन् (मित्रावरुणौ) प्राणापानवत् सुखप्रद दुःखनाशक (अधरे) पामराः सन्तः (पद्यन्ताम्) अधोगच्छन्तु (अप्रतिमन्यूयमानाः) कण्ड्वादिभ्यो यक्। पा० ३।१।२७। मन्यु-यक्। अस्माकं प्रतिकूलं क्रोधं कर्तुमशक्याः ॥

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