अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 17
ऋषिः - अथर्वा
देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - विराट् सूक्त
1
षडा॑हुः शी॒तान्षडु॑ मा॒स उ॒ष्णानृ॒तुं नो॒ ब्रूत॑ यत॒मोऽति॑रिक्तः। स॒प्त सु॑प॒र्णाः क॒वयो॒ नि षे॑दुः स॒प्त च्छन्दां॒स्यनु॑ स॒प्त दी॒क्षाः ॥
स्वर सहित पद पाठषट् । आ॒हु॒: । शी॒तान् । षट् । ऊं॒ इति॑ । मा॒स: । उ॒ष्णान् । ऋ॒तुम् । न॒: । ब्रू॒त॒ । य॒त॒म: । अति॑ऽरिक्त: । स॒प्त । सु॒ऽप॒र्णा: । क॒वय॑: । नि । से॒दु॒: । स॒प्त । छन्दां॑सि । अनु॑ । स॒प्त । दी॒क्षा: ॥९.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
षडाहुः शीतान्षडु मास उष्णानृतुं नो ब्रूत यतमोऽतिरिक्तः। सप्त सुपर्णाः कवयो नि षेदुः सप्त च्छन्दांस्यनु सप्त दीक्षाः ॥
स्वर रहित पद पाठषट् । आहु: । शीतान् । षट् । ऊं इति । मास: । उष्णान् । ऋतुम् । न: । ब्रूत । यतम: । अतिऽरिक्त: । सप्त । सुऽपर्णा: । कवय: । नि । सेदु: । सप्त । छन्दांसि । अनु । सप्त । दीक्षा: ॥९.१७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पदार्थ
वे [ईश्वरनियम] (षट्) छह (शीतान्) शीत और (षट् उ) छह ही (उष्णान्) उष्ण (मासः) महीने (आहुः) बताते हैं, (ऋतुम्) [वह] ऋतु (नः) हमें (ब्रूत) बताओ (यतमः) जो कोई (अतिरिक्तः) भिन्न है। (सप्त) सात [वा सात वर्णवाली] (सुपर्णाः) बड़ी पालनेवाली (कवयः) गतिशील इन्द्रियाँ [वा सूर्य की किरणें] (सप्त) सात (छन्दांसि अनु) ढकनों [मस्तक के छिद्रों] के साथ (सप्त) सात (दीक्षाः) संस्कारों में (नि षेदुः) बैठी हैं ॥१७॥
भावार्थ
(कः स॒प्त खानि॒ वि त॑तर्द शी॒र्षणि॒ कर्णा॑वि॒मौ नासि॒॑के॒ चक्ष॑णी॒ मुख॑म्। येषां॑ पुरु॒त्रा विज॒यस्य॑ म॒ह्मनि॒ चतु॒ष्पादो द्वि॒पदो॒ यन्ति॒ याम॑म् ॥) अ० १०।२।६ ॥ “प्रजापति ने मस्तक में सात गोलक खोदे, यह दोनों कान, दो नथने, दो आँखें, और एक मुख। जिनके विजय की महिमा में चौपाये और दोपाये जीव अनेक प्रकार से मार्ग चलते हैं ॥” मस्तक में सात गोलक होने में यह अथर्ववेद १०।२।६ का प्रमाण मन्त्र है, इसका प्रमाण अ० २।१२।७ में आ चुका है। विराट्, ईश्वरशक्ति से वर्ष में द्वन्द्वसूचक शीत और उष्ण दो ऋतु हैं, अन्य ऋतुएँ इनके अन्तर्गत हैं। यह ऋतुएँ सूर्य की किरणों के तिरछे और सीधे पड़ने से होती हैं। किरणों में, शुल्क, नील, पीत, रक्त, हरित, कपिश और चित्र यह सात वर्ण हैं। इन किरणों का प्रभाव मस्तक के सात छिद्रों दो-दो कानों, नथनों, आँखों और एक मुख पर पड़ता है। उस से सात संस्कार, दो-दो प्रकार के श्रवण, गन्ध, दर्शन और एक कथन शक्ति उत्पन्न होकर समस्त शरीर का पालन करते हैं ॥१७॥
टिप्पणी
१७−(षट्) (आहुः) कथयन्ति परमात्मनियमाः (शीतान्) अ० १।२५।४। शीतलान् (षट्) (उ) एव (मासः) माङ् माने-असुन्। मासान् (उष्णान्) शीतभिन्नान् (ऋतुम्) वसन्तादिकम् (नः) अस्मभ्यम् (ब्रूत) कथयत (यतमः) यः कश्चित् (अतिरिक्तः) भिन्नः (सप्त) शुक्लनीलपीतादिसप्तवर्णयुक्ताः (सुपर्णाः) अ० १।२४।१। सुपर्णाः सुपतना आदित्यरश्मयः-निरु० ३।१२। आदित्यरश्मयः (कवयः) “कवतेः” धातोः गत्यर्थस्य कविः, कवति गच्छत्यसौ नित्यम्-इति दुर्गाचार्यो निरुक्तटीकायाम्, १२।१३। कवीनां कवीयमानानामादित्यरश्मीनाम्, कवीनां कवीयमानानामिन्द्रियाणाम्-निरु० १४।१३। गतिशीलानीन्द्रियाणि। गतिशीला आदित्यरश्मयः (निषेदुः) निषीदन्ति (सप्त) (छन्दांसि) अ० ४।३४।१। छदि आच्छादने-असुन्। कः सप्त खानि... अ० १०।२।६। इति श्रवणात्। आवरकाणि कर्णादीनि शीर्षण्यानि छिद्राणि (अनु) अनुसृत्य (सप्त) (दीक्षाः) अ० ८।५।१५। संस्कारान् ॥
विषय
शातान+उष्णान
पदार्थ
१. प्रभु ने संसार में इस काल-प्रवाह में जो ऋतुएँ बनाई हैं, उनमें (षट्) = छह (शीतान् मास: आहुः) = शीत मास कहाते हैं, (उ) = और (षट् उष्णान्) [आहुः] = छह गरमी के मास हैं। (ऋतुं नो बूत) = उस ऋतु को हमें बतलाओ तो सही (यतमः अतिरिक्त:) = जो इनसे अतिरिक्त है। वास्तव में मूल तत्व दो ही है 'सरदी और गरमी'। मानव स्वभाव में ये ही आपः, ज्योतिः' कहलाते हैं। इन्हीं को यहाँ [१.१४] 'अग्नीषोमौ' शब्द से कहा है। मनुष्य इन दोनों तत्त्वों को धारण करता है तभी इनके समन्वय में उसका जीवन पूर्ण बनता है। २. इस पूर्ण-से जीवन में (सप्त) = सात (सुपर्णाः) = [कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्]-'दो कान, दो नासा-छिद्र, दो आँखें व मुख' रूप सात सुपर्ण-उत्तमता से पालन करनेवाली इन्द्रियाँ कवयः [कुवन्ति सर्वाः विद्याः] सब विद्याओं का ज्ञान देती हुई निषेदुः-शिरोदेश में निषण्ण होती हैं। [कः सप्त खानि विततर्द शीर्षणि]-इन (सप्त छन्दांसि अनु) = पापों से बचानेवाली [छादयन्ति] इन्द्रियों के अनुसार (सप्त दीक्षा:) = हम जीवनों में सात इन्द्रियों से सात व्रत ग्रहण करते हैं। इसप्रकार हम पुण्यकर्मों को ही करनेवाले बनते हैं।
भावार्थ
हम जीवन में अग्नि व सोमतत्व का समन्वय करें [गरमी सरदी]। तब हमारी सातों ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान देती हुई हमें पापों से बचाएँगी और जीवन को व्रतमय बनाएँगी।
भाषार्थ
(षट् शीतान्) ६ शीत (मासः) मास हैं, (उ) और (षट् उष्णान्) ६ उष्ण मास हैं, - यह (कवयः) मेधावी लोग (आहुः) कहते हैं, (यतमः) जो (अतिरिक्तः) इन से अतिरिक्त (ऋतुम्) ऋतु है उसे (नः ब्रूत) हमें कहिये। (कवयः) गतिशील (सप्त) ७ (सुपर्णा) उड़ने वाली रश्मियां (निषेदुः) सौरमण्डल में स्थित हैं, (सप्त छन्दांसि अनु) ७ छन्दों के अनुसार (सप्त दीक्षाः) ७ दीक्षाएं हैं।
टिप्पणी
["कवयः" के दो अभिप्राय हैं, (१) "कविः मेधाविनाम" (निघं० ३।१५); (२) "कवते गतिकर्मा" (निघं० २।१४)। सुवर्णाः = सुपतनाः आदित्यरश्मयः (निरुक्त ३।२।१२)। “पतन" द्वारा आदित्यरश्मियों को पक्षी कहा है। ये रश्मियां मानो दूरस्थ, आदित्य से, शीघ्र उड़कर, पृथिवी पर आ पहुंचती हैं। ये सात हैं। इन सातों का मिश्रण है आदित्य की "शुक्लरश्मि"। वेदों के मुख्य छन्द ७ हैं, गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप्, जगती - इन सात छन्दों द्वारा सात दीक्षाएं अभिप्रेत हैं। इन ७ छन्दों द्वारा ७ प्रकार के व्रतग्रहण करने चाहिये। ७ व्रतग्रहण और तदनुसार जीवनचर्या करनी - ये सात दीक्षाएं हैं। “दीक्ष मौण्डेज्योपनयननियमव्रतादेशेषु" (भ्वादिगण)। मन्त्र में "अतिरिक्तः" पद द्वारा यह पूछा गया है कि शीत-उष्ण १२ मासों से अतिरिक्त यदि कोई ऋतु है तो उसे कहो, क्योंकि १२ मास ही ६ ऋतुओं में विभक्त हैं। उत्तर के अभाव में मन्त्र (१८) में स्वयं कह दिया कि "ऋतवो ह सप्त" कि निश्चय से ७ ऋतुएं हैं]।
इंग्लिश (4)
Subject
Virat Brahma
Meaning
Six are cold months, six are hot months, so say the wise. Say which season is left out. Seven are the rays of light which radiate and abide in space. Seven are the poetic forms in which Vedic knowledge is stated: Gayatri, Ushnik, Anushtup, Brhati, Pankti, Trishtup, Jagati. And seven are the karmic commitments for the performance of yajna.
Translation
Six, they say, are cold, and six hot months. Tell us, which of the seasons is surplus. Seven sages with excellent pages (leave or parnah) sit together. Seven are the metres. Accordingly, seven are the consecrations (diksah).
Translation
The learned persons call six months as cold and six as hot ones. Tell us O wisemen! as whatever season is redundant. The seven sharp rays spread in the space and there seven metres in the Vedic speech and in conformity to them there are seven fixed performances of yajna.
Translation
They call the cold months six, and six the hot ones, which tell us, is there a season besides these? Seven sharp-witted sages are seated in the head. Seven breaths are yoked with seven forces of knowledge.
Footnote
Six entities: Eye, Ear, Tongue, Nose, Skin, Mind. Six breaths: Prana, Apana, Vyana, Udana, Samana, Naga. There are six cold and six hot months. All seasons are included in these months. Six sages: Two eyes, two ears, two nostrils and mouth.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१७−(षट्) (आहुः) कथयन्ति परमात्मनियमाः (शीतान्) अ० १।२५।४। शीतलान् (षट्) (उ) एव (मासः) माङ् माने-असुन्। मासान् (उष्णान्) शीतभिन्नान् (ऋतुम्) वसन्तादिकम् (नः) अस्मभ्यम् (ब्रूत) कथयत (यतमः) यः कश्चित् (अतिरिक्तः) भिन्नः (सप्त) शुक्लनीलपीतादिसप्तवर्णयुक्ताः (सुपर्णाः) अ० १।२४।१। सुपर्णाः सुपतना आदित्यरश्मयः-निरु० ३।१२। आदित्यरश्मयः (कवयः) “कवतेः” धातोः गत्यर्थस्य कविः, कवति गच्छत्यसौ नित्यम्-इति दुर्गाचार्यो निरुक्तटीकायाम्, १२।१३। कवीनां कवीयमानानामादित्यरश्मीनाम्, कवीनां कवीयमानानामिन्द्रियाणाम्-निरु० १४।१३। गतिशीलानीन्द्रियाणि। गतिशीला आदित्यरश्मयः (निषेदुः) निषीदन्ति (सप्त) (छन्दांसि) अ० ४।३४।१। छदि आच्छादने-असुन्। कः सप्त खानि... अ० १०।२।६। इति श्रवणात्। आवरकाणि कर्णादीनि शीर्षण्यानि छिद्राणि (अनु) अनुसृत्य (सप्त) (दीक्षाः) अ० ८।५।१५। संस्कारान् ॥
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