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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 18
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त
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    स॒प्त होमाः॑ स॒मिधो॑ ह स॒प्त मधू॑नि स॒प्तर्तवो॑ ह स॒प्त। स॒प्ताज्या॑नि॒ परि॑ भू॒तमा॑य॒न्ताः स॑प्तगृ॒ध्रा इति॑ शुश्रुमा व॒यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प्त । होमा॑: । स॒म्ऽइध॑: । ह॒ । स॒प्त । मधू॑नि । स॒प्त । ऋ॒तव॑: । ह॒ । स॒प्त । स॒प्त । आज्या॑नि । परि॑ । भू॒तम् । आ॒य॒न् । ता: । स॒प्त॒ऽगृ॒ध्रा: । इति॑ । शु॒श्रु॒म॒ । व॒यम् ॥९.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सप्त होमाः समिधो ह सप्त मधूनि सप्तर्तवो ह सप्त। सप्ताज्यानि परि भूतमायन्ताः सप्तगृध्रा इति शुश्रुमा वयम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सप्त । होमा: । सम्ऽइध: । ह । सप्त । मधूनि । सप्त । ऋतव: । ह । सप्त । सप्त । आज्यानि । परि । भूतम् । आयन् । ता: । सप्तऽगृध्रा: । इति । शुश्रुम । वयम् ॥९.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 18
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (सप्त) सात (होमाः) [विषयों की] ग्रहण करनेवाली [इन्द्रियाँ, त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा, नाक, मन और बुद्धि] (सप्त) सात (ह) ही (समिधः) विषय प्रकाश करनेवाली [इन्द्रियों की सूक्ष्म शक्तियाँ], (सप्त) सात (मधूनि) ज्ञान [विषय] और (सप्त) सात (ह) ही (ऋतवः) गति [प्रवृत्ति] हैं। [वे ही] (सप्त) सात (आज्यानि) विषयों के प्रकाशसाधन (भूतम् परि) प्रत्येक प्राणी के साथ (ताः) उन [प्रसिद्ध] (सप्तगृध्राः) सात इन्द्रियों से उत्पन्न हुई वासनाओं को (आयन्) प्राप्त हुए हैं, (इति) यह (वयम्) हम ने (शुश्रुम्) सुना है ॥१८॥

    भावार्थ

    विद्वानों ने वेदादि शास्त्रों से निश्चय किया है कि सात इन्द्रियों और उनकी सूक्ष्म शक्तियों द्वारा विषय का ज्ञान प्राप्त करके प्राणी कामों में प्रवृत्ति करता है ॥१८॥

    टिप्पणी

    १८−(सप्त) (होमाः) हु दानादानादनेषु-मन्। विषयाणां ग्राहिकास्त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धयः (समिधः) ज्ञानादिप्रकाशिकाः समिद्रूपा इन्द्रियशक्तयः (ह) एव (सप्त) (मधूनि) ज्ञाने-उ। ज्ञानानि। इन्द्रियविषयाः सप्त (ऋतवः) अर्त्तेश्च तुः। उ० १।७२। ऋ गतौ-तु। गतयः प्रवृत्तयः (सप्त) (आज्यानि) अ० ५।८।१। विषयाणां व्यक्तीकराणि साधनानि (परि) परीत्य। प्राप्य (भूतम्) जीवम् (आयन्) प्राप्नुवन् (ताः) प्रसिद्धाः (सप्तगृध्राः) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। गृधु अभिकाङ्क्षायाम्-क्रन्। गृध्राणीन्द्रियाणि गृध्यतेर्ज्ञानकर्मणः-निरु० १४।१३। सप्त गृध्राणीन्द्रियाणि यासां ता वासनाः (इति) एवम् (शुश्रुम) श्रुतवन्तः (वयम्) ज्ञानिनः ॥

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    विषय

    सप्त आज्यानि व सप्त गृध्रा:

    पदार्थ

    १. ('सप्त ऋषयः प्रतिहिताः शरीरे') = शरीर में सात ऋषि रक्खे गये हैं। इन ऋषियों के द्वारा इस जीवन में (सप्त होमा:) = सात होम सदा चलते हैं ('येन यज्ञस्तायते सप्तहोता')। इन यज्ञों से उत्पन्न होनेवाली (समिधः) = दीसियों भी (ह) = निश्चय से (सप्त) = सात हैं। इन दीसियों के साथ (मधूनि सप्त) = सात माधुर्यों की जीवन में उत्पत्ति होती है और (ऋतवः ह सम) = सात ही नियमित गतियाँ [ऋगतौ] होती हैं। २. वस्तुतः (सप्त आग्यानि) = सात जीवन को अलंकृत व दीप्त बनाने के साधन (भूतं परि आयन्) = प्राणि को प्राप्त हुए हैं। (ता:) = वे ही (सम्म गधा:) = सात गिद्ध हो जाते हैं, (इति वयं शभ्रमः) = ऐसा हमने सुना है। प्रभु ने दो कान, दो नासिका-छिद्र, दो आँखें व मुखरूप सात ऋषि हमारे शरीर में रक्खे हैं। ये सात ऋषि हैं। ये ज्ञान का ग्रहण करते हुए जीवन को अलंकृत कर देते हैं, परन्तु जब हम विषयों से आकृष्ट होकर विषयों की ओर चले जाते हैं तब ये 'सात गृध्र' हो जाते हैं। जीवन को अलंकृत करने के स्थान में विषय-पङ्क से उसे मलिन कर डालते हैं।

    भावार्थ

    प्रभु की व्यवस्था से कानों, नासिका छिद्रों, आँखों व मन' द्वारा जीवन में सात होम चलते हैं। इनके द्वारा जीवन 'दीस, मधुर व नियमित गति' वाला बनता है। ये सात जीवन को दीस करने के साधन विषयाकृष्ट होकर 'सप्त गृध्र' बन जाते हैं-विषय-तृष्णा से बद्ध होकर ये जीवन को मलिन कर देते हैं।

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    भाषार्थ

    (होमाः सप्त) होम ७ हैं, (ह) निश्चय से (समिधः सप्त) समिधाएं ७ हैं, (मधूनि सप्त) मधु ७ हैं, (ह) निश्चय से (ऋतवः सप्त) ऋतुएं ७ हैं। (सप्त आज्यानि) सात आज्य, (भूतम्) सत्तावाले सूर्य के (परि) सब ओर (आयन्) गति कर रहे हैं, - (ताः) वे (सप्तगृध्राः) ७ गृध्र हैं - (इति) यह (वयम्) हम ने (शुश्रुमा) सुना है।

    टिप्पणी

    [सप्तगृध्राः= (१) सप्तसुपर्णाः, (२) सप्तदीक्षाः, (मन्त्र १७); (३) सप्तहोमाः, (४) सप्त समिधः; (५) सप्तमधूनि; (६) सप्त ऋतवः; (७) सप्त आज्यानि। इन्हें गृध्राः कहा है। गृधु अभिकांक्षायाम्। मनुष्यों द्वारा इन ७ सप्तकों की अभिकांक्षा होती है, अभिलाषा होती है, अतः मन्त्र में ७ गृध्र हैं। सप्तहोमाः = अग्निहोत्रः, दर्श, पौर्णमास, वैश्वदेव, वरुणप्रघास, साकमेध शुनासीरीय, ये ७ हविर्यज्ञ हैं होम हैं। सप्तसमिधः= अग्नि के सम्बन्ध में कहा है कि "ऊर्ध्वा अस्य समिधो भवन्त्यूर्ध्वा शुक्राः शोचींष्यग्ने: " (यजु० २७।११) अर्थात् अग्नि को प्रदीप्त करने वाली समिधाएं ऊर्ध्वदिशा में हैं। ये सम्भवतः सूर्य की सप्त रश्मियां है। इन ७ रश्मियों द्वारा अग्नि की प्रदीप्ति होती है, क्योंकि काष्ठमयी समिधाएं भी सूर्य की ७ रश्मियों द्वारा ही प्राप्त होती हैं। इस लिये काष्ठमयी समिधाओं को भी समिधा कहते हैं। यह लाक्षणिक प्रयोग होता है। कारणनिष्ठ सप्त संख्या का प्रयोग कार्यरूपी समिधाओं के लिये भी होता है। अथवा “त्रिः सप्त समिधः कृताः"। (यजु० ३१।१५) में कथित २१ समिधाओं में से किन्हीं ७ समिधाओं का निर्देश अभिप्रेत होगा। सप्तमधूनि - "यो वै कशायाः सप्त मधूनि वेद मधुमान्भवति। ब्राह्मणश्च राजा च धेनुश्चानड्वांश्च व्रीहिश्च यवश्च मधु सप्तमम् ॥" (अथर्व० ९।१।२२) इस मन्त्र में सप्तमधूनि का वर्णन हुआ है। सप्त ऋतवः= मन्त्र १५ में पञ्च ऋतुओं का वर्णन हुआ है हेमन्त और शिशिर को एक मानकर। मन्त्र (१७) में ६ ऋतुएं अभिप्रेत हैं, हेमन्त और शिशिर को पृथक्-पृथक् मानकर। मन्त्र (१८) में सात ऋतुएं कही हैं। सातवीं ऋतु "त्रयोदश मास" रूप है, इसे मलमास भी कहते हैं। यथा "अहोरात्रैर्विमितं त्रिशदङ्ग त्रयोदशं मासं यो निर्मिमीते" (अथर्व० १३।३।८)। इस त्रयोदश मास को अधिकमास भी कहते हैं। इसकी व्याख्या के लिये देखो, (अथर्व १३/३/८)]। सप्त आज्यानि= “आज्य का अभिप्राय है "अभिव्यक्त पदार्थ"। अञ्जू व्यक्तिम्रक्षणकान्तिगतिषु (रुधादिः)। “आज्य" पद में व्यक्ति अर्थात् अभिव्यक्ति अर्थ प्रतीत होता है। “भूत" है महासत्ता वाला सूर्य। भू सत्तायाम् + क्तः। सात अभिव्यक्त पदार्थ हैं, बुध, शुक्र, पृथिवी, मंगल, गुरु (बृहस्पति), शनैश्चर तथा चन्द्रमा। ये ७, भूतनामक सूर्य की परिक्रमा कर रहे हैं, "परिभूतमायन्”। ये सब हैं ७ गृध्राः। "सप्त समिधः, और सप्त सुपर्णाः" आदित्य रश्मियां हैं। जिन के स्वरूपों मे भेद “ऊर्ध्वाः" और "सुपतनाः" द्वारा दर्शाया है। कर्मभेद से आदित्य की सप्तरश्मियों को द्विविध माना है। सप्तछन्दांसि अनु सप्त दीक्षाः = इन दो सप्तकों में "अनु" द्वारा पौर्वापर्य दर्शाकर कारणभाव और कार्यभाव सूचित कर और दोनों में अभेद१ मान कर, और फलभूत सप्त दीक्षाओं को मुख्य मान कर “सप्तदीक्षाः" पदों द्वारा कथित किया है, और सप्त छन्दांसि का पृथक् कथन नहीं किया। इस प्रकार ये सप्तक सप्तगृधाः हैं, सात अभिकांक्षणीय हैं। गृध्राः= गृधु अभिकांक्षायाम् (दिवादिः)।] [१. यथा “अन्तं वै प्राणिनां प्राणः" = में अन्न (कारण) और प्राण (कार्य) में अभेद कथित है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat Brahma

    Meaning

    Seven are the homas, fire yajnas: Agnihotra, Darsha, Paurnamasa, Vaishvadeva, Varunapraghasa, Sakamedha, Shunasiriya. Seven are the fuel sticks, i.e., seven flames (Mundakopanishad 1, 4, and Yajurveda 31, 15). Seven are the honey sweets (Atharva, 9, 1, 22). Seven are the seasons (Sharad, Shishira, Hemanta, Vasanta, Grishma, Varsha and seventh is the intercalary, thirteenth, month of the lunar calendar (Atharva 13, 3, 8). Seven are the Ajya materials of life as a yajna, i.e., delicious gifts of heaven and earth for the joy of life (Shatapatha 2, 4, 3, 10) such as the lustre of life, thunderous strength, the beauty and flavour of living, desire for love and fulfilment, truth, freshness and life itself as yajna, which are everybody’s gift and privilege. And these privileges clamour for righteous fulfilment, thus say the wise as we have heard.

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    Translation

    Seven are the offerings. Verily, seven are the fuel-woods. Honeys are seven and seven the seasons. Seven are the melted butters, that have come to this world. These are the seven (attractions) (grdhra), thus we have heard.

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    Translation

    Seven are the Homas, seven are the fuels of Yajnas: seven are ‘the articles used as oblations and seven are the seasons including the period of intercalary month. There are seven organs including five cognitive organs, intellect and mind which are at the disposal of soul and we the desciples hear of them as the seven vultures or the seven organs hunting the external world.

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    Translation

    We, the learned, have heard, the soul is equipped with seven rough senses which excite passions, seven subtle senses which imbibe knowledge,seven kinds of knowledge, seven tendencies, seven sources of lust, and sevendesires emanating from the organs.

    Footnote

    Seven rough senses Skin, Eye, Ear, Nose, Tongue, Mind, Intellect. Seven subtle senses: Sound, Touch, Sight, Taste, smell, Thought, Meditation. Seven kinds of knowledge: Knowledge of God, Soul, Matter, Military science, Medicine, Music, Economics. Seven tendencies: Lust, Anger, Avarice, Infatuation, Pride, Hatred, Self-praise. Seven desires: Fame, Wealth, Progeny, Happiness, Worldly position, Health, Salvation.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १८−(सप्त) (होमाः) हु दानादानादनेषु-मन्। विषयाणां ग्राहिकास्त्वक्चक्षुःश्रवणरसनाघ्राणमनोबुद्धयः (समिधः) ज्ञानादिप्रकाशिकाः समिद्रूपा इन्द्रियशक्तयः (ह) एव (सप्त) (मधूनि) ज्ञाने-उ। ज्ञानानि। इन्द्रियविषयाः सप्त (ऋतवः) अर्त्तेश्च तुः। उ० १।७२। ऋ गतौ-तु। गतयः प्रवृत्तयः (सप्त) (आज्यानि) अ० ५।८।१। विषयाणां व्यक्तीकराणि साधनानि (परि) परीत्य। प्राप्य (भूतम्) जीवम् (आयन्) प्राप्नुवन् (ताः) प्रसिद्धाः (सप्तगृध्राः) सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्। उ० २।२४। गृधु अभिकाङ्क्षायाम्-क्रन्। गृध्राणीन्द्रियाणि गृध्यतेर्ज्ञानकर्मणः-निरु० १४।१३। सप्त गृध्राणीन्द्रियाणि यासां ता वासनाः (इति) एवम् (शुश्रुम) श्रुतवन्तः (वयम्) ज्ञानिनः ॥

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