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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - आस्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - विराट् सूक्त
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    यानि॒ त्रीणि॑ बृ॒हन्ति॒ येषां॑ चतु॒र्थं वि॑यु॒नक्ति॒ वाच॑म्। ब्र॒ह्मैन॑द्विद्या॒त्तप॑सा विप॒श्चिद्यस्मि॒न्नेकं॑ यु॒ज्यते॒ यस्मि॒न्नेक॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यानि॑ । त्रीणि॑ । बृ॒हन्ति॑ । येषा॑म् । च॒तु॒र्थम् । वि॒ऽयु॒नक्ति॑ । वाच॑म् । ब्र॒ह्मा । ए॒न॒त् । वि॒द्या॒त् । तप॑सा । वि॒प॒:ऽचित् । यस्मि॑न् । एक॑म् । यु॒ज्यते॑ । यस्मि॑न् । एक॑म् ॥९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यानि त्रीणि बृहन्ति येषां चतुर्थं वियुनक्ति वाचम्। ब्रह्मैनद्विद्यात्तपसा विपश्चिद्यस्मिन्नेकं युज्यते यस्मिन्नेकम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यानि । त्रीणि । बृहन्ति । येषाम् । चतुर्थम् । विऽयुनक्ति । वाचम् । ब्रह्मा । एनत् । विद्यात् । तपसा । विप:ऽचित् । यस्मिन् । एकम् । युज्यते । यस्मिन् । एकम् ॥९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (यानि) जो (त्रीणि) तीन [सत्त्व, रज और तम] (बृहन्ति) बड़े-बड़े हैं, (येषाम्) जिन में (चतुर्थम्) चौथा [ब्रह्म] (वाचम्) वाणी (वियुनक्ति) विलगाता है, (विपश्चित्) बुद्धिमान् (ब्रह्मा) ब्रह्मा [वेदवेत्ता ब्राह्मण] (एनत्) इस [ब्रह्म] को (तपसा) तप से (विद्यात्) जाने, (यस्मिन्) जिस [तप] में (एकम्) एक [ब्रह्म] (यस्मिन्) जिस [तप] में (एकम्) एक [ब्रह्म] (युज्यते) ध्यान किया जाता है ॥३॥

    भावार्थ

    जिस परमात्मा ने तीनों गुणों द्वारा सृष्टि रची है और जिसने वेद द्वारा सब उपदेश किया है, उस परमात्मा का ज्ञान अनन्यध्यायी योगी को ही तप द्वारा होता है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(यानि) (त्रीणि) सत्त्वरजस्तमांसि (बृहन्ति) प्रवृद्धानि (येषाम्) त्रयाणां मध्ये (चतुर्थम्) तुरीयं शुद्धं ब्रह्म (वियुनक्ति) वियोजयति। प्रकटयति (वाचम्) वाणीम् (ब्रह्मा) अ० २।७। वेदवेत्ता विप्रः। योगिजनः (एनत्) निर्दिष्टं ब्रह्म (विद्यात्) जानीयात् (तपसा) ब्रह्मचर्यादिव्रतेन (विपश्चित्) अ० ६।५२।३। मेधावी-निघ–० ३।१५। (यस्मिन्) तपसि (एकम्) ब्रह्म (युज्यते) समाधीयते (यस्मिन्) (एकम्) द्विर्वचनं वीप्सायाम् ॥

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    विषय

    त्रिगुणा प्रकृति के साथ चौथा प्रभु

    पदार्थ

    १. (यानि त्रीणि) = जो ये प्रकृति के तीन 'सत्त्व, रज व तम' रूप गुण है ये (बृहन्ति) = [हि वृद्धौ] इस चराचर संसार के रूप में बढ़ते हैं। (येषां चतुर्थम्) = जिनका चौथा-इन तीनों गुणों से बनी प्रकृति को धारण करनेवाला चतुर्थ प्रभु (वाचम् वियुनक्ति) = वेदवाणी को जीवों के साथ जोड़ता है। वे प्रभु ही संसार का निर्माण करके जीवों के लिए ज्ञान देते हैं। २. (विपश्चित) = ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि (तपसा) = तप के द्वारा (एनत् ब्रह्म विद्यात्) = इस ब्रह्म को जाने, (यस्मिन्) = जिस ब्रह्म में एक (युज्यते) = 'एक' इस संख्या का प्रयोग होता है, (यस्मिन् एकम्) = जिसमें 'एक' ही संख्या का प्रयोग होता है [स एष एक एकबदेकव-अथर्व० १३.१.२०]।

    भावार्थ

    सत्व, रज व तमरूप प्रकृति के तीन गुण इस संसार के रूप में आते हैं। चौथा ब्रह्म जीवों के लिए वेदज्ञान देता है। वह ब्रह्म एक ही है।

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    भाषार्थ

    (यानि) जो (त्रीणि१) तीन (बृहन्ति) बड़े वाक्य रूप हैं (येषाम्) जिन में के (चतुर्थम्) चौथे वाक्यरूप (वाचम्२) वाणी को [परमेश्वर] (वियुनक्ति) तीन वाणियों के साथ विशेषतया नियुक्त करता है, सम्बद्ध करता है, (एनत्) इस चौथे वाक्यरूप वाणी को (विपश्चित्) मेधावी (ब्रह्मा) चतुर्वेद-ज्ञाता व्यक्ति (तपसा) तपश्चर्या द्वारा (विद्यात्) जाने या प्राप्त करे। (यस्मिन्) जिस चतुर्थ में कि (एकम्) एक अद्वितीय ब्रह्म (युज्यते) सम्बद्ध है, (यस्मिन्) जिस चतुर्थ में कि (एकम्) एक अद्वितीय ब्रह्म सम्बद्ध है। [दो बार कथन दृढ़तासूचक है]।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में चार वेदों को "त्रीणि" और "चतुर्थम्" द्वारा वर्णित किया है। चौथा वेद है ब्रह्मवेद अर्थात् अथर्ववेद। इस वेद में परमेश्वर का वर्णन "ब्रह्मपद" द्वारा कई मन्त्रों में हुआ है, और इसका विषय भी भिन्न का है - विज्ञान। इसलिये “चतुर्थम्" पद द्वारा "त्रीणि" पद से पृथक् चतुर्थ का हुआ है। मन्त्र में वेदों को कहा है, परमेश्वर द्वारा वाक्यरूप में, वाणीरूप में, वेद प्रकट हुए पदरूप में नहीं - यह भावना द्वारा प्रतीत होती है। चतुर्थवेद को "ब्रह्मा" तपस् द्वारा जाने, यह कथन वस्तुतः ठीक है। अथर्ववेद के वर्णन अतिगूढ़ और गहन हैं। निरुक्त में "नैषु प्रत्यक्षमस्ति, अनृषेः अतपसो वा" (१३।१।१५) द्वारा चारों विषयों के प्रत्यक्षीकरण के लिये “तपस्" की आवश्यकता दर्शाई है। अथर्ववेद के विषयों के प्रत्यक्षीकरण के लिये व्याख्येय मन्त्र में “तपस्" का विशेषतया कथन किया है]। [१. "त्रीणि बृहन्ति” द्वारा ऋक, यजुः साम को सूचित किया है। ये तीन मिल कर "अथर्ववेद" से बड़े हैं। अथर्ववेद के मन्त्र लगभग ६००० (६ हजार) हैं। शेष तीनों के लगभग १४००० मन्त्र है। तथा सर्वसाधारण के जीवनों के लिये ज्ञान, कर्म और उपासना– इन तीनों की आवश्यकता है, जिनका क्रमशः प्रतिपादन ऋक्, यजुः और साम में है। इसलिये मुख्य विषयों और मन्त्रों की दृष्टि से "त्रीणि" को "बृहन्ति" कहा है। चतुर्थवेद अर्थात् अथर्ववेद का विषय है "विज्ञान"। इसके लिये प्रत्येक मनुष्य अधिकारी नहीं। २. अथर्ववेद को "वाचम्" कहा है। इस कथन से शेष तीन वेद भी "वाक्" रूप सूचित होते हैं। "वाक्" "संहिता" रूप होती है, पदरूप नहीं। इस से सूचित किया है कि परमेश्वर से प्राप्त वेद "संहिता" रूप में थे। इन का घटन पदों द्वारा नहीं हुआ। अपितु संहिता से पदों का विच्छेद हुआ है। पैप्पलाद शाखा में "त्रीणि" के स्थान में "चत्वारि" पठित है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat Brahma

    Meaning

    The three, Sattva, Rajas and Tamas, expand. Of them, the fourth, the Immanent Supreme Divine Self, articulates and objectifies as the Vedic speech of universality. Only the sage, highly intellectual and enlightened, would realise It, the Divine Presence, with the austere discipline of Tapas. Into that One Divine Presence, the one, human soul, is joined in yoga, into that One, the one soul experiences the communion in samadhi and in the state of absolute freedom and bliss.

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    Translation

    What the three brhats are there, the specch (sound) of which is made clear by the fourth ? By practicing ' austerities, let the learned one find out that knowledge (supreme), in which one is united, in which (one) becomes one: (yani trini brhanti = three mighty three)

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    Translation

    These three properties of matter—the phosphorescence, motion and inertia (Sativa, Rajus and Tamas) possess great power, the fourth of which (God) divides the speeches from matter and its objects to reveal it to men. May Brahman the learned man know this fourth entity (God) by the dint of austerity and meditation wherein the main object is only God and really He alone is the object of austerity and meditation.

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    Translation

    These are the three mighty forces. The fourth of them is God Who reveals the Vedas. A learned Vedic scholar can realize him through penance. Wherein He alone is discerned through deep concentration Wherein God alone is seen.

    Footnote

    Threefold: Heaven, Firmament, Earth, or high, middle, low places.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(यानि) (त्रीणि) सत्त्वरजस्तमांसि (बृहन्ति) प्रवृद्धानि (येषाम्) त्रयाणां मध्ये (चतुर्थम्) तुरीयं शुद्धं ब्रह्म (वियुनक्ति) वियोजयति। प्रकटयति (वाचम्) वाणीम् (ब्रह्मा) अ० २।७। वेदवेत्ता विप्रः। योगिजनः (एनत्) निर्दिष्टं ब्रह्म (विद्यात्) जानीयात् (तपसा) ब्रह्मचर्यादिव्रतेन (विपश्चित्) अ० ६।५२।३। मेधावी-निघ–० ३।१५। (यस्मिन्) तपसि (एकम्) ब्रह्म (युज्यते) समाधीयते (यस्मिन्) (एकम्) द्विर्वचनं वीप्सायाम् ॥

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