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अथर्ववेद के काण्ड - 8 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अथर्वा देवता - कश्यपः, समस्तार्षच्छन्दांसि, ऋषिगणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विराट् सूक्त
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    बृ॑ह॒ती परि॒ मात्रा॑या मा॒तुर्मात्राधि॒ निर्मि॑ता। मा॒या ह॑ जज्ञे मा॒याया॑ मा॒याया॒ मात॑ली॒ परि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृ॒ह॒ती । परि॑ । मात्रा॑या: । मा॒तु: । मात्रा॑ । अधि॑ । नि:ऽमि॑ता । मा॒या । ह॒ । ज॒ज्ञे॒ । मा॒याया॑: । मा॒याया॑: । मात॑ली । परि॑ ॥९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहती परि मात्राया मातुर्मात्राधि निर्मिता। माया ह जज्ञे मायाया मायाया मातली परि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहती । परि । मात्राया: । मातु: । मात्रा । अधि । नि:ऽमिता । माया । ह । जज्ञे । मायाया: । मायाया: । मातली । परि ॥९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 9; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्म विद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (बृहती) स्थूल सृष्टि (मात्रायाः) तन्मात्रा से (परि) सब प्रकार और (मातुः) निर्माता [परमेश्वर] से (अधि) ही (मात्रा) तन्मात्रा (निर्मिता) बनी है। (माया) बुद्धि (ह) निश्चय करके (मायायाः) बुद्धिरूप परमेश्वर से और (मायायाः) प्रज्ञारूप परमेश्वर से (मातली) इन्द्र [जीव] का रथवान् [अहंकार वा मन] (परि) सब प्रकार (जज्ञे) उत्पन्न हुआ ॥५॥

    भावार्थ

    परमेश्वर के सामर्थ्य से स्थूल और सूक्ष्म जगत्, और इन्द्र, अर्थात्, जीव का रथवान् मन भी उत्पन्न हुआ है ॥५॥ मन को अन्यत्र भी रथवान् सा माना है-यजु० ३४।६ ॥ सु॒षा॒रथिरश्वा॒निव॒ यन्म॑नु॒ष्यान्नेनी॒यते॒ऽभीशु॑भिर्वा॒जिन॑ इव। हृ॒त्प्रति॑ष्ठं॒ यद॑जि॒रं जवि॑ष्ठं॒ तन्मे॒ मनः॑ शि॒वस॑ङ्कल्पमस्तु ॥ जो [मन] मनुष्यों को [इन्द्रियों के द्वारा] लगातार लिये-लिये फिरता है, जैसे चतुर रथवान् वेगवाले घोड़ों को बागडोर से, जो हृदय में ठहरा हुआ, सबका चलानेहारा, पहाड़ी वेगवाला है वह मेरा मन मङ्गल विचार युक्त हो ॥

    टिप्पणी

    ५−(बृहती) स्थूला सृष्टिः (परि) सर्वतः (मात्रायाः) हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। माङ् माने−त्रन्। मीयन्तेऽनया विषयाः। तस्याः तन्मात्रायाः सकाशात् (मातुः) निर्मातुः परमेश्वरात् (मात्रा) तन्मात्रा (अधि) एव (निर्मिता) रचिता (माया) माछाशसिभ्यो यः। उ० ४।१०८। मा शब्दे माने च-य, टाप्। प्रज्ञा-निघ० ३।९। (ह) एव (जज्ञे) प्रादुर्बभूव (मायायाः) बुद्धिरूपात् परमेश्वरात् (मायायाः) (मातली) मतं ज्ञानं लाति गृह्णातीति मतल इन्द्रो जीवः। मत+ला-क। मतलस्यायं पुमान्। अत इञ्। पा० ४।१।९५। मतल-इञ्। सुपां सुलुक्पूर्वसवर्णा०। पा० ७।१।३९। विभक्तेः पूर्वसवर्णदीर्घः। मातलिः। इन्द्रसारथिः। मनः यथा यजु० ३४।६। (परि) सर्वतः ॥

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    विषय

    संसार का निर्माण

    पदार्थ

    १. 'अमोऽहमस्मि सा त्वं सा त्वमस्यमोऽहम्' इस [पार० कां० १०६।३] वाक्य के अनुसार पुरुष स्त्री का द्वन्द्व 'साम' है। इन इन्द्रों के शरीर प्रभु ने पञ्चमहाभूतों के द्वारा बनाये [तं वेधा विदधे नूनं महाभूतसमाधिना]। (षष्ठात्) = उस छठे प्रभु के द्वारा (पञ्च सामानि) = पाँच स्त्री पुरुषों के द्वन्द्वरूप शरीर-'ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र व निषाद' सभी द्वन्द्व (बृहत: परि) = [परि from, out of] महाभूत [बृहत्-महान्] समाधि में से (अधिनिर्मिता) = बनाये गये। पाँच साम हैं, छठा इनका अधिष्ठाता प्रभु है। (बृहत्) = ये महाभूतसमूह (बृहत्या) = बृहती से-महत्तत्त्व से [प्रकृतेर्महान्] (निर्मितम्) = बनाया गया। अब प्रश्न होता है कि यह (बृहती) = महत्तत्त्व (कुत:) = कहाँ से (अधिमिता) = निर्मित हुआ? इस प्रश्न का उत्तर अगले मन्त्र में देते हैं कि-२. (बृहती) = महत्तत्व (मात्राया: परि) = [मात्रा-matter=मूल प्रकृति] प्रकृति में से निर्मित हुआ। (मातु:) = इस निर्माता प्रभु की अध्यक्षता में (मात्रा अधिनिर्मिता) = ['माता प्रजाता'-माता ने बच्चे को जन्म दिया] प्रकृति ने इस महत्तत्त्वरूप सन्तान को जन्म दिया। ३. 'इस संसार को बनाने के लिए प्रभु को प्रज्ञान कहाँ से उत्पन्न हुआ'? इस प्रश्न का उत्तर देते हैं कि (माया) = प्रज्ञा (ह) = निश्चय से (मायाया: जज्ञे) = प्रज्ञा से ही प्रादुर्भूत हुई, अर्थात् प्रभु की प्रज्ञा कहीं और से उत्पन्न हो' ऐसी बात नहीं। प्रभु 'प्रज्ञानघन' ही है। (मायाया:) = इस प्रज्ञा के (परि मातली) = परे [beyond, more than] प्रभु हैं। प्रभु केवल सर्वज्ञ न होकर सर्वशक्तिमान् व सर्वेश्वर्यवान् भी हैं। 'माया व प्रज्ञा' प्रभु का एक रूप है। प्रभु उससे अधिक हैं। 'मातली' इन्द्र-सारथि कहलाता है। 'इन्द्र' जीव है, प्रभु इन जीवों को घुमा रहे हैं। जीवों के शरीररूप रथों के सञ्चालक प्रभु ही हैं।

    भावार्थ

    प्रभु ने पञ्चमहाभूतों से ब्राह्मण आदि पाँच वर्गों के स्त्री-पुरुषों के शरीरों के इन्द्रों का निर्माण किया है। ये महाभूत महत्तत्त्व से हुए। महत्तत्त्व प्रकृति से। प्रभु की अध्यक्षता में प्रकृति ने इन महत्तत्त्व आदि को जन्म दिया। प्रभु की प्रज्ञा किसी और से प्रादुर्भूत नहीं हुई। प्रभु केवल प्रज्ञानस्वरूप न होकर सर्वशक्तिमान् व सर्वेश्वर भी हैं।

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    भाषार्थ

    (बृहती) बृहती छन्द (मात्रायाः परि) मात्रा से; (मात्रा) और मात्रा (मातुः अधि) निज परिमाण से (निर्मिता) निर्मित हुई है। (माया) प्रज्ञा (ह) निश्चय से (मायायाः) प्रज्ञा से (जजे) पैदा हुई है, और (मायायाः परि) प्रज्ञा से (मातली) निर्माण की प्रतिष्ठा अर्थात् नींव प्रकट हुई है।

    टिप्पणी

    [बृहती छन्द, "अक्षरों" की मापसंख्या से निर्मित होता है। परन्तु बृहती छन्द मात्राओं की मापसंख्या से भी निर्मित होता है - यह मन्त्र द्वारा सूचित होता है। दो प्रकार से छन्दों का निर्माण होता है, अक्षर संख्या द्वारा तथा मात्रासंख्या द्वारा। मात्रासंख्या द्वारा निर्मित छन्द को मात्रिक छन्द कहते हैं। मात्रा का निर्माण भी निज परिमाण द्वारा निश्चित होता है। ह्रस्व स्वर एक मात्रा का होता है, और दीर्घ स्वर दो मात्राओं का माया =प्रज्ञा। "माया प्रज्ञानाम" (निघं० ३।९)। वेदों में प्रतिपादित प्रज्ञा [ज्ञान] पारमेश्वरी प्रज्ञा से पैदा हुई है। इस वैदिक प्रज्ञा से अस्मदादि की प्रज्ञा [ज्ञान] पैदा हुई है। और हमारी प्रज्ञा द्वारा जगत्-और वैदिक छन्दों का निर्माण करने वाली "मातली" प्रकट होती है। मातली= मा (निर्माण) की प्रतिष्ठा अर्थात् आधारभूता पारमेश्वरी माता। मा+तल प्रतिष्ठायाम् (चुरादिः)]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Virat Brahma

    Meaning

    Brhati, the great Mahat, is born of the great measure of Mother Prakrti. Thus maya, the changing world, is born of Maya, Prakrti, which is the Lord Omnipotent’s own potential, Shakti. (In other words, the changing world is the mutable version of the Lords constant Prakrti potential). Matali, the mind, too is born of Maya and acts as the driver of the body chariot of the human soul. (See Kathopanishad, 1, 3, 3-4).

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    Translation

    Brhati the measure (mata), was fashioned forth from the measure as a mother, Maya was born from maya (illusion born out of illusion). Matali out of maya is illusion.

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    Translation

    Brihati, the structure of gross elements was formed from Matra, the five rare element (Known as Pancha Shuksma Bhuta); these five rare elements were formed from the Matar, their mother—the differentiation (Ahankara); Maya the resolution (Mahattatva) was manifest from Maya the prime- vat matter (Prakriti); and Matali, the soul attains its every- thing from Msya, the matter oxx or the soul is the master over maya, the resolution.

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    Translation

    This material world evolves out of the subtle primary Matter. God changes the subtle matter into material objects. Intellect is born of God the Embodiment of intellect. God lords over the soul.

    Footnote

    Mr. Griffith interprets matai as the name of a divine being. This is wrong, as there is no history in the Vedas. The word means the soul.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(बृहती) स्थूला सृष्टिः (परि) सर्वतः (मात्रायाः) हुयामाश्रुभसिभ्यस्त्रन्। उ० ४।१६८। माङ् माने−त्रन्। मीयन्तेऽनया विषयाः। तस्याः तन्मात्रायाः सकाशात् (मातुः) निर्मातुः परमेश्वरात् (मात्रा) तन्मात्रा (अधि) एव (निर्मिता) रचिता (माया) माछाशसिभ्यो यः। उ० ४।१०८। मा शब्दे माने च-य, टाप्। प्रज्ञा-निघ० ३।९। (ह) एव (जज्ञे) प्रादुर्बभूव (मायायाः) बुद्धिरूपात् परमेश्वरात् (मायायाः) (मातली) मतं ज्ञानं लाति गृह्णातीति मतल इन्द्रो जीवः। मत+ला-क। मतलस्यायं पुमान्। अत इञ्। पा० ४।१।९५। मतल-इञ्। सुपां सुलुक्पूर्वसवर्णा०। पा० ७।१।३९। विभक्तेः पूर्वसवर्णदीर्घः। मातलिः। इन्द्रसारथिः। मनः यथा यजु० ३४।६। (परि) सर्वतः ॥

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