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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 88 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 88/ मन्त्र 12
    ऋषिः - मूर्धन्वानाङ्गिरसो वामदेव्यो वा देवता - सूर्यवैश्वानरौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    विश्व॑स्मा अ॒ग्निं भुव॑नाय दे॒वा वै॑श्वान॒रं के॒तुमह्ना॑मकृण्वन् । आ यस्त॒तानो॒षसो॑ विभा॒तीरपो॑ ऊर्णोति॒ तमो॑ अ॒र्चिषा॒ यन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्व॑स्मै । अ॒ग्निम् । भुव॑नाय । दे॒वाः । वै॒श्वा॒न॒रम् । के॒तुम् । अह्ना॑म् । अ॒कृ॒ण्व॒न् । आ । यः । त॒तान॑ । उ॒षसः॑ । वि॒ऽभा॒तीः । अपो॒ इति॑ । ऊ॒र्णो॒ति॒ । तमः॑ । अ॒र्चिषा॑ । यन् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वस्मा अग्निं भुवनाय देवा वैश्वानरं केतुमह्नामकृण्वन् । आ यस्ततानोषसो विभातीरपो ऊर्णोति तमो अर्चिषा यन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वस्मै । अग्निम् । भुवनाय । देवाः । वैश्वानरम् । केतुम् । अह्नाम् । अकृण्वन् । आ । यः । ततान । उषसः । विऽभातीः । अपो इति । ऊर्णोति । तमः । अर्चिषा । यन् ॥ १०.८८.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 88; मन्त्र » 12
    अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 12; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (विश्वस्मै भुवनाय) सब जगत् के लिये (देवाः) समष्टिप्राण (वैश्वानरम्-अग्निम्) सब नरों के हितकर सूर्य को (अह्नां केतुम्-अकृण्वन्) दिनों का प्रज्ञापक बनाते हैं, (यः) जो सूर्य (विभातीः-उषसः-आततान) विशेष प्रकाशवाली उषाओं-किरणों को भलीभाँति तानता है (अर्चिषा तमः-उ-अप ऊर्णोति) तेज से अन्धकार को नितान्त निवृत्त करता है ॥१२॥

    भावार्थ

    समष्टिप्राण सूर्य को प्रकट करते हैं और उसे किरणें चमकाती हैं, वह अन्धकार को मिटाता है ॥१२॥

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    विषय

    'अन्धकार के निवारक' प्रभु

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्र के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के द्वारा प्रभु-दर्शन करनेवाले (देवा:) = दिव्य वृत्तिवाले विद्वान् पुरुष (विश्वस्मा भुवनाय) = सब लोकों के लिये (अग्निम्) = उस अग्रेणी प्रभु का (अकृण्वन्) = उपदेश करते हैं, जो प्रभु (वैश्वानरम्) = सब प्राणियों का हित करनेवाले हैं और (अह्नाम्) =[अ-हन्] आत्महनन न करनेवालों के केतुम् प्रज्ञपक्व हैं। यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय के अनुसार आत्महनन न करनेवाले व्यक्ति वे हैं जो कि — [क] प्रभु की सर्वव्यापकता का विचार करते हैं [ईशा वास्यमिदं सर्वम्], [ख] त्यागपूर्वक उपभोग करते हैं [त्यक्तेन भुञ्जीथाः], [ग] लालच नहीं करते [मा गृधः], [घ] धन किसका है ? इस प्रश्न को बारम्बार अपने में पैदा करते हैं [कस्य स्विद्धनम्], [ङ] सदा क्रियाशील होते हैं [कुर्वन्नेवेह कर्माणि] । इन लोगों के लिये वे प्रभु आत्मज्ञान प्राप्त कराते हैं । [२] देव लोग उस आत्मतत्त्व का उपदेश करते हैं (यः) = जो (विभाती: उषसः) = इन देदीप्यमान उषाकालों को (आततान) = विस्तृत करते हैं और (अर्चिषा) = ज्ञान की ज्वालाओं [प्रकाशों] के साथ (यन्) = गति करते हुए (तमः) = अन्धकार को (उ) = निश्चयपूर्वक (अप ऊर्णोति) = दूर करते हैं। जिस प्रकार उषा प्रकाश को लाती है और अन्धकार नष्ट हो जाता है, इसी प्रकार हृदयस्थ प्रभु का प्रकाश होते ही सम्पूर्ण अज्ञानान्धकार नष्ट हो जाता है। इस प्रभु का ज्ञान ही हितकर है। इस प्रभु की विश्वव्यापकता का स्मरण हमें मार्ग-भ्रष्ट होने से बचाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - उस प्रभु का हमें देवों से ज्ञान प्राप्त हो जो प्रभु की 'अग्नि' हैं, 'वैश्वानर' हैं, अन्धकार को दूर करनेवाले हैं।

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    विषय

    उषाओं के निर्माता सूर्य के समान कल्पों का प्रारम्भक प्रभु।

    भावार्थ

    (देवाः) विद्वानों ने (वैश्वानरम्) समस्त मनुष्यों के हितकारी (अग्निम्) अग्निरूप सूर्य को (विश्वस्मै भुवनाय) समस्त जगत् के लिये (अह्नाम् केतुम् अकृण्वन्) दिनों का बतलाने वाला वा बनाने वाला निश्चित किया, जाना। (यः) जो अग्नि (विभातीः) विशेष रूप से प्रकाश करने वाली, (उषसः ततान) उषाओं का निर्माण करता है, और (यन्) गमन करता हुआ (अर्चिषा) अपने तेज से (तमः अप-उ ऊर्णोति) अन्धकार को दूर करता है। (२) परमेश्वर पक्ष में—कल्पों का प्रारम्भ काल ‘उषा’ है, और प्रलय कालिक घोर अज्ञात स्वरूप तम, अन्धकार है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः मूर्धन्वानाङ्गिरसो वामदेव्यो वा॥ देवता—सूर्यवैश्वानरो॥ छन्दः—१–४, ७, १५, १९ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ८ त्रिष्टुप्। ६, ९–१४, १६, १७ निचृत् त्रिष्टुप्। १८ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। एकोनविंशत्यृचं सूक्तम्।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विश्वस्मै भुवनाय) सर्वस्मै जगते (देवाः) समष्टिप्राणाः (वैश्वानरम्-अग्निम्) सर्वनरेभ्यो हितकरं सूर्याग्निं (अह्नां केतुम्-अकृण्वन्) दिवसां प्रज्ञापकं कुर्वन्ति (यः) सूर्यः (विभातीः-उषसः-आततान) विभासमानाः-उषसः किरणान् समन्तादातनोति (अर्चिषा तमः-उ-अप-ऊर्णोति) तेजसान्धकारं नितान्तं निवारयति ॥१२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Devas, divine powers, create and make the solar form of Vaishvanara Agni, and make it the flag sign of the day for the sake of the whole world, and the sun, radiating, lights up the bright dawns and dispels the darkness of the night with its light, unveiling the day.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    समष्टिप्राण सूर्याला प्रकट करतात व किरणे त्याला तेजस्वी करतात. अशा प्रकारे सूर्य अंधकार मिटवितो. ॥१२॥

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