यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 20
ऋषिः - विश्वदेव ऋषिः
देवता - अग्न्यादयो देवताः
छन्दः - भुरिग्ब्राह्मी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
4
अ॒ग्निर्दे॒वता॒ वातो॑ दे॒वता॒ सूर्यो॑ दे॒वता॑ च॒न्द्रमा॑ दे॒वता॒ वस॑वो दे॒वता॑ रु॒द्रा दे॒वता॑ऽऽदि॒त्या दे॒वता॑ म॒रुतो॑ दे॒वता॒ विश्वे॑ दे॒वा दे॒वता॒ बृह॒स्पति॑र्दे॒वतेन्द्रो॑ दे॒वता॒ वरु॑णो दे॒वता॑॥२०॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः। दे॒वता॑। वातः॑। दे॒वता॑। सूर्यः॑। दे॒वता॑। च॒न्द्रमाः॑। दे॒वता॑। वस॑वः। दे॒वता॑। रु॒द्राः। दे॒वता॑। आ॒दि॒त्याः। दे॒वता॑। म॒रुतः॑। दे॒वता॑। विश्वे॑। दे॒वाः। दे॒वता॑। बृह॒स्पतिः॑। दे॒वता॑। इन्द्रः॑। दे॒वता॑। वरु॑णः। दे॒वता॑ ॥२० ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निर्देवता वातो देवता सूर्या देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवता आदित्या देवता मरुतो देवता विश्वे देवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता ॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निः। देवता। वातः। देवता। सूर्यः। देवता। चन्द्रमाः। देवता। वसवः। देवता। रुद्राः। देवता। आदित्याः। देवता। मरुतः। देवता। विश्वे। देवाः। देवता। बृहस्पतिः। देवता। इन्द्रः। देवता। वरुणः। देवता॥२०॥
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे स्त्रीपुरुषाः! युष्माभिरग्निर्देवता वातो देवता सूर्य्यो देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता रुद्रा देवताऽऽदित्या देवता मरुतो देवता विश्वे देवा देवता बृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता सम्यग्विज्ञेयाः॥२०॥
पदार्थः
(अग्निः) प्रकटः पावकः (देवता) देव एव दिव्यगुणत्वात् (वातः) पवनः (देवता) (सूर्य्यः) सविता (देवता) (चन्द्रमाः) इन्दुः (देवता) (वसवः) वसुसंज्ञकाः प्रसिद्धाग्न्यादयोऽष्टौ (देवता) (रुद्राः) प्राणादय एकादश (देवता) (आदित्याः) द्वादश मासा वसुरुद्रादिसंज्ञका विद्वांसश्च (देवता) (मरुतः) ब्रह्माण्डस्थाः प्रसिद्धा मनुष्या विद्वांस ऋत्विजः। मरुत इत्यृत्विङ्नाम॰॥ (निघं॰३।१८) (देवता) (विश्वे) सर्वे (देवाः) दिव्यगुणयुक्ता मनुष्याः पदार्थाश्च (देवता) (बृहस्पतिः) बृहतो वचनस्य ब्रह्माण्डस्य वा पालकः (देवता) (इन्द्रः) विद्युत्परमैश्वर्य्यं वा (देवता) (वरुणः) जलं वरगुणाढ्योऽर्थो वा (देवता)। [अयं मन्त्रः शत॰८.३.३.६ व्याख्यातः]॥२०॥
भावार्थः
ये दिव्याः पदार्था विद्वांसश्च सन्ति ते दिव्यगुणकर्मस्वभावत्वाद् देवतासञ्ज्ञां लभन्ते। या च देवतानां देवतात्वान्महादेवः सर्वस्य धर्त्ता स्रष्टा पाता व्यवस्थापकः प्रलायकः सर्वशक्तिमानजोऽस्ति, तमपि परमात्मानं सकलाधिष्ठातारं सर्वे मनुष्या जानीयुः॥२०॥
विषयः
वेदविषयविचार:
व्याख्यानम्
अत्र कर्मकाण्डे देवताशब्देन वेदमन्त्राणां ग्रहणम्। गायत्र्यादीनि छन्दांसि ह्यग्न्यादिदेवताख्यान्येव गृह्यन्ते। तेषां कर्मकाण्डादिविधेर्द्योतकत्वात्। यस्मिन् मन्त्रे चाग्निशब्दार्थप्रतिपादनं वर्त्तते, स एव मन्त्रोऽग्निर्देवतो गृह्यते। एवमेव वातः सूर्यश्चन्द्रमा वसवो रुद्रा आदित्या मरुतो विश्वेदेवा बृहस्पतिरिन्द्रो वरुणश्चेत्येतच्छब्दयुक्ता मन्त्रा देवताशब्देन गृह्यन्ते। तेषामपि तत्तदर्थस्य द्योतकत्वात् परमाप्तेश्वरेण कृतसंकेतत्वाच्च।
हिन्दी (5)
विषय
फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे स्त्री-पुरुषो! तुम लोगों को योग्य है कि (अग्निः) प्रसिद्ध अग्नि (देवताः) दिव्य गुण वाला (वातः) पवन (देवता) शुद्धगुणयुक्त (सूर्य्यः) सूर्य्य (देवता) अच्छे गुणों वाला (चन्द्रमाः) चन्द्रमा (देवता) शुद्ध गुणयुक्त (वसवः) प्रसिद्ध आठ अग्नि आदि वा प्रथम कक्षा के विद्वान् (देवता) दिव्यगुण वाले (रुद्राः) प्राण आदि ११ ग्यारह वा मध्यम कक्षा के विद्वान् (देवता) शुद्ध गुणों वाले (आदित्याः) बारह महीने वा उत्तम कक्षा के विद्वान् लोग (देवता) शुद्ध (मरुतः) मननकर्त्ता विद्वान् ऋत्विग् लोग (देवता) दिव्य गुण वाले (विश्वे) सब (देवता) अच्छे गुणों वाले विद्वान् मनुष्य वा दिव्य पदार्थ (देवता) देवसंज्ञा वाले हैं (बृहस्पतिः) बड़े वचन वा ब्रह्माण्ड का रक्षक परमात्मा (देवता) (इन्द्रः) बिजुली वा उत्तम धन (देवता) दिव्य गुणयुक्त और (वरुणः) जल वा श्रेष्ठ गुणों वाला पदार्थ (देवता) अच्छे गुणों वाला है, इन को तुम निश्चय जानो॥२०॥
भावार्थ
इस संसार में जो अच्छे गुणों वाले पदार्थ हैं, वे दिव्य गुण कर्म और स्वभाव वाले होने से देवता कहाते हैं और जो देवताओं का देवता होने से महादेव सब का धारक, रचक, रक्षक सब की व्यवस्था और प्रलय करने हारा, सर्वशक्तिमान्, दयालु, न्यायकारी, उत्पत्ति धर्म से रहित है, उस सब के अधिष्टाता परमात्मा को सब मनुष्य जानें॥२०॥
पदार्थ
पदार्थ = (अग्निः ) = यह प्रसिद्ध अग्नि ( देवता ) = दिव्य गुणवाला ( वात: ) = पवन ( देवता ) = शुद्ध गुण युक्त ( सूर्य: ) = सूर्य ( देवता ) = अच्छे गुणोंवाला ( चन्द्रमाः देवता ) = चन्द्रमा शुद्ध गुण युक्त ( वसवः ) = पृथ्वी आदि आठ वसु ( देवता ) = दिव्य गुणवाले ( रुद्राः ) = प्राण आदि ११ रुद्र ( देवता ) = शुद्ध गुणवाले ( आदित्या:) = बारह महीने ( देवता ) = दिव्य गुणयुक्त ( मरुतः ) = मनन कर्ता विद्वान् ऋत्विग् लोग ( देवता ) = दिव्य गुणवाले ( विश्वे देवा: ) = अच्छे गुणवाले सब विद्वान् मनुष्य, वा दिव्य पदार्थ ( देवता ) = देव संज्ञावाले हैं ( बृहस्पति: ) = बड़े ब्रह्माण्ड वा वेदवाणी का रक्षक परमात्मा ( देवता ) = सब दिव्य गुण युक्त देवों का भी देव है ( इन्द्रः ) = बिजुली वा उत्तम धन ( देवता ) = दिव्य गुण युक्त ( वरुणः देवता ) = जल वा श्रेष्ठ गुणोंवाला पदार्थ उत्तम है।
भावार्थ
भावार्थ = इस संसार में जो अच्छे गुणोंवाले पदार्थ हैं, वे दिव्य गुण कर्म और स्वभाववाले होने से देवता कहाते हैं, ओर जो सब देवों का देव होने से महादेव, सबका धारक, रचक और रक्षक, सबकी व्यवस्था और प्रलय करने हारा सर्वशक्तिमान् दयालु न्यायकारी उत्पत्ति धर्म से रहित है, उस सबके अधिष्ठाता परमात्मा को सब मनुष्य जाने, उसी की ही सबको प्रेम से उपासना करनी चाहिए।
विषय
वेदविषयविचार:
व्याख्यान
( अग्निर्देव॰ ) कर्मकाण्ड अर्थात् यज्ञक्रिया में मुख्य करके देवता शब्द से वेदमन्त्रों का ही ग्रहण करते हैं, क्योंकि जो गायत्र्यादि छन्द हैं, वे ही वेदमन्त्र कहाते हैं। और इन वेदमन्त्रों से ही सब विद्याओं का प्रकाश भी होता है। इसमें यह कारण है कि जिन-जिन मन्त्रों में अग्नि आदि शब्द हैं, उन-उन मन्त्रों का और उन-उन शब्दों के अर्थों का अग्नि आदि देवता नामों से ग्रहण होता है। मन्त्रों का देवता नाम इसीलिये है कि उन्हींसे सब अर्थों का यथावत् प्रकाश होता है।
विषय
अग्नि आदि देवताओं का वर्णन ।
भावार्थ
( अग्नि ) अग्नि, ( वातः ) वात, ( सूर्यः ) सूर्य ( चन्द्रमा) चन्द्रमा, ( वसवः ) आठ वसु, ( रुद: )११ रुद्र, प्राण, ( आदित्याः ) १२ आदित्य, मास, ( मरुतः ) मरुत् गण, विद्वान्गण (विश्वेदेवाः) विश्वेदेवगण समस्त दिव्य पदार्थ, ( बृहस्पतिः ) बृहस्पति, ब्रह्माण्ड और वेद वाणी का पालक ( इन्द्रः ) इन्द्र, ईश्वर और ( वरुण: ) वरुण ये सब ( देवता ) देवता अर्थात् दिव्य शक्तियां हैं, राष्ट्र में ये ही सब अधिकारी लोग देवता अर्थात् राजशक्ति के अंश है । ब्रह्माण्ड में ये ही परमेश्वरी शक्ति के स्वरूप हैं ॥ शत० ८ । ३ । ३ ।१-१२ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वेदेवा ऋषयः । अग्न्यादयो देवताः । भुरिग् ब्राह्मी त्रिष्टुप् । धैवतः ।
विषय
आराध्यदेवता
पदार्थ
१. (अग्निः देवता) = अग्नि तेरा देवता हो- तू अग्नि से प्रेरणा प्राप्त करनेवाला बन। अग्नि मलों का दहन कर देता है, तू भी सब मलिन वासनाओं को ज्ञानाग्नि में दग्ध को करनेवाला बन। २. (वातः देवता) = वायु तेरा देवता हो। वायु से तू कर्मफल की अपेक्षा न करते हुए कर्त्तव्य बुद्धि से कर्म करनेवाला बन। ३. (सूर्यः देवता) सूर्य तेरा देवता हो। सूर्य की भाँति तेरी ज्ञान की ज्योति चमके। ४. (चन्द्रमाः देवता) = चन्द्र तेरा देवता हो। तू सदा आह्लादमय, सदा प्रसन्न रहने का प्रयत्न कर। ५. (वसवः देवता) = वसु तेरे देव हों । तू अपने निवास को उत्तम बनानेवाला हो। ६. (रुद्राः देवता) = रुद्र तेरे देव हों। 'रोरूयमाणो द्रवति' तू प्रभु के नामों का उच्चारण करते हुए वासनाओं पर आक्रमण करनेवाला हो। ७. (आदित्याः देवता) = आदित्य तेरे देव हों। इनसे तू सब स्थानों से अच्छाई के ग्रहण का नियम सीख। ये समुद्र में से भी खारेपन को न लेकर शुद्ध जल को लेते हैं, तू सब स्थानों से अच्छाई को ही ले। गुणग्राही बन, अवगुणों को त्याग। ८. (मरुतः देवता) = मरुत तेरे देव हों। 'मरुतः मितराविणः, महद् द्रवन्ति इति - नि० ११ १३' तू मरुतों की भाँति बहुत न बोलनेवाला तथा खूब कार्य करनेवाला बन अथवा 'मा+रुद्' रोनेवाला न बन। ९. (विश्वेदेवाः देवता) = विश्वेदेव तेरे देवता हों। सब दिव्य गुणों को तू अपनानेवाला बन। १०. (बृहस्पतिः देवता) = ब्रह्मणस्पति तेरा देवता हो । तू ऊँचे-से-ऊँचा ज्ञान प्राप्त करनेवाला हो। ११. इन्द्रः देवता इन्द्र तेरा देवता हो । तू सब शत्रुओं का विद्रावण करने के हेतु जितेन्द्रिय बन । १२. (वरुणः देवता) = वरुण तेरा देवता हो। वरुण के पाश अनृतवादी को छिन्न करते हैं तथा सत्यवादी को उनमें बाँधते नहीं, अतः तू भी वरुण को देवता माननेवाला सत्यवादी बन। अथवा द्वेष का निवारण करनेवाला बन [वारयति] । इस प्रकार सत्यवादी तथा निर्वैर बनकर तू प्रभु को प्राप्त होनेवाला हो।
भावार्थ
भावार्थ- हम अग्नि आदि देवों से प्रेरणा प्राप्त करके देव बनें और अन्त में प्रभु प्राप्त करनेवाले हों।
मराठी (3)
भावार्थ
या जगात जे चांगले गुण असणारे पदार्थ आहेत ते सर्व दिव्य गुण, कर्म, स्वभावयुक्त असतात त्यासाठी त्यांना देवता म्हटले जाते व जो देवांचा देव असा महादेव सर्वांचा धारक, निर्माता, रक्षक, व्यवस्थापक, रचनाकार, सर्वशक्तिमान, दयाळू, न्यायी, प्रलयकाळी संहारक व उत्पत्तिरहित आहे. असा सर्वांचा अधिष्ठाता असलेल्या परमेश्वराला सर्व माणसांनी जाणावे.
विषय
पुनश्च पुढील मंत्रात तोच विषय वर्णित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (या मंत्रात ‘देवता’ शब्दाचा अनेकवार उपयोग केला आहे, म्हणून ‘देवता’ या शब्दाचा भावार्थामधे दिलेला अर्थ आधी वाचावा कोण आहे देवता? सद्गुणयुक्त पदार्थ आहेत, ते दिव्य गुण, कर्म, स्वभाव असल्यामुळे ‘देवता’ आहेत. संस्कृत भाष्यात महर्षीनी देवता= देव एव दिव्यगुणत्वात्, तसेच देवता = दिव्यगुणयुक्ता मनुष्या: पदार्थाश्च / असे लिहिले आहे. त्यामुळे या मंत्रात कल्पित शरीरधारी देवता हा अर्थ घेऊन नये) - हे स्त्री-पुरुष हो, तुम्ही निश्चयाने जाणा की (अग्नि:) आग (देवता) दिव्य गुणवान आहे (अथवा देवो कस्मात्? दानात्, द्योतनात्, दीपनाद्वा- प्रकाश, उष्णता देणारा म्हणून अग्नी देवता आहे.) (वात:) पवन (देवता) शुद्ध गुणयुक्त आहे (सूर्य्य:) सूर्य (देवता) चांगले गुण देणारा आहे. (चन्द्रमा:) चंद्र (देवता) शुद्ध गुणयुक्त आहे. (वसव:) प्रसिद्ध आठ अग्नी आदी पदार्थ अथवा प्रथम कोटीचे विद्वान (देवता) दिव्यगुणवान (आणि ज्ञान देणारे म्हणून देवता) आहेत. (रुद्रा:) प्राण आदी अकरा रुद्र अथवा मध्यम कोटीचे विद्वान (वेदता) शुद्धगुणवान आहेत (आदित्या:) बारा महिने अथवा उत्तम कोटीचे विद्वान (देवता) शुद्ध गुणवान आहेत. (अरुत:) मननशील विद्वान् ऋत्विकगण (देवता) दिव्यगुण वात आहेत. (विश्वो) सर्व (देवता) सद्गुणी माणसे अथवा दिव्य पदार्थ (देवता) यांचाही संज्ञा देवता आहे. (बृहस्पति:) दृढ वा एकवचनी मनुष्य किंवा ब्रह्मांडरक्षक परमेश्वर (देवता) (दिव्यगुणवान सर्वदानी) देवता आहे. (इन्द्र:) विद्युत व श्रेष्ठ धनदेखील (देवता) सद्गुणवान आहेत, तुम्ही या पदार्थांना निश्चयाने असेच जाणा. ॥20॥
भावार्थ
भावार्थ - या जगात जे चांगले गुण असलेले पदार्थ आहेत, ते दिव्यगुण, कर्म आणि स्वभाव असलेले असल्यामुळे ‘देवता’ असे म्हणले जातात. याशिवाय जो सर्व देवांचा देव असल्यामुळे ‘महादेव’ आहे, तो सर्वांचा धारणकर्ता, सर्वरचदिल, सर्वरक्षक, जगव्यवस्थापक आणि प्रलयकारी असून सर्वशक्तिमान, दयाळू, न्यायकारी आणि अजन्मा आहे. सर्वांचा जो स्वामी त्या परमात्म्यालाच सर्वांनी जाणावे (त्यालाच महादेव मानावे) ॥20॥
व्याख्यान
भाषार्थ : प्रश्न : यज्ञात देवता या शब्दाने कोणत्या प्रकारचा बोध होतो? उत्तर : जे जे वेदात सांगितलेले आहे, त्यांचाच बोध होतो. त्याला यजुर्वेदाचे हे प्रमाण आहे की-(अग्निर्देव.) कर्मकांड अर्थात यज्ञक्रियेत मुख्यत: देवता शब्दाने वेदमंत्रांचाच बोध होतो. कारण गायत्री इत्यादी जे छंद आहेत, त्या छंदांनाच देवता म्हटले जाते व या वेदमंत्रांनीच सर्व विद्यांचे ज्ञान होते. ज्या ज्या मंत्रात अग्नी इत्यादी शब्द आहेत त्या त्या मंत्रांनी अग्नी इत्यादी देवतांच्या नावाचा बोध होतो. मंत्राचे नाव देवता यासाठी आहे, की त्यांच्याद्वारेच सर्व अर्थाचा यथावत प्रकाश होतो.
इंग्लिश (3)
Meaning
Fire, wind, sun, moon, vasus, Rudras, Adityas, learned men of contemplative mood, all good objects, God the protector of the universe and the Vedas, well earned riches, and water are devatas, i. e. , highly useful things. Men and women should take advantage of these devatas.
Meaning
Agni (fire) is a divine power and value. It is a god. Vayu (air) is god. Sun is god. Moon is god. Vasus (sustainers of life) are divine. Rudras (powers of law and justice) are divine. The winds are divine. Vishwedevas, the great, brilliant and generous powers of the world, are divine. Lord of the great universe is God. Indra (universal energy) is divine. Varuna (universal waters) are divine. Know the divine powers and inculcate their qualities in your character and conduct.
Translation
Fire is divinity. (1) Wind is divinity. (2) The sun is divinity. (3) The moon is divinity. (4) The Vasus (bounties) are divinity. (5) The Rudras (vital breaths) are divinity. (6) The Adityas (the twelve months) are divinity. (7) The Maruts (the cloud-bearing winds) are divinity. (8) The Visvedevas (all the bounties of Nature) are divinity. (9) Brhaspati (the Jupiter) is divinity. (10) Indra (the lightning) is divinity. (11) Varuna (the ocean) is divinity. (12)
Notes
Devata, god; deity; divinity. Vasavah, a group of eight gods whose chief is agni; sometimes indra and later visnu is also mentioned as their chief. In the Visnu Purana, vasus are enumerated : 1. आप: (waters), 2. ध्रुव (Pole star), 3. सोम (the moon), 4. धव or धर 5. अनिल (wind), б. अनल ог पावक (Fire), 7. प्रत्यूष (the Dawn) and 8. प्रभास (Light). In some other texts आप: is substitued by अहन् (the Day). According to Dayananda the vasus are: agni, prthivi, vayu, antariksa, dyauh, aditya, candramá and naksatra. Rudras, a group of new class of beings, eleven in number. In the Váyu Puràána their names are mentioned : 1. Aja Ekapad, 2. Ahirbudhnya, 3. Hara, 4. Nirrta, 5. I$vara, 6. Bhuvana, 7. Angaraka, 8. Ardhaketu, 9. Mrtyu, 10. Sarpa, 11. Kapalin. According to Dayananda eleven rudras are प्राणादय एकादश देवा:, the eleven gods Prana etc. These are : prdna, арапа, udana, samüna, vydna, devadatta, dhananjaya, krkala, दशमे पुरुषे प्राणा आत्मैकादश एते यदस्मात् मर्त्यात् शरीरादुत्क्रामंत्यथ रोदयंति तद् यद् रोदयंति तस्मादुद्रा इति,, these ten alongwith the àtman, зн eleven; when these quit this mortal body, they make people weep; therefore they are called rudras, those who cause others to weep. (Satapatha, XI. 6. 3. 7). Adityah, sons of Aditi. They are : Varuna, Mitra, Aryaman, Bhaga, Daksa, Ага, Sürya or Savitr, and Visnu. Sometimes they are eight in number, but later in Pauranic times there number increased to twelve, representing the twelve phases of the sun in the months of a year. Marutah, in the legend, they are the sons of Rudra and Práni. The storm gods (companions of Indra), they are described as armed with golden weapons, i. e. the lightning and thunderbolts, having iron teeth and roaring like lions, residing in the north and as riding in the golden cars drawn by ruddy horses. They are considered to be a hundred and eighty in number (3*60). In later literature they are shown as the children of Diti, the other wife of KaSyapa (the first being Aditi) and seven, and sometimes seven times seven (7х7 = 49) in number. Mātariśvan is their leader. ViSvedevah, all the gods, deities, divinities, bounties of Nature. In the legend, however, they are a particular class of gods, forming one of the nine ganas, enumerated under gana-devata. According to Visnu Purana, they were sons of Viśwā, a daughter of Daksa. Their names are : 1. Vasu, 2. Satya, 3. Kratu, 4. Daksa, 5. Kala, 6. Kama, 7. Dhrti, 8. Kuru, 9. Pururavas, 10. Madravas, 11. Rocaka, 12. Dhvanih and 13. Dhüri. They are particularly worshipped at sraddhas and vaisvadevya sacrifices. Sometimes it is difficult to decide wheter the expression visve devah refers to all the gods or to the particular troop of deities. (Monier Willjams). Brhaspati, in the legend, name of a deity in whom Piety and Religion are personified. He is the chief offerer of prayers and sacrifices and therefore represented as the type of priestly order, and the purohita (priest) of gods, with whom he intercedes for men. In the later times he is the god of wisdom and eloquence. Now agni is the presiding deity of the Earth, vata of midSpace, stirya of the sky, candramas of the night, indra of clouds and varuna of oceans.
बंगाली (2)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে স্ত্রী পুরুষগণ ! তোমাদিগের উচিত যে (অগ্নিঃ) প্রসিদ্ধ অগ্নি (দেবতা) দিব্য গুণযুক্ত (বাতঃ) পবন (দেবতা) শুদ্ধগুণযুক্ত (সূর্য়্যঃ) সূর্য্য (দেবতা) উত্তম গুণ সম্পন্ন (চন্দ্রমাঃ) চন্দ্র (দেবতা) শুদ্ধ-গুণযুক্ত (বসবঃ) প্রসিদ্ধ অষ্ট অগ্নি ইত্যাদি অথবা প্রথম শ্রেণির বিদ্বান্ (দেবতা) দিব্যগুণযুক্ত (রুদ্রাঃ) প্রাণাদি একাদশ বা মধ্যম শ্রেণির বিদ্বান্ (দেবতা) শুদ্ধ গুণযুক্ত (আদিত্যাঃ) দ্বাদশ মাস বা উত্তম শ্রেণির বিদ্বান্গণ (দেবতা) শুদ্ধ (মরুতঃ) মননকর্ত্তা বিদ্বান্ বা দিব্য পদার্থ (দেবতা) দেবসংজ্ঞাবিশিষ্ট (বৃহস্পতিঃ) বৃহৎ বচন বা ব্রহ্মান্ডের রক্ষক পরমাত্মা (দেবতা) (ইন্দ্রঃ) বিদ্যুৎ বা উত্তম ধন (দেবতা) দিব্যগুণযুক্ত এবং (বরুণঃ) জল বা শ্রেষ্ঠ গুণযুক্ত পদার্থ (দেবতা) উত্তম গুণযুক্ত ইহাকে তোমরা নিশ্চয় জান ॥ ২০ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই সংসারে যে সব উত্তম গুণযুক্ত পদার্থ ও বিদ্বান্, তাঁহারা দিব্য গুণ কর্ম্ম ও স্বভাবযুক্ত হওয়ায় দেবতা বলা হয় এবং যিনি দেবতাদিগের দেবতা হওয়ায় মহাদেব সকলের ধারক রচয়িতা রক্ষক সকলের ব্যবস্থা এবং প্রলয়কারী সর্ব শক্তিমান দয়ালু ন্যায়কারী উৎপত্তি ধর্মরহিত, সেই সকলের অধিষ্ঠাতা পরমাত্মাকে সকল মনুষ্য জানুক ॥ ২০ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অ॒গ্নির্দে॒বতা॒ বাতো॑ দে॒বতা॒ সূর্য়ো॑ দে॒বতা॑ চ॒ন্দ্রমা॑ দে॒বতা॒ বস॑বো দে॒বতা॑ রু॒দ্রা দে॒বতা॑ऽऽদি॒ত্যা দে॒বতা॑ ম॒রুতো॑ দে॒বতা॒ বিশ্বে॑ দে॒বা দে॒বতা॒ বৃহ॒স্পতি॑র্দে॒বতেন্দ্রো॑ দে॒বতা॒ বর॑ুণো দে॒বতা॑ ॥ ২০ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অগ্নির্দেবতেত্যস্য বিশ্বদেব ঋষিঃ । অগ্ন্যাদয়ো দেবতাঃ । ভুরিগ্ ব্রাহ্মী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
পদার্থ
অগ্নির্দেবতা বাতো দেবতা সূর্যো দেবর্তা চন্দ্রমা দেবতা বসবো দেবতা রুদ্রা দেবতা দিত্যা দেবতা মরুতো দেবতা বিশ্বেদেবা দেবতা বৃহস্পতির্দেবতেন্দ্রো দেবতা বরুণো দেবতা।।৫৯।।
(যজু ১৪।২০)
পদার্থঃ (অগ্নিঃ) এই প্রসিদ্ধ অগ্নি (দেবতা) দিব্য গুণসম্পন্ন, (বাতঃ) বায়ু (দেবতা) শুদ্ধ গুণযুক্ত। (সূর্যঃ) সূর্য (দেবতা) উত্তম গুণযুক্ত, (চন্দ্রমাঃ দেবতা) চন্দ্রমা শুদ্ধ গুণযুক্ত। (বসবঃ) অগ্নিসহ অষ্ট বসু (দেবতা) দিব্য গুণসম্পন্ন, (রুদ্রাঃ) প্রাণসহ ১১ রুদ্র (দেবতা) শুদ্ধ গুণসম্পন্ন, (আদিত্যাঃ) বারো মাস (দেবতা) শুদ্ধ। (মরুতঃ) মননকর্তা বিদ্বান ঋত্বিকগণ (দেবতা) দিব্য গুণ সম্পন্ন, (বিশ্বে দেবাঃ) উত্তম গুণসম্পন্ন সকল বিদ্বান মনুষ্য বা দিব্য পদার্থ (দেবতা) দেব সংজ্ঞাবিশিষ্ট। (বৃহস্পতিঃ) বৃহৎ ব্রহ্মা বা বেদ বাণীর রক্ষক পরমাত্মা (দেবতা) সমস্ত দিব্যগুণযুক্ত দেবসমূহেরও দেব। (ইন্দ্রঃ) বিদ্যুৎ বা উত্তম ধন (দেবতা) দিব্য গুণ যুক্ত, (বরুণঃ দেবতা) জল বা শ্রেষ্ঠ গুণসম্পন্ন উত্তম পদার্থ।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ এই সংসারে যে সমস্ত উত্তম গুণসম্পন্ন পদার্থ রয়েছে, তা দিব্য গুণ, কর্ম এবং স্বভাবযুক্ত হওয়ায় দেবতা বলা হয়। এবং যিনি সকল দেবতারও দেবতা হওয়ার কারণে মহাদেব, সবার ধারক, সৃষ্টিকর্তা এবং রক্ষক, সবার পোষণ এবং প্রলয়কারী সর্বশক্তিমান দয়ালু, ন্যায়কারী, অনাদি; সেই সবকিছুর অধিষ্ঠাতা পরমাত্মাকে সকল মনুষ্যের জানা এবং প্রেমভাবে তাঁরই উপাসনা করা উচিত।।৫৯।।
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