यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 22
ऋषिः - विश्वदेव ऋषिः
देवता - विदुषी देवता
छन्दः - निचृदुष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
3
यन्त्री॒ राड् य॒न्त्र्यसि॒ यम॑नी ध्रु॒वासि॒ धरि॑त्री। इ॒षे त्वो॒र्जे त्वा॑ र॒य्यै त्वा॒ पोषा॑य त्वा॥२२॥
स्वर सहित पद पाठयन्त्री॑। राट्। य॒न्त्री। अ॒सि॒। यम॑नी। ध्रु॒वा। अ॒सि॒। धरि॑त्री। इ॒षे। त्वा॒। ऊ॒र्ज्जे। त्वा॒। र॒य्यै। त्वा॒। पोषा॑य। त्वा॒ ॥२२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यन्त्री राड्यन्त्र्यसि यमनी धु्रवासि धरित्री । इषे त्वोर्जे त्वा रय्यै त्वा पोषाय त्वा लोकन्ताऽइन्द्रम्॥ गलितमन्त्रा----- लोकम्पृण च्छिद्रम्पृणाथो सीद धु्रवा त्वम् । इन्द्राग्नी त्वा बृहस्पतिरस्मिन्योनावसीषदन् ॥ ताऽअस्य सूददोहसः सोमँ श्रीणन्ति पृश्नयः । जन्मन्देवानाँविशस्त्रिष्वा रोचने दिवः । इन्द्रँविश्वाऽअवीवृधन्त्समुद्रव्यचसङ्गिरः । रथीतमँ रथीनाँवाजानाँ सत्पतिम्पतिम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
यन्त्री। राट्। यन्त्री। असि। यमनी। ध्रुवा। असि। धरित्री। इषे। त्वा। ऊर्ज्जे। त्वा। रय्यै। त्वा। पोषाय। त्वा॥२२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः पत्नी कीदृशी स्यादित्याह॥
अन्वयः
हे स्त्रि! या त्वं यन्त्री राट् यन्त्री भूमिरिवाऽसि, यमनी ध्रुवा धरित्र्यसि, त्वेषे त्वोर्जे त्वा रय्यै त्वा पोषाय चाऽहं स्वीकरोमि॥२२॥
पदार्थः
(यन्त्री) यन्त्रवत् स्थिता (राट्) प्रकाशमाना (यन्त्री) यन्त्रनिमित्ता (असि) (यमनी) आकर्षणेन नियन्तुं शीला आकाशवद् दृढा (ध्रुवा) (असि) (धरित्री) सर्वेषां धारिका (इषे) इच्छासिद्धये (त्वा) त्वाम् (ऊर्जे) पराक्रमप्राप्तये (त्वा) त्वाम् (रय्यै) लक्ष्म्यै (त्वा) त्वाम् (पोषाय) (त्वा) त्वाम्। [अयं मन्त्रः शत॰८.३.४.१० व्याख्यातः]॥२२॥
भावार्थः
या स्त्री भूमिवत् क्षमान्वितान्तरिक्षवदक्षोभा यन्त्रवज्जितेन्द्रिया भवति सा कुलदीपिकाऽस्ति॥२२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर स्त्री कैसी होवे, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ
हे स्त्रि! जो तू (यन्त्री) यन्त्र के तुल्य स्थित (राट्) प्रकाशयुक्त (यन्त्री) यन्त्र का निमित्त पृथिवी के समान (असि) है, (यमनी) आकर्षण शक्ति से नियमन करने हारी (ध्रुवा) आकाश-सदृश दृढ़ निश्चल (धरित्री) सब शुभगुणों का धारण करने वाली (असि) है, (त्वा) तुझ को (इषे) इच्छा सिद्धि के लिये (त्वा) तुझ को (ऊर्जे) पराक्रम की प्राप्ति के लिये (त्वा) तुझ को (रय्यै) लक्ष्मी के लिये और (त्वा) तुझ को (पोषाय) पुष्टि होने के लिये मैं ग्रहण करता हूं॥२२॥
भावार्थ
जो स्त्री पृथिवी के समान क्षमायुक्त, आकाश के समान निश्चल और यन्त्रकला के तुल्य जितेन्द्रिय होती है, वह कुल का प्रकाश करने वाली है॥२२॥
विषय
नियामक राजशक्ति का वर्णन ।
भावार्थ
हे राज्य शक्ते ! तू ( मन्त्री ) समस्त राष्ट्र को नियम में रखने वाली ( राष्ट्र ) राजवैभव से प्रकाशमान होने से, तू ( यन्त्री असि ) यन्त्री, नियमकारिणी शक्ति कहाती है। तू ( यमनी ) नियम व्यवस्था करने वाली औ ( धरित्री ) प्रजा को धारण करने वाली पृथ्वी के समान ( ध्रुवा असि ) ध्रुव, स्थिर है । ( त्वा) तुझ राजशक्ति को पृथ्वी के समान जान कर मैं ( इषे ) अन्न सम्पदा की वृद्धि के लिये ( ऊर्जे ) पराक्रम के लिये, ( रय्यै ) प्राणशक्ति या ऐश्वर्य की वृद्धि के लिये और ( पोषाय ) पशु आदि समृद्धि के लिये या शरीरों की पुष्टि के लिये स्वीकार करता हूं ॥ शत० ८ । ३ । ४ । १० ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वेदेवा ऋषयः । विदुषी देवता । निचृदुष्णिक् । ऋषभः ॥
विषय
यन्त्री-यमनी
पदार्थ
१. तू (यन्त्री) = अपने जीवन पर पूर्ण नियन्त्रण रखनेवाली है और इसी का परिणाम है कि तू (राट्) = चमकती है। जैसे नियमित गति के कारण सूर्य चमकता है, उसी प्रकार नियमित जीवनवाला व्यक्ति भी चमकता है। २. और वस्तुतः (यन्त्री असि) = तू अपने जीवन को नियन्त्रण में रखनेवाली है, अतएव (यमनी) = सबको नियमित जीवनवाला बनाती है। सबको नियम में वही रख सकता है जो स्वयं अपने को नियमित बनाये । ३. (ध्रुवा असि) = पृथिवी के समान तू ध्रुवा है [ध्रुवा = पृथिवी - श० १।३।२।४], अतएव (धरित्री) = सबका धारण व पोषण करनेवाली है। स्वयं अध्रुव जीवनवाला औरों का धारण नहीं कर सकता। ४. पत्नी कहती है कि मैं (त्वा) = = तुझे अपना जीवन - सखा बनाती हूँ, (इषे) = अन्न- प्राप्ति के लिए। हमारे घर में 'अन्न की कमी न होने देना' यह आपका पहला कर्त्तव्य है। मैं (ऊर्जे त्वा) = आपको वरती हूँ, जिससे हमारा जीवन बल व प्राणशक्ति सम्पन्न बने। 'ऊ वै रस : ' हमारे घर में उस गोरस व दूध की कमी न हो जो हम सबके जीवनों को बल व प्राणशक्ति सम्पन्न बनाएगा । (रय्यै त्वा) = मैंने आपका वरण इसलिए किया है कि आप घर के कार्य सञ्चालन के लिए पर्याप्त धन का अर्जन करनेवाले होंगे। (पोषाय त्वा) = उचित धनार्जन के द्वारा सबका पोषण करने के लिए मैंने आपका वरण किया है।
भावार्थ
भावार्थ- पत्नी को चाहिए कि अपने जीवन को नियमित बनाकर घर में सबके जीवन को व्यवस्थित करनेवाली हो। पति ने अन्न, रस, धन व पोषण का ध्यान करना है। इस प्रकार अपने-अपने कर्त्तव्य को करने से इनका यह लोक अच्छा बनेगा।
मराठी (2)
भावार्थ
जी स्त्री पृथ्वीप्रमाणे क्षमाशील, आकाशाप्रमाणे निश्चल व यंत्राप्रमाणे स्थित असते ती कुळाचा उद्धार करणारी असते.
विषय
स्त्री कशी असावी, पुढील मंत्रात हा विषय प्रतिपादित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे पत्नी, तू (यन्त्री) यंत्राप्रमाणे स्थिर वा (या घरात) दृढ आहेस (राट्) प्रकाशमान (यन्त्री) यंत्राच्या स्थिरतेचे कारण जी पृथ्वी तू त्या पृथ्वीप्रमाणे (गराचा आधार) (असि) आहेस. (यमनी) तू आपल्या आकर्षणशक्ती (प्रेमळ व आकर्षक व्यक्तिमत्वांमुळे) (ध्रुवा) आकाशाप्रमाणे (आकर्षण शक्तीयुक्त तसेच) दृढ व स्थिर आहेस. तू (धर्त्री) सर्व शुभगुण धारण करणारी (असि) आहेस. (अशा अनेक गुणांची स्वामिनी) (त्वा) तुला मी (इषे) इच्छापूर्तीसाठी, (त्वा) तुला (ऊर्जे) पराक्रमप्राप्तीसाठी (त्वा) तुला (रप्यै) संपत्ती प्राप्तीसाठी (त्वा) तुला (पोषाय) तुझ्या आणि माझ्या (पोषाय) पुष्टीसाठी (उत्तम आरोग्यासाठी) मी ग्रहण करीत आहे. (तुला जीवनसंगिनी मानून सर्व सहकार्याची अपेक्षा करीत आहे) ॥22॥
भावार्थ
भावार्थ - जी स्त्री भूमीप्रमाणे क्षमाशील, आकाशाप्रमाणे निश्चळ आणि यंत्रकतेप्रमाणे जितेंद्रिय असते, तीच आपल्या कुळाची कीर्ती वाढविते ॥22॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O wife thou art stable like a machine, full of brilliance, forbearing like the earth, firm like the sky, full of determination, and embodiment of virtue. I accept thee for the fulfilment of desires, for the attainment of valour, riches and prosperity.
Meaning
Gentle lady, faultlessly disciplined and brilliant, going by rule and leading others to rule, you are firm and sustaining like the earth. I accept and honour you for food and energy and for wealth and nourishment.
Translation
You are the controller, brilliant and bright. (1) You are controller as well as regulator. (2) You are set firmly and sustain others. (3) I invoke you for food; (4) for vigour; (5) for riches; (6) for nourishment. (7) Repeat here the verses beginning with the words Lokam (XII. 54), (8), Та (XII. 55) (9) and Indram (XII. 56). (10)
Notes
Yantra, नियमोपेता, following rules and regulations. Also. controller. Yamani, नियमकारिणी, controller; one who makes others to follow the rules. Dharitri, धरणी, supporter; sustainer; the earth. Ise, अन्नाय, for food. Отје, बलाय, for vigour. Rayyai, धनाय, for wealth; for riches. Posaya, for nourishment.
बंगाली (1)
विषय
পুনঃ পত্নী কীদৃশী স্যাদিত্যাহ ॥
পুনঃ স্ত্রী কেমন হইবে, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে স্ত্রী ! তুমি (য়ন্ত্রী) যন্ত্রতুল্য স্থিত (রাট্) প্রকাশযুক্ত (য়ন্ত্রী) যন্ত্রের নিমিত্ত পৃথিবীর সমান (অসি) হও, (য়মনী) আকর্ষণ শক্তি দ্বারা নিয়মকারিণী, (ধ্রুবা) আকাশসদৃশ দৃঢ় নিশ্চল, (ধর্ত্রী) শুভগুণের ধারণকারিণী (অসি) হও, (ত্বা) তোমাকে (ইষে) ইচ্ছাসিদ্ধি হেতু (ত্বা) তোমাকে (ঊর্জে) পরাক্রমের প্রাপ্তি হেতু (ত্বা) তোমাকে (রয়্যৈ) লক্ষ্মী হেতু এবং (ত্বা) তোমাকে (পোষায়) পুষ্টি হওয়ার জন্য গ্রহণ করি ॥ ২২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে স্ত্রী পৃথিবী সমান ক্ষমাযুক্ত আকাশের সমান নিশ্চল এবং যন্ত্রকলার ন্যায় জিতেন্দ্রিয় হয়, সে কুলকে প্রকাশিত করে ॥ ২২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
য়ন্ত্রী॒ রাড্ য়॒ন্ত্র্য᳖সি॒ য়ম॑নী ধ্রু॒বাসি॒ ধরি॑ত্রী ।
ই॒ষে ত্বো॒র্জে ত্বা॑ র॒য়্যৈ ত্বা॒ পোষা॑য় ত্বা ॥ ২২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
য়ন্ত্রীত্যস্য বিশ্বদেব ঋষিঃ । বিদুষী দেবতা । নিচৃদুষ্ণিক্ছন্দঃ ।
ঋষভঃ স্বরঃ ॥
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