यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 11
ऋषिः - देवा ऋषयः
देवता - श्रीमदात्मा देवता
छन्दः - भुरिक् शक्वरी
स्वरः - धैवतः
2
वि॒त्तं च॑ मे॒ वेद्यं॑ च मे भू॒तं च॑ मे भवि॒ष्यच्च॑ मे सु॒गं च॑ मे सुप॒थ्यं च मऽऋ॒द्धं च॑ म॒ऽऋद्धि॑श्च म क्लृ॒प्तं च॑ मे॒ क्लृप्ति॑श्च मे मति॒श्च मे सुम॒तिश्च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥११॥
स्वर सहित पद पाठवि॒त्तम्। च॒। मे॒। वेद्य॑म्। च॒। मे॒। भू॒तम्। च॒। मे॒। भ॒वि॒ष्यत्। च॒। मे॒। सु॒गमिति॑ सु॒ऽगम्। च॒। मे॒। सु॒प॒थ्य᳖मिति॑ सुप॒थ्य᳖म्। च॒। मे॒। ऋ॒द्धम्। च॒। मे॒। ऋद्धिः॑। च॒। मे॒। क्लृ॒प्तम्। च॒। मे॒। क्लृप्तिः॑। च॒। मे॒। म॒तिः। च॒। मे॒। सु॒म॒तिरिति॑ सुऽम॒तिः। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥११ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वित्तञ्च मे वेद्यञ्च मे भूतञ्च मे भविष्यच्च मे सुगञ्च मे सुपथ्यञ्च म ऋद्धञ्च म ऋद्धिश्च मे क्ळ्प्तञ्च मे क्लृप्तिश्च मे मतिश्च मे सुमतिश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
वित्तम्। च। मे। वेद्यम्। च। मे। भूतम्। च। मे। भविष्यत्। च। मे। सुगमिति सुऽगम्। च। मे। सुपथ्यमिति सुपथ्यम्। च। मे। ऋद्धम्। च। मे। ऋद्धिः। च। मे। क्लृप्तम्। च। मे। क्लृप्तिः। च। मे। मतिः। च। मे। सुमतिरिति सुऽमतिः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥११॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
मे वित्तं च मे वेद्यं च मे भूतं च मे भविष्यश्च मे सुगं च मे सुपथ्यं च म ऋद्धं च म ऋद्धिश्च मे क्लृप्तं च मे क्लृप्तिश्च मे मतिश्च मे सुमतिश्च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥११॥
पदार्थः
(वित्तम्) विचारितम् (च) विचारः (मे) (वेद्यम्) विचार्य्यम् (च) विचारकर्त्ता (मे) (भूतम्) अतीतम् (च) वर्त्तमानम् (मे) (भविष्यत्) आगामि (च) सर्वसामयिकम् (मे) (सुगम्) सुष्ठु गच्छन्ति यस्मिँस्तत् (च) उचितं कर्म (मे) (सुपथ्यम्) शोभनस्य पथो भावम् (च) निदानम् (मे) (ऋद्धम्) समृद्धम् (च) सिद्धयः (मे) (ऋद्धिः) योगेन प्राप्ता समृद्धिः (च) तुष्टयः (मे) (क्लृप्तम्) समर्थितम् (च) कल्पना (मे) (क्लृप्तिः) समर्थोहा (च) तर्कः (मे) (मतिः) मननम् (च) विवेचनम् (मे) (सुमतिः) शोभना प्रज्ञा (च) उत्तमा निष्ठा (मे) (यज्ञेन) शमदमादियुक्तेन योगाभ्यासेन (कल्पन्ताम्)॥११॥
भावार्थः
ये शमादियुक्ताः संयता योगमभ्यस्यन्त्यृद्धिसिद्धिसहिताश्च भवन्ति, तेऽन्यानपि समर्द्धयितुं शक्नुवन्ति॥११॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(मे) मेरा (वित्तम्) विचारा हुआ विषय (च) और विचार (मे) मेरा (वेद्यम्) विचारने योग्य विषय (च) और विचारने वाला (मे) मेरा (भूतम्) व्यतीत हुआ विषय (च) और वर्त्तमान (मे) मेरा (भविष्यत्) होने वाला (च) और सब समय का उत्तम व्यवहार (मे) मेरा (सुगम्) सुगम मार्ग (च) और उचित कर्म (मे) मेरा (सुपथ्यम्) सुगम युक्ताहार-विहार का होना (च) और सब कामों में प्रथम कारण (मे) मेरा (ऋद्धम्) अच्छी वृद्धि को प्राप्त पदार्थ (च) और सिद्धि (मे) मेरी (ऋद्धिः) योग से पाई हुई अच्छी वृद्धि (च) और तुष्टि अर्थात् सन्तोष (मे) मेरा (क्लृप्तम्) सामर्थ्य को प्राप्त हुआ काम (च) और कल्पना (मे) मेरी (क्लृप्तिः) सामर्थ्य की कल्पना (च) और तर्क (मे) मेरा (मतिः) विचार (च) और पदार्थ-पदार्थ का विचार करना (मे) मेरी (सुमतिः) उत्तम बुद्धि तथा (च) अच्छी निष्ठा ये सब (यज्ञेन) शम, दम आदि नियमों से युक्त योगाभ्यास से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥११॥
भावार्थ
जो शम आदि नियमों से युक्त संयम को प्राप्त योग का अभ्यास करते और ऋद्धि-सिद्धि को प्राप्त हुए हैं, वे औरों को भी अच्छे प्रकार ऋद्धि-सिद्धि दे सकते हैं॥११॥
विषय
यज्ञ से वित्त, ज्ञान और परम प्राप्तव्य पद, भूत, भविष्यत्, पथ्य, समृद्धि, सामर्थ्य की प्राप्ति ।
भावार्थ
( वित्तं च ) वित्त, धन, सुविचारित तत्त्व, (वेद्यं च ) प्राप्त करने योग्य द्रव्य, विचार करने योग्य ब्रह्मतत्त्व, ( भूतं च ) भूतकाल और ( भविष्यत् च ) भविष्यत् काल, ( सुगं च ) उत्तम जाने योग्य -मार्ग, सुन्दर प्रदेश, ( सुपथ्यं च ) उत्तम मार्गों का होना, (ऋद्धं च ) समृद्धि, समस्त आवश्यक पदार्थों की प्राप्ति (ऋद्धिः ) योगज सम्पत्ति, (क्ल्लृप्तं च ) कार्य करने में समर्थ होना, ( क्लृप्तिः च ) और सामर्थ्य से प्राप्ति, (मति: च ) मनन और विवेक ( सुमति: च ) शोभन उत्तम मति, मननशक्ति ये सब ( यज्ञेन) पूर्वोक्त यज्ञ और आत्मसाधना से ( मे ) मुझे प्राप्त हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्रीमदात्मा । भुरिक् शक्वरी । धैवतः ॥
विषय
वित्त+सुमति
पदार्थ
१. (वित्तं च मे) = ज्ञात वस्तु मेरी हो, अर्थात् जिस वस्तु का ज्ञान मैंने प्राप्त किया है मेरा वह वस्तु ज्ञान नष्ट न हो और (वेद्यं च मे) = जो जानने योग्य है उसे भी मैं जानने के लिए यत्नशील होऊँ। २. (भूतं च मे) = उस पूर्व ज्ञान द्वारा सिद्ध वस्तु तो मेरी हो ही (भविष्यत् च मे) = मैं आगे भी अन्य सफलताओं को प्राप्त करनेवाला बनूँ। ३. ज्ञान के ही कारण (सुगं च मे) = मैं शोभन गमनवाला होऊँ और (सुपथ्यम् च मे) = शोभन हितकर भोजन ही खानेवाला बनूँ। मेरा आहार-विहार दोनों उत्तम हों। ४. इस उत्तम आहार-विहार से (ॠद्धं च मे) = [ऋद्ध वृद्धौ] मैं सदा वर्धनवाला होऊँ (ऋद्धिश्च मे) = और धन की समृद्धिवाला बनूँ। ५. इस निरन्तर वर्धन व समृद्धि के द्वारा (क्लृप्तं च मे) = मुझमें उस उस कार्य के लिए सामर्थ्य हो तथा (क्लृप्तिश्च मे) = कार्यक्षम साधन मुझे प्राप्त हों। अपने कार्यों की सिद्धि के लिए आवश्यक साधनों को मैं जुटा पाऊँ। ६. (मतिश्च मे) = इस सबके लिए मेरी मति ठीक हो-मैं पदार्थमात्र का ठीक निश्चय कर सकूँ। (सुमतिः च मे) = दुर्घट कार्यों में भी निश्चय कर सकने की मेरी शक्ति हो मैं सब उलझनों को सुलझा सकूँ। मेरी ये सब वस्तुएँ (यज्ञेन) = उस प्रभु के सम्पर्क से (कल्पन्ताम्) = सम्पन्न हों।
भावार्थ
भावार्थ- मेरा प्राप्त ज्ञान सुरक्षित हो और ज्ञातव्य को मैं जाननेवाला बनूँ। मैं इस जीवन में मति व सुमति का सम्पादन कर सकूँ।
मराठी (2)
भावार्थ
जे शम इत्यादी नियमांनीयुक्त होऊन संयमाने योगाचा अभ्यास करतात. त्यांना ऋद्धी सिद्धी प्राप्त होतात व इतरांनाही ते चांगल्याप्रकारे ऋद्धी सिद्धी प्राप्त करून देऊ शकतात.
विषय
पुन्हा तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (मे) माझा (चित्तम्) विचार केलेला विषय (च) आणि (त्या विचार विमर्षानंतर ठरलेले) विचार, तसेच (मे) माझे (वेदम्) विचारणीय (वा विचार करण्यास योग्य असे) विषय (च) आणि विचार करणारा (मी अथवा दुसरा पुरुष (योगाभ्यासाने संपन्न व्हावा) (मे) माझा (भूतम्) गेलेला, व्यतीत झालेला काळ (च) आणि माझा वर्तमानकाळ तसेच (मे) माझा (भविष्यत्) होणारा वा पुढे येणारा काळ (च) आणि सर्व काळी मी करणारे आचरण (नियमपूर्ण असावे) (मे) माझा (सुगम्) सुगम मार्ग (च) आणि (त्यावर होणारी उचित) प्रगती तसेच (मे) माझा (सुषथ्यम्) सुगम युक्ताहार विहार (च) आणि सर्व कार्यासाठी आवश्यक कारणे (नियमाप्रमाणे प्राप्त व्हावीत) (मे) माझे (ऋद्धम्) प्रभूत प्रमाणात प्राप्त पदार्थ (च) आणि त्यांची (पुन: पुन:) प्राप्ती, तसेच (मे) माझी (ऋद्धि:) योगाभ्यासाद्वारा प्राप्त उन्नती (च) आणि प्राप्त संतोषवृत्ती (माझ्यासाठी उपयोगी व्हावी) (मे) माझे (क्लप्तम्) शक्तीसंपन्न कार्य (च) आणि त्या पूर्ण झालेल्या कामाची कल्पना, तसेच (मे) माझी (क्लृप्ति:) कल्पनाशक्ती (च) आणि तर्कशक्ती (योगाभ्यास आणि नियमपालनामुळे अधिक समृद्ध व्हावी) (मे) माझी (मति:) बुद्धी वा विचारशक्ती (च) आणि प्रत्येक पदार्थांविषयी विचार करण्याची जिज्ञासावृत्ती, तसेच (मे) माझी (सुमति:) श्रेष्ठ बुद्धी (च) आणि कार्याविषयी निष्ठा, हे वरील सर्व पदार्थ अथवा गुण मला (यज्ञेन) शम, दम आदी नियमांनी युक्त अशा योगाभ्यासाद्वारे (कल्पन्ताम्) फलदायी वा हितकर व्हावेत. ॥11॥
भावार्थ
भावार्थ- जे लोक शम, दम आदी नियमांचे पालन करून संयम प्राप्त करतात, योगाभ्यास करतात आणि त्याद्वारे ऋद्धि-सिद्धी प्राप्त करतात, तेच इतरांनादेखील चांगल्या प्रकारे ऋद्धि-सिद्धीची प्राप्ती करून देण्यात समर्थ होतात. ॥11॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May my well considered problems and my reflections, my topic worthy of consideration and thought, my past and present, my future and constant noble dealings, my good path and noble deeds, my wholesome diet and diagnosis, my prosperity and supernatural power, my achievement through yoga and contentment, my power and imagination, my ambition for strength and logic, my thought and investigation, my advanced intellect and steadiness prosper through the grace of God.
Meaning
All my thought and whatever I have thought out, all that I know and ought to know, my past and my present, all my future and all my timeless, all my short¬ cuts and my proper actions, my treatments and my diagnoses, my riches and my achievement, my spiritual wealth and my fulfilments, my intentions and my imaginations, my reflections and my reasons, my understanding and my analyses, my intelligence and my faith and commitments, all these may grow, and be strong and auspicious by yajna for all.
Translation
May my wealth obtained and wealth to be obtained, my past and my future, my easy travel and my pleasant journey, my thriving and my thrift, my accomplishing and my accomplishment, my thinking and my good thought be secured by means of sacrifice. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–(মে) আমার (বিত্তম্) বিচারিত বিষয় (চ) এবং বিচার (মে) আমার (বেদ্যম্) বিচার্য বিষয় (চ) বিচারকারী (মে) আমার (ভূতম্) ব্যতীত বিষয় (চ) এবং বর্ত্তমান (মে) আমার (ভবিষ্যৎ) ভবিষ্যৎ (চ) এবং সকল সময়ের উত্তম ব্যবহার (মে) আমার (সুগম্) সুগম মার্গ (চ) এবং উচিত কর্ম (মে) আমার (সুপথ্যম্) সুগম যুক্তাহার বিহারের হওয়া (চ) এবং সকল কাজে প্রথম কারণ (মে) আমার (ঋদ্ধম্) উত্তম বৃদ্ধিকে প্রাপ্ত পদার্থ (চ) এবং সিদ্ধি (মে) আমার (ঋদ্ধিঃ) যোগ দ্বারা লব্ধ উত্তম বৃদ্ধি (চ) এবং তুষ্টি অর্থাৎ সন্তোষ (মে) আমার (ক্লৃপ্তম্) সামর্থ্যকে প্রাপ্ত কর্ম (চ) এবং কল্পনা (মে) আমার (ক্লৃপ্তিঃ) সামর্থ্যের কল্পনা (চ) এবং তর্ক (মে) আমার (মতিঃ) বিচার (চ) এবং প্রত্যেক পদার্থের বিচার করা (মে) আমার (সুমতিঃ) উত্তম বুদ্ধি তথা (চ) উত্তম নিষ্ঠা এই সমস্ত (য়জ্ঞেন) শম দমাদি নিয়মের দ্বারা যুক্ত যোগাভ্যাস দ্বারা (কল্পন্তাম্)) সমর্থ হউক ॥ ১১ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যাহারা শমাদি নিয়ম যুক্ত সংযম প্রাপ্ত যোগের অভ্যাস করে এবং ঋদ্ধি সিদ্ধিকে প্রাপ্ত হইয়াছে তাহারা অন্যকে উত্তম প্রকার ঋদ্ধি সিদ্ধি দিতে পারে ॥ ১১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
বি॒ত্তং চ॑ মে॒ বেদ্যং॑ চ মে ভূ॒তং চ॑ মে ভবি॒ষ্যচ্চ॑ মে সু॒গং চ॑ মে সুপ॒থ্যং᳖ চ মऽঋ॒দ্ধং চ॑ ম॒ऽঋদ্ধি॑শ্চ ম ক্লৃ॒প্তং চ॑ মে॒ ক্লৃপ্তি॑শ্চ মে মতি॒শ্চ মে সুম॒তিশ্চ॑ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ১১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
বিত্তং চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । শ্রীমদাত্মা দেবতা । ভুরিক্ শক্বরী ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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