यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 50
ऋषिः - शुनःशेप ऋषिः
देवता - सूर्यो देवता
छन्दः - भुरिगार्ष्युष्णिक्
स्वरः - गान्धारः
4
स्व॒र्ण घ॒र्मः स्वाहा॑ स्वर्णार्कः स्वाहा॑ स्वर्ण शु॒क्रः स्वाहा॒ स्वर्ण ज्योतिः॒ स्वाहा॒ स्वर्ण सूर्यः॒ स्वाहा॑॥५०॥
स्वर सहित पद पाठस्वः॑। न। घ॒र्मः। स्वाहा॑। स्वः॑। न। अ॒र्कः। स्वाहा॑। स्वः॑। न। शु॒क्रः। स्वाहा॑। स्वः॑। न। ज्योतिः॑। स्वाहा॑। स्वः॒। न। सूर्यः॑। स्वाहा॑ ॥५० ॥
स्वर रहित मन्त्र
स्वर्ण घर्मः स्वाहा स्वर्णार्कः स्वाहा स्वर्ण शुक्रः स्वाहा स्वर्ण ज्योतिः स्वाहा स्वर्ण सूर्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
स्वः। न। घर्मः। स्वाहा। स्वः। न। अर्कः। स्वाहा। स्वः। न। शुक्रः। स्वाहा। स्वः। न। ज्योतिः। स्वाहा। स्वः। न। सूर्यः। स्वाहा॥५०॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
कीदृशा जनाः पदार्थान् शुन्धन्तीत्युपदिश्यते॥
अन्वयः
हे मनुष्याः! यथा स्वाहा स्वर्न घर्मः स्वाहा स्वर्नार्कः स्वाहा स्वर्न शुक्रः स्वाहा स्वर्न ज्योतिः स्वाहा स्वर्न सूर्यः स्यात्, तथा यूयमप्याचरत॥५०॥
पदार्थः
(स्वः) सुखम् (न) इव (घर्मः) तापः (स्वाहा) सत्यया क्रियया (स्वः) (न) इव (अर्कः) अग्निः (स्वाहा) (स्वः) (न) इव (शुक्रः) वायुः (स्वाहा) (स्वः) (न) इव (ज्योतिः) विद्युतो दीप्तिः (स्वाहा) (स्वः) (न) इव (सूर्यः) (स्वाहा)॥५०॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यज्ञकारिणो मनुष्याः सुगन्धाद्रिद्रव्यहोमैः सर्वान् वाय्वादिपदार्थान् शुद्धान् कर्त्तुं शक्नुवन्ति, येन रोगराहित्येन सर्वेषां दीर्घायुः स्यात्॥५०॥
हिन्दी (3)
विषय
कैसे जन पदार्थों को शुद्ध करते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! जैसे (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) समान (घर्मः) प्रताप (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) तुल्य (अर्कः) अग्नि (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) सदृश (शुक्रः) वायु (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) समान (ज्योतिः) बिजुली की चमक (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) समान (सूर्यः) सूर्य हो, वैसे तुम भी आचरण करो॥५०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। यज्ञ के करने वाले मनुष्य सुगन्धियुक्त आदि पदार्थों के होम से समस्त वायु आदि पदार्थों को शुद्ध कर सकते हैं, जिससे रोगक्षय होकर सब की बहुत आयुर्दा हो॥५०॥
विषय
राजा के सूर्य के समान कर्त्तव्य । पक्षान्तर मैं भौतिक पदार्थों के सदुपयोग का आदेश ।
भावार्थ
( स्वः न ) सूर्य के समान ( धर्मः ) तेजस्वी पुरुष शत्रुओं का तापदायक होकर ( स्वाहा ) उत्तम यश को प्राप्त हो । ( स्वः न ) सूर्य के समान ( अर्क: ) अर्चनीय, स्तुत्य पुरुष (स्वाहा ) उत्तम पद को प्राप्त हो । ( स्वः न ज्योतिः ) सूर्य के समान ज्ञान प्रकाश से युक्त पुरुष (स्वाहा ) उत्तम पद को प्राप्त हो ! ( स्व: न सूर्यः ) सुखमय सूर्य के समान सबका प्रेरक होकर राजा ( स्वाहा ) उच्च पद और उत्तम यश को प्राप्त हो । शत० ९।४।२।१९-२३ ॥ अग्निरर्कः असौ अदित्योऽश्वमेघः । तौ सृष्टौ नाना इवास्तां तौ देवा आहुतिभिः समतन्वन्त्समदधुः ॥ शत० ९ । ४ । ३ । १८ ॥ असौ वा आदित्यो धर्मः । अमुं तदादित्यं अग्नौ प्रतिष्ठापयति । शत० ९ । ४ । ३ ।५९ ॥ अर्थात् अग्रणी नेता में सूर्य के गुणों वाला बतलाया है । भौतिक पक्ष में - ( धर्म:) ताप ( अर्क: ) अग्नि ( शुक्रः ) वायु ( ज्योतिः ) विदुत् ( सूर्य: ) ये सब ( स्वाहा ) उत्तम विज्ञानपूर्वक क्रिया और प्रयोगों द्वारा ( स्व:) सुखजनक हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सूर्योऽअग्निर्देवता । भुरिगार्ष्यष्णिक् । ऋषभः ॥
विषय
जीवन की सार्थकता
पदार्थ
१. गतमन्त्र में प्रभु से प्रार्थना की गई थी कि हे प्रभो! हमारे जीवन को व्यर्थ नष्ट मत होने दीजिए। प्रस्तुत मन्त्र में प्रभु जीव से जीवन को सार्थक बनाने के लिए पाँच बातें कहते हैं- (स्वः न घर्मः) = सूर्य की भाँति तू गरमीवाला हो [स्व:- स्वयं राजमानज्योति, अर्थात् सूर्य] तुझमें प्राणों की उष्णता हो। प्राणशक्ति की वृद्धि से तेरा यह अन्नमयकोश तेजस्वी हो । (स्वाहा) = इस शक्ति की उष्णता प्राप्त करने के लिए तू 'स्व' का (हा) = त्याग करनेवाला बन। सुख व आराम को छोड़कर तप की अग्नि में अपने को आहुत कर । २. (स्वः न) = सूर्य की भाँति । जैसे सूर्य निरन्तर अपने कार्य में लगा हुआ है उसी प्रकार तू भी अपने कार्य में प्रवृत्त हुआ हुआ (अर्क:) = [अर्च पूजायाम्] प्रभु की पूजा करनेवाला बन। तेरे इस प्राणमयकोश में सभी इन्द्रियाँ अपना-अपना कार्य सुन्दरता से करती हुई उस प्रभु की पूजा करनेवाली हों। (स्वाहा) = तू अपने इन इन्द्रियों को स्व- अपने-अपने कार्य में (हा) = आहुत करनेवाला बन। ये अपने-अपने कार्य में लगी रहें, आराम न करने लग जाएँ। ३. (स्वः न) = सूर्य की भाँति ही (शुक्रः) - [शुच दीप्तौ ] तू अपने मनोमयकोष में अत्यन्त निर्मल बन। सब मैलों को दूर भगाकर पवित्र हो जा। (स्वाहा) = तू अपने सब मलों को भस्म कर दे। ४. अब अपने विज्ञानमयकोष में (स्वः न) = इस चमकते हुए सूर्य की भाँति (ज्योतिः) = तू ज्योतिर्मय हो । ज्ञान को बढ़ाकर सूर्य की भाँति चमकनेवाला बन। (स्वाहा) = इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए सब सुखों को त्यागनेवाला हो । सुखों को त्यागकर ही तू ज्ञान प्राप्त कर सकेगा। ५. अन्त में (स्वः न) = इस देदीप्यमान सूर्य की भाँति (सूर्य:) = तू भी सूर्य बन। 'सू प्रसवैश्वर्ययो:' सूर्य उत्पादन व ऐश्वर्य की देवता है। तू भी उत्पादन के द्वारा ऐश्वर्य का वर्धन करता हुआ आनन्द को प्राप्त कर । आनन्द का रहस्य निर्माण द्वारा ऐश्वर्य वृद्धि में ही है। जीवन की सफलता की यही चरमसीमा है।
भावार्थ
भावार्थ-[१] प्राणशक्ति की सफलता, [२] इन्द्रियों की रचनाकार्यवृत्ति, [३] मन की शुचिता, [४] मस्तिष्क की ज्योति तथा [५] उत्पादन द्वारा ऐश्वर्य वृद्धि - जीवन की सार्थकता इन्हीं पाँच बातों में है।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. यज्ञ करणारे लोक सुगंधियुक्त पदार्थांची आहुती देऊन होम करतात व संपूर्ण वायू इत्यादी पदार्थ शुद्ध करू शकतात, त्यामुळे रोगांचा नाश होऊन सर्वजण दीर्घायू बनू शकतात.
विषय
कोणी ती माणसे वा करो लोक पदार्थानाशुद्ध करतात, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (तुम्ही अशी क्रिया वा असे यत्न करां की ज्यायोगे) (स्वाहा) तुमच्या सत्य (वा प्रामाणिक) प्रयत्नाने (स्व:) सुख प्राप्त होते (न). त्याप्रमाणे (तुम्ही क्रिया करा) तसेच (कर्म: प्रवाप वा प्रयत्नाने (न) ज्याप्रमाणे (स्व:) सुख प्राप्त होते, (अर्स:) अग्नीच्या (स्वाहा) सत्य क्रियाद्वारे (स्व:) (न) जसे सुख प्राप्त होते, (शुक्र:) वायूच्या (स्वाहा) सत्य क्रियाद्वारे (योग्य पद्धतीने उपयोग केल्यास) (न) जसे (स्व:) सुख प्राप्त होते, तसेच (ज्योति:) विद्युतेच्या प्रकाशाच्या (स्वाहा ) सत्य क्रियेद्वारे (योग्य उपाद्वारे) (न) जसे (स्वाहा) सत्य क्रियेद्वारे (योग्य उपायाद्वारे) (न) से (स्वाहा) सुखप्राप्त होते आणि (सूर्य:) सूर्याद्वारे ही जसे तुम्हांस सुख प्राप्त होइल, तुम्ही तसे आचरण व यत्न करावा ॥50॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. (या मंत्रात सांगितले आहे की) यज्ञ करणारी माणसें सुंगधित (व रोगनिवारक) पदार्थांचे होम-हवन करून वायू आदी समस्त पदार्थांची शुद्धी करतात आणि (त्यामुळे रोग नष्ट होऊन सर्व मनुष्यांना दीर्घायू प्राप्त होते (त्यांच्या प्रमाणे इतरांनी देखील यज्ञ करावा. ॥50॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Properly utilised warmth conduces to happiness. Properly utilised fire conduces to happiness. Properly utilised air conduces to happiness. Properly utilised lustre of lightning conduces to happiness. Properly utilised sun conduces to happiness.
Meaning
Warmth is heavenly, soothing, use it well, for yajna. Fire is heavenly, generous, use it well, for yajna. Air is heavenly, energy, use it well, for yajna. Light is heavenly, power, use it well, for yajna. Sun is heavenly, life, miss it not, use it well, for yajna.
Translation
The sun (svah) is the same as gharmah (warmth). Svaha. (1) The sun is the same as arkah (beam). Svaha. (2) The sun is the same as Sukrah (brightness). Svaha. (3) The sun is the same as jyotih (light). Svaha. (4) The sun is the same as suryah. Svaha (5)
Notes
Svarna,स्व: न,like svaḥ. Svaḥ is light, bliss and heaven. The Aditya, sun is called svarṇa, as it is like light, bestows joy, and dwells in the heaven. Svarṇa, is also gold.
बंगाली (1)
विषय
কীদৃশা জনাঃ পদার্থান্ শুন্ধন্তীত্যুপদিশ্যতে ॥
কেমন ব্যক্তিগণ পদার্থকে শুদ্ধ করে এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যেমন (স্বাহা) সত্যক্রিয়া দ্বারা (স্বঃ) সুখের (ন) সমান (ধর্মঃ) প্রতাপ, (স্বাহা) সত্য ক্রিয়া দ্বারা (স্বঃ) সুখের (ন) তুল্য (অর্কঃ) অগ্নি (স্বাহা) সত্য ক্রিয়া দ্বারা (স্বঃ) সুখের (ন) সদৃশ (শুক্রঃ) বায়ু, (স্বাহা) সত্য ক্রিয়া দ্বারা (স্বঃ) সুখের (ন) সমান (জ্যোতিঃ) বিদ্যুতের চমক, (স্বাহা) সত্য ক্রিয়া দ্বারা (স্বঃ) সুখের (ন) সমান (সূর্য়ঃ) সূর্য্য হয় সেইরূপ তোমরাও আচরণ কর ॥ ৫০ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যজ্ঞকারী মনুষ্য সুগন্ধিযুক্ত আদি পদার্থদের হোম দ্বারা সমস্ত বায়ু আদি পদার্থকে শুদ্ধ করিতে পারে যাহাতে রোগক্ষয় হইয়া সকলের বহু আয়ুর্দা হয় ॥ ৫০ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
স্ব॒র্ণ ঘ॒র্মঃ স্বাহা॑ । স্ব᳕র্ণার্কঃ স্বাহা॑ । স্ব᳕র্ণ শু॒ক্রঃ স্বাহা॒ । স্ব᳕র্ণ জ্যোতিঃ॒ স্বাহা॒ । স্ব᳕র্ণ সূর্য়ঃ॒ স্বাহা॑ ॥ ৫০ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
স্বর্ণ ঘর্ম ইত্যস্য শুনঃশেপ ঋষিঃ । সূর্য়ো দেবতা । ভুরিগার্ষ্যুষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
ঋষভঃ স্বরঃ ॥
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