यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 23
ऋषिः - देवा ऋषयः
देवता - कालविद्याविदात्मा देवता
छन्दः - पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
2
व्र॒तं च॑ मऽऋ॒तव॑श्च मे॒ तप॑श्च मे संवत्स॒रश्च॑ मेऽहोरा॒त्रेऽऊ॑र्वष्ठी॒वे बृ॑हद्रथन्त॒रे च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥२३॥
स्वर सहित पद पाठव्र॒तम्। च॒। मे॒। ऋ॒तवः॑। च॒। मे॒। तपः॑। च॒। मे॒। सं॒व॒त्स॒रः। च॒। मे॒। अ॒हो॒रा॒त्रे इत्य॑होरा॒त्रे। ऊ॒र्व॒ष्ठी॒वेऽइत्यू॑र्वष्ठी॒वे। बृ॒ह॒द्र॒थ॒न्त॒रे इति॑ बृहत्ऽरथन्त॒रे। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥२३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
व्रतञ्च म ऋतवश्च मे तपश्च मे संवत्सरश्च मे होरात्रे ऊर्वष्ठीवे बृहद्रथन्तरे च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
व्रतम्। च। मे। ऋतवः। च। मे। तपः। च। मे। संवत्सरः। च। मे। अहोरात्रे इत्यहोरात्रे। ऊर्वष्ठीवेऽइत्यूर्वष्ठीवे। बृहद्रथन्तरे इति बृहत्ऽरथन्तरे। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥२३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
मे व्रतं च म ऋतवश्च मे तपश्च मे संवत्सरश्च मेऽहोरात्रे ऊर्वष्ठीवे बृहद्रथन्तरे च यज्ञेन कल्पन्ताम्॥२३॥
पदार्थः
(व्रतम्) सत्याचरणनियमपालनम् (च) सत्यकथनं सत्योपदेशश्च (मे) (ऋतवः) वसन्ताद्याः (च) अयनम् (मे) (तपः) प्राणायामो धर्मानुष्ठानं वा (च) शीतोष्णादि द्वन्द्वसहनम् (मे) (संवत्सरः) द्वादशभिर्मासैरलंकृतः (च) कल्पमहाकल्पादि (मे) (अहोरात्रे) (ऊर्वष्ठीवे) ऊरू चाष्ठीवन्तौ च ते। अत्र अचतुरवि॰॥ (अष्टा॰५.४.७७) इति निपातः॥ (बृहद्रथन्तरे) बृहच्च रथन्तरं च ते (च) वोढॄन् (मे) (यज्ञेन) कालचक्रज्ञानधर्माद्यनुष्ठानेन (कल्पन्ताम्)॥२३॥
भावार्थः
ये नियतसमये कार्याणि सततं धर्मं चाचरन्ति, तेऽभीष्टसिद्धिमाप्नुवन्ति॥२३॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(मे) मेरे (व्रतम्) सत्य आचरण के नियम की पालना (च) और सत्य कहना और सत्य उपदेश (मे) मेरे (ऋतवः) वसन्त आदि ऋतु (च) और उत्तरायण दक्षिणायन (मे) मेरा (तपः) प्राणायाम तथा धर्म का आचरण (च) शीत उष्ण आदि का सहना (मे) मेरा (संवत्सरः) साल (च) तथा कल्प, महाकल्प आदि (मे) मेरे (अहोरात्रे) दिन-रात (ऊर्वष्ठीवे) जङ्घा और घोंटू (बृहद्रथन्तरे) बड़ा पदार्थ, अत्यन्त सुन्दर रथ तथा (च) घोड़े वा बैल (यज्ञेन) धर्मज्ञान आदि के आचरण और कालचक्र के भ्रमण के अनुष्ठान से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥२३॥
भावार्थ
जो पुरुष नियम किये हुए समय में काम और निरन्तर धर्म का आचरण करते हैं, वे चाही हुई सिद्धि को पाते हैं॥२३॥
विषय
यज्ञ से व्रत, ऋतु, तप, सवंत्सर आदि की प्राप्ति ।
भावार्थ
( व्रतं च ) सत्य, अहिंसा यम नियम आदि का पालन ( ऋतवः च) वसन्त आदि ऋतु, (तपः च) ब्रह्मचर्य आदि तपस्या, ( संवत्सरः च) बारह मासों से परिमित वर्ष, ( अहोरात्रे च ) दिन और रात, ( ऊरु - अष्टीवे च ) जंघाएं और गोड़े तथा उनके समान प्रबल वैश्य वर्ग ( बृहद्रथन्तरे च ) बृहत् साम अर्थात् विशाल क्षात्रबल और रथन्तर साम अर्थात् ब्राह्मणगण ये सब (मे) मेरे ( यज्ञेन ) यज्ञ, द्वारा: ( कल्पन्ताम ) समर्थ हों ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कालविद्याविद् आत्मा । पंक्तिः । पंचमः ॥
विषय
व्रत+रथन्तर
पदार्थ
१. (व्रतं च मे) = मेरा जीवन व्रतवाला हो। वस्तुतः अव्रती जीवन तो कोई जीवन ही नहीं है । (ऋतवः च मे) = मेरे जीवन में वसन्त आदि ऋतुएँ हों। उन ऋतुओं की भाँति मेरे जीवन में सब कार्य ठीक समय पर होनेवाले हों। २. सब कार्यों को ठीक समय पर व ठीक स्थान पर करनेवाला बनने के लिए ही (तपः च मे) = मेरे जीवन में तप हो। मैं आराम पसन्दगी में न चला जाऊँ। इस तपस्या के द्वारा (संवत्सरः च मे) = संवत्सर मेरा हो। [संवसन्ति यस्मिन्], अर्थात् मेरा सम्पूर्ण वर्ष उत्तम क्रियाओं में ही निवासवाला हो। ३. (अहोरात्रे) = मेरे दिन और रात (यज्ञेन) = प्रभु के सम्पर्क द्वारा (कल्पन्ताम्) = शक्तिसम्पन्न हों। मेरा 'अहः [दिन]' सचमुच 'अ+हन्' हो, मेरा नाश करनेवाला न हो तथा रात्रि मेरे लिए सचमुच 'रमयित्री' हो । ४. (ऊर्वष्ठीवे) = [ऊरू च अष्ठीवन्तौ च ] मेरे ऊरू और ऊरूपर्व अर्थात् अष्ठीवन्तौ [घुटने] प्रभु- सम्पर्क से शक्तिशाली बनें। [अर्यते आभ्याम् अह गतौ] मेरे ऊरू सदा गतिवाले हों। 'ऊर्वोरोज:' इस वैदिक प्रार्थना के अनुसार मेरे ऊरुओं में ओज हो और उस ओज के कारण मेरे ऊरू मुझे शक्तिशाली व क्रियाशील बनाये रक्खें। साथ ही मेरे घुटने 'अष्ठीवन्तौ'(अतिशयितामस्थि यस्य) = उत्तम अस्थिवाले हों। उनमें सार हो । वे कार्य बोझ को उठा सकनेवाले हों । ५. इस प्रकार के ऊरू व अष्ठीवन्तों के द्वारा (बृहद्रथन्तरे च मे) = मेरे जीवन में निरन्तर [बृहि वृद्धौ] वृद्धि हो तथा मैं (रथन्तरे) = शरीररूप रथ से इस जीवन यात्रा को तीर्ण करनेवाला बनूँ। ये सब वस्तुएँ (यज्ञेन) = प्रभु- सम्पर्क के द्वारा (कल्पन्ताम्) = सम्पन्न हों।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु की उपासना से मैं व्रती ऋतुओं के अनुसार नियमित जीवनवाला, तपस्वी, सम्पूर्ण वर्ष उत्तम निवासवाला, उत्तम दिन-रात्रिवाला, उत्तम जंघाओं व घुटनोंवाला, वृद्धिशील तथा शरीर रथ से जीवन-यात्रा को तीर्ण करनेवाला बनूँ।
मराठी (2)
भावार्थ
जे पुरुष नियमाने, वेळेवर काम करतात व सतत धर्माचे आचरण करतात ते स्वतःच्या इच्छेप्रमाणे सिद्धी प्राप्त करू शकतात.
विषय
पुनश्च, तोच विषय-
शब्दार्थ
शब्दार्थ (मे) माझी (व्रतम्) सत्याचरण - सदाचार याविषयी नियम-पालनाची इच्छा (च) आणि सत्यभाषण व सत्योपदेश (मी नियमाने आचरण करावे व नेहमी खरे बोलावे व सत्याचाच उपदेश करावा) (माझ्यासाठी कल्याणकारक होवो) (मे) माझे (ऋतव:) वसंत आदी ऋतू (च) आणि उत्तरायण, दक्षिणायन, तसेच (मे) माझा (तप:) प्राणायाम (च) आणि धर्माचरण व शीत, उष्ण आदी सहन करण्याचे सामर्थ्य (माझ्यासाठी हितकर व्हावे) (मे) माझे (संवत्सर:) वर्ष (च) आणि कल्प, महाकल्प आदी कालगणणा, तसेच (मे) माझे (अहोरात्रे) रात्रदिवस, (ऊर्वष्ठावे) जंधा आणि छोटे (ब्रहद्रथन्तरे) मोठे पदार्थ, अत्यंत सुंदर रथ (च) आणि थोडे वा बैल (यज्ञेन) धर्मज्ञान आणि धर्माचरणाद्वारे तसेच कालचक्राच्या भ्रमणामुळे माझ्यासाठी (कल्पन्ताम्) समर्थ व हितकर व्हावेत ॥23॥
भावार्थ
भावार्थ - जे लोक नियमाप्रमाणे सर्व कामें करतात आणि सदैव धर्माप्रमाणे वागतात, ते इच्छित सिद्धी अवश्य प्राप्त करतात ॥23॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May my sacred vow and speaking and preaching of truth, my inter seasons and progress of the sun to the North and solstices, my control of breath and heat and cold, my year and Kalpa and Mahakalpa, my thighs and knees, my big chariot, horses and bullocks prosper through religious practices.
Meaning
My holy vows and my commitments, and my seasons and my solstices with change of the seasons, and my observance of Dharma and my practice of yoga, and my yearly rounds of the sun and the planets and the ages of time, and my days and nights and my daily work and prayers, and my thighs and knees, and my grandeur and nobility, and my heavenly lights and spaces and the cosmic periods, may all these grow by days and nights by yajna, and may all these be good and auspicious for me and for all.
Translation
May my vow and my seasons, my austerity and my year, my days and nights, my thighs and knees, and my both the feet (brhadrathantare) be secured through sacrifice. (1)
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–(মে) আমার (ব্রতম্) সত্য আচরণের নিয়মের পালন (চ) এবং সত্য বলা ও সত্য উপদেশ (মে) আমার (ঋতবঃ) বসন্ত আদি ঋতু (চ) এবং উত্তরায়ণ-দক্ষিণায়ন (মে) আমার (তপঃ) প্রাণয়াম তথা ধর্মের আচরণ (চ) শীত-উষ্ণতাদি সহ্য করা (মে) আমার (সংবৎসরঃ) বর্ষ (চ) তথা কল্প, মহাকল্প আদি (মে) আমার (অহোরাত্রে) দিন-রাত্রি (ঊর্বষ্ঠীবে) জঙ্ঘা ও হাঁটু (বৃহদ্রথন্তরে) বৃহৎ পদার্থ অত্যন্ত সুন্দর রথ তথা (চ) অশ্ব বা বলদ (য়জ্ঞেন) ধর্মজ্ঞান আদির আচরণ ও কালচক্রের ভ্রমণে অনুষ্ঠান দ্বারা (কল্পন্তাম্) সমর্থ হউক ॥ ২৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যে পুরুষ নিয়ত সময়ে কর্ম ও নিরন্তর ধর্মের আচরণ করে সে অভীষ্ট সিদ্ধি প্রাপ্ত হয় ॥ ২৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ব্র॒তং চ॑ মऽঋ॒তব॑শ্চ মে॒ তপ॑শ্চ মে সংবৎস॒রশ্চ॑ মেऽহোরা॒ত্রেऽঊ॑র্বষ্ঠী॒বে বৃ॑হদ্রথন্ত॒রে চ॑ মে য়॒জ্ঞেন॑ কল্পন্তাম্ ॥ ২৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ব্রতং চেত্যস্য দেবা ঋষয়ঃ । কালবিদ্যাবিদাত্মা দেবতা । পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বর ॥
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