अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 18
ऋषिः - बृहस्पतिः
देवता - फालमणिः, वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - मणि बन्धन सूक्त
1
ऋ॒तव॒स्तम॑बध्नतार्त॒वास्तम॑बध्नत। सं॑वत्स॒रस्तं ब॒द्ध्वा सर्वं॑ भू॒तं वि र॑क्षति ॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒तव॑: । तम् । अ॒ब॒ध्न॒त॒ । आ॒र्त॒वा: । तम् । अ॒ब॒ध्न॒त॒ । स॒म्ऽव॒त्स॒र: । तम् । ब॒ध्द्वा । सर्व॑म् । भू॒तम् । वि । र॒क्ष॒ति॒ ॥६.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋतवस्तमबध्नतार्तवास्तमबध्नत। संवत्सरस्तं बद्ध्वा सर्वं भूतं वि रक्षति ॥
स्वर रहित पद पाठऋतव: । तम् । अबध्नत । आर्तवा: । तम् । अबध्नत । सम्ऽवत्सर: । तम् । बध्द्वा । सर्वम् । भूतम् । वि । रक्षति ॥६.१८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।
पदार्थ
(ऋतवः) ऋतुओं ने (तम्) उस [मणि, वैदिक नियम] को (अबध्नत) बाँधा है, (आर्तवाः) ऋतुओं के अवयवों ने (तम्) उस को (अबध्नत) बाँधा [माना] है, (संवत्सरः) संवत्सर [वर्ष वा काल] (तम्) उसको (बद्ध्वा) बाँधकर (सर्वम्) सब (भूतम्) जगत् को (वि) विविध प्रकार (रक्षति) पालता है ॥१८॥
भावार्थ
कारण और कार्य रूप काल परमात्मा के नियम से संसार का उपकार करता है ॥१८॥
टिप्पणी
१८−(ऋतवः) वसन्तादयः कालविशेषाः (तम्) नियमम् (अबध्नत) गृहीतवन्तः (आर्तवाः) ऋतु-अण्। ऋतूनामवयवाः (संवत्सरः) वर्षकालः (बद्ध्वा) गृहीत्वा (सर्वम्) (भूतम्) जगत् (वि) विविधम् (रक्षति) पाति ॥
विषय
ऋतवः, आर्तवाः, संवत्सरः
पदार्थ
१. (ऋतवः) = [ऋगती] ऋतुओं की भौति नियमित गतिवाले-व्यवस्थित दिनचर्यावाले लोग (तम्) = उस वीर्यमणि को (अबध्नत) = अपने अन्दर बाँधते हैं। (आर्तवा:) = ऋतुओं के अनुसार चर्यावाले ऋतुचर्या का ठीक से पालन करनेवाले (तम् अबभ्रत) = उस वीर्यमणि को अपने अन्दर बद्ध करते हैं। २. (संवत्सरः) = [संवत्सर इव नियमेन वर्तमान:-द० य० २७।४८] वर्ष की तरह नियम में चलनेवाला और इसप्रकार अपने निवास को उत्तम बनानेवाला [सं वसति इति] व्यक्ति (तं बद्ध्वा) = इस वीर्यमणि को अपने में सुरक्षित करके (सर्वं भूतम्) = सब शरीरस्थ अङ्गों को-पदार्थों व तत्त्वों को विरक्षति रक्षित करनेवाला होता है।
भावार्थ
हम ऋतुओं की भाँति नियमित दिनचर्यावाले बनकर, ऋतुचर्या का भी पालन करते हुए, वर्ष की भाँति नियम में वर्तमान होकर वीर्य का रक्षण करें। रक्षित वीर्य शरीरस्थ सब धातुओं व पदार्थों का रक्षण करेगा।
भाषार्थ
(ऋतवः) ऋतुओं ने (तम्) उस कामनारूपी मणि को मानो बान्धा, (आर्तवाः) ऋतुओं के अवयवों मासों या ऋतुओं के समूहों अयनकालों ने (तम्) उस कामनारूपी मणि को मानो (अवध्नत्) बान्धा। (संवत्सरः) संवत्सर (तम्) उस कामनारूपी मणि को मानो (बद्ध्वा) बान्ध कर (सर्वम्) सब (भूतम्) उत्पन्न सौर-जगत् की (वि रक्षति) विशेष रक्षा करता है।
टिप्पणी
[ऋतु आदि जड़-तत्त्वों में कामना कवितारूप में कथित है। ये मानो कामनापूर्वक विविध उत्पत्तियां१ कर रहे हैं। प्रत्येक मास, प्रतिऋतु तथा द्विविध अयनकालों में विविध उत्पत्तियां हो रही हैं। जड़तत्त्वों के सम्बन्ध में भी चेतनकार्यों का वर्णन वैदिक साहित्य में होता है। यथा “तत् तेज ऐक्षत बहु स्यां प्रजायेयेति"; "ता आप ऐक्षन्त बह्व्यः स्याम प्रजायेमहि" (छान्दोग्य उप० अध्याय ६, खण्ड २)। तथा "ध्यायतीव पृथिवी, ध्याय-तीवान्तरिक्षं, ध्यायतीव द्यौः, ध्यायन्तीवापः, ध्यायन्तीवः पर्वताः" (छान्दोग्य उप० अध्याय ७ खण्ड ६) में पृथिवी, अन्तरिक्ष, द्यौः, आपः, पर्वताः के सम्बन्ध में "ध्यान" का वर्णन है। ईक्षण और ध्यान चेतन-धर्म हैं।] [१, ऋतुएं, आर्तव, संवत्सर न तो ये स्थूल तत्त्व हैं जिनके साथ कोई स्थूल मणि, बान्धी जा सके और न ये चेतन ही हैं कि ये स्वयं किसी स्थूल मणि को अपने साथ बान्ध सकें। इसलिये इस मन्त्र के जो अभिप्राय अर्थों में दर्शाएं हैं वे ही उचित प्रतीत होते हैं।]
इंग्लिश (4)
Subject
Manibandhana
Meaning
That same divine will and energy, the seasons bear, all cycles of the seasons and all that conform to the seasons bear, and the year, which is the presiding power of time over the seasons, bears and thereby protects and promotes all existent facts and processes of the universe over the ways of evolution.
Translation
The seasons (rtavah) have put on that; groups of seasons have put on that. The year, having put that on, sustains all the beings.
Translation
The seasons bind that, the parts of season bind that and binding that the year protects all the creatures. [N.B.: Here the term binding stands for wearing. This wearing is not anyhow like the wearing of ours. As the citron tree grows in seasons, groups of seasons and through the year so they are described to wear this in natures beautiful arrangements.]
Translation
Government officials observe this Vedic Law. The valiant soldiers follow it. The king obeying this law protects mankind.
Footnote
See Pt. Jaidev Vidyalankar’s commentary for the detailed significance of Ritva, Artva, and Samvatsara.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१८−(ऋतवः) वसन्तादयः कालविशेषाः (तम्) नियमम् (अबध्नत) गृहीतवन्तः (आर्तवाः) ऋतु-अण्। ऋतूनामवयवाः (संवत्सरः) वर्षकालः (बद्ध्वा) गृहीत्वा (सर्वम्) (भूतम्) जगत् (वि) विविधम् (रक्षति) पाति ॥
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